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जातिगत जनगणना – कही सवालों का पिटारा-अशोक सवाई

(जनगणना)

३० अप्रेल में श्याम चार साडेचार के समय केंद्रीय कॅबिनेट मंत्री की मिटींग हुयी। लेकिन उसके पहले ही गोदी मिडिया, बीजेपी आयटी सेल, और उनके भक्तगण बडे जोरोशोरोसे कहने लगे, कहने लगे क्या चिल्लाने लगे। पहलगाम का बदला, पाकिस्तान पर हमला, मोदी का मास्टर स्ट्रोक न जाने और क्या क्या? मिटिंग के बाद कॅबिनेट प्रतिनिधी के रूप में रेल मंत्री अश्विनी वैश्नव ने पत्रकार परिषद में घोषित किया की सरकार जातिगत जनगणना करने जा रही है। लेकिन हर छोटे छोटे निर्णय या उद्घाटन का क्रेडिट लेनेवाले जनाब इस निर्णय का क्रेडिट लेने खुद्द सामने नही आये। अपने रेल मंत्री को सामने किया। हो सकता है इस में भी कोई राज छुपा हो। इस घोषणा से गोदी मिडिया और बीजेपी खेमे में सन्नाटा छा गया। इस पर क्या कहे और क्या न कहे, विरोध करे या समर्थन, इसपर खुद्द रोये या हंसे, ऐसी दुविधा स्थिती में उनको कुछ समझ में नही आ रहा था। कॅबिनेट मिटिंग के निर्णय ने पाकिस्तान पर मिसाईल दागने के बजाय गोदी मिडिया और अपने भक्तों पर ही मिसाईल दाग दी। चले थे युद्ध का माहौल बनाने, मगर हाय रे किस्मत!… खुद्द उल्लू बनकर रह गये। साहब का धक्का तंत्र है यह। जो अब तक भक्तगणों को पता ही नही था की, उनको भी धक्का लग सकता है। वो वाला फ़िल्मी गाना पता है ना? ‘कही पे निग़ाहे कही पे निशाणा’, ठिक ऐसाही कूछ हुजूर और उनके कॅबिनेट ने किया।

इससे बीजेपी मंत्री, भक्तगण और मिडियाकर्मी सारे असहज हो गये। अब क्या होगा युपी वाले सत्ताधीश बाबा के उस नारे क्या? ‘बटेंगे तो कटेंगे’, क्या होगा उस अनुराग ठाकूर का? जिसने भरे सदन में ऑन रेकॉर्ड कहाॅं था ‘जिसकी जात का पता नही वो गणना करने जा रहा’। खुद्द आला कमान ने कहाॅं था ‘इस देश में सिर्फ चार जातियाॅं है इसके अलावा कोई जाती नही’। और क्या होगा नितीन गडकरी का? जिन्होने भरी सभा में बडी जोश में कहाॅं था, ‘जो करेगा जात की बात उसको मारूंगा कसके लात’। अब घोषणा के बाद पता नही किस किसको लात मारेंगे? ‘एक है तो सेफ है’ एक है तो नेक है’ जातिगत जनगणना की घोषणा ने तो यह सारे नारे ध्वस्त कर दिये। और भी कही बीजेपी, आर एस एस के लोग है, जिनको जातिगत जनगणना की कडवी ॲलर्जी है। इस घोषणा से इनके सारे तेवर ढिले पड गये। लेकिन यह ऐसे लोग है अपने आला कमान के किसी भी मुद्दे पर आजतक समर्थन करते आ रहे थे लेकिन आज यह जातीवाला मामला हज़म नही कर पा रहे। कोई खुलकर तो कोई अंदरूनी रूप से विरोध कर रहे है। इनकी मतलब की बात हो तो वो समर्थन करते है, जेसे की ई डब्ल्यू एस आरक्षण का उदाहरण। लेकिन निचले जाती बराबर आने की बात हो तो जड़ से उनका विरोध उमड़ आता है। नैतिक विचारों के लिए इनका अपना कोई वजूद नही होता। यह हो गयी जातिगत जनगणना के विरोधीयों की बात।

अभी तो केंद्रीय कॅबिनेट मिटिंग द्वारा जातिगत जनगणना की सिर्फ घोषणा हुयी है। जातिगत जनगणना के सही सही आंकडे आते आते और सार्वजनिक होते होते इस मुद्देपर कही मोड आनेवाले है। पिछले ११ साल का मौजूदा सरकार का अनुभव देखते हुवे अगर जनता के मन में कही तरह की आशंका उठती है तो उसमें जनता का कसूर नही होगा। उदाहरण के तौर पर इसी सरकार ने महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी की, महिलाओं को ३३% राजकीय आरक्षण दिया जाएगा। बाद में कहाॅं यह आरक्षण दस साल बाद लागू होगा। पर इसी बहाने आला कमान ने अपने लिए महिलाओंसे अपनी वाहवाही बटोर ली थी। अब महिला आरक्षण ठंडे रस्ते में चला गया। आशा करते है उसी रास्ते से जातिगत जनगणना का मुद्दा न चला जाए। सरकार का पिछले ११ साल का अनुभव देखते हुवे राजनैतिक पत्रकार, निरिक्षक और जनता को भी लगता है, यह सरकारने और एक शगुफ़ा छोडा है। अंग्रेज सरकार के राज में सन १९३१ में जातिगत जनगणना हुयी थी। उसके ठिक ९४ साल बाद अब जातिगत जनगणना होने जा रही है। इसलिए यह मुद्दा अपने आप में बेहद संवेदनशील, अहम एवं महत्वपूर्ण है। जनता के लिए यह भारी अपनापन का मामला है। खास कर ओबीसी के लिए। उनकी उम्मीदे काफी बुलंद हो चुकी है। खैर!

लगता है सरकारने यह मुद्दा उठाकर अपने लिए कही निशाणे सांधे है। १) पहलगाम हमले के लिए जनता के मन में सरकार के लिए जो विरोध है उसे कम करना या उससे ध्यान हटाकर जातिगत जनगणना की और खींच लेना, २) सरकार के लिए सहानुभूती बटोरना, ३) बिहार चुनाव, २०२७ में आनेवाला युपी का चुनाव, बंगाल चुनाव, स्थानिक निगम चुनाव, और भी चुनाव उप चुनाव होंगे। इसके लिए जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाना, ४) १७ सितंबर २०२५ को हुजूर-ए-आलम की उम्र ७५ साल होने जा रही ही है, तो उसपर उनके रिटायर्ड पर बात न करना, ५) सितंबर २०२५ में आर एस एस की स्थापना शताब्दी की वर्षगांठ है, उसके लिए सरकार की ओर से भारी सहयोग देना। ऐसे कही सारे मुद्दे है जिसपर जनता उंगली न उठाये। इसलिए सरकारने जनता के बिच छोडा हुवा यह जातिगत जनगणना का शगुफ़ा है ऐसा लोग कहने लगे। सरकार की घोषणा पर यकिन करना किसी चोर-उचक्के पर भरोसा करने के बराबर है। सरकार अपने ही घोषणा से कब मुकर जायेगी इसका कोई भरोसा नही। ऐसा जनता कहने लगी उसके कही व्हिडिओ भी सामने आए।

अब आते है सवालों के पिटारे पर। सरकारने जातिगत जनगणना करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन कब शुरू होगी और कबतक खत्म होगी यह क्यों नही बताया? उसके लिए कितना खर्चा होगा? और उसके लिए केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय को कितनी धनराशी आबंटीत की जाएगी? जातिगत जनगणना का प्रारूप क्या होगा? जातिगत जनगणना पुरी करने के लिए निर्धारित समय सीमा क्या होगी?

अगर जातिगत जनगणना होती है तो उसके लिए एससी/एसटी/ओबीसी और मायनाॅरिटी के केंद्रीय कर्मीओं की संख्या कितनी होगी? अगर वह संख्या समाधान कारक या पर्याप्त होती है तो उनको सरकार बिना दबाव, निपक्ष ढंग से काम करने देगी? या उनके कामों में दखल अंदाजी देने का प्रयास करेगी? क्या सरकार इस काम में बहुजन संघटनों के प्रतिनिधी को ट्रेनिंग देकर शामिल करना चाहेगी? इसके लिए जनता द्वारा कौन कौनसे पेपर (झेरॉक्स) जातिगत जनगणना कर्मीयों को सबमिट करना है इसका कुछ ऐलान करेगी सरकार? अगर कर्मीयों द्वारा जातिगत जनगणना का फाॅर्म लिख़ने जाने के बाद क्या उसकी एक काॅपी जनता को दी जायेगी? अगर फाॅर्म में कोई ग़लतीयाॅं पायी जाती है तो क्या जनता उसके सुधार की मांग कर सकती है? फाॅर्म भरने की प्रक्रिया ऑन लाईन होगी या ऑफ लाईन सरकार इसका कोई खुलासा करेगी? क्या इसके लिए नये सेंटर खोलेगी सरकार? अगर सरकार अपने सर्वे के अनुसार जाती निर्धारित करती है तो क्या उस जाती का सर्टिफिकेट सरकार द्वारा जनता को दिया जायेगा? और क्या वह पर्मनंट सर्टिफिकेट होगा? और क्या उस सर्टिफिकेट के आधार पर जनता अपने अगले पिढी का जात प्रमाणपत्र बनवा सकती है? अगर जातिगत जनगणना के अंतर्गत जातीधर्म पर कोई भेदभाव होता है तो उसे मिटाने के लिए सरकारन के पास क्या प्रावधान है? और अहम सवाल यह होगा की, जातिगत जनगणना के बाद विधायिका, कार्य पालिका, न्यायपालिका में जाती संख्या के अनुपात में क्या उस जाती को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल सकेगा? नया कानून बनाकर नॅशनल (गोदी) मिडिया में जाती संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दे सकेगी सरकार? ऐसे तमाम सवाल है जिसके जवाब देकर सरकार खुलासा करके क्या सार्वजनिक कर सकेगी?

            और एक सवाल जातिगत जनगणना के फाॅर्म में कौन कौनसे काॅलम रखेगी सरकार? लिंग का काॅलम अनिवार्य है। इससे पुरषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कितनी है इसका पता चलेगा। शिक्षा और नोकरी/धंदा का काॅलम जरूरी है। इससे शिक्षा का स्तर, बेरोजगारी और दरिद्री रेखा की स्थिती स्पष्ट होगी। आयु के काॅलम से सिनीयर सिटीझन की संख्या पता होगी और आगे इस पर भारतीय समाज के विकास की ब्लू प्रिंट बनवायी जा सकती है। और सबसे अहम काॅलम है जाती का। धर्म और जाती का काॅलम एक साथ आते है तो बहुसंख्य लोग धर्म हिंदू लिखेंगे जात जो उनकी जात है वो लिखेंगे जैसे हिंदू-मातंग, हिंदू-चमार, हिंदू-महार, हिंदू-माली, हिंदू-लोहार, सुतार, नाई वगैरे वगैरे। अगर हिंदू धर्म की संख्या फाॅर्म में लिखित रूप से बहुसंख्य होगी तो उसका हवाला देकर और हिंदू धर्म संसद सुचना या आग्रह से हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास तो नही करेगी सरकार?  भारतीय समाज के लिए यह भी एक आपत्ती जनक मुद्दा है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट का ता. ११/१२/१९९५ का जो निर्णय है उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था की, हिंदू नाम का कोई धर्म नही है। अब सवाल यह है की, सरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानेगी या धर्म संसद की सुचना एवं आग्रह का पालन करेगी? देशहित में ऐसे पेचिदा सवाल सरकार को ही हल करना है। इस मामले से धर्मनिरपेक्ष लोगों की आशंका और चिंता बढेगी इतना जरूर है। 

            एक आखरी अहम एवं महत्वपूर्ण सवाल अंग्रेज सरकारने सन १८७१ में पहली बार जातिगत जनगणना करवायी थी। उसमें पारधी, रामोशी, बेरड, मसणजोगी, बंदर का खेल दिखानेवाले, डोंबारी, कोल्हाटी ऐसे ४२ जमाती को अंग्रेज सरकारने अपराधी जमात घोषित किया था। क्यों की यह लडाकू जमात अंग्रेज सरकार के विरोध में आझादी के लिए लडतो थी। स्वतंत्रता वीरों के लिए वे लोग खबरी का काम करते थे। इसलिए उनको अंग्रेज सरकारने अपराधी जमात घोषित किया था। उनको एक गाव मे ७२ घंटोसे जादा रूकने के लिए मना कर दी थी। वो आज भी जारी है। इसलिए उनके लिए कोई भी सरकार शिक्षा का प्रावधान नही कर पायी। जब शिक्षा ही नही तो उनके पास सरकारी प्रमाणपत्र कैसे मिलेंगे? अगर उनके पास कोई भी प्रमाणपत्र नही है तो उनकी जातिगत जनगणना किस आधार पर होगी? सरकार उनको सामाजिक, राजनैतिक रूप से मुख्य राष्ट्रीय  धारा में कैसी जोडेगी? यह सरकार के लिए सबसे बडी चुनौती होगी। इसके लिए संवैधानिक रूप से समाधान का हल ढुंढना यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है। अगर सरकार इस समस्या का हल निकालती है तभी जातिगत जनगणना सर्वसमावेशक हो सकती है। और सही सही जातिसंस्था के आंकडे जनता के सामने आ सकते है। अगर सरकार अपनी पुरी जिम्मेदारी के साथ अपना दायित्व निभाना चाहती हो तो वर्ना यह एक शगुफ़ा होगा इससे जादा कुछ नही। 

अशोक सवाई.

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