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बहुजन समाज पार्टी की राजनीति और लोकसभा चुनाव 2024 पर एक विमर्श

शशिकांत , जनपद बस्ती

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झुग्गी झोपड़ी , दलित बस्ती के गलियारों से मान अपमान, उत्पीड़न से संघर्षरत निकला बहुजन आन्दोलन की बैठकें जब से बड़े बड़े होटलों में होने लगे,,, गरीब मजबूर कार्यकर्ता, जनता के साथ बहुजन समाज पार्टी के एक भी पदाधिकारी उनके न्याय के लिए कोर्ट कचहरी, थाना, तहसील में साथ न खड़े हो पाना,,, बड़े बड़े कोआर्डिनेटर द्वारा कार्यकर्ता को सिर्फ गुलाम समझना, अपने जेब के जिलाध्यक्ष बनाना, पार्टी प्रमुख और जनता की आवाज के बीच गहरा खायी होना…. जिससे धीरे धीरे कैडर वोटर का मनोबल गिरता गया,, आखिर कब तक मान्यवर कांशीराम जी के संघर्ष की जमा-पूंजी से ये पार्टी में कब तक आगे टिकी रह पाती,,, उनकी जमा पूंजी दलित, अति पिछड़ा, मुस्लिम समुदाय, और यादव कुर्मी समाज जरूरत था,,, जो कम होते होते केवल चमार जाति पर आकर टिक गया, और उसमें भी गांव देहाती वोटर्स और सरकारी कर्मचारी,,, हम कोई नया समाज नहीं जोड़ पाये,,, रही बात 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार, तो यह 2003 की मुलायम सिंह यादव की सरकार के सत्ता विरोध का एक अवसर था, तब बीजेपी, कांग्रेस बहुत ही कमजोर स्थिति में थी,,,, पिछड़ा समाज, और सामान्य वर्ग का भी कुछ वोट अपने स्वार्थ सिद्धी में पूरे दलित समाज के साथ जुड़ गया, तो सरकार बन गई,,, हम गफलत में थे कि सोशल इंजीनियरिंग काम कर गई,,,,
बहुजन समाज का सत्ता सामाजिक परिवर्तन और संगठन के रास्ते से होकर ही आयेगा,,, जिसमें साहब कांशीराम जी ने लगभग 17000 किमी पूरे देश में साईकिल चलाया, जन जागरण किया,समाज को जोड़ा,,,, उनकी बदौलत जब सत्ता मिली तो हमारे नेताओं के गाड़ियों के सीसे डाउन नहीं हुए,,,, हम लोकतंत्र का सबसे ज्यादा ढिंढोरा पीटते हैं हमारी पार्टी में खुद लोकतंत्र नहीं है,,, लोकतंत्र विहीन तानाशाही दल के तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं, यह बहुत दिन तक नहीं चल सकता, चाहे कोई भी पार्टी हो,,
कोआर्डिनेटरशिप की व्यवस्था ने सबसे ज्यादा दलाल पैदा किया,,, इनमें होड़ लगी रही की सबसे ज्यादा दलाली हम कर लें,,, इनके कारण पार्टी गांव-गांव से दूर होती गयी,,, जिलाध्यक्ष समझने लगा की हमें संघर्ष करने की क्या जरूरत,,, अगर कोआर्डिनेटर साहब की कृपा रहेगी तो हम जिलाध्यक्ष बने रहेंगे,,,
हम केवल बीजेपी और कांग्रेस को सांपनाथ और नागनाथ कह कर इतिश्री लेते रहे,,, लेकिन राहुल गांधी का 4000 किसी की देश भर में पैदल यात्रा हमें नजर नहीं आती,,,, बीजेपी का 60 वोटर्स के पन्ना प्रमुख से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष, उनकी कार्यकारिणी का कार्य पर हम आंख बंद कर लेते हैं,,, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, स्टालिन, केजरीवाल, हेमंत सोरेन, संजय सिंह, प्रियंका गांधी…. सत्ता संघर्ष से ही आती है बेरोजगारी, किसानों की समस्या, नौजवानो और छात्रओं की समस्या, उत्पीड़न के खिलाफ, देश की आर्थिक और, सामाजिक, राजनैतिक स्थिति और विदेशो से हमारे व्यापारिक संबंध,,,, इनको मामलों को लेकर सड़क से संसद तक का संघर्ष ही आपको चुनाव में एक राजनैतिक विकल्प बना सकता है,,, अगर सत्ता की चाभी अपने हाथ में लेना है तो उनसे ज्यादा संघर्ष करना पड़ेगा।
लेकिन हम केवल ट्वीट करेंगे, और ऐसा ट्वीट की …. जैसे हम सरकार के सलाहकार हो,- “” हमारी सरकार से मांग है, सरकार ऐसा करती तो अच्छा होता””
सत्ता के खिलाफ मुखरता से जबाब न मांगना ही, अन्य दल हमें एक सोची-समझी रणनीति के कारण “B टीम” कहलाने में सफल हो गये,,, और जितना विपक्षी हमारे नेशनल कोआर्डिनेटर / राजनैतिक उत्तराधिकारी आकाश आनंद जी को अपमानित नहीं किए,,, उससे ज्यादा हमारी पार्टी प्रमुख ने ही अपमानित कर दिया,,, यह देश एक बड़ी राजनैतिक प्रतिक्रिया थी, यह केवल आकाश आनंद जी के प्रति नहीं था, इसे दलित समाज के नौजवान जो आकाश आनंद जी मे अपना भावी नेता का रूप देख रहे थे,,, उनके रैली और कार्यक्रम जो एक नया जुझारू, संघर्षशील नेतृत्व देख रहे थे,,, अचानक नौजवानो के मंसूबों पर पानी फिर गया,,,, और वह नौजवान अपने आपको भी अपमानित महसूस करने लगा,,, वोट का बिखराव संविधान बचाने, B टीम के आरोप और आकाश आनंद जी के पद से हटाने के कारण हुआ,,,, हमारी पार्टी ने सबसे कम रैली, जनसभाओं को किया है, चुनाव से पूर्व हमारे पास कोई ठोस नया संकल्प, विचार और प्रयास नहीं था, जिसे हम जनता के बीच ले जाते, वही पुराना रटा रटाया राग। हर चुनाव में विचार, संकल्प स्थिति परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
मुस्लिम बसपा को वोट क्यों दें,,, इसलिए कि हमने ज्यादा टिकट दिया,,, यह देश जाति और धर्म का देश है, हिन्दू चुनाव में पहले अपनी जाति देखता है,,, अगर जाति का उम्मीदवार नहीं मिला तो धर्म की प्राथमिकता हो जाती उसके बाद विकास और रोजगार देखता है,,, लेकिन मुस्लिम समुदाय पहले अपना धर्म देखते हैं,,, उसके बाद ही रोजगार, शिक्षा आदि आदि…. भाजपा जितना तेजी से हिन्दू की बात करेगी,,, सपा और मुस्लिम समुदाय का संबंध उतना ही मजबूत होगा।
अगर विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन आदि पर वोट मिलता तो 2012 में बसपा की सरकार नहीं जाती,, केजरीवाल 2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सीटों पर नहीं हारते,,, अभी भी दलित नेता और उनका नेतृत्व आसानी से किसी अन्य को स्वीकार नहीं है,,, चाहे बाबू जगजीवन राम जी के प्रधानमंत्री बनने की बात का सबसे ज्यादा विरोध, तत्कालीन बड़े समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण ने किया था,, 2009 में यूपीए सरकार के गिरने की संभावना और बहन जी के प्रधानमंत्री के शपथ की संभावना पर ,, समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह और मुलायम सिंह ने ही सबसे ज्यादा विरोध किया,,,
इन सब बातों से सीख लेते हुए दलित समाज के सभी जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर,, छोटे छोटे जातियों, समुदाय के नेताओं को मिलाकर, मुस्लिम समाज के धार्मिक हितों की रक्षा करने की गारंटी, नौजवानो किसानों- मजदूरों के उनके मांगों और आवश्यकताओं, हितों के लिए सत्ता से संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं है,, इतिहास गवाह है सत्ता कोई लाकर देता नहीं है, उसके लिए संघर्ष ही अंतिम विकल्प रहा है और भविष्य में भी रहेंगे।
बसपा में समीक्षा के नाम पर केवल इच्छा रहती है, पार्टी प्रमुख ने प्रेस कांफ्रेंस कर दिया और एक चुनाव खत्म। समीक्षा में एक एक सीट पर विचार विमर्श किया जाता है, वहां के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से राय लिया जाता है,,, लेकिन हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं,,,, न चुनाव लडने के पहले और न हारने के बाद।
अगर बसपा को फिर से बहुजन आन्दोलन जिन्दा रखना है और पार्टी को सत्ता में लाना है तो ईमानदारी से एक एक सीट नहीं,,, एक एक बूथ पर समीक्षा, आकलन और नया रणनीति बनाना होगा, संगठन में कोआर्डिनेटर पद समाप्त करना होगा,,,, सीधे जिलाध्यक्ष – प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष का पैनल बनाना होगा,,, जिलाध्यक्ष को बहुत ही जान समझकर , कार्यकर्ता और बामसेफ के राय से बनाया होगा,,, बामसेफ को मजबूत करना होगा,,और सामाजिक संगठनों और उनके कार्यकर्ताओ का भी मान सम्मान करना होगा,,,, सामाजिक संगठनों की जड़ें मजबूत करना होगा और कोई भी निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत करना होगा,, छोटे-छोटे कार्यकर्ता के महत्व को समझना होगा, तब जाकर यह मिशन और पार्टी फिर से खड़ी हो सकती है और पुराने लोगों को सम्मान देना होगा।
नोट – एक नागरिक होने और संवैधानिक अधिकार के तहत , यह मेरा व्यक्तिगत विचार है,, कोई भी सहमत और असहमत हो सकता है, प्रतिक्रिया संसदीय शब्दों में ही आपेक्षित है।
जय भीम जय भारत
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@ शशिकांत , जनपद बस्ती।

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