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डॉ.अंबेडकर संग रमाबाई विवाह : 4 अप्रैल(4 अप्रैल,1906)💕

प्रत्येक महापुरुष के पीछे उसकी जीवन-संगिनी का बड़ा हाथ होता है,
एक मछली बाजार में हुई थी भीमराव आंबेडकर और रमाबाई की शादी-

जीवन साथी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो व्यक्ति का महापुरुष बनना आसान नहीं है. रमाताई अम्बेडकर इसी त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थीं.
आज ही के दिन यानि 4 अप्रैल सन् 1906 में रामी का विवाह भीमराव अम्बेडकर से हुआ. डॉ. अम्बेडकर रमा को ””रामू”” कह कर पुकारा करते थे जबकि रमा ताई बाबा साहब को ”साहब” कहती थी. बाबासाहेब से रमाई की जब शादी हुई थी, तो वे महज नौ साल की थीं. एक समर्पित पत्नी की जिम्मेदारी उन्होंने भलीभांति निभाई.

भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के विचार हर किसी के लिए प्रेरणा दायक है. एक दलित परिवार से आने वाले बाबा साहेब आंबेडकर भारतीय संविधान को लिखने और अछूत (दलित) को सामान्य दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करेंगे किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं थी. जैसे आंबेडकर और रमाबाई के संघर्ष की कहानी प्रेरणा दायक है, ठीक उसी तरह उनकी शादी भी. ये बात बहुत ही कम लोग जानते हैं.

आंबेडकर का विवाह मंदिर, घर या हॉल में नहीं बल्कि मुंबई के एक मछली बाजार में हुआ था. आंबेडकर के मैट्रिक परीक्षा में पास होने के बाद उनके पिता रामजी सूबेदार ने भीवा की शादी भिकू वलंगकर की पुत्री रमाबाई के साथ संपन्न कर दी थी.

*एक कोने में घराती और दूसरे में बाराती-👇

मुंबई के मछली बाजार में जब आंबेडकर और रमाबाई का विवाह हुआ तो उस दौरान एक कोने में घराती के लोग इकट्ठा हुए थे. वहीं, दूसरे कोने में बाराती इकट्ठा हुए. छप्पर के नीचे नाली से गंदा पानी बह रहा था. चबूतरे का इस्तेमाल बेंच के रूप में किया गया. बाजार के पूरे स्थल का इस्तेमाल-विवाह स्थल के रूप में किया गया था.
शादी के पहले रमा बिलकुल अनपढ़ थी, लेकिन अम्बेडकर ने उन्हें साधारण लिखना-पढ़ना सिखा दिया था. वह अपने हस्ताक्षर कर लेती थी. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर जब अमेरिका में थे, उस समय रमाबाई ने बहुत कठिन दिन व्यतीत किये. पति विदेश में हो और खर्च भी सीमित हों, ऐसी स्थिति में कठिनाईयां पेश आनी एक साधारण सी बात थी. रमाबाई ने यह कठिन समय भी बिना किसी शिकवा-शिकायत के बड़ी वीरता से हंसते हंसते काट लिया.
एक समय जब बाबासाहेब पढ़ाई के लिए इंग्लैंड में थे तो धनाभाव के कारण रमाबाई को उपले बेचकर गुजारा करना पड़ा था. लेकिन यह बात लोगों को शायद ही मालूम हो कि उनकी पढ़ाई-लिखाई के लिए अपना पेट काटकर, गोबर के उपले बनाकर और घर-घर बेचकर मनीआर्डर विदेश भेजा करती थीं.

*देर से शुरू हुई गृहस्थी और…

–आंबेडकर का विवाह बेशक से 1908 में संपन्न हुआ, लेकिन उनकी गृहस्थी की शुरुआत 1917 के बाद हुई.
–1917 में जब आंबेडकर लंदन से लौटकर मुंबई आए. उनकी पत्नी रमाबाई को लगा कि हम लोगों ने अब तक जो भी दुख भोगा है. वह समाप्त हो चुका है. हमारे साहेब नौकरी करके पैसा कमाएंगे और सभी को खुशहाली में रखेंगे.
–इसके बाद 2 साल तक रामाबाई के साथ के बाद 1920 में आंबेडकर अपनी पढ़ाई पूरा करने के लिए लंदन चले गए.
–पढ़ाई, राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता के कारण रामाबाई के साथ रिश्ते में आबंडेकर कितना रहे इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है.
–1923 में भारत लौटे तब दोनों की जिंदगी थोड़ी पटरी पर लौटी. लेकिन आंबेडकर की सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता बढ़ती गई, उन्हें संघर्ष के कई मोर्चों पर सक्रिय होना पड़ा. उनके पास रमाबाई के साथ बिताने के लिए 24 घंटे में आधे घंटे भी नहीं मिल पाते.
–इसका जिक्र उन्होंने बहिष्कृत भारत की संपादकीय में किया है.

*वंचित समाज के उद्धार के लिए, डॉ. अम्बेकर हमेशा ज्ञानार्जन में रत रहते थे. ज्ञानार्जन की तड़प उन में इतनी थी कि उन्हें घर और परिवार का जरा भी ध्यान नहीं रहता था. रमाबाई इस बात का ध्यान रखती थीं कि पति के काम में कोई बाधा न हो. वह संतोष, सहयोग और सहनशीलता की मूर्ति थीं. डॉ. अम्बेडकर प्राय: घर से बाहर रहते थे. वे जो कुछ कमाते थे, उसे वे पत्नी रमा को सौंप देते और जब आवश्यकता होती, उतना मांग लेते थे. रमाताई घर का खर्च चला कर कुछ पैसा जमा भी करती थी. त्यागमूर्ति रमाबाई ने संघर्ष का ऐसा दौर भी देखा, जब उचित पालन-पोषण और चिकित्सा के अभाव में पांच में से चार बच्चों की मौत हो गई. महज 38 साल की उम्र में ही उनती मृत्यु हो गई.

दिसंबर 1940 में बाबासाहेब अम्बेडकर ने-
“थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” नाम की पुस्तक को अपनी पत्नी रमाबाई को ही भेंट किया. भेंट के शब्द इस प्रकार थे..👇

“रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं…
”इन शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबासाहेब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था.
प्रस्तुति : Dalit Kumar FB 4.4.2025
संदर्भ :-
1.दलित दस्तक न्यूज़ : 4.4.
2017
2.dalitawaaz : 5.4.2021

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