दोस्त दोस्त ना रहा…अशोक सवाई

अमरीका चुनाव में जनाब डोनाल्ड ट्रम्प जीत जाने के बाद उनकी ताज़पोशी याने की शपथ ग्रहण समारोह की तारीख (२० जानेवारी) तय हो गयी। और हमारे विश्वगुरू के भक्तगण जो भारत और अमरीका में स्थित है उनके बल्ले बल्ले हो गये ऐसा उनको लगा। शपथ ग्रहण समारोह दिन दोनो बादशहा (अमरिकन राष्ट्राध्यक्ष और भारत के प्रधानमंत्री) एक मंच पर आए तो हमे ग्रीन कार्ड और उसके बाद अमरिकन सिटीझनशिप मिल जाएगी ऐसा वहाॅं टेंपररी व्हिजा पर रहनेवाले अप्रवाशी भारतीय को लगा। तो इधर भारतीय भक्तगण दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने आला कमान के बडे बडे पोस्टर लगवाकर इव्हेंट करने के मुड में थे। और चुनाव में रंग भरने के होड में। इससे हमारे विश्वगुरू के चेहरे पर भी मुस्कान छायी होगी।
लेकिन हाय रे किस्मत… डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह का हमारे प्रधानमंत्री जी को न्यौता ही नहीं मिला। *बडी आंस लगाए बैठे थे हुजूर आपके बुलावे की, लेकिन चकनाचूर भुकटी हो गयी हमारे उम्मीदों की!* पहले दोस्त ने दुसरे दोस्त को दिया हुवा यह पहला भारी झटका था। अच्छा! दुसरे दोस्त ने पहले दोस्त के लिए उनके फर्स्ट टर्म के चुनाव में क्या क्या नही किया… उनका चुनाव प्रचार किया, अब की बार ट्रम्प सरकार के भारी भरकम नारे लगवाए। इसके लिए अपने ही देश में टिका टिप्पणी के धनी हो गये। इसका यह सिला मिला? साधा न्यौता भी नही? उलटा जले पर नमक छिडकते हुवे पडोसी चीन के शी जिनपिंग को न्यौते का कार्ड भी भिजवा दिया और उपर से फोन पर दो दो बार समारोह को आने का आग्रह भी किया। यह क्या बात हुयी? और तो और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी को निमंत्रण न देते हुवे उनके परममित्र धनकुबेर को पती पत्नी के साथ बाकायदा निमंत्रण दिया। और वे दोनो पती पत्नी देरी किए बिना उडनखटोले में भूर्रर्रर्र… उडकर भी गये अमरिका। इससे बेचारे हमारे विश्वगुरू पर क्या बीती होगी इसका अंदाजा भी है किसीको? उनके भक्तगण भारी नाराज हुवे लेकिन उससे क्या फर्क पडता है? साहब तो नाराजगी भी प्रकट नही कर सकते। और बोल भी नही सकते की, उनके जीगरी दोस्त ने धोका दिया।
ऐसा क्यों हुवा तो राजनैतिक जानकर कहते है की, इस बार अमरिकन चुनाव के दरम्यान हमारे साहब अमरिका गये थे। वहाॅं जनाब-ए-आलम डोनाल्ड ट्रम्प ने हमारे साहब से मिलने की इच्छा प्रकट की लेकिन हमारे साहब उनसे मिले बगैर ही वापस लौट आए इससे ट्रम्प महोदय खप्पा मर्जी हो गये। कहते है उनका इगो हर्ट्झ हो गया। और इसका नतीजा हमारे साहब को शपथ ग्रहण समारोह का निमंत्रण कार्ड न मिलने पर हुवा। और जानकारों का कहना यह भी है की, जिस देश में चुनाव चल रहे हो तो उस देश का दौरा नही करना चाहिए। नही तो ग़लतफैमी का शिकार होना पडता है। जैसा की अभी हुवा। उसका असर आपसी संबधों, आर्थिक एवं व्यापारी कारोभारों को प्रभावित करता है। और दुबारा संबंध सुधारने के लिए काफी मुशक्कत करनी पडती है। इसके लिए हमारे विदेशी मंत्रालय के पास प्रभावी कुटनीती होनी चाहिए। और सलाहकार भी अनुभव संपन्न होना जरूरी है। खैर…
शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद ट्रम्प महोदय ने सख्त रूख अपनाकर दो नये कानून की घोषणा की। अगर किसी देश के टेंपररी व्हिजा वाले दंपत्ती ने अमरिका धरती पर अपने बच्चे को जन्म दिया तो उसे अमरिकन नागरिकता या सिटीझनशिप नही मिलेगी। और दुसरा सख्त इमिग्रेशन के आदेश दिये है। युं कहिए यह आदेश हमारे यहाॅं के सीएए और एनआरसी कानून जैसे है। अमरिका में लगभग चालीस-पचास लाख लोग हमारे भारतीय है। उसमें से तकरीबन पचास फ़िसदी गुजराती है। इस कानून से अमरिका में रहनेवाले भारतीय लोगों में काफी घबराहट का माहोल है। कहाॅं जाता है की, उसमें से अठारा से बीस हजार लोगों के पास वहाॅं के कानून के अनुसार मुक्कमल डॉक्यूमेंट नही है। ऐसे लोगों को वहाॅं डिटेन करने का भी डर सता रहा है। बाकी लोगों को अपने देश लौटने का आदेश दिया जा सकता है, यह भी आशंका है। इसलिए अमरिका में रहनेवाले भारतीय समुदाय के लोगों में खलबली मची है। हमारे प्रधानमंत्री के लिए यह दुसरा तगडा झटका दिया है उनके परममित्र डोनाल्ड ट्रम्प ने। उन लोगों को राहत देने लिए हमारे साहब की मित्रता कितनी काम आती है यह भी काफी अहम सवाल होगा। वैसे तो दोनो मित्रों में एक समानता पायीं जाती है। और वो है अपनी अपनी सत्ता की ताकद का जुनून। लेकिन इसमें भी एक भारी फर्क है। वो यह की ट्रम्प के लिए अमरिकन फर्स्ट तो हमारे प्रधानमंत्री के लिए उनके परममित्र फर्स्ट। जैसे डोनाल्ड ट्रम्प में व्यापारी वृत्ती पायीं जाती है वैसे ही सत्ता में बैठी हुयी हमारे गुजरात लाॅबी में भी। लेकिन इसमें भी और एक फर्क है। ट्रम्प महोदय अमरिकन फर्स्ट के लिए अपने मित्रों का इक्तफाक नही रखते। हमारे प्रधानमंत्री अपने परममित्रों के लिए किसीका भी इक्तफाक नही रखते। अब देखना यह की, हमारे देश के नागरिकों को वापस भारत लाने के लिए हमारे साहब कितना प्रयास करते है? करते है भी या नही? या अपने स्वभाव के अनुसार ऐसा तो नही कहेंगे… उनको हमने थोडी न कहाॅं था वहाॅं जाने के लिए? हमारे साहब ने अहमदाबाद में शी जिनपिंग को झुला झुलवाया था। अमरीका में ट्रम्प के लिए अब की बार ट्रम्प सरकार के नारे लगवाए लेकिन हुवा क्या?
ना खुदा मिला ना मिसाल-ए-सनम, ना इधर के रहे ना इधर के।
लेकिन कुछ भी हो इतना तो जरूर कहना पडेगा दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा…
– अशोक सवाई.
91 5617 0699
संपूर्ण महाराष्ट्रातील घडामोडी व ताज्या बातम्या तसेच जॉब्स/शैक्षणिक/ चालू घडामोडीवरील वैचारिक लेख त्वरित जाणून घेण्यासाठी आमच्या व्हाट्सअँप चॅनलला Free जॉईन होण्यासाठी या लिंकला क्लीक करा

तसेच खालील वेबसाईटवर Click करा
दैनिक जागृत भारत