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शिव जयंती उत्सव नष्ट करके, गणपति विसर्जन उत्सव की प्रथा?

शिव जयंती उत्सव नष्ट करके, गणपति विसर्जन उत्सव की प्रथा????
विस्तारपूर्वक पढ़ें!

शिव जयंती उत्सव को कमजोर करके गणपति उत्सव व विसर्जन की प्रथा शुरू हुई क्या????

सविस्तार पढ़ें!

शिव जयंती खत्म करने का तिलक का षड्यंत्र अर्थात गणेशोत्सव…….

मित्रों! ऐसा कहा जाता है कि पहले से खींची गई किसी रेखा को बिना हाथ लगाए छोटी करनी हो तो उसके बगल में एक बड़ी रेखा खींचें
जिससे पहले की रेखा अपने आप छोटी दिखाई पड़ने लगेगी।
उसी प्रकार जानबूझकर शिवजयंती और गणेशोत्सव के बारे में महाराष्ट्र में हुआ है।

छत्रपति शिवाजी महाराज गए! छत्रपति शंभाजी महाराज भी गए! और शिवराज्य का पेशवाई में रूपांतरण हो गया।
पेशवाई में तुकोबाराय का नाम लेने पर प्रतिबंध था, इसलिए छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि वास्तव में कहां है? किसी को भी मालूम नहीं था, ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले को छ. शिवाजी महाराज की समाधि रायगढ़ किले पर होने की लिखित जानकारी मिली और वे रायगढ़ किले पर गए।
तीन दिन लगातार ढूंढ़ने के बाद उन्हें पत्थर द्वारा बनी समाधि दिखाई पड़ी।
सामने जाते ही यही अपने राजा की समाधि है यह पहचाने और उस समाधि की अवस्था देखकर भाव-विह्वल हो गए , कांटों व धूल-मिट्टी से ढकी उस समाधि को महात्मा फुले ने साफ किया और धोती के कोने में बांधकर लाए गए फूल समाधि पर चढ़ाकर उन्हें मानवंदना दी।
यह बात किले के नीचे बसे गांव के ग्राम-जोशी (ब्राह्मण) को मालूम हुई तो वह अपनी जनेऊ हिलाते हुए समाधि के पास आया और लात से फूलों को बिखेर दिया और बोला “एक कुनबट राजा की पूजा करता है और मुझे दान-दक्षिणा देना भूल गया!” महात्मा ज्योतिबा फुले ने उस ब्राह्मण का गला पकड़ा और उसे “किले से नीचे फेंक दूंगा!” इस तरह धमकाया यह सुनते ही वह ब्राह्मण वहां से भाग निकला।
बाद में महात्मा फुले पूना आये और पूना के गंजपेठ के लक्ष्मीनारायण थियेटर के चौक पर दुनिया की पहला शिवजन्मोत्सव आयोजित करके दस दिन तक मनाया।
वह तारीख थी 19 फरवरी 1869 कार्यक्रम का आज भी लिखित दस्तावेज है।
उस समय बाभनमान्य तिलक की उम्र मात्र तेरह वर्ष थी और तभी से शिवराय की जयंती 10 दिन मनाने की परंपरा महात्मा फुले ने ही शुरू की।

कुलवाडीभूषण बहुजन- प्रतिपालक छ.शिवाजी महाराज की समाधि राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले ने ही खोजकर निकाली…….

छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती यह महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध त्योहार व उत्सव है। यह उत्सव मराठा साम्राज्य के संस्थापक छ.शिवाजी महाराज के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में महाराष्ट्र सरकार द्वारा निश्चित की गई तारीख 19 फरवरी के दिन महाराष्ट्र भर में मनाया जाता है।इस दिन महाराष्ट्र में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। महाराष्ट्र के बाहर भी यह उत्सव अनेक जगहों पर मनाया जाता है।
संसार की पहली शिवजयंती महात्मा ज्योतिबा फुले ने मनाई थी।

पहला मराठी शिवचरित्र महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखा…….
मूल्य- छः आने
शिवराय पर पहला पोवाडा महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखा……..
शिवराय का सच्चा इतिहास महात्मा ज्योतिबा फुले लोगों के सामने लाए और ब्राह्मणों ने सच्चा इतिहास छिपाकर झूठा इतिहास हमको बताया…..

राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले आजीवन प्रत्येक वर्ष दस दिन का शिवजयंती उत्सव मनाते थे किन्तु 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले का महापरिनिर्वाण हो गया,
और तिलक ने ‘तिथी’ नुसार शिवजयंती मनाई व तारीख के अनुसार फुले द्वारा शुरू की गई जयंती की प्रथा को बंद करने का षड्यंत्र रचा।

गणपति विसर्जन उत्सव की प्रथा कैसे शुरू हुई?
चमार द्वारा छूने से गणपति अपवित्र हुआ इसलिए…….
गणपति को डुबाने की प्रथा शुरू हुई……!

मित्रों! शिव जयंती बंद करने व गणेशोत्सव शुरू करने वाले बाल गंगाधर तिलक ने गणपति बिठाया…….
दस दिन तक सभा सम्मेलन का आयोजन किया दसवें दिन पूना में गाजे-बाजे के साथ गणपति की शोभायात्रा निकाली उसमें दर्शन की छूट थी।
एक चर्मकार (चमार)ने गणपति के सामने जाकर सीधे मूर्ति को स्पर्श करके दर्शन कर लिया…..!
जुलूस में शामिल सभी ब्राह्मणों ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि गणपति अपवित्र हो गया , गणपति अपवित्र हो गया ! इसलिए सभी तिलक को चिल्लाने लगे कि यह देखो! सबको दर्शन की खुली छूट देने से ऐसा हो गया, धर्म डूब गया! एक चमार ने धर्म डुबा दिया…..!
तब तक जुलूस पूना के बाहर आ गया था, तिलक ने कहा- चिल्लाओ मत! धर्म कैसे डूबने देंगे ? उससे अच्छा हम इस अपवित्र हुई मूर्ति को ही विसर्जित कर देते हैं (अर्थात पानी में फेंककर डुबा देते हैं)”.!
इस प्रकार चमार के द्वारा अपवित्र किया गया गणपति डुबाया गया और तभी से प्रतिवर्ष गणपति डुबाने की प्रथा शुरू हुई…..!

  • डाॅ. नरेन्द्र दाभोलकर

बालासाहेब ठाकरे के पिताजी केशव सीताराम ठाकरे (प्रबोधनकार ठाकरे)
कहते हैं…….

कि मूल शिवजयंती में तिथि का विवाद खड़ा करने वाला और कोई नहीं बाभनमान्य तिलक ही था……
तिलक ने 1896 के बाद तिथिनुसार शिवजयंती मनाते हुए शिवराय के फोटो के साथ पेशवा नाना साहेब फडणवीस का भी फोटो रखना शुरू किया, यह वही फडणवीस था जिसने शिवराय की शिवशाही के विरोध में रही पेशवाई को टिकाए रखने का काम किया……
किन्तु ऐसे शिवद्रोही तिलक को ही पाठ्य-पुस्तकों में ‘शिवजयंती का जनक’ बताकर, ज्योतिबा फुले के बारे में सच्चे इतिहास को छिपाया गया और आज भी तिलक ही पढ़ाया जाता है!!!

उसी साल तिलक ने गणेशोत्सव की भी शुरूआत की वह भी शिवजयंती को पीछे छोड़ने के लिए!
जो महाराष्ट्र गणपति को जानता भी नहीं था! जो गणपति सिर्फ चितपावन ब्राह्मणों के घरों में था! वह गणपति तिलक ने रास्ते पर लाया और दस दिन का गणेशोत्सव शुरू किया एवं दस दिन तक चलने वाले शिवजयंती उत्सव को तारीख व तिथि के विवाद में अटकाकर बंद करने की शुरूआत की व बुद्धि में न बैठने वाली कथा लोगों को बताया…..!

सबूत:-
एक ही समय में तिलक ने गणेशोत्सव व तिथिनुसार शिवजयंती की शुरुआत की,
आज संपूर्ण भारत में गणेशोत्सव मनाया जाता है किन्तु शिवराय की शिवजयंती महाराष्ट्र में एक दिन भी ढंग से नहीं मनाई जाती…..!

सच पूछो तो राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा शुरू की गई शिवजयंती को बंद करने के लिए व लोगों द्वारा शिवराय को भुला दिए जाने के लिए ही बाभनमान्य तिलक ने गणेशोत्सव मनाने की शुरुआत की…… क्योंकि खुलकर लोगों से यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि
“शिव जयंती बंद करो!” इसीलिए गणेशोत्सव…..!

तारीख पूरी दुनिया में एक ही दिन होती है यानी 19 फरवरी को पूरी दुनिया में शिवजयंती मनाई गई होती, इसलिए दुनिया शिवराय के बारे में न जान सके इसीलिए ‘तिथि’ का खेल तिलक ने शुरू किया।
क्योंकि तिथि सिर्फ भारत में वह भी महाराष्ट्र में सिर्फ ब्राह्मण ही देखते हैं! अर्थात शिवराय को महाराष्ट्र तक ही सीमित रखना यही भटमान्य तिलक का उद्देश्य था और उसमें वे यशस्वी हुए।
इसलिए मित्रों! गणेशोत्सव का सच्चा इतिहास जानना जरूरी है……..!

सन 1869 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने रायगढ़ किले पर शिवाजी महाराज की समाधि को ढूंढ़ निकाले और उनके जीवन पर प्रदीर्घ एक पोवाडा लिखा, शिवाजी महाराज के कार्य लोगों तक पहुंचें इसलिए फुले ने 1870 में शिवजयंती की शुरुआत की जो पहली शिवजयंती थी और शिवजयंती का पहला कार्यक्रम पूना में हुआ था।
उसके बाद तिलक ने शिवजयंती के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का काम शुरू किया।
20वीं शताब्दी में डा. अंबेडकर ने भी शिवजयंती मनाई थी वे दो बार शिवजयंती के कार्यक्रम के अध्यक्ष थे उसके बाद से शिवजयंती बड़े स्तर पर मनाई जाने लगी। 3 मई 1927 को मुंबई के पास बदलापुर में शिवजयंती उत्सव बाबा साहेब डा.अम्बेडकर की अध्यक्षता में मनाई गई। बदलापुर के ग्राम वासियों ने जातिभेद न रखते हुए बाबा साहेब को शिवजयंती कार्यक्रम का निमंत्रण दिए थे। बहिष्कृत भारत के 20 मई 1927 के अंक में छपी जानकारी के अनुसार बाबा साहेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज के लोकहितकारी राज्यपद्धति पर भाषण किए। उस समय स्पृश्य व अस्पृश्य लोग एकत्र बैठकर प्रबोधन सुने,रात को शिवाजी महाराज का जुलूस बाबा साहेब के नेतृत्व में लगभग पन्द्रह हजार लोगों के साथ पूरे नगर की परिक्रमा के बाद उत्सव की समाप्ति हुई।

हमारे प्रेरणास्रोत शिवराय को इन विदेशी चितपावन ब्राह्मणों के झूठे इतिहास के कारावास से मुक्त करने की जरूरत है, और जिन बहुजन महापुरुषों ने विदेशी चितपावन ब्राह्मणों की गुलामी के विरोध में मुक्ति का आंदोलन चलाया वही आंदोलन खड़ा करके विदेशी चितपावन ब्राह्मणों की गुलामी से भारतीय बहुजन जनता को आजाद कराना है……!

सारांश:-
महाराष्ट्र-भूषण पुरस्कार पर इधर-उधर से इतना हंगामा हुआ था इसलिए मैंने तय किया था कि मैं उस विवाद में नहीं पड़ूंगा!
शिवराय को जनसाधारण तक पहुंचाने की किसी ने शुरुआत की व क्यों?
यह इतिहास खंगालने का मैंने अपने स्तर पर प्रयास किया तो मुझे ऐसी जानकारी मिली कि शिवराय की विस्तृत जानकारी निकालने वाले प्रथम व्यक्ति महात्मा ज्योतिबा फुले थे ,इसके लिए 1869 में शिवाजी महाराज की समाधि फुले ने खोजी।(जो समाधि कंटीली झाड़ियों में ढकी हुई थी) उसके बाद 27 रूपए चंदा जमा करके समाधि स्थल की देखभाल की, अर्थात शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद 200 साल तक किसी को याद ही नहीं आई?
महान कर्तृत्व के धनी समाज रक्षक स्वराज्य स्थापित करने वाले वीर योद्धा की किसी को याद ही नहीं आई इसका आश्चर्य होता है। उस समय भी मूलनिवासी किसानों का जीवन अत्यंत कठिन दौर में था इसलिए (जिस राज्य में कर जमा करते समय किसानों के सब्जी की टोकरी को हाथ नहीं लगाने दिया) किसानों को जमीन नापकर उनके नाम पर करके दिया, किसानों की भलाई के लिए प्रयत्न किया। खेती, किसान उनके पशुओं के लिए एवं वृक्ष आदि विषयों पर जागरूकता से प्रयत्न किया, शोषण व्यवस्था बंद करने के लिए जिन्होंने वतनदारी, मिरासदारी खत्म किया (सैन्यदल को वेतन देने वाला ऐसा राजा)। उनकी जानकारी लोगों तक पहुंचे इसीलिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने प्रयत्न किया। महाराज के गुणों के कारण ही ज्योतिराव फुले ने शिवाजी महाराज का उल्लेख ‘किसानों का राजा’, ‘कुलवाडी भूषण’ के रूप में किया। शिवाजी महाराज पर दुनिया का पहला मराठी शिव-चरित्र “कुलवाडी भूषण” पोवाडा की रचना की। महाराज के प्रति श्रद्धा, भक्ति और महाराष्ट्र के राजा के लिए अपार प्रेम के कारण ही 19 फरवरी 1869 में पूना में पहली शिवजयंती मनाने की शुरुआत की! वह 1890 में उनके निधन तक चालू ही थी, शिवराय की प्रेरणा से ही महात्मा फुले ने समाज कार्य शुरू किया था वे अस्पृश्यता की रूढ़ि पर प्रहार करने लगे थे, उन्होंने लड़कियों के लिए विद्यालय शुरू किए, प्रबोधन के माध्यम से जनजागृति शुरू किए। किन्तु बताइए यदि किसी ने आपसे पूछा कि शिवजयंती मनाने की शुरूआत किसने की? तो इसका उत्तर आपके सामने क्या आता है?
आजकल जब हम शिवराय के बारे में चर्चा करते हैं तो शिवराय एवं किसान/खेती इस विषय का मूलगामी महत्व अपेक्षाकृत बहुत कम ध्यान में रखा जाता है ,और यदि कोई प्रयास भी करता है तो उस पर गंभीरता पूर्वक कोई विचार नहीं करता, ऐसा लगता है लगभग सभी राजनीतिक शक्तियों ने शिवाजी महाराज को एक सेलेबल विषय बनाकर आपस में बांट लेने जैसा दिखता है, इसीलिए महाराज की छवि समाज में ‘तुलजा भवानी की कृपा’ आदि जैसी देववादी दिशा में जा रही है ऐसा लगता है।
मेरा व्यक्तिगत मत है आगे चलकर यदि ऐसा सवाल आया कि -आज से 60-70 साल पहले,”शिव जयंती किसने शुरू की?” इस प्रश्न का उत्तर ‘बाबा साहेब पुरंदरे’ ऐसा मिलने लगे तो आश्चर्य नहीं !
कदाचित……

जय जिजाऊ-जय शिवराय…..
सत्य शोधक समाज

मराठी से अनुवादित।

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