“नास्तिक भी आंबेडकरवादी हो सकते हैl “( दिलीप मंडल)

अगर ऐसा दिलीप मंडल खुद अपने आप को समझते होंगे तब भी वे बिलकुल आंबेडकरवादी नहीं हो सकते है। अपनी सहूलियत के हिसाब से बाबासाहेब को स्वीकार करना मतलब आंबेडकरवादी नहीं बनते। इसके लिए उनकी पूर्ण विचारधारा के प्रति प्रामाणिक रहना होता है।
निधर्मी यह बाबासाहेब की विचारधारा न होकर कम्युनिस्ट विचारधारा है। कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति प्रामाणिक रहनेवाला आंबेडकरवादी भला कैसे हो सकता है ?
दिलीप मंडल ने यह बात अपने खुद को सामने रखकर कही होगी। इससे फायदा यह होगा कि इस वजह से हिन्दू धर्म पर टीका करने का मौका मिलेगा और हिन्दू धर्म छोड़ना भी नहीं पड़ेगा । और खुद को आंबेडकरवादी कहकर दलितों के मन में दलित हित चिंतक की जो छवि बनी है वह बरकरार रहे l
अवसरवादी जो ठहरे ।
(प्रकाश तक्षशील)
(11 दिसंबर 2024)
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दैनिक जागृत भारत