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अविश्वास प्रस्ताव एवं महाभियोग –अशोक सवाई

हम यह आर्टिकल हिंदी में लिख़ रहे है। जो महाराष्ट्र और महाराष्ट्र बाहर के पाठक जो मराठी भाषा नही समझते उनके सुविधा के लिए ठिक रहेगा। हमारे मराठी पाठक भले वे हिंदी भाषा ठिक से बोल न ले, लिख न ले लेकिन हिंदी भाषा का अर्थ बडी वखुबी से जानते है, समझते है। इसलिए दोनो भाषी पाठकों के लिए सुविधा होगी। खैर…

हमारे देश में संवैधानिक पद पर बैठे हुवे महामहीम राष्ट्रपती देश के प्रथम नागरिक होते है। उपराष्ट्रपती जो राज्यसभा के सभापती भी होते है वे देश के दुसरे नंबर के नागरिक होते है। लोकसभा सदन में प्रधानमंत्री वे देश के तिसरे नंबर के नागरिक होते है। और लोकसभा सदन के अध्यक्ष वे देश के चौथे नंबर के नागरिक होते है। देश के सर्वोच्च पद ग्रहण करने वाले यह चारो सन्माननीय व्यक्ती पर संसद सदन की गरिमा, और सदन सूचारू रूप से चले, इसकी सारी जिम्मेदारी की दारोमदार इन्ही चार सन्माननीय व्यक्ती के कंधो पर होती है। सन २०१४ तक संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक पद ग्रहण करनेवाले और सदन के सन्माननीय सदस्यों ने अपने पद की गरिमा को संभालते हुवे सदन को सूचारू रूप से चलाया है। और वो सदन के रेकॉर्ड पर भी है। लेकिन जब से याने की २०१४ से बीजेपी सरकार आयी है तब से लेकर आज तक संसदीय कामकाज में धक्कादायक बदलाव और धक्कादायक निर्णय देखने को, सुनने को मिले है। जो संविधान के विरुद्ध दिशा में जाते है। और देश के हित में तो बिलकुल ही नही थे/ नही है। आज भी यही सिलसिला जारी है। खैर…

१) अविश्वास प्रस्ताव

             विपक्ष का कहना है अब पानी  गले तक आ पहुंचा है। उन्होने उपराष्ट्रपती एवं राज्यसभा के सभापती जगदिप धनकड पर आरोप लागाया की सभापती महोदय पक्षपाती निर्णय लेते है, जैसे वे बीजेपी के प्रवक्ता हो, ऐसा उनका सदन में रवैय्या रहता है। विपक्ष के सदस्य अगर अदानी, अंबानी या प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और उनके असंवैधानिक कामकाज पर चर्चा करना चाहे तो सभापती उनको बोलने नही देते या उनको सस्पेंड कर के सदन के बाहर कर देते है। और बीजेपी वाले उलटा विपक्ष पर आरोप लागते है की विपक्ष सदन चलने नही देता। 

संसद को चलाने के लिए एक मिनिट पर ढ़ाई लाख रुपये खर्च होते है जनाब-ए-मन… ढ़ाई लाख… जो हमारे तुम्हारे पसीने की गाढ़ी कमाई होती है हुजूर-ए-आलम… जो पैसा टॅक्स के रूप में हमसे वसूला गया होता है। इसका इल्म भी है सांसदों को? अगर इल्म नही तो उनको इसका मलाल भी कैसे होगा? अगर संसद चलाने के लिए एक मिनिट में ढ़ाई लाख रुपये खर्च होते है तो एक दिन में और पूरे सत्र चलाने के लिए कितने रुपये खर्च होंगे इसका हिसाब लगावो तो जरा।

            उपराष्ट्रपती एवं राज्यसभा सभापती के पक्षपाती व्यवहार से तंग आकार इंडीया अलायन्स सभापती धनकड को  उनके पद से हटाने के लिए सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तयारी कर रहा है। सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने की नोटीस रखने के लिए विपक्ष सदस्यों के ५० हस्ताक्षर की जरूरत होती है। विपक्ष इंडिया अलायन्स ने ७० से अधिक हस्ताक्षर जुटा लिए है। नोटीस १४ दिनों की होती है। तब तक यह शीत कालीन सत्र समाप्त होगा। फिर से इस पर कारवाई अगले सत्र में याने की बजेट सेशन में ही हो सकती है। अगर विपक्ष ने सभापती के विरोध में आखरी वक्ते तक अविश्वास प्रस्ताव लाने का मन बना लिया हो तो। लेकिन आगे मुख्य लड़ाई वोटींग के रूप में होगी। राज्यसभा २४५ सदस्यों की है। इस में २३३ इलेक्टेड सदस्य और १२ सदस्य राष्ट्रपती द्वारा नाॅमिनेटेड होते है। आज सत्ता पक्ष के पास १२२ सदस्य  और पूरे विपक्ष के पास ११३ सदस्य है। यहाॅं विपक्ष मात खाते दिखाई देता है। प्रत्यक्ष रूप से वोटींग में अगर क्राॅस वोटींग होती है तो अलग बात होगी। लेकीन इसके आसार काफी कम नजर आते है। अगर सत्ता पक्ष या सरकार सांसदों को आवाजी रूप से मत देने लिए बाद्य करती है तो फिर कुछ भी गुंजाइश नही बचती। संविधान पर कहो या संसदीय परंपराओ पर आस्था रखने वाले लोगों बीच कम से कम यह संदेश जरूर जाएगा की सत्ता पक्ष संविधान के अनुसार संसदीय कामकाज नही चला रहा है। और संविधान को रौंद कर अपनी ही मनमानी कर रहा है। इस से सत्ता पक्ष के मनसुबे उजागर होकर सत्ता पक्ष को एक तगडा झटका देने का प्रयास विपक्ष का रहेगा। आगे चलकर सत्ता पक्ष अपनी मनमानी न करे। लेकिन सवाल यह है की देश दुनिया की सरहद्द पर बेशरमी के बाझार में जीसने अपनी इज्जत निलाम की हो, उसे क्या ही फर्क पडने वाला है जनाब... फर्क तो उसे पडता है साहब... जो अपनी इज्जत की साख बचाए रखता हो। 

           राजनैतिक जानकारों   का कहना है की संसदीय इतिहास में यह पहली बार होगा जो राज्यसभा के किसी सभापती पर अविश्वास प्रस्ताव लाया जायेगा। और यह लोकतंत्र के लिए बडी शर्मसार करनेवाली बात होगी। विपक्ष यह भी कहता है की प्रधानमंत्री मोदी जी अपनी पसंद की व्यक्ती को ही बडे बडे संवैधानिक पद पर बैठा देते है। फिर चाहे उस व्यक्ती के पास मेरीट हो न हो। सदन चलाने की प्रतिभा हो न हो। सिर्फ और सिर्फ मोदी जी की भलाई करनेवाला इन्सान हो। देश के भला करनेवाला नही चाहिए मोदी जी को। लेकिन ऐसे व्यक्ती के व्यवहार से दुनिया में देश को शर्मिंदगी उठानी पडती है और उस पद की गरिमा को भी ठेस पहुंच जाती है। इसकी मोदी जी को कोई चिंता नही, लेकिन गुज़रे दस वर्षों में सत्ता पक्ष के माध्यम से देश में जो भी कुछ हो रहा है वह ठिक नही! भारतीय जनता के हित में तो कत्तई ठिक नही। इस से धीरे धीरे बीजेपी खत्म होने का खतरा भी है। मौजूदा वक्ते  में देश के ऐसे हालात बन गये की देश ५० साल पिछे चला गया है। और उसे फिर से अपनी पटरी पर आने के लिए नयी सरकार को काफी मुशक्कत करनी पडेगी और काफी वक्त भी लगेगा। 

२) महाभियोग

            अती उच्च राजनैतिक संवैधानिक पद ग्रहण करनेवाले और स्वायत्त संस्था के अती उच्च पदस्थ व्यक्ती को या उनके पद को संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है। इसलिए उस अती महत्त्व व्यक्ती को, उसके पद से ऐसे ही हटाया नही जा सकता। या उनसे उनके पद का त्यागपत्र नही लिया जा सकता। लेकिन उस व्यक्ती द्वारा कोई असंवैधानिक काम किया जा रहा हो या संविधान को दरकिनार कर के किसी की न सुनते हुवे अपनी ही मनमानी कर रहा हो तो उस व्यक्ती को उसके पद से हटाने के लिए संविधान में प्रावधान भी किया है। उस के लिए सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाना पडेगा या फिर उस व्यक्ती के ख़िलाब महाभियोग चालना पडेगा। तब जा कर उस व्यक्ती को उस के पद से हटाया जा सकता है। खैर... 

            ऐसे ही इलाहाबाद के हाय कोर्ट के एक जज्ज महाशय है। नाम है शेखर कुमार यादव। वे पहले समाजवादी पार्टी में थे फिर कांग्रेस में आए फिर व्हाया आर एस एस बीजेपी में चले गये। वे ८ डिसेंबर को विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे। कार्यक्रम का विषय था समान नागरी संहिता का। लेकिन यह जज्ज महाशय वहाॅं जाकर उस कार्यक्रम में अपनी ज़हरीला भाषण देने लगे। भाषण के दौरान उन्होने मुस्लिम समुदाय के ख़िलाब 'कठमुल्ले' जैसे आपत्तीजनक और असंवैधानिक शब्द इस्तमाल किये। सार्वजनिक रूप से एक जज्ज ने जो कहाॅं  वो  कहना नही चाहिए था लेकिन कहिॅं। जज्ज साहब ने जो आपत्तीजनक  शब्द इस्तमाल किये। वो शब्द यहाॅं लिखने में हमें कठनाई मेहसूस हो रही है। लेकिन जो हकिकत है उस के लिए हमें  यहाॅं वही शब्द लिख़ने के लिए कोई परहेज नही होना चाहिए। उस जज्ज के भाषण का जैसे ही व्हिडिओ व्हायरल हुवा उस पर देश में बवाल कटने लगा। जानेमाने वकील कपिल सिब्बल जैसे सिनियर वकील शेखर कुमार यादव पर महाभियोग चलाने की तयारी में जुटे है। वे सारे विपक्ष पार्टी के और सत्ता पार्टी के सदस्यों साथ विचार विमर्श कर रहै है। सत्ता पक्ष के सदस्यों को समझाने का प्रयास कर रहे है देश के लिए मदत की गुहार लागा रहे है। महाभियोग चलाने के प्रस्ताव पर हमारा साथ दे। वर्ना देश की जनता को भी समझने में देर नही लगेगी आप सदस्य गण भी शेखर कुमार यादव के मनुवादी जहरीले विचारों से जुडे हुवे है। 

            लेकिन इसके पहले जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने अपने एक पत्र द्वारा  सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध किया की इलाहाबाद के उच्च न्यायालय के  न्यायधीश शेखर कुमार यादव के विरोध में न्यायीक समिती गठित करे और जब तक न्यायीक जांच पूरी नही होती तब तक संबंधित न्यायधीश के न्यायीक अधिकार और कामकाज छीन लिए जाए। और न्यायीक कार्यों से निलंबीत रख्खा जाए। वकील प्रशांत भूषण आगे अपने पत्र में कहते है, जज्ज शेखर कुमार यादव द्वारा दिया गया भाषण बेहद आपत्तीजनक है, ऐसे भाषण देश के लिए खतरनाक हो सकते है। वे आगे कहते है, भाषण में शेखर कुमार यादव कहते है की देश बहुसंख्याक से चलेगा। यह भी सीधे सीधे संविधान का उल्लंघन है। शेखर कुमार का भाषण संविधान की मूल प्रस्तावना के ख़िलाब है। देश के वकीलों से लेकर आम जनता तक शेखर कुमार यादव के भाषण पर  देश में बवाल कटा है। 

            ये वही शेखर कुमार यादव है जीसने अपने किसी मामले का फैसला सुनाते वक्त कहाॅं था की, सारी दुनिया में गाय एक मात्र ऐसी पशू है जो ऑक्सिजन ग्रहण करती है और उत्सर्जित भी करती है। याने की ऑक्सिजन लेती भी है और देती भी है। वल्लाह... अद्भूत... क्या बात है... इस बात से हम बिलकुल अनभिज्ज्ञ थे। अच्छा हुवा नयी जानकारी मिली। ऐसा है तो हमारे शालेय पाठ्यपुस्तक क्रम में यह जानकारी क्यों नही? सवाल है। अच्छा! शेखर कुमार यही तक नही रूकेते उन्होने उस वक्त केंद्र सरकार से मांग भी की थी की, गाय को राष्ट्रीय पशू घोषित किया जाए, गाय का कल्याण होगा तभी तो देश का कल्याण होगा। यह तो और भी जादा अद्भूत है  हुजूर... ऐसे अगाध ज्ज्ञान के मलिक के विधानों पर हम हंसे या रोये पाठक गणों आप ही बता दिजीएगा। 

             जज्ज शेखर कुमार की और बातें सुनीएगा। उन्होने सरकार से एक और दुसरी मांग भी की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान शंकर और रामचरितमानस के रचियता   तुलसीदास, रामायण के रचियता वाल्मिकी इन सब लोगो के सन्मान के लिए देश में कानून बनाना चाहिए। तो सुना आपने? यह होती है मनुवादी सोच! और जहाॅं मनुवादी सोच पैदा होती है वहाॅं का विवेक मर जाता है मोहतरम/ मौहतरमा जी... अगर जज्ज शेखर कुमार यादव पर महाभियोग चलाया गया तो उनके  मदत के लिए संविधान आयेगा या फिर उनके उक्त देवता? सवाल है। 

            अब वकील कपिल सिब्बल की इस पहल को देश की तमाम राजनैतिक पार्टीया कितना सथ देती है? देती है भी या नही? यह तो आनेवाला समय बताएगा। इस मामले में जज्ज शेखर कुमार यादव देश से माफी मांगेंगे? या फिर अपने कार्यो से मुक्ती पायेंगे? या फिर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे? या पड़दे के पिछे और कोई समझौता होगा? बहोत सारे सवाल है। 

           जब से बीजेपी सरकार के हातों में देश की कमान गयी तब से देश में कहीँ न कही, किसी न किसी मुद्दे पर गद़र उठते आया है। अगर आनेवाले भविष्य में देश की यही स्थिती बनी रही तो देश के लोगों का बहोत बुरा हाल होगा। फिर संभलते संभलते काफी समय लगेगा। 

अशोक सवाई.
९१ ५६१७ ०६९९

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