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रामास्वामी पेरियार के भाषण तर्कवादी विचारधारा

भीमराव सरवदे
पेरियार रामास्वामी द्वारा रेश्नलिस्ट एसोसिएशन के उद्घाटन के अवसर पर दिये गये भाषण का एक भागदि 22/06/1971 स्थान मेट्टूपलायम
साथियों! मैं जो कुछ भी बोलूंगा उस पर सीधे सीधे विश्वास नहीं करना बल्कि अपने बुद्धि विवेक से उस पर विचार करना योग्य है कि अयोग्य? जितना आपको योग्य लगे उतना ही स्वीकार कीजिए बाकी छोड़ दीजिए , मैं कह रहा हूं इसलिए आप स्वीकार मत कीजिए।
कोई भी विचार क्यों करता है?
यह मैं आपको बता रहा हूं
आप लोग विवेक शील लोगों में से हो और लोगों को विवेक के पक्ष में ही खड़ा रहना चाहिए ऐसा मुझे लगता है लोगों को विवेक निष्ठ होना चाहिए।
हम देवी-देवता,उनके बच्चों, अवतार, धर्म, शास्त्र,रूढ़िआदि पर आधारित किस्से-कहानियों की बातें नहीं करते हमारी विवेक बुद्धि को जो उचित लगता है हम वही बोलते हैं।
आपको भी प्रकृति ने विवेक बुद्धि दिया है इसलिए हमारी बातों में जो स्वीकारने लायक है विचार करके वही स्वीकार कीजिए।
आपके समाज ने यदि विवेकशील दृष्टिकोण अपनाया है तर्कबुद्धि का उपयोग किया है तो चिंता की कोई बात नहीं लेकिन इसके लिए लोग बाधा निर्माण करते हैं।
मैं जो बोलता हूं वह तुम्हें मानना ही चाहिए मैं जो बोलता हूं वे ईश्वर द्वारा कही गई बातें हैं, मैं स्वयं ईश्वर का भेजा हुआ संदेश वाहक हूं इसलिए मैं जैसा कहूं तुम्हें वैसा ही व्यवहार करना चाहिए ऐसी चर्चा और प्रवचन अपने सुने होंगे अपने विचार दूसरों पर थोपने के लिए यह आवश्यक होता है।
इसका परिणाम यह होता है कि लोग किसी भी बात पर अपने बुद्धि विवेक से विचार कर ही नहीं सकते ,विवेकनिष्ठा यह लोगों को प्राप्त हुआ प्रकृति का उपहार है फिर भी दो तीन हजार साल के बाद आज भी लोगों को अपनी विवेकशीलता का उपयोग करने के लिए आह्वान करना पड़ता है यह चिंतनीय है।
आज हम सबने यहां “रश्नलिस्ट एसोसिएशन” (तर्कवादी संघ) का उद्घाटन किया। यह इस बात का प्रमाण है कि यह
बुद्धिजीवियों का संघ है , मनुष्य के जीवन यापन के सर्वोत्तम मार्ग पर हम यहां चर्चा कर रहे हैं।
तर्कशीलता व विवेकशीलता से विचार करने को जो नकारता है वह मानव नहीं वह पशु समान है ऐसा मैं मानता हूं क्योंकि प्राणियों में पशु ही ऐसे होते हैं जिनमें विवेकशील दृष्टिकोण एवं तर्कबुद्धि नहीं होती किन्तु मनुष्य वैसा नहीं है उसके पास तर्कबुद्धि होती है वह बुद्धिजीवी होता है पेड़ पौधों को एक ही ज्ञानेन्द्रिय होती है उन्हें अन्य चीजों का एहसास नहीं होता, कीड़े मकोड़ों को तीन ज्ञानेन्द्रिय होती है ऐसा कहा जाता है उनके व्यवहार में धीरे धीरे बदलाव होते रहता है उनमें से किसी किसी को चार ज्ञानेन्द्रिय होती है किसी किसी को पांच होती है।
परन्तु स्वतंत्र विचार करने की शक्ति से संपन्न तर्कवादी बुद्धि जिसे छठी ज्ञानेन्द्रिय कहा जाता है वह केवल मनुष्यों में पाई जाती है।
कुछ विशिष्ट गुणधर्म वाले प्राणी भी होते हैं कुछ प्राणी ऐसे भी हैं कि जो वे कर सकते हैं मनुष्य नहीं कर सकता।
चींटी का ही उदाहरण लीजिए उसकी सूंघने की शक्ति मनुष्य से भी अधिक सक्षम है,पक्षी खूब ऊंचाई तक उड़ सकता है इंसान ऐसा नहीं कर सकता,बंदर एक जगह से दूसरी जगह दूर तक कूद सकता है शेर अपने से विशाल हाथी को भी मार सकता है ऐसी बहुत सी गतिविधियां हैं जो मानवेत्तर प्राणी कर सकते हैं किन्तु मनुष्य नहीं कर सकता परन्तु मनुष्य में बौद्धिक शक्ति होती है जिसके कारण वह आनंदमय जीवन जी सकता है अन्य प्राणियों के व्यवहार में तर्कबुद्धि का अभाव रहता है।
किन्तु आज इस विवेकशील मनुष्य ने अपनी बुद्धि खो दिया है अपनी तर्कबुद्धि का उपयोग करने में आज का मनुष्य असफल सिद्ध हुआ है इसलिए अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रगति करने में असमर्थ हुआ है।
जब हम अपने लोगों की तरफ देखते हैं तो ऐसा आभास होता है कि वे पूरी तरह स्वाभिमान शून्य हो गये हैं और अपने स्वाभिमान की उन्हें जरा भी चिंता नहीं है।
पूरी दुनिया में क्या बदलाव हो रहा है इसकी जानकारी होने के बावजूद हमारे लोग प्रगति नहीं कर पा रहे हैं विदेशों की प्रगति के बारे में हम सिर्फ सुनते रहते हैं।
हमें शूद्र कहा जाता है नीच कहा जाता है यदि उनसे पूछो कि ऐसा क्यों कहते हो तो वे कहते हैं ऐसा धर्मशास्त्रों में लिखा है, किसी ने ऐसा कहा है ईश्वर ने बहुत पहले ऐसा कहा है और हम सब शांतिपूर्वक इन बातों पर विश्वास करके अपना स्वाभिमान व प्रतिष्ठा खो बैठे हैं,हम सिर्फ रोटी की चिंता करते हैं इसलिए हमारी प्रगति बाधित होती है हम सिर्फ जीने के लिए साधन सामग्री कैसे प्राप्त होगी इसकी ही चिंता करते हैं सच पूछिए तो यह गुण पशुओं का होता है इसलिए यह प्रश्न खड़ा होता है कि पशुओं और हम में क्या अंतर है?
आज की परिस्थिति में कोई भी तर्कवाद पर बोलने को तैयार नहीं है इस विषय पर जो कुछ बोला गया है दो तीन हजार साल पहले बोला गया और उस समय स्वीकार भी किया गया,जिसका आज कुछ मतलब नहीं।
आज इस विषय पर बोलने की किसी की हिम्मत नहीं ,ऐसा कैसे हुआ?
अपने बुद्धि विवेक को जो मान्य नहीं उसे ईश्वर से जोड़ दिया गया।
वे कहते हैं सभी धर्मशास्त्रों की रचना ईश्वर ने की है वे कहते हैं ईश्वर के पुत्रों ने ऐसा कहा वैसा कहा समाज पर इन्हीं सब विचारों को थोपने के कारण लोगों अपनी उन्नति के लिए विचार करने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई, ऐसे ही दुष्ट विचारों ने लोगों के दिमाग को अपने नियंत्रण में ले लिया है वह ईश्वर देवी देवताओं के नाम पर अंधविश्वासी होकर उन्हें विधिलिखित मानकर सब कुछ करता रहता है इसी कारण उसकी प्रगति तो हुई नहीं उल्ट आलसी बनता गया और इसीलिए हमें कहीं भी उन्नति हुई ऐसा दिखाई नहीं देता आप पूछेंगे हमारी उन्नति के सभी प्रयास निष्फल क्यों हुए?
दूसरे देशों व उनके लोगों की प्रगति की तरफ नजर डालें तो वहां के लोग 2330000 मील दूर चन्द्रमा पर जाकर सकुशल वापस भी आ गये,वे पाच से छः हजार मील प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ सकते हैं वे तर्कबुद्धि व विवेकशक्ति का इस्तेमाल करके ही इतनी प्रचंड प्रगति कर सके हैं।
हम इस तरह का कुछ कर सकते हैं क्या?
हमारे बीच अनेक शुभचिंतक, मार्गदर्शक,तत्वज्ञ हजारों ॠषि ,मुल्ला, पादरी और पुजारी हैं हमारे पास अनेक धर्म भी हैं किंतु उनसे हम क्या हासिल कर सके?
क्या हम कुछ नहीं कर सकते?
पृथ्वी पर पहले मनुष्य को आये कितने वर्ष हुए? पहला मनुष्य कब पैदा हुआ? यह हम आज नहीं बत सकते, कुछ शोधकर्ता कहते हैं वह एक लाख वर्ष पहले पैदा हुआ। कुछ लोग कहते हैं अठारह लाख साल पहले पैदा हुआ, कुछ लोग कहते हैं जब संसार अस्तित्व में आया तभी मनुष्य भी अस्तित्व में आया।
इतनी लंबी समयावधि में हम क्या प्राप्त कर सके? साधारणतया यही दिखने में आ रहा है कि जो कुछ भी बदलाव हुआ वह पिछले सौ वर्षों में ही हुआ , अपने देश में हमें क्या प्रगति दिख रही है इतने लंबे समय में हमने क्या प्रगति की है ? तुम निराश क्यों हो रहे हो? अपने इन असंख्य ईश्वरों देवी-देवताओं व उनके मध्यस्थों का क्या उपयोग? अपने पास लाखों संत महात्मा या धर्मगुरु हैं फिर भी हम कुछ भी हासिल नहीं कर सके।
आज आप जिस सुख सुविधा का उपभोग कर रहे हो उनका आविष्कार दूसरों ने ही किया।
हमारे ईश्वर देवी-देवता प्रचंड शक्तिमान हैं ऐसा बोला जाता है फिर उन्होंने किया क्या?
ईश्वर के अवतार की कहानियां भी आश्चर्यजनक हैं ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर देवी-देवताओं में शाप देने की भी प्रचंड शक्ति है कुछ देवताओं में पहाड़ को गेंद की तरह हाथ में लेकर खेलने की शक्ति है ऐसी ही अनेक चमत्कारिक गुणों का वर्णन करके ईश्वर देवी-देवताओं महानता लोगों को सामने रखे परन्तु हमारे इस जगत के लोगों के उपयोग में आने वाला कोई चमत्कार किया है क्या ? कुछ भी नहीं।
यदि यूरोपियन नहीं आये होते तो आग जलाने के लिए माचिस की तीली तक हम तक नहीं पहुंची होती ,हम अंधेरे में ही बैठे होते या आग जलाने के लिए दो पत्थरों को आपस में रगड़ रहे होते , यातायात के लिए बैलगाड़ी का उपयोग कर रहे होते आज हम हवाई जहाज देख रहे हैं वे कैसे आये? सिर्फ प्रार्थना करके, या कुछ मंत्रोच्चार करके अथवा कोई पूजा-पाठ करके?
नहीं, कदापि नहीं।
ईश्वर देवी देवताओं के सहारे तुम कुछ भी नहीं प्राप्त कर सके।
इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं कि लोगों को विवेकशील मनुष्य की तरह आचरण करना चाहिए,
आज लोगों को सुखी समाधानी रहने योग्य भी कुछ अर्जित कर पाना मुश्किल है , हम रूढ़ि परंपरा के वशीभूत होकर ईश्वर देवी देवता, धर्म, धर्म शास्त्र आदि पर विश्वास करके कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हम धार्मिक शिक्षाओं पर ज्यादा ध्यान देने के कारण ही दलित और पीड़ित के रूप में जीवन जी रहे हैं।
अभी कुछ वक्ताओं ने अज्ञान के बारे में चर्चा की है।
धर्मशास्त्र क्या कहते हैं उसकी चिंता मत करो , हमें बदलना चाहिए हमें विचार करना चाहिए।
बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो क्षण भर बैठ जाने वाले लोग भी आपको मिलेंगे उनसे पूछो कि ऐसा क्यों किया तो कहेंगे कि अशुभ संकेत है थोड़ी देर रुककर ही आगे जाना चाहिए , कहीं जाते हुए उसके कान में कौए की आवाज पड़ गई तो उसकी आगे जाने की हिम्मत नहीं होगी उसे लगता है कि कौआ उसे किसी खतरे की सूचना दे रहा है वह ऐसा भी मानता है कि कोई पक्षी उसके शरीर पर छू गया तो वह अपवित्र हो गया फिर वह कपड़े सहित स्नान करेगा फिर भी हम उसे मनुष्य ही मानते हैं , कुछ निश्चित समय शुभ और कुछ अशुभ इस पर भी उसका विश्वास होता है यह सब फालतू तर्कविहीन बातें हैं इनका कोई अर्थ है क्या ?
ऐसे मूर्खतापूर्ण व्यवहार का विरोध कौन करेगा ? अपनी बुद्धि का सदुपयोग करने की सलाह इन्हें कौन देगा? अपने ज्ञान और अनुभव से हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं किन्तु हम उसका उपयोग ही नहीं करते इसीलिए हम असभ्य भूमि पर रह रहे हैं इस बारे में मैं इतना ही कह सकता हूं।
वास्तव में विदेशी लोग अपने देश में आते हैं वह अच्छी बात है उन्होंने कुछ सुधार दृढ़तापूर्वक सुझाये हैं किंतु उनके ऊपर दोषारोपण किया गया कि वे हमारे धर्म और धर्मशास्त्रों में हस्तक्षेप कर रहे हैं यदि ब्रिटिश नहीं आते तो हम विकास में बहुत पीछे होते , कुछ स्वार्थियों ने उनके बारे में अनेक तर्क कुतर्क दिये किन्तु उनके जाने के बाद कोई भी आगे आकर लोगों को शिक्षित करने का विचार नहीं किया।
स्वाभिमानी होने के कारण ही हम सब तर्कशीलता व विवेकशीलता के प्रचार-प्रसार में लगे हैं।
ईश्वर देवी-देवता और धर्म के नाम पर चलने वाले भ्रष्टाचार धर्म प्रचारकों व राजनैतिक लोगों के निकृष्ट आचरण को देखते हुए हम सब ने तर्कवाद का संदेश सर्वत्र पहुंचाने की जिम्मेदारी जानबूझकर स्वीकार की है।
अंधविश्वास नष्ट करने हेतु तर्कवाद का प्रचार यही एक ही उपाय है ऐसा हमारा मानना है हमारी यह भागदौड़ समाज के कल्याण के लिए ही है। लोगों को अपनी बुद्धि विवेक से विचार करने हेतु प्रवृत्त करना यह हमारा परम कर्त्तव्य है।
उसके लिए हमने स्वाभिमान आंदोलन ( self respect movement) शुरू किया है, सबके मन में स्वाभिमान जागृत करना है।
यह आंदोलन शुरू करते ही कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू किया।
एक मंत्री ने पूछा स्वाभिमान का मतलब आपके हिसाब से क्या है? क्या आप कहना चाहते हैं कि अभी हम स्वाभिमानी नहीं हैं?
मैंने उनसे शांतिपूर्वक कहा इसका मुझे भी दुख होता है और पूछा कि आप कौन हैं कृपया बताइए उन्होंने कहा आप क्या पूछना चाहते हैं? मैंने कहा समाज व्यवस्था में आपका स्थान क्या है?
उन्होंने कहा कि आज मैं मंत्री हूं जाति से रेड्डी हूं।
रेड्डी, गोंड, नायडू, नायकर इत्यादि जातियों का उल्लेख आप जो करते हैं वे जाति आपने ही निर्माण किया है किन्तु धर्म, धर्मशास्त्र व परंपरा के अनुसार आप को शूद्र ही बनाया गया है और यह बहुत पहले से चला आ रहा है अनेक वर्षों से चले आ रहे इस हीन दर्जे के विरुद्ध हमने यह आंदोलन अभी खड़ा किया है ।
फिर मैंने उनसे पूछा शूद्र का मतलब क्या ? फिर मैंने ही उनको बताया शूद्र मतलब वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य के बाद चौथा और सबसे निचला वर्ण जिसको सभी मानवीय अधिकारों से वंचित सिर्फ ऊपर के वर्णों की सेवा ही जिसका कर्त्तव्य वही उसका धर्म।
आप उच्च शिक्षित हो,बीए एलएलबी की डिग्री हासिल किये हो पहले तीन साल मंत्री रह चुके हो अभी भी मंत्री हो फिर भी आप वर्णव्यवस्था के अनुसार नीच शूद्र ही हो।
समाज में तुम्हारे इस नीच दर्जे के बारे में तुम्हें कुछ नहीं लगता? जो व्यक्ति तुम्हारे सामने भीख मांगता है जो व्यक्ति तुम्हारे लिए अपने परिवार की समस्त स्त्रियों को तुम्हारे लिए अर्पण करने को तैयार है वह व्यक्ति खुद को ऊंची जाति का समझता है और तुम भी उसे ऊंची जाति का मानते हो , तुम उसके सामने साष्टांग दंडवत करते हो।
अंत में मैंने उससे पूछा कि अब मुझे बताइए कि आपको स्वाभिमान आंदोलन की जरूरत है कि नहीं?
उसके बाद उसने कहा यह सब बहुत पहले से चला आ रहा है।
अब आपको एहसास हो चुका होगा कि हमारा स्वाभिमान आंदोलन काफी बड़ा है और इतना आसान भी नहीं है हमें बहुत कठिन परिश्रम भी करना पड़ रहा है कोई घाव जल्दी का रहता है तो वह आसानी से ठीक हो सकता है किन्तु शरीर में कोई पुरानी गांठ हो तो आपरेशन करके अनावश्यक भाग निकालने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं रहता समाज में कुरीतियों रूढ़ियों की जड़ें बहुत गहराई तक घुस चुकी हैं हम सब को सर्जन की भूमिका निभानी है।

   स्वाभिमान आंदोलन

स्वाभिमान आंदोलन का मूल सिद्धांत क्या है?
हमें निचले दर्जे का बनाने वाले सभी कारणों का शोध करना,हमारी दयनीय अवस्था बनाने वाले कारणों का शोध करना।
ईश्वर का निर्माण हमारी दयनीय अवस्था के जिम्मेदार सभी कारणों में सबसे मुख्य कारण है इसलिए सबसे पहले ईश्वर को नष्ट करना आवश्यक है हमारी अधोगति का एक कारण कांग्रेस भी है इसलिए हमें कांग्रेस को भी नष्ट करना है हमें यह ज्ञात हो चुका है कि एम के गांधी हमारे हित के खिलाफ कार्य कर रहे हैैं इसलिए सर्वप्रथम उनके दबाव को दरकिनार करने की जरूरत है।
उसी प्रकार हमारे विध्वंस की असली जड़ ब्राह्मण है इसलिए हम उसके भी विरोध में हैं।
हम देख रहे हैं कि धर्म सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत हानिकारक है इसलिए उसे भी नष्ट करना है।
स्वाभिमान आंदोलन इन्हीं पांच दुष्ट प्रवृत्तियों की विरोधी है।
संक्षेप में ईश्वर, धर्म, कांग्रेस, गांधी और ब्राह्मण इन पांच प्रवृत्तियों के विरोध में पुकारे गये युद्ध का धुरा स्वाभिमान आंदोलन के कंधे पर है, यह वे पांच प्रवृत्तियां हैं जिन्होंने अत्यंत हानिकारक विचारों का प्रचार करके हमारे लोगों की बलि दिया है हमारे लोगों को अक्षरशः गुलाम बनाया है इसलिए इन पांच प्रवृत्तियों को नष्ट किए बिना अपने समाज को अधोगति से निकालकर उन्नति की तरफ नहीं लाया जा सकता।
अपने लोगों का खोया स्वाभिमान वापस लाकर समाज में पुनर्स्थापित करना हम सब की जिम्मेदारी है।
इसका अर्थ यह नहीं कि हम सबको राजनीति में कूद जाना चाहिए।
स्वाभिमान आंदोलन यह राजनीतिक संगठन नहीं है यह शुद्ध रूप से समाज सुधार का आंदोलन है परन्तु यदि इन अपप्रवृत्तियों ने हमारी प्रगति में बाधा उत्पन्न की तो हमें उनकी भी खबर लेनी ही पड़ेगी ।
कांग्रेस का एजेंडा क्या है जरा इस पर भी विचार करें , कांग्रेस का एजेंडा गांधी यह धर्म , जाति और समाज में ब्राह्मणों का उच्च स्थान आदि के संरक्षण के लिए समर्पित है, ब्राह्मणों को उनके स्वार्थी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गांधी के मदद की जरूरत है गांधी के सुर हमेशा प्रतिगामी होने के कारण उन्हें महात्मा बना दिया गया , ब्राह्मणों की दी हुई इस उपाधि को गांधी ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया।
एक नशे में धुत व्यक्ति की तरह वे हमेशा ईश्वर, शास्त्र,वर्णाश्रम धर्म और राम के विषय में बोलते रहते थे उनके प्रचार को थोड़ा बहुत ही सही महत्व मिलने लगा था।
आज हम देख ही रहे हैं सारे प्रिंट मीडिया पर ब्राह्मणों का ही अधिकार है, अपने पास एक भी शक्तिशाली दैनिक अखबार नहीं है अपन लोग भी उनके प्रचार की बलि चढ़ रहे हैं।
ब्राह्मण का नाम आते ही अपने लोग आदर से सिर झुका देते हैं,
इसलिए ब्राह्मण वाद को जड़ से खत्म करने की हमने प्रतिज्ञा किया है समाज से ईश्वर , देवी देवता और धर्म को हद्दपार करना ही होगा, वर्णाश्रम धर्म का गुणगान करने वाले गांधीवाद का भी विरोध होना चाहिए , जो सरकार कानून का सहारा लेकर उनके विचारों को महिमा मंडित कर रही है उसे बर्खास्त कर देना चाहिए।
असहनीय दुष्कृत्य करने वालों के आधार स्तंभ बने हुए ब्राह्मणों को सबक सिखाना आवश्यक है।
इस प्रकार से सबकुछ शर्मनाक तरीके से हो रहा है तुम सिर्फ मैं जो कुछ बोल रहा हूं उस पर विचार करो मैं जो कह रहा हूं उसपर अंधे होकर विश्वास मत करो, मैं अपनी अपने विचारों को किसी धर्मशास्त्र अथवा वेद का आधार नहीं देता, मेरी बुद्धि को जो उचित लगता है मैं वही बोलता हूं तुम भी उसे अपने बुद्धि विवेक से उस पर विचार करो उसमें कुछ तथ्य मिले तो ही स्वीकार करो अन्यथा छोड़ दो , मैं जो कुछ कह रहा हूं तुम्हें स्वीकरना ही होगा ऐसी सख्ती मैं किसी पर नहीं करूंगा। मेरा उद्देश्य किसी को फंसाना बिल्कुल नहीं है मैं सिर्फ तुमको याद दिलाना चाहता हूं कि तुम्हारे पास भी तर्कशक्ति है तुम्हारे पास किसी भी विषय का योग्य विश्लेषण करने की भी शक्ति है और क्या योग्य है क्या अयोग्य यह निश्चित करने के लिए बुद्धि भी है।
मैं और एक मुद्दे पर अधिक जोर देने को इच्छुक हूं कि तुम ब्राह्मणों के भयानक षड्यंत्रों में फंसकर तुम उनके मूक गुलाम बन चुके हो इसीलिए मैं समाज सुधार को अधिक महत्व देता हूं ।

पेरियार रामास्वामी यांची
गाजलेली भाषणे
लेखक — भीमराव सरवदे
से साभार
अनुवादक– चन्द्र भान पाल ( बी एस एस)

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