दिन विशेषदेशदेश-विदेशमहाराष्ट्रमुख्यपानराजकीय

Monsoon Session (वर्षा कालीन सत्र)-अशोक सवाई

(राष्ट्रीय मुद्दे)

१) वर्षा कालीन सत्र: * जब पहेलगाम में आतंकी हमले में नरसंहार होकर हमारे २६ निर्दोष भारतीय नागरिक मारे गये तब विपक्ष इंडिया अलायन्स द्वारा जोरदार मांग उठायी गयी की, सरकार पहेलगाम हमले पर चर्चा करने के लिए सदन में स्पेशल सेशन बुलाए। लेकिन सरकारने अनसुनी की तो विपक्ष चर्चा के लिए दबाव बढने लगा। वो दबाव या उसका असर कम करने के लिए एक सवा माह के पहले ही २१ जुलाई को मान्सून सेशन होगा ऐसा सरकार द्वारा घोषित किया। इस से विपक्ष की स्पेशल सेशन्स बुलाने की मांग थंड होकर थंडे बस्ते में चली गयी। और सरकारने कुछ दिनों की राहत पा ली।

२) वे विदेश में चले गये: जैसे जैसे वर्षा कालीन सत्र नजीक आने लगा वैसे वैसे हमारे जहाॅंपनाह का ५६ इंच वाला सीना धडधड करके धडकने लगा। राष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष के सवालों का सामना कैसे करे? इस चिंता से वे खुद्द और उनके वजीर-ए-आज़म रातभर करवटे बदलते रहे होंगे। इस से बचने के लिए वे फिर एक बार उडन खटोले से उडकर (‘उडकर’ शब्द हिंदी पत्रकारों का है हमारा नही) ब्रिटेन चले गये। वैसे प्रधानमंत्री को वहाॅं जाना अर्जंट नही था। या विलायत में ना कोई युनो की मिटींग थी ना ही कोई महत्वपूर्ण संमेलन। फिर भी हमारे आलमगीर ऐन सत्र के बीच महत्वपूर्ण सत्रे छोडकर वहाॅं चले गये। इसका सीधा मतलब था, मान्सून सेशन में विपक्ष जो सावाल करेंगे उस सवालों से डर के मारे भागना। अच्छा! उनका विदेश दौरा सिर्फ ब्रिटन तक सीमित नही, वहाॅं से वे मालदीव जाएंगे। और न जाने कहाॅं कहाॅं? बाकी देशों के राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री महत्त्वपूर्ण सेशन्स या इमर्जन्सी में विदेश दौरे नही करते। लेकिन हमारे यहाॅं का मामला कुछ अजीबोगरीबो वाला है। हमारे आलमगीर भारत और विदेश के दरम्यान हमेशा अप & डाऊन करते राहते है। जैसे महाराष्ट्र में सरकारी बाबू या फिर उद्योग जगत के कारोबारी पुणे और मुंबई के बीच अप & डाऊन करते है, ठिक वैसे ही यह भी करते है। लेकिन फिर भी ऐसे विदेश दौरे में भारी परीश्रम(?) कर के भारत को फायदा हुवा ऐसे कोई ठोस परिणाम सामने नही आए। पिछले ग्यारह साल से अब तक।

३) सिल्व्हर जुबली सीजफायर की: जैसे ही भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हुवा वैसे ही उधर अमरीका के दस्तुरखुद्द राष्ट्रपती डोनाल्ड ट्रंप जो आजकल खुद्द को दुनिया के मसिहा समझने लगे, वो खुलेआम सारी दुनिया में डंका पिटने लगे की मैने इंडिया और पाकिस्तान को ट्रेड की धमकी देकर सीजफायर कीया। और कल फिर से एक बार अपने चेलों के सामने ‘मैने सीजफायर किया’ ऐसा कहने की उन्होने सिल्व्हर जुबली बनाई। लेकिन भक्तों के आला कमान, गोदी मिडिया के विश्वगुरू और हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप का विरोध करने के लिए उनके कंठ से कोई भी ओठोंपर लब्ज नही आते या फिर शब्दस्वर नही निकल पा रहे है। प्रधानमंत्री लालबहादूर शास्त्री के काल में जो शिमला करार हुवा था की, भारत और पाकिस्तान के मसले पर कोई भी बाहर की तिसरी शक्ती इंटरफेस नही करेगी। तो अमरीका कौन होता है हमारे आपसी मामले में दखल अंदाजी देनेवाला? तुम महाशक्ती हो, शक्तीशाली हो, जो भी हो तुम्हारे देश हो। हम १४० करोड जनता हमारे देश के हम खुद्द मुख्तार मालिक है। हमारे देश को, हमारे प्रधानमंत्री को जलील करने की, तुम्हे कोई हक्क नही बनता। सीजफायर दोनो देशों ने आपसी समझोते पर किया ऐसा हमारे प्रधानमंत्री क्यों नही बोलते? यह भी एक राज है। हमारे प्रधानमंत्री ऐसे ही खामोशी के आलम में डुबे रहे तो ‘मैने सीजफायर कीया’ इस रट की ट्रंप बाबू गोल्डन जुबली भी बनाने में देर नही लगाएंगे। अगर शुरू में ही अपने अजीज दोस्त को हमारे प्रधानमंत्री सीजफायर के मुद्दे पर अच्छी तरह हडकाते तो शायद उनके अजीज दोस्त ऊलझुलूल बातें करके इतना लंबा न चलते। और ना ही भारत पर बेवजह किसी मामले में मग्रूरी से दबाव डालते। जब मामला राष्ट्रीय अस्मिता का हो तो जनता तो सवाल पुछेगी ही भै! अच्छा! सीजफायर पर भारत की भुमिका स्पष्ट करने के लिए हमारे साहब ने विभिन्न देशों मे जो शिष्टमंडल (Delegatio) भेज दिये थे जिस में अलग अलग दलों के सांसद सदस्य, अलग अलग डेलिगेशन में थे। इनकी स्थिती ऐसी थी की, कहाॅं गये तो कही नही, क्या लाए तो कुछ नही। इस से हमारे जनाब ने खुद्द के लिए सिर्फ Sympathy (सहानुभूती) बटोर ने का प्रयास किया होगा। लेकिन इनके दोहरे मापदंड की वजह से वे अपने उद्देश में असफल रहे। सीजफायर के पहले भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिती उत्पन्न हुयी, तब भारत के साथ एक भी बाहरी देश खडा नही हुवा यह वस्तुस्थिती है। इतना ही नही पडोसी देश से भी हमारे आपसी संबंध बिघड चुके है। अब हम अलग थलग पड चुके है। हमारी विदेश नीती सफसेल फेल हो चुकी है। हमारी कुटनीती फेल, हमारी अर्थ नीती फेल, नीती आयोग फेल, व्यापार नीती फेल, उद्योग नीती फेल, शिक्षा नीती फेल, रोजगार नीती फेल, स्वास्थ नीती फेल, विकास नीती फेल, अंदरूनी राजनीती फेल सब फेल ही फेल। ऐसे में देश को चलाने वाले करोबारी मालामाल तो जनता बेहाल स्तिथी में है।

४) नोबेल शांती पुरस्कार के लिए लालायत: बरखुरदार ट्रंप जी, भै… आप इतने नोबेल शांती पुरस्कार पाने लिए लालायत हो तो पहले अपने बिघडेल लाडले इस्त्रायल का कान पकडकर उसे सुनावो की, ग़ज़ा में भुके प्यासे मासूम बच्चों पर, वहाॅं की गर्भवती महिला, बुजुर्ग, बिमार लोगों पर गोलीबारी, बंबारी कर के हैवानियत न दिखाओ, तबाही का मंज़र बंद करो। हमास, लेबनॉन, सिरिया पर अपनी अघोरी लालसा से हमले न करो। हमले बंद कर के सीजफायर करो। तीन साल से जो युक्रेन और रूस में युद्ध चल रहा है उस दशों का सीजफायर करो। यह तो तुम से बन नही पा रहा और भारत को बार बार जलील करने में, बेइज्जत करने में क्या तुम्हे बडा मजा आ रहा है? अगर तुम में दम है तो पहले यह सब बंद करो और फिर शांती नोबेल पुरस्कार का दावेदार बनने के लिए सोचो।

५) उप राष्ट्रपती का इस्तिफां: मान्सून सेशन का पहले दिन का सुरज ढलने के कछ ही बाद उपराष्ट्रपती का इस्तिफा आया। उन्होने अपने त्याग पत्र में लिखा तबियत नासाज है। वाकयी में उनके ही आला कमान ने इनकी तबियत नासाज कर दी होगी। आला कमान को पता होता है। कब, क्यों और किसकी तबियत नसाज करनी है। पता होता है उनके। खैर! सरकारने एक दिन पहले ही आश्वासन दिया था की सत्र में सरकार सारे मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तयार है। लेकिन सरकार अपने ही आश्वासनों से हमेशा मुकर जाती है! उनके लिए आश्वासन होता ही इसलिए की उनका कठीण दौर का समय निकल जाए। यह पिछले ग्यारह सालों की सरकार की फ़ितरत देखकर सरकार के आश्वासन पर विपक्ष और राजनैतिक पत्रकार भी आशंकित थे। जब दोनो सदन का कामकाज शुरू हुवा तो विपक्ष अपने महत्वपूर्ण मुद्दे चलाने लगा। जैसे की पहेलगाम का मुद्दा हो, ट्रंप का बार बार सीजफायर वाला मुद्दा हो, चुनाव आयोग का चुनाव की धांधली का मुद्दा हो, ऐसे तमाम महत्वपूर्ण मुद्दोंपर विपक्ष चर्चा करना चाहता था। लेकिन सरकार ऐसे मुद्दों को टाल रही थी। जो देश की जनता के लिए अहम थे। और सरकार के मनसुबे उजागर होकर सारे देश में थूं थूं होगी। यह भी एक डर था। इसलिए सरकार इस मुद्दों पर टालमटोल का रवैय्या अपनाना चाहती थी। इस से विपक्ष भडक कर हंगामा करने लगा तो प्रधानमंत्री लोकसभा सदन से बाहर चले गये। तब प्रधानमंत्री के चेहरे पर ना नूर था ना ही कोई तेज। वैसे तो किसी भी गंभीर मामलों पर जहाॅंपनाह के मन में कोई संवेदनशीलता नही होती। वे बिलकुल ही संवेदनाहिन किस्म के हुक्मरान है। इधर राज्यसभा में दिनभर का कामकाज निपटा कर श्याम होते होते सदन के सभापती या उपराष्ट्रपती घर चले गये। इसी बीच भरी सदन में जेपी नड्डा बोले ‘जो मै बोलूंगा वो ही रेकॉर्ड पर जाएगा’ इससे सभापती असहज होकर अपमानित हुवे। रेकॉर्ड पर क्या जाएगा क्या नही, इसका अधिकार सिर्फ सभापती के पास होता है। नड्डा ने तो उनका अधिकार ही छीन लिया था। फिर भी सभापती कुछ नही बोले। फिर रात नव साडेनव बजे उनका अचानक इस्तिफां आया। इसपर सारी सियासत में सन्नाटा छा गया। खामोशी का आलम था। मंत्री के साथ भाजपा के सभी सदस्यों में खौप भरी खामोशी थी। अगर आनन फानन में उपराष्ट्रपती का इस्तिफां हो सकता है तो हमारे लिए भी यह चल चला की बेला वाली स्थिती बन सकती है। हम किस खेत की मूली है? अगला नंबर किसका होगा? कौन जाएगा कौन रहेगा? कोई नही जानता। ऐसे सवाल सभी के मन में तैरने लगे। अब उपराष्ट्रपती के इस्तिफे पर सोशल मीडियापर पल पल में नये नये खुलासे आने लगे। इस में कोई कुछ कह रहा है, तो कोई कुछ। लेकिन जबतक दस्तुरखुद्द पूर्व सभापती अपनी आपबीती जनता के सामने नही लाते तब तक सोशल मीडियापर कयासों का सिलसिला जारी रहेगा। परंतु इतना जरूर है की पिछले दिनों से आज तक, कई दिनों से सियासत में भारी मात्रा से अराजकता पनप रही थी। आज उसने विराट रूप धारण किया।

६) आज की चिनभीन्न राजनैतीक स्थिती: आज के तानाशाहा कहो या हुक्मरान, मै हूँ तो कोई नही, मेरे सामने कोई कुछ भी नही’ ऐसी सोच हर तानाशाहा की होती है। उस सोच की शिकार अभी अभी का ताजा उदाहरण पूर्व उपराष्ट्रपती जगदिप धनकड है। उनकी आखरी प्रोटोकॉल की स्पीच भी नही होने दी तानाशाहा ने। यही अराजकता है। एक बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए की, हर तानाशाहा के पिछे पिछे अराजकता दबे पांव चली आती है। अगर इसे रोका नही गया तो पूरा देश गर्त में चला जाएगा। आधा तो गया ही है। ऐसे कमजोर देश पर कोई भी बाहर की शक्ती हावी हो सकती है। उसका तगडा उदाहरण अमरीका का हमारे सामने है। दुसरा उदाहरण अरूणाचल प्रदेश से लेकर लडाख तक चार साडे हजार किलोमीटर भारत की उत्तर सीमा वाली जमीन पर चायना अवैध तरिके से कब्जा कर लिये बैठा है। खबरों से पता चलता है की, और खबरों से ही क्यों? एलवोपी राहूल गांधी बार बार बोल चुके है की, चायना ने हमारी जमीन हडप ली और उसने वहाॅं हेलिपॅड, सडके, इमारते बनवाई। इतना ही नही और भी सुनने में आया की चायना अब ब्रम्हपुत्रा नदी पर पूल भी बांध रहा है। इधर हमारे आलमगीर सिर्फ मै मै मै में मश्गुल है और उधर चायना हमारे भूमी पर कुंडली मार कर बैठा है। यह नतीजा होता है, अगर देश का नेतृत्व अहंकारी, अदूरदृष्टी और कमजोर होने पर। नॅशनल मिडिया ने जनता के प्रति अपना दायित्व समझकर सच सच ख़बरे चलना चाहिए। और अनभिज्ञ जनता को आगाह करना चाहिए। लेकिन नॅशनल मिडिया गोदी मिडिया बनकर ‘मेरे पैरो घुंगरू बंधा ले, फिर मेरी चाल देख ले’ ऐसा बेशरमी का काम कर रही है। ऐसी मिडिया देश के मुख़ालिफ़ में अपना इमान बेचकर देशद्रोही के श्रेणी में आती है। देश की कोई भी स्वायत्त संस्था अब स्वायत्त नही रही। देश की बची कुची संपती बेची जा रही है। उदाहरण मुंबई की धारावी। और भी कई सेक्टर। इस पर बहुतांश पढा लिखा वर्ग मौन धारण किया बैठा है। कुछ स्वास्थ सेवाए ऑक्सिजन पर है। पहले मुठ्ठीभर पैसे देकर थैलाभर सामना खरीद लेते थे, अब थैलाभर पैसे देकर मुठ्ठीभर सामान ले आते है। इस कदर मेंहगाई बढ चुकी है। देश को रोटी देनेवाला किसान आत्महत्याए कर रहा है, तो पढा लिखा बेरोजगार युवक/युवती वर्ग डिप्रेशन में जा रहे है। पुरानी शिक्षा नीती की नयी शिक्षा नीती ने ऐसीतैसी कर दी है। मानवी मूल्यों की साख बची नही। भ्रष्टाचार, बलत्कार और व्यभिचार का निर्देशांक आसमां चीर कर पार हो रहा है। पर्यावरण अपना संतुलन खो रहा है, तो भूजल स्तर नीचे नीचे जाने की सीमाए लांघ रहा है। क्या क्या और कितना कहे? कितना बोले? देश की खस्ता हालत पर। अगर हम अब भी नींद से जागे नही तो वो दिन दूर नही अंदर की कट्टर शक्तीयां के साथ साथ कहीं बाहर की शक्तीयां के भी हम गुलाम न बन बैठें। इतिहास के पन्ने पलटो वो पन्ने हमारा इतिहास हमें याद दिलाएगा। इसलिए लोकतंत्र बचना और बचाना जरूरी है, नही यही हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी यह इशारा आज से ७५ साल पहले ही दे चुके है। उन्होने युं नही कहाॅं था। इसके पिछे उनकी सामाजिक, राजनैतिक और अर्थ नीती की गहरी सोच थी। डॉ. आंबेडकर जी आनेवाले काल के आगे का देखने की दृष्टी रखते थे। इसलिए उनको महामानव/महापुरुष कहाॅं जाता है। इस मान्सून सत्र का यही संदेश एवं इशारा होगा।

अशोक सवाई

संपूर्ण महाराष्ट्रातील घडामोडी व ताज्या बातम्या तसेच जॉब्स/शैक्षणिक/ चालू घडामोडीवरील वैचारिक लेख त्वरित जाणून घेण्यासाठी आमच्या व्हाट्सअँप चॅनलला Free जॉईन होण्यासाठी या लिंकला क्लीक करा

तसेच खालील वेबसाईटवर Click करा
दैनिक जागृत भारत

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: कृपया बातमी share करा Copy नको !!