याद किजिएगा १७ डिसेंबर २०२४- अशोक सवाई

(कोर्ट कचेरी)
प्रिय पाठकों याद किजिएगा वो १७ डिसेंबर २०२४ की तारीख। इसी तारीख में राज्यसभा सदन में गृहमंत्री अमित शहाने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के विरोध में एक नाजायज टिप्पणी की थी। ‘आंबेडकर… आंबेडकर… आंबेडकर’… ऐसा छ बार बोलकर कहाॅंं था ‘अगर इतनी बार भगवान का नाम लेते तो सात जन्मो का स्वर्ग प्राप्त होता’… ऐसा कहते हुवे उनके चेहरे के भाव बेहद तिरस्करणीय थे। जिससे करोडो लोग जो डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी को इस धरती के अपना भगवान मानते है उनकी भावना हद से ज्यादा आहत तो हुयी ही थी, उनके साथ साथ देश का करोडों करोडों का बुद्धीजीवी वर्ग जो बाबासाहबजी को अच्छी तरह जानता है, समजता है उनकी भी भावना आहत हुयी। इसमें भारी संख्या में महिला वर्ग भी शामील था। गृहमंत्री के उस टिप्पणी पर उनको बहोत दुख हुवा। इस मामले का व्हिडिओ सामने आते ही सारे देशभर में भारी हंगामा मच गया। आक्रोश पाया गया। अमित शहा पर देशवासीयों का भारी घुस्सा फुटा। नतीजा, जनता के साथ साथ विपक्ष भी सडकों पर उतरा। और भारी बवाल कटने लगा। इससे जनता का ध्यान भटकाने के लिए सरकार ने सदन में सांसदों को धक्काबुक्की करने का आरोप राहूल पर लगाया। फिर अमित शहा की दिल्ली पुलिस ने राहूल गांधी पर तुरंत FIR दर्ज की। मामले पर जनता और विपक्ष ने अमित शहा पर अपने पद का त्यागपत्र और माफी मांगने का दबाव बनाया। लेकिन शहा ने माफी नही मांगी तो नही मांगी।
मामला थंडे बस्ते में जाते देखते ही उत्तर प्रदेश के धम्मौर थाना क्षेत्र के बनकेपूर, सरैया के निवासी रामखेलावन नाम के व्यक्ती ने सुल्तानपूर के MP/MLA कोर्ट में ६ जनवरी २०२५ को गृहमंत्री अमित शहा के विरोध में केस दर्ज की। जो IPC की धारा लगाकर राहूल गांधी की सांसदी और उनका मकान छीन लिया गया था, ठीक वो ही धारा अब गृहमंत्री अमित शहा पर लगी है। काल का पहिया देखीए साहब, घुम फिरकर वही व्यक्ती पास आकर रूका है जिसने इसकी शुरवात की थी। इसे वक्त का तगाजा भी मानना चाहिए। रामखेलावन ने इसके पहले वहाॅं के पुलिस अधिक्षक को रजिस्टर पोस्ट द्वारा २४ डिसेंबर २०२४ को अपनी शिकायत दी थी। लेकिन पुलिस अधिक्षक ने उसपर कोई भी कार्यवाही नही की। यह देखते हुवे फिर रामखेलावन ने उक्त कोर्ट मे अपील की। १५ जनवरी २०२५ को रामखेलावन ने अपने वकील जयप्रकाश द्वारा अमित शहा का बयाॅं का व्हिडिओ, पेन ड्राईव्ह, अख़बारों के पेपर कटिंग और अपना जाती प्रमाणपत्र कोर्ट में पेश किया। सारे तथ्थों को देखकर मेरीट के आधार पर जज्ज साहब शुभम वर्माने सुनवाई की तयारी की। यही मामला अलीगढ के MP/MLA कोर्ट में भी दर्ज हुवा है। २३ जनवरी २०२५ को सुल्तानपूर कोर्ट में गवाह की पहली गवाही हुयी। जो पहले भय के आलम में चूप थे वो अब बोलने लगे ना की बोलने लगे बल्की कोर्ट में गवाही देने लगे। दुसरी गवाही ७ फरवरी २०२५ होने जा रही है।
अब गृहमंत्री अमित शहा पर केस दर्ज हो गया। पहले गवाह की गवाही भी हो गयी। लेकिन इस मामले पर बहोत सारे सवाल उठते है। पहला सवाल तो यह है की, गृहमंत्री ने राज्यसभा सदन के अंदर संविधान रचयिता डॉ. आंबेडकरजी पर अवैध टिप्पणी की है। और सदन के मुखिया सभापती है। उनके ही निगराणी में सदन का कामकाज चलता है। लेकिन गृहमंत्री के अवैध टिप्पणी पर सभापती महोदय चूप थे। उन्होने गृहमंत्री पर कोई भी कारवाई नही की और ना ही सदन के रकाॅर्ड से वो अवैध टिप्पणी हटाई। जो उनको हटानी चाहिए थी। इसलिए यह मामला MP/MLA कोर्ट में तो नही गया?
दुसरा सवाल अगर कोर्ट में गृहमंत्री दोषी पाए जाते है और कोर्ट उनको कोई सजा सुनाता है तो क्या सदन के मंजुरी बिना सजा दी जा सकती है?
तिसरा सवाल अगर सजा दी जाती है तो क्या दोषी उस सजा के विरोध में उपरी अदालत में अपील कर सकता है या नहीं? और उस दरम्यान उस सांसद की सदस्यता चली जाएगी या बरकराकर रहेगी? अगर बरकराकर रहती है तो वे संसदीय कामकाज में हिस्सा ले सकेंगे या नहीं?
चौथ्या सवाल पूर्वानुभव के अनुसार क्या सरकार अपनी सत्ता के दम पर कोर्ट का निर्णय अपने पक्ष में करने के लिए कोर्ट पर कोई दबावतंत्र का प्रयोग करेगी?
पाचवा सवाल क्या गृहमंत्री कोर्ट के आदेश पर कोर्ट मे अपना माफीनामा पेश करेंगे? अगर नहीं करते तो क्या कोर्ट की आगे की कारवाई सख्त होगी? ऐसे तमाम सवाल है जो हमारे जैसे सामान्य जनों के मन में उठ रहे है। इसके जवाब तो आनेवाला समय ही दे सकता है। बस सिर्फ वक्त का इंतजार करना पडेगा।
कोर्ट में रामखेलावन ने कहाॅं जिस संविधान के आधार पर अमित शहा को गृहमंत्री का पद मिला उस पद पर उन्होने संवाद नही आव्हान किया। ऐसे हालातों में अमित शहा पर सख्त से सख्त कारवाई होनी चाहिए। रामखेलावन ने यह भी कहाॅं की जिनके बदौलत आज शहा गृहमंत्री है उनके ही खिलाफ टिप्पणी की है। जो करोडो लोग बाबासाहबजी को अपना भगवान मानते है, उनकी भावना आहत हुयी है। इसमें मेरी भी भावना आहत हुयी है। इसलिए केस दर्ज किया है। इस पर कोर्ट आगे अपना क्या निर्णय देगा ये तो बाद की बात होगी। लेकिन आज देश में भय का आलम है, ऐसे में तगडे पद पर बैठे हुवे तगडे व्यक्ती पर केस दर्ज होना यही अपने आपमें बडी बात है। संसदीय इतिहास में पहली बार हो रहा है ऐसा। यह है डॉ. बाबासाहबजी के संविधान की ताकद। भले ही असत्य ने सत्य को कुछ समय के लिए निगल लिया हो लेकिन सत्य एक ऐसी चीज है जो असत्य का पेट चीरकर बाहर आ ही जाती है। सत्य की रफ्तार काफी धीमी होती है लेकिन शाश्वत होती है। वो असत्य को कभी भी, कही भी, कैसे भी निपट सकता है और अपना अस्तित्व निरंतर काल के लिए है यह सिद्ध करता है। यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए।
४ जून २०२४ तक याने की लोकसभा चुनाव के नतीजे आने तक खामोशी खामोश थी। ऑंखे सिर्फ देखती और जुबान चूप थी। चाहते हुवे भी नही बोल पाती थी। लेकिन वक्त ने जैसे ही अपनी करवट बदली सरकार अल्पमत में आकर बगल में बैसाखी आई वैसे धीरे धीरे जुबाॅं बोलने लगी। ऑंखे मस्तीभरी सत्ता को ऑंखे दिखाने लगी। मनमानी सत्ता का सूरज जैसे चढते गया वैसे ही अब वो ढलने लगा। ये तो प्रकृती का नियम है। इतिहास गवाह है, दुनिया में जब जब सत्ता उन्मत्त हुयी तब तब समय ने उसपर अपना डंडा चलाया है। यह बात यहाॅं के सत्ताधिश और हुक्मरानों ने भी याद रखनी चाहिए।
– अशोक सवाई.
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