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हरियाणा में कांग्रेस की चुनावी हवा, आंधी या त्सुनामी?
(राजनैतिक)
अशोक सवाई.
यह सवाल हमारा नही हरियाणा के वरीष्ठ पत्रकार योगेंद्र यादव का है। और इसका विश्लेषण भी वे करते है। हवा का मतलब साधारण बहुमत या उससे थोडा जादा। आंधी का मतलब ६० प्लस और त्सुनामी का मतलब ७० प्लस सींटे। हरियाणा के वरीष्ठ पत्रकारों का मानना है जैसे की, हेमंत अत्री हो, रविदंर सिंग हो। और सारे देश की सियासत पर अपनी पैनी नजर रखनेवाले हमारे महाराष्ट्र के अशोक वानखडे हो। ये सारे चुनावी एक्सपर्ट है जो चुनावी जमीनी हकिकत बयाॅं करते है। वे कहते है हरियाणा में विधानसभा के कुल सींटे ९० है। साधारण बहुमत ४६ सींटोका है। अगर कांग्रेस उसमें से ५० सीट भी जीत लेती है तो फिर भी बीजेपी खेला करने से हिचखिचायेगी नही। मगर कांग्रेस ६० प्लस या ७० प्लस करती है तो बीजेपी हरियाणा में अपना मुंह दिखाने के काबील नही रहेगी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस साधारण बहुमत में है। वहाॅं बीजेपी का खेला करने का प्रयास अब भी जारी है। कर्नाटका और तेलंगणा के सरकार में कांग्रेस मजबूत स्थिती में है। इसलिए वहाॅं बीजेपी को हातपांव मारने के लिए जगह नही। लेकिन हरियाणा में बीजेपी को थोडा भी लूप होल मिलता तो वो खेला करने से बिलकुल नही कतरेगी। ऐसा उक्त विश्लेषकों का चुनावी ओपिनियन है।
सरकारी ख़ुपिया एजंसी द्वारा गुजरात लाॅबी के पास (जैसे की हिंदी बेल्ट के पत्रकार कहते है) हरियाणा का चुनावी डाटा पहले से ही पहुच चुका है। और डाटा हो या हरियाणा के कोई भी चुनावी एक्सपर्ट हो वे बीजेपी को किसी भी हालत में २०-२५ से जादा सींटे देने के लिए तय्यार नही। इसका इल्म बीजेपी को भी है। इसलिए बीजेपी खुद्द को जीताने के बजाय कांग्रेस का जीतने का खेल बिघाडाने में जुटी है। इसके लिए वो मायावती के कुछ उमीदवार, कुछ चंद्रशेखर आझाद के और कुछ निर्दलीय उमीदवार को अप्रत्यक्ष रूप से जीताने का प्रयास करेगी। क्यों की वहाॅं की जनता बीजेपी उमीदवार को छोडकर बाकी किसी भी उमीदवार का विरोध नही कर रही। बीजेपी उमीदवारों को तो गांव गांव से दौडा दौडा कर ख़देड रही है। इतना भारी विरोध है वहाॅं की जनता में बीजेपी के प्रति। ऐसी ख़बरे सोशल मीडिया द्वारा आये दिन आती रहती है। (कांग्रेस छोडकर) बिगर बीजेपी उमीदवार को साम/दाम/दंड/भेद के सारे पैतरे द्वारा (यह उनका पुराना अस्त्र रहा है) बीजेपी अपने ख़ेमे में लाकर अपनी सरकार बनाने का प्रयास करेगी। या फिर इव्हीएम द्वारा हंग असेंब्ली लाने की मंषा रखेगी। क्यों की हंग असेंब्ली बीजेपी के लिए लूप होल बन सकता है। फिर कोई ना कोई जुगाड जमाके अपना बहुमत जूटाने की वो कोशिश करेगी। गुजरात लाॅबी की अपनी एक आदत यह है की, वो आखरी बाॅल तक जीतने की उम्मीद छोडती नही। क्यों की ये गुजरात लाॅंबी का अपनी साख बचाने का बडा सवाल है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड (जम्मू & कश्मीर में बीजेपी सरकार बनाएगी इसके आसार तो दूर दूर तक नजर नही आते) अगर बीजेपी के हात से निकल जाते है तो गुजरात लाॅबी की साख, खाक हो जाएगी। और जब साख ही नही बचेगी तो सत्ता की खुर्ची के पांव डगमगाने लगेंगे। अगर खुर्ची के पांव डगमगाते है तो खुर्ची गीरने के आसार भी पैदा हो सकते है। ऐसे हालातों में फिर नानी की (नायडू और नीतीश) बैसाखी भी कहाॅं तक साथ निभाएगी यह सवाल उठने लगेंगे। वैसे भी डुबते हुवे जहाज में कौन सफर करना चाहेगा साहब? फिर बाकी लोगों का छोड दिजीए खुद्द बीजेपी की अंदरूनी आवाज उठने लगेगी की प्रधानमंत्री को बदला दिया जाए और वो भी खुलकर। साथ साथ सरकारी एजंसीया भी अपने अपने रास्ते तय करेगी। इसलिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री खुद्द को अपने पद पर बनाये रखने के लिए हर हाल में प्रयास करेंगे।
दुसरी ओर बीजेपी की मुसिबत यह है की, हरियाणा में बीजेपी के चार कद्दावर नेता है। १) कॅप्टन अभिमन्यू २) मनोहरलाल खट्टर के बदली में हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुवे नायब सिंग सैनी ३) हरियाणा के सात बार विधायक रह चुके अनिल विज और ४) पूर्व मुख्यमंत्री खुद्द मनोहर लाल खट्टर। कहाॅं जाता है की, कॅप्टन अभिमन्यू हरियाणा में सबसे बडे रईस शख्स है। लेकिन वो अपनी खुद्द की सीट निकाल सकते या नही इसकी आशंका है। इसके लिए वो अपने ही चुनावी क्षेत्र में उलझे हुवे है। मौजूदा खुद्द मुख्यमंत्री नायब सिंग सैनी का भी हाल अलग नहीं। अभी चुनाव की दौड में बीजेपी ना तीन में है ना तेरा में, फिर भी अनिल विज साहब ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोक दिया। पता नही उनके सपने पूरे होंगे भी या नही। मनोहर लाल खट्टर की तो अलग ही कहाणी है। जनाब मंच से गायब, रॅली से गायब, पोस्टर से गायब, इसका कारण यह है की केंद्रीय गृहमंत्री और खट्टर के बीच भारी खट्टास देखने को मिल रहा है। यही कारण था, एक बार गृहमंत्री ने अपनी रॅली कॅन्सल कर दी थी। शायद इसलिए खट्टर साहब किसी मंच या रॅली में शरीक होते नजर नही आ रहे। वे हरियाणा के किसी नुक्कड सभावों में जरूर शिरकत करने पहुचते है। लेकिन बडे मंच से गायब ही है। नुक्कड सभावों में तो चारसौ, पाचसौ से अधिक लोग नही होते। बीजेपी खट्टर के बीना ही सींटे जीतने की खटपट कर रही है। ये सारी चीजें है, जो बीजेपी के लिए चुनावी रास्ते के रोडे बन बैठे है। इसलिए बीजेपी कोई दुसरे विकल्प खोज़ रही है।
हरियाणा जैसी ही महाराष्ट्र की स्थिती है। वहाॅं जैसा बीजेपी के विरोध में जनता का आक्रोश है, वैसा यहाॅं महाराष्ट्र की जनता में भी है। हरियाणा की जनता वहाॅं सत्ता बदलने के मुड में है और यहाॅं भी महाराष्ट्र की जनता उसी मुड में है। फर्क सिर्फ इतना है की वहाॅं जनाता का विरोध आक्रमक रूप से है। यहाॅं जनता के मन में ही महायुती सरकार के विरोध में आक्रोश है। जो पुरोगामी महाराष्ट्र की सभ्यता के अनुसार है। और वो महायुती सरकारने 'लाडली बहना योजना' लाने के बावजूद भी है। हरियाणा में मुख्य मुद्दे है किसान,जवान और पहिलवान। हरियाणा सरकारने किसानों को बाॅर्डर पर रोका गया उनको आंदोलन करने के लिए दिल्ली नही जाने दिया। दुसरा मुद्दा है जवानों का जो अग्नीवर का ज्वलंत मुद्दा है। और तिसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है हरियाणा के पहिलवान बेटीयों के साथ यौन शोषण के मामले। और जंतर मंतर पर पहिलवानों का आंदोलन कुचलने के लिए सरकार द्वारा की गयी बर्बरता। इन मुख्य मुद्दों के सपोर्टर्स मुद्दे है महंगाई, बेरोजगारी और विकास ये सारे मुद्दे वहाॅं के अहम मुद्दे है। इसलिए वहाॅं की जनता सरकार बदलने के मुड में है।
महाराष्ट्र की जनता के अपने अलग मुद्दे है। जैसें की छत्रपती शिवाजी महाराज की अस्मिता, बदलापूर कांड, मराठा आरक्षण, ओबीसी आरक्षण, शिक्षा, महिला सुरक्षा, महंगाई, बेरोजगारी साथ में महाराष्ट्र के बीजेपी नेताऔं की बेताल, बेखौप बयान बाजी। और केंद्र सरकार महायुती सरकार से मिलकर महाराष्ट्र के साथ किया जानेवाला सौतेलापन का दुर्व्यवहार। जैसे की महाराष्ट्र के व्यापार, उद्योग, केंद्र के महत्वपूर्ण कार्यालय गुजरात में ले जाना, विरोधी पार्टी की अच्छी खासी चलने वाली सरकार तोडमरोड करके अपनी सरकार बनाना जो सरे आम दिखाई दिया है। यह सारे असंवैधानिक जुगाडू मामले महाराष्ट्र की जनता को बिलकुल रास नही आए। ऐसे तमाम मुद्दे है जो महाराष्ट्र की जनता को पसंत नही है। अगर हरियाणा में बीजेपी हारती है तो उसका साइड इफेक्ट महाराष्ट्र में जरूर देखने को मिलेगा। झारखंड में पता नही क्या होगा? क्यों की वहाॅं के राजनैतिक समीकरण अलग है। अगर इव्हीएम द्वारा कोई गडबड नही हुयी तो चुनाव में महायुती डबल डिझीट का आकडा पार नही कर सकती। यह हमने पहले भी मराठी आर्टिकल में कहाॅं था और आज भी वही आकडे पर अटल है। यह हमारा चुनावी आकलन है। क्या सही क्या गलत ये तो चुनाव के नतीजे आने बाद ही पता चलेगा। तब तक के लिए वक्त का इंतजार करना पडेगा।
– अशोक सवाई.
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