सम्राट अशोक के प्राचीन महारठी बौद्ध लोग मराठा कैसे बने?
14 वी सदी के पहले महाराष्ट्र के सभी लोगों को सम्राट अशोक के महारट्ठी (महारत्ता) कहा जाता था| इन महारत्ती (महारठी) लोगों को 8 वी सदी के बाद महारठी, मराठी कहा जाने लगा|
14 वी सदी के पहले सभी मराठी भाषिक लोगों को महारठी से मराठी लोग कहा जाता था| 15 वी सदी में बहामनी राजाओं ने मराठी बहुजन सैनिकों को “मराठा” कहना शुरू किया| (A social history of the Deccan, Eaton, p. 191) पेशवा राज में पेशवाओं ने इन मराठा सैनिकों का ब्राह्मणीकरण किया और उन्हें कट्टर ब्राम्हणवादी मराठा जमात में तब्दील किया|
मुस्लिम लोग उनकी पर्शियन भाषा में प्राचीन बौद्ध महारठी (मराठी) लोगों को “मरहाटी या मरहटा ” लोग कहने लगे| मरहटा मतलब जो मरते दम तक नहीं हटता, ऐसा कहने लगे| सन 1342 में आए यात्री इब्न बतुता भी कहता है कि, मराठी लोगों को “मरहत्ता” कहते हैं| मरहत्ता शब्द वास्तव में सम्राट अशोक का “महारत्ता” शब्द ही है| लेकिन, पर्शियन भाषिक मुस्लिमो की बोली में ह अक्षर की जगह पर र अक्षर की आदलाबदल होने के कारण अर्थ का अनर्थ हुआ|
सम्राट अशोक के “महारत्ता” प्राचीन बौद्ध महारठी लोग थे| लेकिन, उन्हीं लोगों को “महरत्ता” की बजाए “मरहत्ता” कहने से उनकी प्राचीन महारठी बौद्ध पहचान मिट गई और उन्हें मरहत्ता (मरहटा) मतलब मरते दम तक लड़ाई से न हटाने वाले लोग ऐसा अर्थ बना| मरहटा शब्द से ही बाद में “मराठा” शब्द बना और महारठी सैनिकों को मुस्लिम लोग “मरहटा या मराठा” कहने लगे|
अर्थात, मराठा वास्तव में सम्राट अशोक के महारठी लोग है और प्राचीन बौद्ध है| इन्हीं बौद्ध महारठी लोगों ने संपुर्ण महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारत में हजारों बौद्ध स्तूप तथा गुफाएं बनवाई है| महाराष्ट्र में आज भी भारत में सबसे ज्यादा (लगभग 1500 बौद्ध गुफाएं) और उनके निर्माता वर्तमान मराठा लोग है| मराठा लोग इन सभी बौद्ध गुफाओं के निर्माता है और प्राचीन बौद्ध है, इस बात की जानकारी तथा एहसास वर्तमान मराठा लोगों को नहीं है|
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस संदर्भ में मराठा लोगों में जनजागृती करना जरूरी है|
-डॉ. प्रताप चाटसे
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दैनिक जागृत भारत