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माता सावित्रीबाई की बेटीयाॅं- अशोक सवाई

(शिक्षा की ताकद )

सन १ जनवरी १८४८ को पुणे के भिडेवाडा में महात्मा फुलेजी ने शिक्षा का एक छोटा पौंधा लगाया था। और उसे फलने फुलने के लिए मेहनत की थी माता सावित्रीबाई ने। आज सारे भारत भर में उस विशाल वृक्ष की शांखाओं का विस्तार हो गया। उसी वृक्ष के सायें में बहुजन बेटे/बेटीयों ने शिक्षा ग्रहण कर ली है/कर रही है। आज वे देश विदेश में ख्यातनाम एवं बडे बडे पदों पर विराजमान है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने कहाॅं था ना? की, *शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा वो दहाड़ेगा!* बिहार की तीन बहुजन बेटीयाॅं शिक्षा पा कर बडे बडे चॅनेलों पह शेरनी के रूप में दहाड़ रही है। प्रतिगामीयों को ललकार रही है। उस बेटीयों के सामने तथाकथित मनुवादीयों के छक्के-पंजे छुट रहे है, पसीना पसीना हो रहे है। उन बेटीयों का नाम है, १) प्रियंका भारती २) कांचन यादव और ३) सारिका पासवान। तीनों उच्च स्तर की शिक्षा पा रही है। इस में प्रियंका भारती जर्मन लिट्रेचर में पीएचडी कर रही है और कांचन यादव इंटरनॅशनल लेव्हल पर कॅंसर कॅम्प्युटेशनल इंटिग्रेटीव्ह सायन्सेस मशीन लर्निंग में पीएच डी कर रही है। यह विषय काफी कठीण और जटिल है। हमें भी समझने और समझाने के बाहर का है। कहाॅं जाता है की इस विषय में मेहनत और बुद्धी बल का प्रयोग होना अनिवार्य है। तो सोचिए इस विषय में पीएच डी करना कितना मुश्किल होगा। यह अपने आप में एक चॅलेंज है। हर किसी के बस की बात नही पर हमारे बहुजन छात्र/छात्राए ऐसे चैलेंज लिलया उठा सकते है। और वैसे भी हमारे भूमिपुत्र-पुत्री बहुजन बच्चे/बच्चियों का आयक्यू उचे दर्जे का होता है। खैर!

बिहार की यह तीनों बेटीयाॅं आरजेडी की राष्ट्रीय प्रवक्ता है। जब नॅशनल मिडिया पर डिबेट करने जाती है तो वहाॅं अपने पक्ष की बात रखती है। बहुजनों का पक्ष लेकर बातें करती है। तब सारे बहुजनों को एक सुकून सा मिलता है। इस में कांचन यादव और प्रियंका भारती बिना खौप और बेबाकी से मुख़र होकर बोलती है। इस में सारिका पासवान थोडी गंभीर नजर आती है। क्यों की, भाजपा के एक नेता ने उस पर निचली स्तर पर असभ्य भाषा का प्रयोग कर के बेहद आपत्ती जनक टिप्पणी की थी। हो सकता उसे इसका सदमां पहुंचा हो। लेकिन कांचन खुलकर बोलती है। और प्रियंका का क्या कहना? वह सदा हंसमुख रहती है और हंसते हंसते ही सवालियें तीर के रूप में प्रतिपक्ष भाजपाई प्रवक्ता और ॲंकरों के दिलों पर गहरी चोट करने वाले सवाल छोडती है। जिस से वे अंदरूनी रूप से घायल होते है। नॅशनल चॅनेल के डिबेट में जाकर वहाॅं विधायिका, कार्य पालिका, न्याय पालिका और मिडिया में बहुजनों के प्रतिनिधित्व पर सवाल करती है। हम ९० फ़िसदी लोग है, और हमारा प्रतिनिधित्व कितना है? ना के बराबर ही ना? ऐसे खडे सवाल करती है। महिला अधिकार, महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार, महंगाई, भ्रष्टाचार, बलत्कार, गरीबी, बेबंदशाही, अर्थ नीती, विदेश नीती, शिक्षा नीती जैसे मूलभूत गंभीर मुद्दोंपर अहम सवाल उठाती है। और उनके सवालों की एक अहमियत भी होती है। क्यों की वो मुद्दे इंटरनॅशनल लेव्हल पर जाते है। इसलिए ट्रंप के एक मंत्री पीटर नवारो ने ‘भारत ब्राह्मणवाद से पीडित है’ कहाॅं था। इससे भाजपाई प्रवक्ता, राजनैतिक विश्लेषक, यहाॅं तक की ॲंकर और ॲंकरनियाॅं की बोलती बंद होकर दांए/बांए/छांए झांकने लगते है। हमारे जहाॅंपनाह, शहेनशाह, आलमगीर, मुल्क की जनता के रहनुमा, गोदी मिडिया के जिल्ल-ए-इलाही देश के अहम और असली मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए रोने-धोने की अद़ा बडी लाज़वाबी से जनता के सामने पेश करते है। उनकी यह फ़ितरत हमेशा की रही है। इसलिए कांचन यादव कहती है की हमारे प्रधानमंत्री कहाॅं विश्वगुरू बनने चले थे और कहाॅं व्विक्टिम बन कर रह गये। प्रियंका भारती ने तो भरी डिबेट में ही मनुस्मृती को फाड डाला था। इस से बहुजन जनता उनकी मुरीद़ बन गयी। तब से यह तीनों लडकियाॅं बहुजनों की आयकॉन बन गयी, सेलिब्रिटी हो गयी।

यह तीनों लडकियाॅं नॅशनल चॅनेलों पर सारे बहुजनों का प्रतिनिधित्व कर रही है। इस से मनुवादी प्रवक्ता असहज होकर परेशान हो गये। क्यों की, इस बहुजन लडकियाॅं भाजपाई, आर एस एस और, ॲंकर/ॲंकरनियाॅं उनके मनुवादी सिस्टीम पर तथ्यों के साथ चुभने वाले तिखें सवाल करती है। जो स्त्रियों को सदियों से नीच, शुद्र, गुलाम, अपने पैरों की जुती मानते है। आज भी महिलाओं के प्रति उनका दृष्टीकोन बदल गया ऐसा कहना ग़लत होगा। आज वो ही महिला प्रवक्ता आमने सामने बैठकर मनुवाद की धज्जियाॅं उडा रही है। उनके सिस्टीम का मुख़ालिफ़ कर रही है। इस से जो मनुवाद से ग्रस्त है, उस बिमारी से जो पीडित है, ऐसे पुरुष प्रवक्ता का हद से ज्यादा पुरुषी इगो हर्ट्झ हो जाता है। फिर वे अपनी नालायकी हरकतों पर उतर आते है। इसिलिए भाजपाई प्रवक्ताओं ने प्रियंका, कांचन और सारिका पर ॲंकरों द्वारा बॅन लगाने को कहाॅं। अगर वह महिला जिस डिबेट के लिए आती है, उस डिबेट में हम नही आएंगे ऐसी धमकी भी दी थी। इस से प्रियंका चॅनेलों पर एक साल तक बॅन हो गयी थी।

उधर इन लडकियों पर जैसे बॅन लगाया वैसे ही इधर नॅशनल टीव्ही चॅनेल देखना लोगों ने बंद कर दिया था। तब उनके चॅनेलों का टीआरपी सांपसीडी के खेल जैसा तुरंत निचे आया। इस बिच आरजेडी के मुखिया तेजस्वी यादव ने भी बयाॅं जारी किया की, हमारा कोई भी प्रवक्ता, विधायक, सांसद नेता या खुद्द तेजस्वी किसी भी नॅशनल चॅनेल पर डिबेट करने नही जाएगा। या कोई बाइट्स नही देगा। फिर क्या? चॅनेलों के मालिक मुख्तार/संपादक/ॲंकर सब पसीना पसीना हो गये। और उनकों अपना बॅन हटाना पडा। तो हुजूर यह होती है एकजूटता की ताकद। माता सावित्रीबाई जैसी यह तीनों लडकियाॅं भी धैर्यवान है, शीलवान है, शिक्षित है, मुखर होकर बोलने वाली है, तथ्यों के साथ महिलाओं की हक्क अधिकार की बात करने वाली है। यह माता सावित्रीबाई की पुत्री है। यह लडकियाॅं हमारे महापुरुष/महामाताओं को पढ़ती है। उस पर आपस में चर्चा करती है। खास कर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के संविधान पर। आज के युवक/युवती वर्ग के लिए हमारी हमेशा सलाह रहती है की, हमारे महापुरुषों और महामाताओं को पढ़िए, उनका इतिहास पढ़िए और चर्चा किजीए। और सत्य जान किजीए। सत्य, चांद और सूरज यह ऐसी चींजें है जिसे छुपाया नही जा सकता। और एक बात, भले ही सत्य की चाल धीमी हो लेकिन सत्य, असत्य को कभी भी, कही भी, कैसे भी मात देता है। और अपना अस्तित्व निरंतर काल के लिए है यह सिद्ध करता है।

उक्त तीन लडकियों के लिए खास दो पंक्तीयाॅं:
जहाॅं उक्त सामाजिक शिल्पकार है, वहाॅं जन्नत है,
और हर घर में ऐसी जन्नत हो, यही हमारी मन्नत है।
आजका हमारा यह आर्टिकल उस तीनों बेटीयों के नाम।

            *बुजुर्गों की नज़रों से:* कोई पुरुष अगर किसी परायी नारी के चेहरे से नज़रे हटाकर या अपनी नज़रे जमीन की दिशा में झुका कर उस नारी से बातें करता है, तो उस नारी के मन में उस पुरुष के लिए परम आदर/सम्मान होता है। और जो  पुरुष किसी नारी के साथ अपनी नज़रों से या इशारों से नाजायज हरकतें करता है, तो वह पुरुष उस नारी के नेज़रों में उम्रभर के लिए तिरस्करणीय/नफ़रती व्यक्ती बनता है। (कुछ अपवाद छोडकर) आज भाजपायों की स्थिती ऐसी ही है। 

अशोक सवाई

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