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डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में जो सबसे बुनियादी फैसले दिए, वे या तो मुसलमानों पर हिंदुओं का वर्चस्व कायम करने वाले रहे हैं या एससी-एसटी-ओबीसी पर सवर्णों का वर्चस्व कायम करने वाले रहे हैं

समाज माध्यमातून साभार

डी वाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीमोकोर्ट में जो सबसे बुनियादी फैसले दिए, वे या तो मुसलमानों पर हिंदुओं का वर्चस्व कायम करने वाले रहे हैं या एससी-एसटी-ओबीसी पर सवर्णों का वर्चस्व कायम करने वाले रहे हैं- हिंदू राष्ट्र के इन दो स्तंभों को ही चंद्रचूड ने मजबूत किया।

1- बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का फैसला-

यह फैसला चंद्रचूड़ ने हिंदू के आधार पर लिया।

इसके बारे में विस्तार से ए. जी. नूरानी ने फ्रंटलाइन में लिखा था। यह स्थान राम जन्मभूमि था। इसके पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं था। जो चीज तोड़ी गई थी, वह बाबरी मस्जिद थी, यह कोर्ट ने कहा था। लेकिन सिर्फ हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल करके यह फैसला दिया गया था। मस्जिद को मंदिर बनाने का निर्णय सुना दिया गया।

यह संविधान, कानून और साक्ष्य के आधार पर किया गया, न्यायिक निर्णय नहीं था। यह शुद्ध वैचारिक-राजनीतिक निर्णय था।

2- धारा-370 को संवैधानिक ठहराना-

इस बारे में चंद्रचूड़ ने फैसला हिंदू अंधराष्ट्रवादी के आधार पर लिया था।

सबको पता है कि 370 को हटाना संविधान का उल्लंघन था।

3- धार्मिक स्थलों के स्वरूप में परिवर्तन के कानून के खिलाफ फैसला

इस कानून को ‘उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991’ या बोलचाल की भाषा में ‘उपासना स्थल कानून’ कहा जाता है। इस कानून में कुल सात धाराएं हैं। इस पूरे कानून में तीसरी धारा सबसे महत्वपूर्ण है। इस तीसरी धारा में किसी धार्मिक स्थल के वर्तमान स्वरूप में कोई ढांचागत बदलाव करने को निषिद्ध किया गया है।

ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध भी हो जाए कि किसी वर्तमान धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता। केंद्र को ऐसे धार्मिक स्थलों को उनके वर्तमान स्वरूप में संरक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि, इस कानून में धारा पांच के द्वारा अयोध्या विवाद को अपवाद के तौर पर अलग रखा गया था।

सुप्रीमकोर्ट ने इस कानून की मनमानी गैर-संवैधानिक व्याख्या कर ज्ञानव्यापी मस्जिद में सर्वे, खुदाई और जांच को कानूनी ठहरा दिया। एक नया मस्जिद बनाम मंदिर का विवाद खड़ा कर दिया। सिर्फ हिंदुओं को संतुष्ट करने के लिए।

4-आर्थिक आधार पर सवर्णों के लिए आरक्षण (EWS)-

यह काम चद्रचूड़ ने सवर्ण के आधार पर किया था।

सुप्रीमकोर्ट ने असंवैधानिक आरक्षण को संवैधानिक ठहराया। जबकि यह पूरी तरह असंवैधानिक आरक्षण था। भारत के संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

एससी को मुख्य रूप से सामाजिक ( अछूतपन) आधार दिया गया था।

एसटी को उनकी भौगोलिक-सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के आधार पर दिया गया था।

ओबीसी को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था।

EWS संविधान का खुला उल्लंघन था। चंद्रचूड़ ने इसे भी जायज ठहराया।

( हालांकि इस वेंच में चंद्रचूड़ नहीं थे, लेकिन वेंच का गठन उन्होंने ही किया था।)

5- एससी-एसटी आरक्षण के बंटवारे और राज्यों को सौंपने का निर्णय-

यह निर्णय चंद्रचूड़ ने ब्राह्मण होने के आधार पर लिया।

संविधान एससी-एसटी आरक्षण में कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं देता। इसके बारे में सिर्फ संसद ( राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा) निर्णय ले सकती है।

इसके अलावा कई अन्य मामले हैं।

चंद्रचूड़ ने अब तक जिन भी बुनियादी मामलों में फैसला सुनाया। कोई भी फैसला संविधान, कानून और साक्ष्य के आधार जज के रूप में नहीं लिया है।

उन्होंने सारे बुनियादी फैसले हिंदू, सवर्ण और ब्राह्मण के रूप में लिया है। यही तथ्य है।

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