चुनाव उपराष्ट्रपती का अशोक सवाई

(राजनैतिक)
पिछले चार पांच महिनों से केंद्र में गुजरात लाॅबी और पूर्व उपराष्ट्रपती जगदिप धनकड में काफी बेबनाव चल रहा था। जुलाई में उन दोनो के बिच कुछ जादा ही तनाव बढ गया। फिर उसकी परिणिती २१ जुलाई २०२५ को धनकड के त्याग पत्र के रूप में तब्दिल हुयी। उनका उपराष्ट्रपती का पद खाली हुवा। अब उसी पद के लिए ९ सितंबर २०२५ को चुनाव होने जा रहे है। उस चुनाव के लिए एनडीए ने अपना उम्मीदवार पहले ही घोषित किया।
उम्मीदवार के रूप में सी. पी. राधाकृष्णन को चुनाव में उतारा गया। राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते है। और वे आर एस एस से जुडे है। इसके पिछे बीजेपी खास तौर पर गुजरात लाॅबी (जैसै की, हिंदी पत्रकार कहते है) की रणनीती यह है की, इस से संघ खुश होगा और चुनाव में मदत करेगा। यह एनडीए को भरोसा है। इधर दुसरा कारण यह है की, साऊथ के लोग अपने क्षेत्रीय अस्मिता के लिए बडे उस्ताद माने जाते है। अतीत में राष्ट्रपती चुनाव के लिए प्रणव मुखर्जी के साथ पूरा बंगाल खडा था। प्रतिभाताई पाटील के साथ पूरा महाराष्ट्र। वैसे ही राधाकृष्णन के साथ पूरा साऊथ ब्लॉक आएगा ऐसा एनडीए को लगता है। वैसे तो सी. पी. राधाकृष्णन साऊथ से आते है लेकिन साऊथ और संघ की आपस में बनती नही। ये वास्तव है। फिर भी चुनाव में संघ मदत करेगा। ऐसा एनडीए को लगता है। इसलिए गुजरात के दो राजनैतिक धुरंधर महारथी काफी खुश थे। शुरू में उनको लगा राधाकृष्णन के विरोध में विपक्ष अपना कोई उम्मीदवार खडा नही करेगा। अगर करता भी है तो जीत नही पाएगा। क्यों की एनडीए के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनो सदन में बहुमत है। लोकसभा में २९३ और राज्यसभा में २२९ कुल मिलाकर २९३+२२९= ४२२ सांसद का संख्याबल है। और जीत के लिए ३९२ का आंकडा चाहिए। फिर भी एनडीए के पास ३० सांसद जादा है। मतलब चुनाव में एनडीए की जीत पक्की मानी गयी। इसलिए गुजरात लाॅबी के मन में जीत को लेकर खुशी के लड्डू फूट रहे थे।
लोकसभा की कुल सांसद संख्या ५४३ और राज्यसभा की २४५ होती है। कुल मिलाकर ७८८ की संख्या है। लेकिन आज की तारीख में लोकसभा में ५४२ और राज्यसभा में २४० सांसद है। कुल मिलाकर कर ७८२ का आंकडा है। जीत के लिए बहुमत का आंकडा चाहिए ३९२, इसलिए एनडीए आराम से जीत सकती है। बहुमत से ३० सांसद जादा है। लेकिन… लेकिन…
उसके बाद इधर इंडिया गठबंधन में भी अपना उम्मीदवार उतारने के लिए हलचल शुरू हुयी। तब भी एनडीए को अपने उम्मीदवार याने की सी. पी. राधाकृष्णन की जीत पर पक्का विश्वास था। लेकिन जैसे ही उपराष्ट्रपती चुनाव के लिए इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के साफसुथरे चरित्र वाले पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा तब एनडीए असहज हो गया। क्यों की ममता बॅनर्जी ने पहले ही सुझाव दिया था की, इंडिया का उम्मीदवार नाॅन पाॅलिटिकल व्यक्ती हो। और हुवा भी वैसा ही। बी. सुदर्शन रेड्डी तेलंगणा से आते है। और उनकी जन्मभूमी आंध्र प्रदेश रही है। कार्य भूमी तेलंगणा है। ८०-९० के दशक में वे वकालत करते थे। तब से आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री नायडू बाबू और सुदर्शन रेड्डी के पुराने संबंध रहे है। आज भी वैसे ही है। रेड्डी नायडू बाबू को कानूनी सलाह और मदत देते थे। वो संबंध आज भी है। इंडिया उम्मीदवार घोषित होने के पहले नायडू बाबूने भले ही कहां हो की उनकी पार्टी एनडीए के साथ है। लेकिन चंद्राबाबू एक ऐसे राजनैतिक शख्स है की, वे राजनैतिक मौसम के राजनैतिक विशेषज्ज्ञ माने जाते है। मौसम के मिजाज को अच्छी तरह परख लेते है। हवा पलटते ही वे अपना रूख बदलने में देर नही करते। उधर आंध्रा के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी प्रदेश की अस्मिता के लिए इंडिया के बाजू में वोट डाल सकते है। भलेही चंद्राबाबू और जगन में ३६ का आंकडा हो। जगन के पास दोनो सदन के ११ सांसद है। और नायडू के पास कुल सांसद १८ है। ११+१८=२९ सांसद होते है। इंडिया गठबंधन के साथ कुल ३६० सांसद है। ३६०+२९=३८९ का संख्याबल होता है। जीत के लिए ३९२ की जरूरत है। अगर एनडीए से उक्त २९ सांसद हट जाते है तो एनडीए के पास ४२२-२९=३९3 मतलब बहुमत से सिर्फ १ जादा। उधर इंडिया गठबंधन बहुमत के लिए ३ सांसद कम पडते है। वो जोडने में मुश्किल नही। क्यों की लोकसभा में चंद्रशेखर आझाद एवं पप्पू यादव जैसे समाजवादी विचारधारा के तटस्थ सांसद है। वे एनडीए की तरफ़ कभी झुकना नही चाहेंगे। पिछले ३० सालों से आंध्रा के हैदराबाद स्थित पत्रकार राजशेखर राव जो साऊथ राजनीती की नस नस जानते है। और पिछले ४० साल से संसद को कव्हर करने में जिन्होने महारथ हासील की है, वे उमाकांत लखेडा यह दोनो राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है की उक्त राजनीती का समीकरण बन सकता है। अगर ऐसा होता है, तो बाकी जो एनडीए के छाटे छोटे घटक दल है, जैसे उत्तर भारत के चिराग पासवान, जयंत चौधरी, राजभर, अनुप्रिया पटेल जैसे हमसफर भी इस बीजेपी के डुंबते जहाज में सफर करना नही चाहेंगे।
अब इस संख्याबल के गणित से एनडीए में काफी बेचैनी है। जो वो पहले सहज स्थिती में था। अगर उक्त स्थिती पैदा भी होती है तो, फिर भी एनडीए के पास ३९३ बहुमत के लिए सांसद रहते है। लेकिन गुजरात लाॅबी के धुरंधर को एक दुसरी चिंता खाये जा रही है, वो है क्राॅस वोटींग की। जो पहले काॅंस्टिट्युशनल क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चुनाव में हुयी थी। जिस से बीजेपी के बाग़ी उम्मीदवार राजीव प्रताप रुडी जीत गये और गृहमंत्री के लाडले उम्मीदवार संजीव बालीयान हार गये थे। क्राॅस वोटींग का वो ही डर बीजेपी खास कर गुजराथी जोडी को सता रहा है। कही इस चुनाव में भी बीजेपी सांसद द्वारा क्राॅस वोटींग न हो जाए। अगर ऐसा होता है तो गुजरात लाॅबी की साख पूरी तरह खत्म हो जाएगी और साथ साथ सांसदों का डर भी। इसके दो मुख्य कारण है। १) उपराष्ट्रपती का चुनाव गुप्त मत से होता है। जिस से यह पता नही चलता की किसने किस को वोट दिए। वोट देते वक्त सांसद सिर्फ अपनी मन की बात (जो रेडिओ द्वारा प्रसारित होने वाली आलमगीर की मन की बात नही) सुनते है वो वाली। और २) इस चुनाव के लिए किसी भी पार्टी का अध्यक्ष अपने पार्टी के लिए व्हीप जारी नही कर सकता। याने की अपने ही उम्मीदवार को मत दो ऐसा आदेश नही दे सकता। बिलकुल मुक्त मताधिकार का प्रयोग किया जाता है। यही तो है डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के संविधान की ताकद। इसिलिए बीजेपी घबराई हूयी है। इस घबराहट के कारण ही बीजेपी के आलाकमान, जनता के रहनुमा, दिल्ली तख्त के जहाॅंपनाह, जहाॅंपनाह के वजीर-ए-आज़म और पार्टी के मुखिया बीजेपी नुमाइंदों को खाने के लिए द़ावत पर द़ावत दीए जा रहे है। और मन ही मन ‘मेरे आकांओ चुनाव में क्राॅस वोटींग न करना’ उनकी दाढी छू कर ऐसी मिन्नते करते होंगे। अगर इस चुनाव में क्राॅस वोटींग हो गयी तो, अगले शीत कालीन सत्र में समुचा विपक्ष बेझिझक/बिना किसी खौप के सरकार के विरोध में लोकसभा सदन में अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। हाल ही में बिहार की जनता द्वारा केंद्र सरकार के विरोध में जो नारे लगाये जा रहे इस से अनुमान लगाया जा सकता है की, मूल्क की आवाम का रूख किस ओर है। इसिलिए सरकार की हालत पतली हो गयी। और प्रस्ताव के दिन अगर सांसद जरा भी इधर के उधर हो गये तो सरकार गिर सकती है। क्यों की सरकार के पास दुसरा विकल्प नही बचेगा। अगर सरकार लोकसभा भंग करके मध्यावधी चुनाव का ऐलान भी करती है तो इसके लिए किसी भी पार्टी के सांसद तैयार नही। इसिलिए चंद्राबाबू नवबंर तक याने की बिहार चुनाव के नतीजे आने तक चुपचाप बैठे है। यह तो हो गया इधर का अनुमान। लेकिन गुजराती जोडी भी चुपचाप बैठने वालों में से नही। वो अपने फायदे के लिए ऐन वक्त पर कुछ भी खेल, खेल सकती है, कुछ भी… चाहे वो जायज हो या नाजायज। जादा तर नाजायज ही। और यह उनकी हमेशा की फ़ितरत रही है। अगर ऐसे प्रतिकूल हालातों में फिर भी इंडिया उपराष्ट्रपती के चुनाव में हारी हुयी बाजी जीत लेता है तो उसे मुकद्दर का सिकंदर ही कहाॅं जाएगा। खैर! आनेवाले दिनों में देखते है वक्त अपनी करवट कैसे बदलता है। और अपना मिजास भी। इंतजार करते है।
– अशोक सवाई
91561 70699.
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