कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़के वोट काटे; भाजपा 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापस आई”

अब देखना होगा कि क्या जातिवादी मीडिया ऐसे हेडलाइंस लिखेगी? —
“कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़के वोट काटे; भाजपा 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापस आई”
“कांग्रेस ने भाजपा को कम से कम 30 सीटों पर जीत दिलाने में मदद की; आइए देखें कि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के कहाँ-कहाँ वोट काटे”
“नई दिल्ली विधानसभा सीट में कांग्रेस के संदीप दीक्षित ने अरविंद केजरीवाल के वोट काट कर भाजपा के उम्मीदवर को जिताया”
“कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के वोट काटे। क्या कांग्रेस भाजपा की बी-टीम है?”
“दिल्ली चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को कैसे जिताया; कांग्रेस को 30 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले”
“कांग्रेस का भाजपा से गुप्त गठबंधन? कांग्रेस भाजपा की बी टीम?”
“क्या भाजपा को जीतने के लिए कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा?”
“क्या भाजपा की बी टीम कांग्रेस है?”
क्या ये मीडिया कांग्रेस को वोट कटवा बोलेगा?
क्या समाज सेवक का मुखौटा पहने लोग भाजपा की जीत में कांग्रेस का हाथ का विश्लेषण करेंगे?
क्या तथाकथित बुद्धिजीवी कांग्रेस को भाजपा की बी-टीम बोलेंगे?
देखिये चुनाव लड़ना सबका संवैधानिक अधिकार है। अभी मैंने पढ़ा कि कांग्रेस बोल रही है वो एक राजनीतिक पार्टी है, NGO नहीं। सही कहा। हम भी NGO नहीं चला रहे हैं। लेकिन जब हमें अकेले लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है तो पूरा मीडिया, पत्रकार, समाज सेवक का मुखौटा पहने लोग, तथाकथित बुद्धिजीवी हमें गालियां देना शुरू कर देते हैं। भाजपा की बी-टीम बुलाते हैं। हमें क्यों ये लोग राजनीतिक पार्टी नहीं बुलाता है? हम वंचितों की आवाज़ हैं इसलिए?
ये जो मीडिया का “स्पेशल प्रेम” है हमारे लिए, वो जातिवाद ही तो है!
: ॲड. प्रकाश आंबेडकर
राष्ट्रीय अध्यक्ष, वंचित बहुजन आघाडी
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दैनिक जागृत भारत