कायदे विषयकभारतमहाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठ

1941 के आसपास कोई भी जज ब्राह्मण नहीं था l

1941 के आसपास कोई भी जज ब्राह्मण नहीं था l 1947 में देश आजाद हुआ सारे राज्यों के मुख्यमंत्री ब्राह्मण बन गए बिना चुनाव क l जितनी भी देश में यूनिवर्सिटी थी सब के वाइस चांसलर ब्राह्मण बन गए बिना किसी कंपटीशन एग्जाम के l अब मैं 1941 की बात करता हूं, जिस समय पर अंग्रेजों के अधीन भारत था l ब्राह्मणों को न्यायिक प्रक्रिया में कभी भी नहीं रखा गया, कारण यह बेईमान व्यभिचारी होने की वजह से इनके पास न्यायिक चरित्र नहीं था, परंतु देश आजाद हुआ इन्हीं के हाथ में सारी शासन सत्ता आ गई, और शासन सत्ता आने के कारण सारे मुख्य पदों पर यह भर्ती होने लगे l हमारे संविधान में न्यायिक आयोग का प्रविधान है परंतु न्यायिक आयोग को आज तक देश में इन ब्राह्मणों ने लागू नहीं होने दिया, आज लगभग 88 परसेंट हाईकोर्ट में और 98% सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण बैठे हुए हैंl दूसरी तरफ मंदिरों में इनका पूरा पूरा अघोषित आरक्षण है, परंतु न्यायिक प्रक्रिया में जो कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए आज तक इन्होंने न्यायिक आयोग को लागू नहीं होने दिया और वहां पर कालेजियम सिस्टम की व्यवस्था लागू की हुई है l कॉलेजियम सिस्टम जो 7 या 5 जज होते हैं वह उन सीटों को आपस में बांट लेते हैं l देश में मात्र 485 घराने हैं जो पूरी न्यायिक प्रक्रिया को पूरे देश में कंट्रोल किए हुए हैं इन्हीं घरानों से सारे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज आते हैं l बाकी किसी को भी यह इस प्रक्रिया में घुसने नहीं देते और यदि कोई घुस भी जाए तो उसको उल्टे सीधे आरोप लगाकर निकाल देते हैं l सी.एस. कारनन, पी.डी. दिनाकरन आदि के उदाहरण आपके सामने हैं l दुर्भाग्य से के.जी. बालाकृष्णन इस देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने उस समय पर रिटायरमेंट के बाद उनका नाम राष्ट्रपति के लिए ना चलाया जाए इस वजह से ब्राह्मणों ने सोची-समझी रणनीति के तहत उनके पीछे आय से अधिक संपत्ति का आरोप लगाया ताकि उनके नाम पर राष्ट्रपति के लिए विचार ही ना किया जाए l इस समय पर देश में लॉक डाउन चल रहा है और करोना महामारी की वजह से न्यायिक कार्य 90% बंद है, परंतु ऐसे हालात में भी सुप्रीम कोर्ट में बैठे मनुवादी सोच के ब्राह्मण जजों ने आरक्षण के ऊपर जो वक्तव्य दिया है कि आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है अनुच्छेद 16(4) में आरक्षण का प्रावधान है और अनुच्छेद 16 एक मौलिक अधिकार वाला अनुच्छेद है l अब इन मूर्ख लोगों को कौन समझाए ठीक से यह संविधान भी नहीं पढ़ पाते l यदि देश को आगे बढ़ाना है तो समाज के सारे वर्गों का उसके अंदर सहयोग वांछनीय है l यदि व्यवस्था को इसी तरीके से चलाया जाएगा तो देश का संपूर्ण और सर्वांगीण विकास संभव हो ही नहीं सकता और शायद जिस तरीके से सारी संवैधानिक संस्थाओं को यह मौजूदा सरकार कभी अपने आप कभी सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से खंडित करते जा रहे हैं, यह देश को 500 साल पीछे गुलामी में ले जाना चाहते हैं l और हमारे एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी लोग हिंदू वाद की अफीम में मस्त है l

संपूर्ण महाराष्ट्रातील घडामोडी व ताज्या बातम्या तसेच जॉब्स/शैक्षणिक/ चालू घडामोडीवरील वैचारिक लेख त्वरित जाणून घेण्यासाठी आमच्या व्हाट्सअँप चॅनलला Free जॉईन होण्यासाठी या लिंकला क्लीक करा

तसेच खालील वेबसाईटवर Click करा
दैनिक जागृत भारत

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: कृपया बातमी share करा Copy नको !!