महाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठ

देश की गोदी मिडिया और डॉ. सुभाष चंद्रा

हम आज का यह महत्वपूर्ण आर्टिकल हिंदी में लिख़ रहे है। हम चाहते है की इस आर्टिकल को हमारे गैर मराठी भाषी पाठक भी समझ सके। नॅशनल चॅनलों का गोदी मिडिया नामकरण तब हुवा जब नवंबर २०२१ में दिल्ली बाॅर्डर पर किसान आंदोलन शुरू हुवा। वो लगातार १३ महिने चला। वो क्यों हुवा यह जनता भलीभांती जानती है। उस पर अलग से लिख़ने की जरूरत नही। नॅशनल मिडिया जब मौजूदा मोदी सरकार के समर्थन में एकतर्फा न्युज चलाने लगी चाहें वो सरकार के झूठ बयान भी क्यों न हो? और सरकार के मुख़िया मोदी है, मतलब किसी प्रकार का खतरा नही था। इसलिए बिना खौप नॅशनल मिडिया सरकार के लंबे लंबे झूठ जनता के सामने परोसने लगी थी। इसी वजह से नॅशनल मिडिया को गोदी मिडिया कहाॅं जाने लगा (मराठी में दत्तक लेना या देना) नॅशनल मिडिया ने अपनी भारी भरकम ‘नॅशनल मिडिया’ की पहचान लालच में आकर मीटा दी और ‘गोदी मिडिया’ यह घटिया पहचान अपना ली। जब करतुत ही घटिया हो तो पहचान भी घटिया होनी ही थी। ख़ैर… अब आते है डॉ. सुभाष चंद्रा पर इन्हे प्राइवेट सॅटेलाईट न्यूज चॅनेल कि दुनिया में पितामह कहाॅं जाता है। क्यों की उन्हाने ही पहले प्राइवेट सॅटेलाईट न्यूज चॅनेल की नीव रखी थी। वो राजस्थान से भूतपूर्व राज्यसभा के सांसद भी है।

पिछले दस सालों में उनके याने की सुभाष चंद्रा बाबू के न्यूज नेटवर्क ने बीजेपी आला कमान, हमारे मुल्क के जहाॅंपनाह और उनके वजीर-ए-आलम का बेहद गुणगान गाया। इतना की जनता को सिसक तक आने लगी। लेकिन न्यूज नेटवर्क के और खुद्द को ॲंकर/पत्रकार (?) कहने वालों ने अपनी लज्जा/शरम/इज्जत भरी बाझार में निलाम कर डाली थी और साथ साथ सरकार या उनके नुमाइंदों ने भी। इसके लिए वे तनिक भी चिंतीत नही थे। दुसरी तरफ़ सोशल मीडिया उनके विरोध में बडी मजबूती के साथ खडी होने लगी। आज आलम यह है की, सोशल मीडिया की वज़ह से गोदी मिडिया की चमक धमक उनका मानमरातब उनकी साख़ धुॅंधली सी हो गयी। अब रॅंक यह है की, सोशल मीडिया नं. १ पर, नं. २ पर मोदी सरकार एवं गोदी मिडिया की मिमिक्री/मनोरंजन और खुद्द को नॅशनल मिडिया कहने वाली नं. ३ पर चली गयी। इतना ही नही देश/दुनिया की ख़बरों पर अपनी पैनी नज़र रखनेवाली इंटरनॅशनल मिडिया की नज़र से भी हमारे देश की मिडिया, हमारे देश की सरकार उतर गयी, साथ साथ मोदी सरकार को भी कोसने लगी, थू थू करने लगी। अब उक्त पितामह याने की सुभाष चंद्रा ने अपने चॅनलों को फर्मान जारी किया की, गुजरात लाॅंबी और खुद्द को ठाकुरों के कदरदान कहने वाले युपी के मौजूदा मुख्यमंत्री इनका लाईव्ह शो दिखाना बंद करो।

इतना ही नही चंद्रा न्यूज नेटवर्क के और मोदी सरकार के लाडले/प्यारे/दुलारे सी वो (चीफ ऑफिसर) अभय ओझा को एक झटके में बाहर निकाल दिया। कही ॲंकर/ॲंकरनी को भी निकाल ने की तयारी में लगे है। उसमें से नशेडी ॲंकर जो नशे में धुत होकर कुछ दिन पहले ॲंकरिंग कर रहा था वो दिपक चौरसिया को ऑलरेडी निकाला गया। चुनाव के दो चरण खत्म होने बाद अपने न्यूज नेटवर्क के बादशहा सुभाष चंद्रा का बयान ३ मई याने के वर्ल्ड प्रेस फ्रिडम डे को आया वो कहते है १८० देशों में भारत का रॅंकिंग १५९ तक निचे आया है। इस चिंता को जताते हुवे उनको लोकतंत्र की फिक्र भी होने लगी। वल्लाह… क्या बात है? ख़बरों के पितामह को यह ख़बर ३ मई को पता चली? इसका पता तो देश की जनता को पिछले दस सालों से था। चंद्रा बाबू को अब पता चला की, गोदी मिडिया और मोदी सरकार का क्या हाल है? क्या उसके पहले दस साल में सब आलबेल था? चंद्रा बाबूने (नायडू वाले बाबू नही) यह भी कहाॅं की रावण के पतन का कारण उसका अहंकार था। क्या यह इशारा गुजरात लाॅंबी के तरफ था? चुनाव के दो चरण खत्म होते ही, क्या चंद्रा बाबूने हवा का रुख नांप लिया? क्या सोशल मीडियाने उनके न्यूज नेटवर्क टीआरपी की ऐसीतैसी कर दी? मोदी सरकार और उनके बीच क्या कोई अनबन हो गयी? क्या मोदी सरकार की तरफ से उनको मालपानी देना बंद हुवा? क्या सरकार ने उनके कारबारों में किले दाग दिये या गाढ़ दिये है? क्या चंद्रा बाबू को पता चल गया की, बेरहम, बेंदर्दी हुक्मरान की सरकार विदा होने जा रही है? क्या उनके नेटवर्क से चुनावी सर्वे उनको प्राप्त हो चुके है? क्या उनको पता चला की, विपक्ष की सरकार बनने जा रही है? और क्या विपक्ष को समझाने का प्रयास हो रहा है की हम तुम्हारे दुश्मनों से नही है? ऐसे तमाम सवाल है जो राजनैतिक तज्ज्ञ एवं समिक्षकों के मन में उठ रहे है।

बाकी बचे चुनावी चरणों के पहले एक और अहंम सवाल उठता है, क्या चंद्रा बाबू के नक्श-ए-कदम चलने के लिये बाकी मालिक मुख्तारों का मन बेनेगा? यहाॅं एक और बात कहनी होगी की प्राकृतिक आपदा आने से पहले जमीन पर रेंगने वाले जीवजंतू, पशूपंछी, पालतू जानवर इनको २४ या ४८ घंटे पहले पता चलता है की कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली है ठिक उसी तरह पत्रकारों को भी पता चल जाता है की सरकार पर सरकार जाने की विपदा आने वाली है या फिर विपदा से बचती है। क्यों की पत्रकार लोगों के बीच लगे रहते है और जमीनी हकिकत से वाक़िब होते है। कही लोग कहेंगे सुभाष चंद्रा का ज़मीर जाग उठा या अंतरात्मा जाग उठी हो। लेकिन हुजूर उनका ज़मीर या अंतरात्मा जागती तो पहले से ही जाग उठी होती। जागने के लिए दस साल का समय काफी लंबा समय होता है साहब… चंद्राबाबू एक बिझनेस मॅन है, अगर उनके बिझनेस को कोई नुकसान पहुचाता है तो वो युं ही नही अपने रवैय्ये बदलते। अगर सारे न्यूज चॅनेल सुभाष चंद्रा के नक्श-ए-कदम चलते है तो समझ लिजीएगा की विपक्ष ने जीत का आधा मैदान मार दिया है। अगर सरकार अपने सरकारी नुमाइंदों के द्वारा जैसे की निर्वाचन आयोग, सीबीआय, इडी इन के द्वारा चुनाव में कोई धांधली/वोट चोरी जैसी गडबडी या और कोई अनैतिकता से काम करेगी तो इमानदार बने चॅनलों के पत्रकार सरकार को चैन की निंद सोने नही देंगे।

खैर… उधर रामदेव बाबा को भी बीजेपी के आला कमान ने फर्माया था की, बाबाजी मैदान में आवो। लेकीन योग के बाबाजी पहले से ही कोर्ट कचेरी के चक्कर काटकर और सुप्रीम कोर्ट के फटकार से हैराण परेशान हुवे है। ऐसे में वो फिर से मैदान में आते है तो जनता उनकी दाढी मुछे नोंचकर सफाचट कर देगी और उनको फिर से सलवार कमीज पहन ने पर मजबूर होना पडेगा बाबा को यह डर सता रहा होगा इसलिए उन्होने मना किया। इस बार चुनाव के पहले एवं दुसरे चरणों में बीजेपी का कोअर वोटर वोटींग करने घर से बाहर निकाल ही नही इसलिए वोटोंका परसेंटेड घट गया था। वजह बीजेपी और उनके चेलेचपेटों को समझ में आयी इसलिए उन्होने निर्वाचन आयोग पर दबाव बनाकर उनके द्वारा वोट परसेंट बढाया गया। अगर जनता के समर्थन में सच्ची नॅशनल मिडिया खडी हो जाती है तो निश्चित रूप से बीजेपी की हार तय मानी जानी चाहिए। फिर बीजेपी कितने ही अवैध रूप के पैतरे अपनाए।

-अशोक सवाई. किवले, देहूरोड, पुणे. 91 5617 0699.

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