
(चुनावी घबराहट)
आवो… हर हर मोदी गाये, जनता के लूट का जश्न मनाऍ। यह हम नही, आर्टिकल 19 चॅनेल के वरीष्ठ पत्रकार नवीन कुमार कह रहे है । (ये युट्युबर्स भी ना, क्या क्या मिम्स और टॅग लाइन बनाते है पता नही। लेकिन होते है बडे सटीक) हमारे बडे साहब ने कल याने २०/९/२०२५ को श्याम ५ बजे देश को संबोधित करते हुवे कहाॅं, हमने (वे हमारी सरकार कभी नही बोलते, सारा क्रेडिट खुद्द लेते है) इस पर जीएसटी कम किया, उस पर जीएसटी कम किया शिक्षा की चीजों पर से तो झीरो कर दिया। (भै… शिक्षा तो जनता का मूलभूत अधिकार है जिस पर आज तक किसी सरकार ने तुघलकी टॅक्स नही लगाया था) अजी हुजूर, पिछले ८ सालों में आपने कितना फ़िसदी टॅक्स लगाकर कितना फ़िसदी घटाया? बडी चीजें जैसी कारे, भारी भारी मोटर सायकीलें, टीव्ही, एसी जैसी चीजें छोड दिजिऍ, इस से धन्नाशेठों कों जादा फर्क पडनेवाला नही। लेकिन टॅक्स से महंगाई बढती है और उसका असर मिडल क्लास, लोअर मिडल क्लास और ग़रीबों पर भारी पडता है। महिलाओं के लिए घर खर्चा चलाने का बजेट चौपट हो जाता है साहब… सरकारने तो दूध पिते बच्चों के दूध और उनके बिस्किट पर भी जीएसटी लगाया था जनाब… कार से लेकर दूध/दही/घी/तेल/आटा/चायपत्ती/चीनी/साबुन/सोडा जैसी रोजमर्रा की जिंदगी से जुडी हुयी चीजों पर भी १ जुलै २०१७ से लेकर आज तक याने ८ सालों तक ५ फ़िसदी से लेकर २८ फ़िसदी तक टॅक्स लगा दिया था साहब… इस जैसी तमाम चीजें आम जनता द्वारा रोज रोज खरेदी जाती है। और हर बार टॅक्स वसूला जाता है। तो ८ सालों में कितना टॅक्स वसूला होगा? जरा हिसाब लगा लिजिऍगा। अर्थनीती जानकारों का कहना है, पिछले ८ सालों में ५५ लाख करोड का (५५ पर १२ शुन्य) सरकार द्वारा जनता से टॅक्स वसूला गया। जनता का जीना हराम हुवा था। अब उसी टॅक्स में थोडीशी कटौती की गयी तो जश्न मनाने को कहाॅं जा रहा है। अजब गजब है ना? याने छोटे बच्चे से बिस्किट का पुडा छिनकर उसमें से सिर्फ दो बिस्किट निकाल कर उस बच्चे को देना जैसा ही है। (यहाॅं देश चलाने वाले व्यापारी बैठे है। इसलिए वे खुद्द का नफा नुकसान पहले देखते है) अगर आम जनता की भाषा में कहाॅं जाऍ तो ८ सालों में किलो किलो की लूट और अब छटाक भर की छुट? यह बिलकुल नाइंसाफ़ी है हुजूर, बिलकुल नाइंसाफ़ी! इस से बीजेपी समर्थक भी नही छुटे। फिर भी समर्थक सरकार के पक्ष में (मजबुरी से) कशिदें पढने लगे। इसी जनता की लूट के पैसों से देश के लगभग सारे अख़बारों में विज्ज्ञापन देकर बादशहा सलामत कह हरे है की, देशवासीयों इस (लूट) का जश्न मनाओं। माशाल्लाह! क्या बात है! अब बादशहा सलामत ने ही कहाॅं जश्न मनाओं तो उनके राजदरबारी कैसे पिछे रह सकते है जी? वे भी कहने लगे ‘आज से बहोत बडा बचत महोत्सव शुरू हो रहा है’ (बचत जैसी चीज देशवासीयों ने कभी देखी ही न हो) तो दुसरे ने कहाॅं ‘जश्न मनाओं आज बचत की शुरवात हो रही है। (मतलब आज तक जनता अपने मेहनत का सारा पैसा हवा में उडाती रही थी क्या?मंत्री-संत्री और उनके नुमाइंदों जैसे) इसे ही कहते है, किसी के द्वारा पढाई गयी बातें। जिल्ल-ए-इलाही (ईश्वरी साया=नाॅन बाॅयलाॅजिकल) की गोदी मिडिया और बीजेपी समर्थक भी यही कहने लगे। भै… मुल्क के रहनुमा ने ही कहाॅं है तो, यह लोग कैसे पिछे रह सकते है? वैसे भी उन्हे उनके लिए पिछडना, पिछे रहना, पिछडा जैसे शब्द हरगिज़ हरगिज़ मंजूर नही। (भले वे किसी और को पिछडा, अती पिछडा कहे) इसलिए उनको किसी राजनैतिक होड़ में पिछे रहना उनकी जहांगीरदारी या उनके शान के ख़िलाफ़ लगता है। खैर!
दर असल बिहार में एस आय आर और वोट चोरी के मुद्दें काफ़ी गरमाऍ है। ख़बरों द्वारा पता चलता है की, वोट चोरी जांच के लिए कर्नाटक सरकारने एस आय टी (स्पेशल इन्व्हेस्टिगेशन टीम) समिती गठीत की है। क्यों की मुख्य चुनाव आयोग, दिल्ली के दप्तर में जाकर मामले की जांच कर सके। (आज तक के आयोग के रवैय्ये को देखते हुवे) अगर आयोग फिर भी नही मानता, तो एस आय टी सुप्रीम कोर्ट से सर्च वाॅरंट लाने की मंषा भी रखती है। ऐसा राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है। इसी जद्दोजहद्द की स्थिती में आगे बिहार विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। चुनाव आयोग अगले माह याने की अक्टूबर में चुनाव की तारीख घोषित कर सकता है। यदी चुनाव आयोग और एस आय टी समिती का आपस में जांच और संवैधानिक नियमों को लेकर कोई टकराव होता है तो, बिहार विधानसभा चुनाव आगे कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। यह भी संभावना हो सकती है। इसका चंद दिनों में पता चलेगा ही। लेकिन इस तनाव को लेकर बीजेपी सरकार बडी सक्ते में, चिंता में है। वैसे वह कभी चिंता-विंता में नही रहती। लेकिन हाल ही में पडोंसी मुल्कों के हालात देखकर उनको डर सता रहा है। क्यों की कल-परसों लडाख और देहरादून से लेकर धीरे धीरे दक्षिण भारत में छात्र-छात्रा और युवा वर्ग के द्वारा चलाया गया आंदोलन से जो स्थिती बनी है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है। मुल्क के मिजास बडे तल्ख़ होते जा रहे है। इसलिए बीजेपी सरकार के खेमें में एस आय आर और चुनावी घबराहट जैसी स्थिती उत्पन्न हुयी है। (यह स्थिती उनके गलत नीती की के कारण उत्पन्न हुयी है।) इसी के कारण शायद सरकारने जीएसटी कम करने का खेल रचा होगा। ऐसा जानकारों का मानना है। ता की जनता एस आय आर और वोट चोरी के मुद्दे पर चर्चा ना करे, और टॅक्स कम होने पर ही चर्चा होती रहे। उसी वक्त उन्हे (बीजेपी सरकार को) कोई नया खेल/षडयंत्र रचाने का अवसर भी मिल सके। वैसे भी बीजेपी सरकारे (राज्य/केंद्र) चुनाव के वक्त नये नये जुमलें (गृहमंत्री के शब्द) का प्रयोग करती रहती है, जैसे की, राजस्थान में गॅस सिलेंडर की किमतें कम करने की घोषणा हो, मध्यप्रदेश में लाडली बहना योजना हो, महाराष्ट्र में 'मुख्यमंत्री लाडकी बहीण योजना' हो और अब बिहार के चुनाव में जनता को खास कर युवा वर्ग को आक्रोशित देखकर जीएसटी में कटौती हो, महिलाओं के खातें में १०-१० हजार की धनराशी जमा करने की बात हो, ये सब चुनावी जुमले है साहब... इस में बहुजन जनता भावनाओं में आकर बहोत जल्द ही बह जाती है। इसी का फ़ायदा वे लोग उठाते है। बीजेपी सरकार को बिहार का चुनाव किसी भी हालातों में जीतना ही है, और उसके लिए संविधान के किसी नियमों का उल्लंघन करना हो, किसी तत्वों का, किसी मूल्यों को नही मानना हो, तो सरकार वह भी करेगी। और करती आ रही। किसी भी तरह चुनाव जीतने की कोशिशें करेगी। इस से बेशक समझ लिजिऍगा साहब... की, चुनाव आयोग और सरकार मिलकर बिहार चुनाव जनता से जनता न चाहते हुवे भी जबरदस्ती छिन सकती है। पता नही दिल्ली तख्त पर बैठे हुवे, चुनाव को लेकर जनता को भ्रमित क्यों करते रहते है? (जैसे की बडे बडे पत्रकारऔर राजनैतिक विश्लेषक कहते है) (सरकार के नुमाइंदे जो बयान देते है उस से लगता है) पहले खुद्द जहाॅंपनाह, जो खुद्द को इस मुल्क को जहांगीरी के रूप में आजीवन जहाॅंपनाह समझते है, और दुसरे वजीर-ए-आज़म दोनो भी सत्ता में बने रहने के लिए बेहद कौशिशों में लगे रहते है। अच्छा! उनकी कोशिशें भी असंवैधानिक रूप से होती है। वे किसी हालत में अपने आप सत्ता से या संवैधानिक रूप से हटने वाले नही, क्यों की सत्ता से वापस लौटने के डोर उन्होने खुद्द ही अपनी करतुतों से काट चुके है। असंवैधानिक कार्यों का पहाड खडा कर रखने पर सत्ता से हटना उनके लिए आगे असुविधाजनक स्थिती पैदा कर सकती है। इसलिए वे सत्ता से हटेंगे नही। यह पत्रकारिता में ५०-५० साल गुज़ारने वाले बडे बडे राजनैतिक पत्रकार/विश्लेषक और आम जनता का भी आकलन है हुजूर। चाहे और कोई कुछ भी कहें।
– अशोक सवाई.
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