कायदे विषयकमहाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठ

कुछ ब्राह्मणों द्वारा दी गई कुप्रथाएं जो अब लगभग बन्द हो चुकी हैं

1चरक पूजा :—-

अंग्रेजों नें 1863 में कानून बना कर इस प्रथा का अंत किया (चरक पूजा जब कभी भवन एवं पुल का निर्माण किया जाता था तो शूद्रों की स्त्री,पुरुष एवं बच्चों को जिंदा चुनवा दिया जाता था। इसकी मान्यता थी कि भवन या पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहते हैं।)

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सती प्रथा :——


दिसम्बर 1819 अंग्रेजों नें अधिनियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अन्त किया और महिलाओं को आजाद किया ।
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देवदासी प्रथा :—-


ब्राहमणो के कहने पर शूद्र अपनी लड़कियों को मंदिर की सेवा केलिए दान दे देते थे। मंदिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। और उससे जो बच्चा पैदा होता था उसे फेंक कर हरिजन नाम दे देते थे 1921 में अंग्रेजों ने जातिवार जनगणना कराई जिसमें अकेले मद्रास में 2 लाख देवदासी थी।

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बाल विवाह :——


अंग्रेजों नें 1872 सिविल मैरिज एक्ट बनाकर 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवं 18 वर्ष से कम आयु के लड़‌कों का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाई।

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दास प्रथा : ——


अंग्रेजो ने 1813 में कानून बनाकर दास प्रथा का अंत किया जिसमें शूद्र वर्ण की महिलाओं को दास बनने से मुक्ति मिली ।

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शुद्धिकरण प्रथा :—–


अंग्रेजो ने 1819 में अधिनियम 7 के द्वारा शुद्धिकरण प्रथा का अन्त किया। इस प्रथा में शूद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने दूल्हे के घर न जाकर कम से कम 3 दिन रात ब्राहमण के घर शारीरिक सेवा देनी पड़ती थी।

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स्तनकर प्रथा : —–


19 वीं सदी में केरल के त्रावणकोर के राजा द्वारा
निचली जाति की महिलाओं पर स्तन ढकने पर कर लगाया जाता था। नांगेली शूद्र महिला ने स्तनकर के विरोध में अपने दोनो स्तन काटकर केले के पत्ते में रख दिये थे बात हवा की तरह फैली टीपू सुल्तान और अंग्रेजों ने कानून बनाकर स्तनकर की प्रथा को रद्द किया ।

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किशोरी लड़कियों को अर्धनग्न रखना :—–


तमिलनाडु के मदुरै जिले में येजाइकाथा अम्मान मन्दिर में लड़‌कियों को देवी बनाकर 15 दिनों तक अर्धनग्न (ऊपर का हिस्सा बिना कपडों के रखा जाता था। अभी भी है।)
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नरबलि प्रथा :——-


अंग्रेजों ने 1930 में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई ( इस प्रथा में ब्राह्मण देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए शूद्रों की स्त्री और पुरुष दोनों को मंदिर में सिर पटक-पटक कर बलि चढ़ा देते थे।)

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कन्या हत्या:——-


सन् 1904 में अधिनियम 3 द्वारा

अंग्रेजों ने कन्या हत्या पर रोक लगाई । कन्या हत्या में एक महिला को इस कदर प्रताडित किया जाता था कि उसके स्तन में धतूरा लगा कर स्तनपान कराया जाता था और बेटी होने पर भूसा में गड‌वा दिया जाता था या एक गड्ढे में पानी या दूध भरकर डुबा दिया जाता था।

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प्रथम पुत्र गंगा दान प्रथा :—-


सन् 1835 में अंग्रेजों ने प्रथम पुत्र गंगा दानपर रोक लगाई । इस प्रथा में अगर ‌कोई शूद्र (OBC) के यहां पहला बच्चा पैदा होता था तो उसे ब्राहमण द्वारा गंगा में बहा दिया जाता था।

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बहु विवाह प्रथा :——


सन् 1867 में अंग्रेजों ने बहु विबाह प्रथा पर रोक लगाई सन् 1867 के पहले एक पुरुषकी अनगिनत पत्नियां हो सकती थी.

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डावरिया प्रथा :—–


इस प्रथा में राजा महाराजा सामंतियों जागीदारों और पूजीपतियों की बेटियों की शादी में दहेज के साथ-साथ शुद्र वर्ण (OBC) की कन्याओं को दासी बना कर उम्र भर सेवा के लिए भेजा जाता था जब अंग्रेजों ने दास प्रथा पर रोक लगाई तो यह प्रथा भी बन्द हो गई.

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दहेज प्रथा :——-


जो अब भी चालू है इतने कानून के बाद‌ भी ।

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असमान न्याय व्यवस्था :—–


सन् 1773 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी नें रेग्युलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी 6 मई 1775 में इसी कानून के द्वारा बंगाल के सामंती ब्राहमण नंद कुमार देव को बलात्कार के जुर्म में फांसी की सजा हुई थी।बलात्कार तो उस वक्त तो बहुत हुए थे पर पहली बार किसी ब्राहमण को सजा हुई।

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