परिवर्तन के दोहे राकेश कुमार कठेरिया
1-तंत्र- मंत्र भगवत-कथा, तीज और त्योहार।
शूद्र न मानव बनि सकै, यह बाभन हथियार।
2- 15 प्रतिशत शासन करैं, 85 क्यों लाचार।
बहुजन मिलिकै छीन लो, खोया निज घरबार।
3-राज पाट सब छिन गया, छिना मान सम्मान।
रक्षा कबहुं न करि सके, पत्थर के भगवान।
4-बुद्ध कही कबिरा कही, कही संत रैदास।
झूठे देबी – देव सब, छोड़ु सबन की आस।
5-पत्थर पूजत युग गया, हो न सका कल्यान।
देव- देबियां झूठ सब, झूठा है भगवान।
6-तिल-तिल मरता मांगता, न्याय सुरक्षा भीख।
भक्षक कब रक्षक हुए , लेत न काहे सीख।
7-ऊंच नीच में फंसा है, जबतक शूद समाज।
अनत गुलामी मा जिए, मिलै न कबहूं राज।
8-एक अकेले भीम से, हिल गई थी सरकार।
लाखों भीम सैनिकों ने, मान लई का हार।
9-नित अपमानित होत है, तिल तिल जरत शरीर।
लगत न अपना देश ये, धरत हिये कस धीर।
10-हाथ कलावा बांधि कै, तिलक लगाये माथ।
शूद्र न सत्ता पा सकैं, गहि बाभन का हाथ।
11-जो मनुवादी करत हैं, बहुजन पर अन्याय।
अरे बावरे मांगता, उस दुश्मन से न्याय।
12-संविधान ने वोट का, दिया तुम्हें उपहार।
कुछ टुकड़ों में बेचते, क्यों अपने अधिकार।
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दैनिक जागृत भारत