“रवि” मतलब “बुद्ध” और “रविवार” मतलब “बुद्ध का दिन”|
डॉ. प्रताप चाटसे
तथागत बुद्ध को सुबह के प्रहर में बोधि प्राप्त हुई थी, इसलिए सुबह के प्रहर को धम्मप्रहर कहा जाता है| जब सुरज पुरब से उगता है और पश्चिम में धुंधला सा चंद्रमा तारे के साथ दिखाई देता है, उस समय बुद्ध को बोधि ज्ञान अर्थात बुद्धत्व प्राप्त हुआ था| इसलिए, उगता सुरज और चंद्रमा के साथ चांदनी यह बुद्धत्व के प्रतीक समझे जाते हैं| आजकल अनेक राष्ट्रों के ध्वज पर स्टार, स्टार के साथ चंद्रमा दिखाई देतें है, जो बुद्धत्व के प्रतीक है|
सुरज बुद्धत्व का प्रतीक होने के कारण बोधगया में बुद्ध का शिल्प सुर्य देवता के रूप में दिखाई देता है| सुर्य देवता बुद्ध के सात घोड़े हफ्ते के सात दिनों के प्रतीक है और सुर्य को सातों दिन रथ में लेकर आतें है, ऐसी प्राचीन बौद्धों की भावना थी| उस शिल्प में सुर्य देवता बुद्ध के नीचे एक बाजू में उषा देवता है जो सुबह का प्रतीक है और दुसरी तरफ प्रत्युषा है जो संध्याकाल का प्रतीक है| बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति में धरती माता और अपराजिता माता इन दो देवताओं ने मदद की थी, उनके यह दो प्रतीक है|
बुद्धत्व प्राप्ति करना मतलब अज्ञान के अंधकार रुपी मारा पर विजय पाकर ज्ञान का चमकता उजाला फैलाने जैसा है| सुर्य हर दिन अंधेरी रात को चिरकर उजाला फैलाता है| इसी तरह, बुद्ध अपने धम्म ज्ञान से दुनिया का अंधकार नष्ट कर ज्ञान का उजाला फैलाते हैं, इसलिए बुद्ध को सुर्य देवता समझा जाता है| बुद्ध ज्ञानी होने के कारण बोधगया के सुर्य देवता शिल्प में बुद्ध देवता सुर्य के एक हाथ में किताब और लेखनी है, तो दुसरे हाथ में कमलपुष्ष है जो बुद्धत्व का प्रतीक है| तथागत बुद्ध को सुर्य देवता मानकर संपुर्ण भारत में सुर्य मंदिर बनवाए गए थे| सुर्य देवता का सबसे प्राचीन शिल्प बोधगया का सुर्य शिल्प है|
सुर्य के उजाले की शुरुआत सुबह से होती है, जब सुर्य की किरणें धरती पर गिनती है (रेवत होती है), इसलिए रेवत करनेवाले सुर्य को रवि कहा जाता है| सुबह से दिन की शुरुआत होती है, इसी तरह, बौद्धों के सक संवत में रविवार से हफ्ते की शुरुआत होती है| शक संवत का निर्माता बौद्ध यवन भिक्खु है जिसे यवनेश्वर कहा जाता है| उसने इसा पुर्व 120 में बौद्ध राजा रुद्रकर्मन प्रथम के दरबार में “यवनजातक” यह खगोलीय ग्रंथ लिखकर दुनिया में पहली बार सुव्यवस्थित कालगणना का आरंभ कर दिया था, जिसे शाक्यमुनि बुद्ध की याद में “सक या शक संवत” कहा जाता है|
इस तरह, बुद्ध ही सुर्य देवता है और रविवार मतलब बुद्ध का वार है| क्रिश्चन लोग हर रविवार को येशु ख्रिस्त की चर्च में जमकर पुजा (प्रेयर) करते हैं, क्योंकि तथागत बुद्ध को ही पश्चिम में येशु ख्रिस्त (Jesus Christ) कहा गया है| (Reference: Jesus and Buddha, by Christopher Lindtner)
-डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क
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