अनागारिक धम्मपाल स्मृति दिवस विशेष – भिक्खुनी साक्य धम्मदिन्ना

आज विश्वप्रसिद्ध भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में अग्रणी; प्रथम वैश्विक बौद्ध मिशनरी; सिंहल बौद्ध धर्म के एक प्रमुख सुधारक और पुनरुत्थानवादी; भारत और श्रीलंका में महाबोधी सोसायटी की स्थापना करने वाले महान व्यक्तित्व और धम्मदूत को उनके स्मृति दिवस पर नमन करते है। और आज उनके स्मृति दिवस के अवसर पर उनके कुछ विचार सांझा कर रही हूं और आशा करती हूं कि इसे पढ़कर हम सभी इन विचारों को अंगीकार करने का संकल्प लें।
बौद्ध धम्म कठोर परिश्रम का धम्म है।बौद्ध धम्म का उद्देश्य प्रत्येक मनुष्य को यह ज्ञान देना हैकि कोई भी मनुष्य लोभ, क्रोध, अभिमान, हठ, अहंकार,द्वेष, ईर्ष्या, आदि मानसिक अशुद्धियों से स्वयं को शुद्ध करें।
अतः स्वयं की मानसिक अशुद्धियों को शुद्ध करने के लिए कठोर परिश्रम करें।
क्रोध मनुष्य को दानव बना देता है; अज्ञानता के कारण ही भय उत्पन्न होता है; और यही अज्ञानता सभी प्रकार की शारीरिक और मानसिक पीड़ा का कारण है!
अतः क्रोध न करें और भय न रखें। इसके लिए अज्ञानता को दूर करने का प्रयास करें! ज्ञान अर्जित करें ताकि क्रोध और भय से विरत हो सकें।
अन्याय के मार्ग से बचें। मित्रों या संबंधियों को खुश करने के लिए कभी भी कोई अन्यायपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।क्रोध और द्वेष में आकर कभी कोई काम न करें और भयभीत न हों और न ही कायरतापूर्ण कोई कार्य करें! और मूर्खता भरे कार्य करने से बचें!
अतः अन्यायपूर्ण मार्ग पर न चलें। अकुशल कार्य कभी न करें! ना ही क्रोध में, ना ही भय से, ना ही मूर्खता से, ना ही किसी को खुश करने के लिए और न ही कायरता से कोई भी कार्य करें।
नैतिकता (शील) स्थायी समाज के निर्माण के लिए सबसे ठोस आधार है! भगवान बुद्ध ने बार-बार इस बात पर जोर दिया किउनका धम्म तभी तक जीवित रहेगा जब तक उनके शिष्य शीलाें का सख्ती से पालन करेंगे! जब नैतिकता समाप्त हो जाती है तब समाज पतित होता है।
अतः शीलों का अच्छे से पालन करें।
साधु!साधु!! साधु!!!
बोधिपक्खिय: बोधि की ओर..
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दैनिक जागृत भारत