आज की वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित या जन्म आधारित?

आजकल रामचरितमानस विवाद पर हर तरफ चर्चा चल रही है वर्णव्यवस्था के लाभार्थी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य उसका सारा लाभ जन्म के आधार पर लेते हैं लेकिन जब चौथे वर्ण शूद्र अर्थात एससी एसटी ओबीसी के हक अधिकार शोषण उत्पीड़न मान सम्मान स्वाभिमान की बात आती है तो कहते हैं कि हमारे ग्रंथों में वर्णव्यवस्था जन्म आधारित नहीं कर्म आधारित बताया गया है.
फिर तो पांडे दूबे चौबे , सिंह, अग्रवाल, यादव पाल, मौर्य,वर्मा आदि टाइटल कर्म आधारित होने चाहिए, और कर्म के अनुसार परिवर्तित भी होते रहने चाहिए.जनेऊ संस्कार भी कर्म आधारित होना चाहिए जन्म आधारित नहीं,शंकराचार्य किसी भी वर्ण का विद्वान बनना चाहिए. मंदिर का पुजारी ,कर्मकांड पूजा पाठ दान लेने का अधिकार कथावाचक, पीठाधीश्वर आर एस एस का सर संघचालक किसी भी वर्ण का या महिला को बनने का अधिकार होना चाहिए लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं वर्ण व्यवस्था का लाभ चाहिए जन्म आधारित और जब वर्ण व्यवस्था के कारण हासिये पर फेंक दिए गए शूद्र समाज के लोग रामचरितमानस की चौपाइयों का विरोध करें तो उन्हें संस्कृत का श्लोक सुनाकर वर्ण व्यवस्था को कर्म आधारित बताया जाय यह दोहरा रवैया अब चलने वाला नहीं है अब ब्राह्मणी ग्रंथों में वर्णित शूद्र जिसे हर ग्रंथ में अपमानित किया गया है उसकी परिभाषा बतानी ही होगी.
समाज में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य तो स्पष्ट दिखाई देते हैं और वह भी जन्म आधारित फिर शूद्र कहाँ चले गए जब चार ही वर्ण हैं तो जो ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य नहीं हैं वही तो शूद्र हुए अर्थात एससी एसटी ओबीसी जो कुल आबादी का 85% हैं इतनी बड़ी आबादी को कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का झूठ बोलकर कब तक बरगलाओगे?
शूद्रों को मनु विधान के अनुसार शिक्षा संपत्ति शस्त्र सम्मान का अधिकार नहीं था वही रामचरितमानस में भी लिखा है और वही समाज में साफ साफ दिख भी रहा है शिक्षा संपत्ति शस्त्र मान सम्मान में संविधान लागू होने के बाद भी एससी एसटी ओबीसी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य से मीलों पीछे हैं क्या अभी भी इनके शूद्र होने में कोई संशय है तो ठीक है भारत की विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका मीडिया कार्पोरेट जगत में एक ही वर्ण के लोग अर्थात वर्ण व्यवस्था के निर्माता ब्राह्मण ही क्यों भरे पड़े हैं और क्यों एससी एसटी ओबीसी लोकतंत्र के उन स्तंभों तक न पहुंच पाएं उसके लिए षड्यंत्र करते रहते हैं एससी एसटी ओबीसी को शूद्र समझने के अतिरिक्त और क्या कारण है?
ब्राह्मणों की पार्टियां कांग्रेस और भाजपा ने आज तक ओबीसी की जाति आधारित जनगणना क्यों नहीं होने दिया ?ओबीसी को शूद्र मानने के अतिरिक्त और क्या कारण हो सकता है?
वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी तो ब्राह्मणों ने छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक करने से क्यों इनकार कर दिया था? कर्म से तो वे भी क्षत्रिय थे. साहू महाराज के लिए ब्राह्मण ने वेदोक्त के बजाय पुराणोक्त मंत्र पढ़ने का हठ क्यों किया था.
महात्मा ज्योतिबा फुले तो बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे थे उन्हें ब्राह्मण क्यों नहीं समझा गया उन्हें मारने के लिए गुंडे क्यों भेजे गए थे?
आज तक भारत में वर्णव्यवस्था जन्म आधारित ही चली आ रही है जो आज तक जारी है. ब्राह्मण यह खुले मन से स्वीकार करें कि उनके पुरखों ने जो वर्णव्यवस्था बनाई और चलाई वह विषमता वादी, अवैज्ञानिक अनैतिक एवं असंवैधानिक है धर्म के नाम पर इसके बचाव का प्रयास हरहाल में असफल होगा क्योंकि शूद्र समाज अब अपने समतावादी महापुरुषों फुले साहू अंबेडकर पेरियार मा. कांशीराम, जगदेव बाबू, डा रामस्वरूप वर्मा ललई सिंह यादव महराज सिंह भारती आदि के विचारों और संघर्षों को जान समझ चुका है उनके बताए मार्ग पर आगे बढ़ चुका है अब वह न डरेगा न रुकेगा न झुकेगा क्योंकि यह उसके मान सम्मान स्वाभिमान और भावी पीढ़ी के सम्मान जनक एवं उज्वल भविष्य की लड़ाई है.
अभी तो ये अंगड़ाई है—-
चन्द्र भान पाल (बी एस एस)
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दैनिक जागृत भारत