
(अमरीका की दादागिरी)
अमरीका की दोस्ती के ख़ातीर भारत ने ‘नमस्ते ट्रंप’ किया, ‘माय फ्रेंड डोनाल्ड ट्रंप’ ब़ोला, अमरीका में जाकर वहाॅं के राष्ट्रपती चुनाव में हमारे देश के मुखिया ने ‘अब की बार ट्रंप सरकार’ के नारे दिऐ। ट्रंप के गौरव में हमारे मुखिया ने यह सब किया था। ट्रंप ने भी हमारे मुखिया के लिए ‘हाऊ डी मोडी’ वैगेरा वैगेरा कहाॅं। तब लगता था की, इन दोनो की दोस्ती शोले फिल्म के ‘जय-विरू’ जैसी है।लेकिन हाय रे हमारी किस्मत…! ट्रंप की ताज़पोशी के नये नवेली के नऊ दिन खत्म होते ही ट्रंप बाबू ने अपने रंग दिखाने शुरू किए। उसी कडी में हम पर १ अगस्त से 25% का टेरिफिक टेरिफ लगा दिया। क्या यह सीला दिया ट्रंप बाबू ने हमारे दोस्ती का? हमारे गुणगान का? यह तो हमारे देश का घोर नही घनघोर अपमान है, बेइज्जती है। ‘दोस्त दोस्त न रहा’ वाली बात हो गयी। फिर भी हमारे 56 इंच के सीना वाले देश के मुखिया खामोश है, चिडीचूप है। इसका क्या कारण हो सकता है? विपक्ष लोकसभा और राज्यसभा सदन में ट्रंप की दादागिरी पर, ऑपरेशन शिंदूर पर, पहेलगाम हमले पर, सीजफायर’ पर, चुनाव आयोग पर ऐसे तमाम मुद्दोंपर जवाब मांग रहा है। लेकिन सरकार पक्ष ने किसी प्रश्न का सीधा सीधा और सही सही जवाब नही दिया।जो सवाल सीधे जनता से जुडे है। देश को बताना चाहिए सरकारने। एक बार मामला साफ हो गया तो पूरा देश सरकार के साथ खडा रहेगा। ऑपरेशन शिंदूर के समय भी देश सरकार के साथ था। वैसे अब भी रहेगा। सिर्फ सरकार जवाब दे। अगर बाहर की कोई भी शक्ती, किसी हुक्मरान जैसे हम पर जुल्म ढाने लगा तो यह हमारे देश की संमप्रभूता, स्वतंत्रता, अस्मिता और वजूद पर ही हमला जैसा है। हम अमरीका के गुलाम नही। वो जो चाहे, जैसी चाहे वैसी मनमानी करेगा? अमरीका को भारत की ओर से कडा जवाब देना ही चाहिए। कब तक हम गुलामी जैसै जुल्म सहते रहेंग? और कब तक चुप रहेंगे? भारत के लिए सब पर्याय खुले है। भारतने इन पर्याय पर अंमल करने की जरूरत है। दुनिया के छोटे छोटे देश अमरीका की दादागिरी पर उसको जवाब देने लगे। ईरान ने तो कतर में अमरीका के मिल्ट्री बेस पर जवाबी हमला किया था। इस पर अमरीका अब तक खामोश है। इसका अर्थ जो देश खामोश राहते है उनको अमरीका और दबाना चाहता है। भारत पर अमरीका द्वारा 25% टेरिफ लगाने पर उसका विरोध करने वाला एक मात्र देश था, वो था ईरान। क्यों की अमरीका और इस्त्रायल के मुख़लिफ़ में ईरान के निंदा प्रस्ताव पर भारत ने ईरान के पक्ष में दस्तख़त किए थे।
WTO = World Trade Organization (विश्व व्यापार संघठन) यह एक आंतरराष्ट्रीय संघठन है। जो विभिन्न देशों के बीच व्यापार नियमों को निर्धारित और वि नियमित करने का काम करता है। इसका मुख्य उद्देश व्यापार बाधा को कम करना और निष्पक्ष व्यापार को बढावा देना है। इस संघठन की स्थापना सन १ जनवरी १९९५ में हुयी थी। और भारत इसका संस्थापक सदस्य है। इस संघठन में कुल १६४ सदस्य देश है। और इसका मुख्यालय जिनेव्हा, स्वित्झर्लंड में है। अगर भारत WTO का संस्थापक सदस्य है तो अमरीका द्वारा भारत पर जो बेवजह ट्रेड टेरिफिक टेरिफ लगाए गये तो इसके विरोध में विश्व व्यापार संघठन में जाना चाहिए। और वहाॅं अपना पक्ष मजबुती से रखना चाहिए। और विश्व के देशों के सामने भी अपनी भूमिका बेखौप दमदारी से स्पष्ट करके भारत ने अपना रूतबां दिखाना चाहिए। भारतने आज तक WTO के नियमों का उल्लंघन नही किया और ना ही भारत के विरोध में किसी देश ने शिकायत की है।
अमरीका ने भारत पर 25% टेरिफ लगाकर सिर्फ भारत को जख्म नही दिए, भारत को रूस से तेल लेने के लिए भी मना किया। इसका कारण देते हुवे ट्रंप बोले ‘भारत रूस से जो तेल खरीदता वो पैसा रूस युक्रेन के युद्ध में लगाता है।’ उन्होने इतना ही नही कहाॅं वे कहते है, ‘हम तेल रिझर्व्ह करने के लिए पाकिस्तान के साथ डील करेंगे’ और भविष्य में पाकिस्तान भारत को तेल दे सकता है।’ ऐसा बोल कर उन्होने उन्ही के दिए हुवे गहरे जख्म में नमक ठुसने का काम किया है। इस से जादा और क्या बेइज्जती हो सकती हमारी? इसका मतलब भारत रूस से सस्ता तेल न खरीदे, इरान से उस से भी सस्ता तेल न खरीदे, किसी खाडी देशों से तेल न ले। अगर लेता है तो अमरीका भारत पर 10% जुर्माना लगाएगा। सिर्फ अमरीका से मेहंगा वाला तेल खरीदे। अगर भारत अमरीका से तेल खरीदता है तो अमरीका की लंबी दूरी पार करके भारत आते आते तेल के दाम में 18% बढोतरी होगी। और हमारे गाडीयों के टाकी तक पहुचते पहुचते तेल 150 + प्रति लिटर होगा। इतना तो हम और आप अनुमान तो लगा ही सकते है। तो जरा सोचीए अगर तेल के इतने दाम बढते है तो सब्जी की मूली से लेकरे साधी चाय की प्याली तक के दाम आसमां छू लेंगे साहब। अगर तेल के दाम बढते है तो हर चीज के दाम बढते है, मेहंगाई बढती है। अगर मेहंगाई बढती है तो माल का उठाव कम होता है। अगर माल का उठाव कम होता है तो मार्केट में मंदी आती है। इस से हमारी अर्थनीती चरमरा जाती है। फिर किसी आंतरराष्ट्रीय कंपनी का सर्वे आता है, अमुक तमुक देश बेरोजगारी, भूकमरी, विकास, गरीबी में इतने देशों में इतने नंबर से पिछे है। दुसरी बात अमरीका ने हमारे माल पर 25% का टेरिफ लगाया है तो हमारे प्राॅडक्ट अमरीका में मेहंगे होंगे। और वहाॅं कम टेरिफ लगने वाले अन्य देश के प्राॅडक्ट सस्ते में खरीदे जाएंगे फिर अमरीका में हमारे प्राॅडक्ट को कोई पुछने वाला नही होगा। इससे हमारे व्यापार उद्योग का दिवालियाॅंपन निकलेगा। और अमरीका में हमारे उद्योग व्यापर ठप्प हो जाएंगे। अगर हम अमरीका के ताल पर ‘ता था थैय्या’ करने लगे तो हमारी अर्थनीती की रीड की हड्डी ही तुट जाएगी। ऐसे स्थिती में आप और हम कैसे जिएंगे? मिडल क्लास, लोअर क्लास और सबसे गरीब तबका कैसे जी पाएंगे? यह बडा सवाल है। आज भारत की गृहिणी अपना घर का बजेट जोडते जोडते हैराण/परेशान होती है। इसलिए किसी भी देश के वित्तमंत्री और रिझर्व्ह बँक के गव्हर्नर अर्थतज्ञ और अर्थ नीती के जानकार होने चाहिए। विदेश मंत्री अपने देश के हित की बात मनवाने के लिए कूटनीतीने में माहीर होने चाहिए। गृहमंत्री देश में लाॅ इन ऑर्डर संभालने में सक्षम होने चाहिए। तभी देश सही दिशा में सही चल सकता है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंग के दौर में सारी दुनिया में मंदी के बादल मंडरा रहे थे। याद होगा आपको! लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंग ने हमारे देश पर उस मंदी का साया तक पडने नही दिया। क्यों की वे अर्थ नीती के तज्ञ थे। आज देश की क्या स्थिती है? आप खुद्द देख रहे है। इधर रूस से अपने व्यापार में कमी आयेगी जो रूस हमारा पुराना मित्र रहा हो। ईरान से पहले जैसे हमारे व्यापार संबंध नही रहे। चीन शुरू से ही भूविस्तारवादी देश है। इस लिए उससे अनबन है। हमारे छोटे छोटे पडोसी देश हमसे कन्नी काटे है। जैसे की नेपाल, बांगलादेश, श्रीलंका वैगेरा। हमारी स्थिती ऐसी हो गया की ‘न खुद़ा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के रहे न उधर के’। आज हम बडे कठीण समय के दौर से गुज़र रहे है। इससे निकल ने के लिए हमे बहोत वक्त लगेगा… बहोत ही…
– अशोक सवाई.
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दैनिक जागृत भारत