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भारतीय करंसी चिन्ह तामिलनाडु सरकार द्वारा बदलने से उभरा सत्ता संघर्ष !


डॉ मिलिन्द जीवने ‘शाक्य’, नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२

तामिलनाडु के युवा मुख्यमंत्री *एम. के. स्टालिन* इन्होने, अर्थमंत्री थंगम थेन्नारासु द्वारा सन २०२५ का *”अर्थसंकल्प”* हाऊस में सादर करते समय, *”भारतीय करंसी राष्ट्रिय चिन्ह”* बदलकर , उसकी जगह नया *”तामिल रुबाई”* का पहिला अक्षर चिन्ह बनाकर *”अर्थसंकल्प”* पेश किया. और भारत सरकार द्वारा लागु किये गया *”मतदार संघ पुनर्रचना”* का प्रतिकात्मक विरोध किया है. तामिलनाडु सरकार के इस कृती पर, तामिल भाजपा द्वारा *”राष्ट्रिय अखंडता / राष्ट्रिय एकता के विरोधी कदम बताया गया.”* वही तामिल द्रमुक सरकारने *”इस प्रकार चिन्ह बदलाव करने मे बंदी होने का कोई नियम है क्या ?”* यह सवाल किया है. इस विषय पर भारत सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी. यह विषय तो बहुत ही गंभिर है. क्या इस कृति को *”देशद्रोह”* माना जाएगा ? यह भी प्रश्न है. *”द्रविड आंदोलन “* के शक्तीशाली नेता *इ. व्ही. रामास्वामी नायकर”* इन्होने सन १९४४ में, *”सच्ची रामायण”* यह किताब तामिल भाषा में प्रकाशित की थी. उसका इंग्रजी / हिंदी भाषा में भी अनुवाद किया गया. और *”राम – अयोध्या”* इस विषय पर प्रश्न खडे किये थे‌. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा, उस किताब पर बंदी लायी गयी. वे किताबे जब्त किये गये. प्रकरण *”एलाहाबाद उच्च न्यायालय”* जाने पर, सदर उच्च न्यायालय ने, *”उत्तर प्रदेश सरकार”* के बंदी को अनुचित बयाया‌. वह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय जाने पर, तत्कालीन *न्या. व्ही. आर. कृष्ण अय्यर* अध्यक्षतावाली तथा *न्या. पी. एन. भगवती / न्या. सैय्यद मुर्तजा फजल अली* इस तीन न्यायाधीश खंडपीठ ने, अलाहाबाद न्यायालय का निर्णय उचित मानकर, उत्तर प्रदेश सरकार को आयना दिखाया. परंतु *नरेंद्र मोदी* भाजपा सरकार कार्यकाल में, सरन्यायाधीश *रंजन गोगोई* इनकी अध्यक्षता वाली तथा *न्या. शरद बोबडे / अशोक भुषण / धनंजय चंद्रचूड / एस. अब्दुल नजीर* इस पांच खंडपीठ ने, *”बगैर प्रायमा फेसी”* देखे, केवल भावना के आधार पर, *”रामजन्मभूमी”* का मार्ग असंवैधानिक रुप से सुकर किया. इस पर भी चर्चा होनी चाहिये. साथ ही सन २०२४ में ब्राह्मण संतो द्वारा, ५०१ पेज का *”अखंड हिंदु राष्ट्र संविधान”* बनाया है, इस कृती पर भी बोलना चाहिये. क्या यह कृति *”देश की एकता / अखंडता / सार्वभौमत्व”* रखनेवाली है ? वह कृति *”भारतीय संविधान”* का सन्मान करने वाली है ? और ऐसे बहुत सारे बहुत सारे उदाहरण दिये जा सकते हैं. मोहनदास गांधी के शब्दो में, इस *”वेश्यालय राजनीति”* भी कह सकते हैं.
तामिलनाडू सरकार के *”करंसी राष्ट्रिय चिन्ह”* बदलने का, हम निश्चित ही समर्थन नहीं कर सकते. परंतु ब्राम्हणी विचारवादी (कांग्रेस / भाजपा दोनो ही) राजसत्ता काल में, *”भारतीय करंसी”* पर अंकित *”अशोक राजमुद्रा”* को बहुत छोटा कर, *मोहनदास गांधी* को बहुत बडा अंकित कर देना, क्या उचित कदम था ? यह भी तो प्रश्न है. भारतीय करंसी पर *”सम्राट अशोक की राजमुद्रा”* छोटा करने से, भारतीय *”करंसी का मुल्य”* डॉलर की तुलना में घटना, यह बुध्द विचार *”इदं सति इदं होति, इदं असति इदं ना होति |”* (अर्थात – कारण हो तो कार्य होता है. कारण ना हो तो कार्य नहीं होता) इसका वह बोध कराता है. भारत आझादी का इतिहास यह बहुत बडा है. अत: केवल गांधी को ही नायक बनाना, यह *अन्य क्रांतीकारी नेताओं* पर भी बडा अन्याय है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* इनके अखंड विशाल भारत योगदान में, गांधी कही भी नहीं बैठते है. यही नहीं पोष्ट विभाग द्वारा भी *”पोस्टकार्ड / आंतरदेशीय पत्र”* से, सम्राट अशोक की राजमुद्रा पुर्णतः हटाया गया. कुछ विभिन्न शासकिय विभागों द्वारा भी, अशोक की राजमुद्रा को हटाकर, उनके अपने *”मोनो”* बना लिये है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* की जयंती, ना सरकारी तौर पर मनायी जाती है. ना ही उस दिन *”सरकारी अवकाश”* दिया जाता है. मेरी राष्ट्रिय संघटन *”सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल”* द्वारा, भारत सरकार को निवेदन दिया गया था. मुझे जबाब आया कि, *”इस संदर्भ में कोई निर्णय लेने का विषय हमारे सुची में नहीं है.”* हम इसे क्या कहे ? क्या यह सम्राट अशोक के प्रति अहसान फरामोशता नहीं है ? यह सरकारी *”ब्राह्मण कु-नीतिओं”* का परिपाक है. *”धम्म पद”* में इस तरह के कु-कृति पर, बहुतसी पाली गाथाए है. फिर भी बालवग्गो की एक गाथा मैं बताना चाहुंगा, *”न तं कम्मं कतं साधु यं कत्वा अनुतप्पति | यस्स अस्सुमुखो रोदं विपाकं पटिसेवति ||८||”* (अर्थात – उस कार्य को कभी नहीं करना चाहिए, जिसे करके पीछे पछताना पडे. और जिसके फल को रोते हुये भोगना पडे.)
तामिलनाडू के तुत्तुकुटी जिला स्थित शिवगलाई एवं किझाडी ग्राम परिसर उत्खनन में, सिंधु घाटी सभ्यता सदृश्य ३२०० साल पुरानी *”सभ्यता”* का शोध हुआ है. सिंधु घाटी लोगों में *”स्टेपी चरवाह”* (ब्राह्मण वर्ग) लोगों का DNA नहीं मिला है. और तामिलनाडू लोगों को लगता है कि, *”सिंधु घाटी के लोग द्रवीड मुल के हो सकते हैं.”* तामिलनाडू के मुख्यमंत्री *स्टालिन* इन्होने, उनके राज्य का उत्खनन देखकर, *”एक करोड अमेरिकी डॉलर”* (८० करोड भारतीय रुपये) *”इनाम”* देने की घोषणा की है, *”जो सिंधु घाटी सभ्यता की लिपी हमें समझाए.”* इस तरह की घोषणा *”भारत सरकार”* ने कभी नहीं की‌. इसके पिछे का कारण हमें समझना होगा. दुसरी बात यह कि, तामिल लोगो पर लोकप्रिय द्रविड नेता – *इ. व्ही. रामास्वामी नायकर* इनके विचारों का प्रभाव रहा है. तामिलनाडू मुख्यमंत्री *स्टालिन* ये नास्तिक है. और वे अपनी द्रविड संस्कृति के प्रति समर्पित भी है. *स्टालिन* इन्हे यह भी पता है कि, भारत का *”करंसी चिन्ह”* यह द्रविड (तामिल) पार्टी विधायक पुत्र *उदयकुमार धर्मलिंगम* इन्होने बनाया है. परंतु भारत केंद्र सरकार की *”मतदार संघ पुनर्रचना नीति”* का प्रतिकात्मक विरोध किया गया. इस विषय पर भाजपा गैर-शासित राज्यों का भी तिव्र विरोध हो रहा है. नरेंद्र मोदी भाजपा सरकार को, सभी राज्य के साथ समोपचार से निर्णय लेना चाहिए. भारत यह प्रजातंत्र देश है. भारत के संविधान अनुसार *”सभी राज्य सार्वभौम”* है. अत: सभी राज्यों के सार्वभौमत्व रखकर / शांती / सौहार्द को रखकर ही निर्णय लेना, यह देश के हित में कदम होगा.


▪️ डॉ मिलिन्द जीवने ‘शाक्य’
नागपुर दिनांक १४ मार्च २०२५

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