महाकूंभ का काला सचअशोक सवाई

(अवैज्ज्ञानिक)
वक्त का अपना एक मिज़ास होता है। कभी वो बेरहम तो कभी मेहरबाॅं होता है।* उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जब से महाकूंभ आयोजित किया तब से वहाॅं वक्त की बडी ख़प्पा मर्जी चल रही है। खास तौर संगम तट पर। शुरू में महाकूंभ के पंडाल में एक नही दो दो बार आग लगी थी। युपी सरकार के आलाकमान
ने देशभर में बडे बडे विज्ज्ञापनों द्वारा आवो आवो प्रयागराज के संगम में मौनी अमावस (उनके हिसाब से बाकी अमावस अशुभ) को शाही/अमृत स्नान करो गंगा में डुबकी लगाकर पवित्र होकर पुण्य कमावो यह मौका फिर १४४ साल बाद ही आएगा। आस्था पर विश्वास रखनेवाले भोलेभाले बहुजन लोग करोडो की संख्या में वहाॅं पुण्य कमाने पहुंचे। तब वक्त का मिजास बडा ही बेरहम था। कहाॅं जाता है, वहाॅं रात में अचानक भगदड़ मची। लोग एक दुसरे पर गिरने लगे। पिछेवाले लोग उनको कुचलते, रौंदते हुवे इधर उधर भागने लगे। उस में कही लोगों की मौते हुयी। उस में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाए थी। बडा दर्दनाक हादसा था। कही अपनों से अपने बिछड़ गये। कही लोग लापता हो गये। अपनों को धुंढते धुंढते लोग बेहाल हो गये। जैसे कही लोग लापता हो गये, वैसे ही युपी सरकार के लिए मृतकोंं का सही आंकडा भी लापता हो गया। जो अभी तक लापता ही है। दिल्ली तख्त के आलमगीर जहाॅंपनाह, जहाॅंपनाह के वजीर-ए-आलम, उनके धनकुबेर यार/दोस्त और वजीर-ए-आलम के इदगीर्द रहने वाले छोटे बडे शाही नुमाइंदे जो जनता के बिच अपना नबाबी थाट दिखाते है। और युपी के सत्ताधीश जनाब-ए-मन और उनका शाही काफ़िला, बडे बडे मठाधिपती, साधू, संत, महंत,(?) फिल्मी अद़ाकार/अद़कारा इन सभी ने संगम तट पर गंगा में बडी भक्तीभाव से (?) डुबकी लगाकर हसते खेलते, एक दुसरे पर गंगा का पानी उछालकर शाही स्नान/अमृत स्नान किया। अपने अपने पाप धोये और पवित्र होकर भारी भरकम पुण्य कमाया। अगले पाप करने के लिए! मानो जैसे यह उनकी कृती उनके अवैध, अनैतिक कारनामों का कबुलीजबाब था। खैर…
कुछ कर्मठ नफरती चिंटूओंने कूंभ में आने और वहाॅं अपनी दुकाने लगाने के लिए मुसलमानों को मना कर दिया... नही नही बल्कि बाकायदा ऐलान कर दिया था। बेचारे मुसलमानों ने भी कूंभ में न जाकर अपनी रोजी रोटी कमाने का मोह छोड दिया। और ये अच्छा भी हुवा। नही तो बेवजह हादसे का ठिकरा उनके ही सर पर फोडा जाता। २०१४ के बाद नफ़रत भरी निग़ाह से देखने वाले हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने मुस्लिमों, पिछडो, अतीपिछडों, आदिवासी गरीब मज़लुमों पर क्या क्या जुल्म ढ़ाए, मुस्लिमों पर क्या क्या तौहमते लगाए गये, अद़ालतों की तौहीन करके प्रदेश की सरकारने उनके घरों पर बुलडोझर चढाये। (यह सब नाजायज कारनामे जनता के सामने उजागर हो गये) फिर भी मुसलमान ख़ामोश थे। अपने खामोशी के आलम में जी रहे। यह सारी दुनियाने देखा/देख रही है। परंतु हादसे के बाद लोग भूके प्यासे अपने परिजनों को इधर उधर ख़ोजने के लिए भटकने लगे तब प्रयागराज के मुसलमान ही उनकी मदत के लिए सामने आए। उन्होने अपने मशीद, मज़ार यहाॅं तक की अपने घरों में बेहाल हिंदूओं को पनाह दी। उनके खानपान, नास्तापानी, दवादारू का इंतजाम किया। मेहमानों की तरह उनकी ख़िदमद की, मेहमान नवाज़ी की, साथ में दुवाॅंए भी दी। इसे ही हमारे वतन में गंगा जमुना की तहज़िब कहाॅं जाता है। धर्म के ठेकेदारो जरा समझो। महाकूंभ न जाते हुवे भी घर बैठे मुस्लिमों ने महाकूंभ का महापुण्य कमाया ऐसा कहना ग़लत नही होगा। और यह भी कहना ग़लत नही होगा की, तथाकथित हिंदू के ठेकेदारों ने मुस्लिमों को कूंभ में आने से मना करने बाद खुद्द महा कूंभ मुसलमानों के दर पर चला गया। यही है समय का सही हिसाब।
जिन देशवासीयों के मन में अल्पसंख्याक के लिए नफ़रत पनप रही है उनको समझाने का प्रयास करेंगे। कुछ बाहर के मुस्लिम और ब्रिटिश आक्रांता के रूप में यहाॅं आए। कुछ समय के लिए उन्होने यहाॅं राज किया, अपना कारोबार किया और जब उनका यहाॅं से जाने का समय आया तब वो चले गये। यहाॅं जो भी अल्पसंख्याक है वो इसी देश की मिट्टी में जन्मे है। इसी माटी में फुले फले। इस देश के आझादी के लिए उनका भी काफी योगदान था। और आज भी है। जब अतीत में आज के एससी/एसटी/ओबीसी के पूर्वजनों पर वैदिक धर्म के कर्मठ ब्राह्मणों द्वारा बेवजह बेहद, बेतहाशा, अन्याय, अत्याचार, जुल्म ढ़ाए गये, जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नही। इस जुल्म से उक्त लोग बेहद परेशान थे, जुल्म के रोजमर्रा की जिंदगी से उब चुके थे, तंग आये थे, अपनी जिंदगी और नसीब को हर दिन कोसते थे। इस लिए उक्त लोगों के पूर्वजनों ने अलग अलग धर्म में अपना धर्म परिवर्तन किया और धर्म परिवर्तीत होकर अपने जुल्मो से छुटकारा पा लिया। अगर उस वक्त छुपाया गया बौद्ध धम्म उज़ाले में होता तो वो लोग यकिनन बौद्ध धम्म ही अपनाते। आज की दौर में देश के कोने कोने में बौद्ध धम्म अपनाने का सिलसिला बडी तेजी से चल लहा है। *अब तूम लोग लाख कोशिशे करलो हिंदू हिंदू कहकर हिंदूओंको इकठ्ठा करने की, मगर याद रहे, आज का वक्त तुम्हारे जुल्मों का इतिहास कभी भुलेगा नही। यही है तुम्हारे लिए तुम्हारी विनाश काले विपरीत बुद्धी।* धर्म परिवर्तीत लोग भारतीय मूलनिवासी है। इसका प्रमाण यह है की, अमरिका के डीएनए के शंशोधक डॉ. मायकेल बामशाद ने भारत में भारतीयों का डिएनए संशोधन किया तो सारे अल्पसंख्याक का डिएनए भारतीय है यह प्रमाणित हुवा। (संदर्भ: विज्ञानाचा निकाल: ब्राह्मण विदेशी असल्याचे डि. एन. ए. संशोधनाने सिद्ध/संपादन: प्रा. विलास खरात/डॉ. प्रताप चाटसे/पान पुस्तकाचे मलपृष्ठ) तो नफरती सोच के लोगों ने यह बात समझ लेनी चाहिए। और अपनी नफरती सोच से दूर रहना चाहिए। फ़िजूल की बातें छोडकर देश को नैतिक विचारोंसे मजबूत करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए।
महाकूंभ आयोजन के पहले युपी सरकारने शहरों/नगरों के गंधे नालो को रोका नही, या दुसरी ओर मोडा नही। इस लिए मनुष्य और जानवरों के मलमूत्र का विषाणू मिश्रीत पानी गंगा नदी में बहते आया और महाकूंभ के समय गंगा का पानी विषाणू मिश्रीत गंधा हो गया। अब CPCB=Central Pollution Control Board याने की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा के पानी का शॅंपल अध्ययन कर के रिपोर्ट पेश की है की पानी में भारी मात्रा में विषाणू पाए गये है। जो मनुष्य के लिए बेहद हानी कारक है। यही पानी पिने से या आचमन करने से मनुष्य को उलटी, जुलाब और पेट का दर्द हो सकता है। उस पानी में स्नान करने से शरीर पर खुजली जैसा रोग हो सकता है। मूत्र मार्ग में विकार हो सकता है। उक्त बडे बडे महारथीयों ने इसी विषाणू युक्त गंधे (जिसकी कल्पना से भी घिन्न्ह्ह आती हो) पानी में पवित्र स्नान (?) करके पवित्र होकर अपने अपने पाप धोकर महापुण्य कमाया। वल्ल्हा... वा जी वा... क्या बात है... इससे और दुसरा महापुण्य तो हो ही नही सकता भला इस धरती पर... वो लोग कितने भाग्यशाली है? जिन्होने इस धरती का सबसे बडा पुण्य कमाया? धन्य हो... अब युपी के आला कमान अवैज्ज्ञानिक ढंग से कहने लगे यह रिपोर्ट बकवास है, साजिस है। दुसरी ओर यह भी कहने लगे की कूंभ का आयोजन सरकार ने नही किया ये तो समाज का आयोजन है। यह तो रिपोर्ट से पल्ला झाडने की कोशिश हो रही है। *अजी बरखुरदार, महा कूंभ में आने के लिए बडे बडे इस्तहार किसने दिये? कूंभ के लिए दस हाजर करोड की धन राशी किसने दी? अगर यह समाज का आयोजन था तो सरकार उसमें अपने शाही काफ़िले के साथ शामिल क्यों हुयी? क्या करने गयी थी वहाॅं? अनगिनत मौते हुयी है उसका जिम्मेदार कौन है? अगर कोई आयोजक जिम्मेदार है तो उसकी पुछताश करके जिम्मेदारी के साथ छानबिन क्यों नही हुयी?* ऐसे तमाम सवाल तो उठेंगे ही। भोलेभाले लोगों की जानें गयी है जनाब़... यह कोई मजाक नही। इसका सारा दोष डबल इंजिन की सरकार पर ही जाता है।
तो बहुजन लोगों भविष्य में याद रखीएगा, आस्था के, धर्म के, या किसी भगवन के नाम से असुविधा जनक आयोजन किया जाता है तो उसका पूरा पूरा सुरक्षा का जायजा लिए बिना उस में अपने परिवार के साथ आप लोग भूलकर भी न जाइएगा। महा कूंभ का हादसा हमेशा याद रखीएगा। इस हादसे की ख़बरे सोशल मीडिया द्वारा देश की जनता तक पहुंची है, और साथ साथ सारी दुनिया में भी।
तो हुजूर… यह है महा कूंभ का काला सच।
– अशोक सवाई
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