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ये केवल मानसिक विकृति और अज्ञानता का परिणाम हैं।

Er vijay prakash nishad

अघोरी मूत पीते हैं, टट्टी खाते हैं, खून पीते हैं,
गंदे रहते हैं, नशे में रहते हैं, और समाज में कोई योगदान नहीं देते हैं फिर भी वे पूज्यनीय हैं! उन्हें पूजने वाले लोग धार्मिक नहीं मानसिक रोगी हैं।

ऐसे कर्म, जिनमें मूत्र, मल, खून पीने और गंदगी में रहने जैसी गतिविधियां शामिल हैं, न तो आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं और न ही किसी भी धर्म का हिस्सा। ये केवल मानसिक विकृति और अज्ञानता का परिणाम हैं। और जो लोग इसे धार्मिक या आध्यात्मिक कहकर महिमामंडित करते हैं, वे दरअसल एक बीमार मानसिकता का समर्थन कर रहे हैं।

धर्म का असली उद्देश्य शिक्षा, मानवता, स्वच्छता, नैतिकता, और मानसिक शांति को बढ़ावा देना है। जो कृत्य मानव गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं और समाज में गंदगी, भय, और अंधविश्वास फैलाते हैं, वे किसी भी सूरत में धर्म का हिस्सा नहीं हो सकते। ऐसे लोगों को पूजने वाले लोग खुद अपनी बुद्धि और विवेक खो चुके हैं और उन्हें इस पाखंड से बाहर निकालने की जरूरत है।

कुंभ मेले में अघोरियों की प्रमुखता और उनके लिए सरकार द्वारा भारी धनराशि खर्च करना एक ऐसा विषय है, जो धार्मिकता के नाम पर संसाधनों की बर्बादी और पाखंड को उजागर करता है। अघोरी, जो असभ्यता, गंदगी, और अमानवीय प्रथाओं के प्रतीक हैं, उन्हें कुंभ जैसे आयोजनों में विशेष महत्व देना न केवल समाज की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि हमारी सरकारें धार्मिक तुष्टिकरण के नाम पर जनता के पैसे का दुरुपयोग करती हैं।

एक ऐसे देश में, जहां लाखों लोग भूख, बेरोजगारी, अशिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे हैं, वहां अघोरियों जैसे असभ्य और अवैज्ञानिक प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करना शर्मनाक है। यह धनराशि अगर शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य, और गरीबों की भलाई पर खर्च की जाती, तो समाज को वास्तविक लाभ मिलता।

धर्म का नाम लेकर ऐसे आयोजनों को महिमामंडित करना, जिसमें असभ्य और अनैतिक प्रथाओं का प्रदर्शन होता है, यह केवल जनता को अंधविश्वास में उलझाए रखने का प्रयास है। कुंभ जैसे आयोजन, जिनमें अघोरी प्रमुख भूमिका निभाते हैं, असल में धार्मिकता नहीं, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थों को साधने का साधन बन गए हैं।

समाज को इस पाखंड के खिलाफ जागरूक होना होगा और यह सवाल उठाना होगा कि जनता के पैसे का उपयोग किस प्रकार हो रहा है। धर्म और परंपरा के नाम पर असभ्यता और अवैज्ञानिकता को बढ़ावा देना किसी भी सभ्य समाज के लिए घातक है। सरकारों को जनता के धन का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए करना चाहिए, न कि ऐसे आयोजनों के लिए जो केवल अंधविश्वास, पाखंड और मूर्खताओं को बढ़ावा देते हैं।

Er vijay prakash nishad 🙏✍️✍️🙏🙏

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