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बहुजन छावनी की हुंकार से ब्राह्मणी छावनी में सन्नाटा —-
बहुजनों की पार्टियां अपनी भूमिका स्पष्ट करें!
महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन को लगभग एक महीना हो गया शुरुआत बौद्ध भंतेगण ने महाबोधि महाविहार के प्रांगण में आमरण अनशन से किया पन्द्रह दिनों में ही देश विदेश से जो अपार जनसमर्थन मिला ब्राह्मणी छावनी में घबराहट फैल गई आनन फानन में रात को पुलिस प्रशासन की मदद से धरना स्थल खाली करा दिया गया लेकिन मजबूरी में दो किलोमीटर दूर मगध युनिवर्सिटी के पास एक मैदान देना पड़ा जहाँ निरंतर धरना आंदोलन जारी है।
इस बीच महाबोधि महाविहार में किस तरह गौतम बुद्ध की मूर्तियों को पंडों द्वारा अर्जुन भीम नकुल सहदेव युधिष्ठिर आदि बताया जा रहा है किस तरह प्रशासन की मिलीभगत से वहाँ मंदिर बनाकर और ब्राह्मणी प्रतीकों मूर्तियां शिवलिंग आदि स्थापित करके सम्राट अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध विरासत को ब्राह्मणों द्वारा कब्जा किया गया है यह सारी दुनिया ने देखा और यह सब हुआ बी टी एक्ट 1949 के कारण जिसमें महाबोधि महाविहार की प्रबंधन कमेटी में चार हिन्दू जाहिर है हिन्दू के नाम पर ब्राह्मण ही रहेंगे चार बौद्ध वह भी सिर्फ नाम के ही और एक कलेक्टर वह भी कौन होगा सरकार तय करेगी सरकार क्या तय करती है यह सबको पता है कुल मिलाकर बौद्धों की विरासत पर ब्राह्मणों का कब्जा अब लड़ाई इसी बात को लेकर है कि बी टी एक्ट पूर्ण रूप से निरस्त करके महाबोधि महाविहार को पूर्णतः बौद्धों को सौंप दिया जाय।
लेकिन न संघ भाजपा इसके लिए तैयार है न उनके समर्थन से बिहार सरकार चला रहे नीतीश कुमार ही कुछ बोलने को तैयार हैं । पहले ब्राह्मणों द्वारा किए इस अवैध कब्जे की जानकारी बहुत कम लोगों को थी लेकिन इस मुक्ति आंदोलन के कारण सारे बहुजनों को पता चल गया है कि उनकी विरासत पर ब्राह्मणों ने कब्जा जमा रखा है और ऐसे बौद्ध स्थल पूरे देश में हैं जहाँ ब्राह्मणों ने या तो मंदिर बना लिया है या पुरातत्व विभाग से मिलीभगत करके अतिक्रमण किया हुआ है जिसके कारण बहुजन समाज में आक्रोश बढ़ता जा रहा है और महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के समर्थन में पूरे देश में ही नहीं विदेशों में भी धरना प्रदर्शन हो रहे हैं रैलियां निकल रही हैं।
संघ भाजपा नियंत्रित टीवी चैनल और अखबार इस आंदोलन की कोई खबर नहीं दिखा रहे हैं यहाँ तक कि प्रगतिशीलता का नकाब लगाकर रात दिन संघ भाजपा के विरोध में डिबेट करने वाले ब्राह्मण यूट्यूबर भी इस मुद्दे पर मौन हैं,केंद्र सरकार बिहार सरकार सब मौन हैं यह सब तो स्वाभाविक ही है क्योंकि ये ब्राह्मणों द्वारा अवैध कब्जे के समर्थन में हैं लेकिन चन्द्रशेखर आजाद के अलावा बहुजनों की पार्टियां भी इस मुद्दे पर असमंजस की स्थिति में हैं और मौन हैं सिर्फ राजद के एक विधायक ने बिहार विधानसभा में ब्राह्मणों द्वारा अवैध कब्जे खिलाफ आवाज उठाई जबकि पूरे देश की हर विधानसभा और लोकसभा में भी ब्राह्मणों की इस चोरी और सीनाजोरी के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए।
बहुजनों की सभी छोटी बड़ी पार्टियों को सारी हिचकिचाहट छोड़कर सत्य और न्याय के साथ खड़े होने की जरूरत है और सत्य यही है कि महाबोधि महाविहार बौद्ध विरासत है जिस पर ब्राह्मणों ने अवैध कब्जा कर रखा है, महाबोधि महाविहार पूर्णतः बौद्धों को सौंपकर ही उनके साथ न्याय किया जा सकता है संघ भाजपा खुलकर अतिक्रमणकारी ब्राह्मणों के साथ खड़ी है तो बहुजन पार्टियों को भी निर्णय लेना होगा कि वे अतिक्रमणकारी ब्राह्मणों के साथ हैं या अपनी विरासत बचाने की लड़ाई लड़ रहे बहुजनों के साथ?
बहुजन पार्टियों के मुखिया इस गलतफहमी में न रहें कि यह लड़ाई ब्राह्मणों के विरुद्ध बौद्धों की है बल्कि यह लड़ाई ब्राह्मण विरुद्ध बहुजन है क्योंकि बहुजनों को अपने इतिहास (बौद्ध इतिहास) अपने पुरखों (गौतम बुद्ध, कबीर,रैदास, फुले साहू, अंबेडकर पेरियार) और अपनी विरासत (विज्ञान वादी, मानवता वादी बौद्ध विरासत) को पहचानने लगे हैं बहुजनों को पता चल गया है कि उनके पुरखे बौद्ध ही थे ब्राह्मणों ने बौद्ध स्थलों पर ही अपने काल्पनिक प्रतीकों भगवानों देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित करके कब्जा नहीं किया है बल्कि बहुजनों के दिमाग में भी अपने काल्पनिक प्रतीकों देवी देवताओं किस्म किस्म के भगवानों को स्थापित करके समतावादी, विज्ञान वादी बौद्ध से विषमता वादी अंधविश्वसी हिन्दू बनाकर अपना सामाजिक धार्मिक राजनीतिक वर्चस्व स्थापित कर लिया है और जब तक बहुजन इस ब्राह्मणी मकड़जाल से बाहर निकलकर अपनी बौद्ध विरासत से नहीं जुड़ेगा भारत का शासक वर्ग नहीं बन सकता। बहुजन समाज तो जाग रहा है ब्राह्मणी पाखंड अंधविश्वास से बाहर निकलकर बौद्ध विरासत से जुड़ भी रहा है लेकिन बहुजन समाज की छोटी बड़ी पार्टियां कब जागेंगी? कब खुलकर महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के साथ खड़ी होंगी? ध्यान रहे बहुजन समाज ब्राह्मणों के संगठन संघ भाजपा पर ही नहीं बहुजनों का नेतृत्व करने वाली राजनीतिक पार्टियों पर भी बारीक नजर बनाए हुए है सबकी भूमिका का अध्ययन कर रहा है ,
यदि समय रहते बहुजन पार्टियों ने महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के पक्ष में खुलकर बहुजनों का साथ नहीं दिया तो उनका भी विकल्प तलाशने में बहुजन समाज देर नहीं करेगा।
चन्द्रभान पाल (बी एस एस)
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