यदि आप सही में दलित जाति का उद्धार चाहते हैं
मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट ऑफ इंडिया ने ट्वीट करके कहा है कि आज के जमाने में असली पिछड़ा समाज दलित समाज हैं। उन्होंने अपनी बात को बल देने के लिए, फ्रांसीसी पत्रकार फ्रांसिस गुइटर की रिपोर्ट भी शेयर की है जिसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं :*
दिल्ली के 50 शुलभ शौचालयों में तकरीबन 325 सफाई कर्मचारी हैं। यह सभी दलित वर्ग के हैं।
दिल्ली और मुंबई के 50% रिक्शा चालक दलित हैं। इनमें से अधिकतर वाल्मीकि, जाटव, मीणा यानी पूर्वांचल, राजस्थान और बिहार के दलित हैं।
दक्षिण भारत में दलितों की कुछ जगहों पर स्थिति अछूत जैसी है । बाकी जगहों पर लोगों के घरों में काम करने वाले 70% बावर्ची और नौकर दलित हैं।
दलितों में प्रति व्यक्ति आय मुसलमानों के बाद भारत में सबसे कम हैं। यहां और अधिक चिंता का विषय यह है कि 1991 की जनगणना के बाद से मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय सुधर रही है वहीं दलितों की आय लगातार कम हो रही है।
दलित भारत का दूसरा सबसे बड़ा कृषक समुदाय है। पर इनके पास मौजूद खेती के साधन अभी 40 वर्ष पीछे हैं। इसका कारण दलित होने की वजह से इन दलित किसानों को सरकार से उचित मुआवजा, लोन और बाकी रियायतें न मिलना रहा है। अधिकतर दलित किसान कम आय की वजह से आत्महत्या करने या जमीन बेचने को मजबूर हैं।
दलित छात्रों में “ड्रॉप आउट” यानी पढ़ाई अधूरी छोड़ने की दर अब भारत में सबसे अधिक है। वर्ष 2001 में दलितो ने इस मामले में मुसलमानों को पीछे छोड़ दिया और तब से ये ड्रॉप आउट दर में टॉप पर हैं।
दलितों में बेरोजगारी की दर भी सबसे अधिक है। समय पर नौकरी/रोजगार न मिल पाने की वजह से 14% दलित हर दशक में विवाह सुख से वंचित रह रहे हैं। यह दर भारत के किसी एक समुदाय में सबसे अधिक है। यह दलितों की आबादी लगातार गिरने का बहुत बड़ा कारण है।
आंध्र प्रदेश में बड़ी संख्या में दलित परिवार 500 रुपये प्रति महीने और तमिलनाडु में 300 रुपए प्रति महीने पर जीवन यापन कर रहे हैं। इसका कारण बेरोजगारी और गरीबी है। इनके घरों में भुखमरी से मौतें अब आम बात है।
भारत मे ब्राह्मण समुदाय की प्रति व्यक्ति आय तकरीबन 1600 रुपए, ईसाइयो की 800 रुपए, मुसलमानों की 750 के आस पास है। पर दलितों में यह आंकड़ा सिर्फ़ 537 रुपये है और यह लगातार गिर रहा है।
दलित युवकों के पास रोजगार की कमी, प्रॉपर्टी की कमी के कारण सबसे अधिक दलित लड़कियों के अरेंज विवाह दूसरी जातियों में हो रहे हैं।
उपरोक्त आकंड़े बता रहे हैं कि दलित कुछ दशकों में वैसे ही खत्म हो जाऐंगे। जो बचे खुचे रहेंगे उन्हें वह जहर खत्म कर देगा जो सोशल मीडिया पर दिन रात दलितों के खिलाफ गलत लिखकर नई पीढ़ी का ब्रेनवाश करके उनके मन में दलितों के प्रति अंध नफरत से पैदा किया जा रहा है।
हम कहाँ जा रहे हैं,ध्यान देना होगा हमे अपने भविष्य पर।
दलितों से सात यक्ष प्रश्न
1-दलित एक कैसे होंगे और कब होंगे?
2- दलित एक दूसरे की सहायता कब करेंगे?
3-दलित संगठनों में एकता कैसे होगी?
4-दलित अपना वोट एक जगह कब देंगे?
5- दलित, दलित महापुरुषों का गुणगान कब करेंगे?
6-उच्च पदों पर बैठे दलित मंत्री, MP, MLA, अधिकारी कब अपने निहित स्वार्थ से ऊपर उठ कर दलितों की बिना शर्त सहायता करेंगे?
7-गरीब दलितों की सहायता करने के लिए दलित महाकोष का गठन कब होगा?
इसका उत्तर एक कट्टर दलित चिंतक प्राप्त करना चाहता है l
यदि आप सही में दलित जाति का उद्धार चाहते हैं तो पढ़कर कम से कम दस दलितों को अवश्य भेजें ताकि वे दलितों के हित के लिए आगे आएं ।
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दैनिक जागृत भारत