
ये क्या हो रहा है हमारे देश में,
हर दिन झूठ बिक रहा है जुमलों की बाजार में।
क्या हो रहा है इस देश में,
हमारे भारतीय लौट रहे है हातों में हतकडी और पैरों की बेड़ी में।
क्या हो रहा है हमारे देश में,
पाखंडी साधू, संतो ने अपनी लज्जा शरम बेच डाली है जुमलों की बाजार में।
क्या हो रहा है इस देश में,
मृतकों की लाशें छुपाकर दफ़नाई गयी महाकुंभ में।
क्या हो रहा है हमारे देश में,
नारी को बेइज्जत किया जा रहा है जुमलों की बाजार में।
क्या हो रहा है इस देश में,
अपनों ने अपने खोए और देश का मुखिया डुबकी लगा कर आनंद ले रहा है गंगा में।
निर्लज्जता की कोई तो सीमा होनी चाहीए हमारे देश में,
मूर्ख धीरेंद्र शास्त्री लगा है मृतकों को मोक्ष दिलवाने में।
मना कर दिया था मुस्लिमों को आने महाकुंभ में,
परंतु महाकुंभ खुद्द ही चला गया मुसलमानों के मशीद, मज़ार और घरों में।
सच्चाई तो यही है हुजूर हमारे देश में,
की, गंगा जमुना की तहज़ीब जो सदीयों से चलती आ रही है इस देश में।
ये क्या हो रहा है इस देश में,
फर्जी संविधान ला रहे है वो बाबा के मौजूदा संविधान में।
सच कहें तो साहब, इस मूर्खो और जुमलों की बाजार में,
हम बहुजन जी रहे है जिल्लत की जिंदगी में।
उठो जागो बहुजनों सोओं नही इस देश में,
विदेशी शत्रू तांडव मचा रहा है हमारे ही मूलनिवासी बहुजनों के देश में।
– अशोक सवाई.
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