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बिहार ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जारी किया नोटिस

राजकुमार एडवोकेट 29 जुलाई 2024
बिहार ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने आज बिहार राज्य में जातिगत जनगणना कराकर ओबीसी के बढ़ाये गये आरक्षण को पटना हाई कोर्ट के रद्द करने के आदेश पर नही दिया स्टे
50% से अधिक आरक्षण रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के इंदिरा साहनी जजमेंट का लिया गया सहारा
इंदिरा साहनी जजमेंट में आरक्षण की 50% सीमा लगाना भारत के संविधान का स्पष्ट उल्लंघन 🙏🏾
इंदिरा साहनी जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने 50% की आरक्षण की सीमा लगाकर विधि बनाने का कार्य किया जो न्यायालय के कार्य क्षेत्र से बाहर है 🙏🏾
बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में जातिगत जनगणना कराकर ओबीसी के लोगों का आरक्षण बढ़ाने के लिए संविधान विरोधी इंदिरा साहनी जजमेंट को निरस्त कराना पड़ेगा 🙏🏾
जब ईडब्ल्यूएस आरक्षण दिया गया तब 50 परसेंट की अधिकतम सीमा मानने से सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था इंकार🙏🏾
संविधान में एडिशन डिलीशन एवं मोडिफिकेशन का अधिकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को नहीं दिया है🙏🏾
सम्मानित साथियों
लोकसभा चुनाव 2024 में संविधान और जातिगत जनगणना एक बड़ा मुद्दा था परंतु चुनाव की समाप्ति के तुरंत बाद पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराकर पिछड़ी जाति के आरक्षण को बढ़ा दिया था और बिहार राज्य में कुल जातिगत आरक्षण 65% हो गया था जिसे बिहार के संविधान विरोधियों ने मा उच्च न्यायालय पटना में चुनौती दी और अंततः राज्य सरकार द्वारा जातिगत जनगणना की सभी एक्सरसाइज एक झटके में शून्य हो गई । हाईकोर्ट ने इंदिरा साहनी निर्णय का हवाला देते हुए जातिगत आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% के आधार पर ओबीसी का बढ़ाया गया आरक्षण समाप्त कर दिया अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जिस पर आज सुनवाई हुई मुख्य न्यायधीश की पीठ ने पटना हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे देने से इंकार कर दिया विपक्षी गण को नोटिस जारी किया , जब तक इंदिरा साहनी का नौ जजों की बेंच का फैसला निरस्त नहीं होता तब तक संविधान के सामाजिक न्याय के सबसे मजबूत पिलर आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाना लगभग नामुमकिन है ओबीसी को केंद्र सरकार की नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण क्यों और कैसे मिला आज इस पर भी चर्चा करना जरूरी है भारत का संविधान संघीय है और विधायी शक्तिया केंद्र और राज्य के मध्य विभाजित है कानून बनाने की शक्ति तीन सूचियो में विभाजित है राज्य सूची, केंद्रसूची और समवर्ती सूची है राज्य सूची में राज्य कानून बनता है केंद्र की सूची में केंद्र सरकार कानून बनाती है और समवर्ती सूची में केंद्र और राज्य दोनों कानून बना लेते हैं परंतु कहीं भी संविधान में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को कानून बनाने की शक्ति नहीं दी गई । इसीलिए जब 1992 में ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा रही थी तो इंदिरा साहनी नामक व्यक्ति ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 जजों की बड़ी सवैधानिक बेंच बनाई गई और उस नौ जजों की बेंच ने ओबीसी आरक्षण को उचित ठहराया परंतु आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% का कानून बना दिया,जिसे ओबीसी के लोग समझ नही पाए उस समय केंद्र सरकार की नौकरियों में अनुसूचित जाति का 15% और अनुसूचित जनजाति का 7:50 प्रतिशत और कुल साढ़े 22% आरक्षण था इस आधार पर ओबीसी को 27% आरक्षण देकर सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी जजमेंट का पालन कर दिया गया परंतु ओबीसी के लोगों ने अपने इस आरक्षण की लड़ाई को नहीं लड़ा, जिसके कारण 1992 से पहले उन्हें आरक्षण नहीं मिला और 1992 के बाद आरक्षण मिला तो 52% जनसंख्या के अगेंस्ट मात्र 27 प्रतिशत, लंबे समय से देश में जातिगत जनगणना की बात हो रही है परंतु इंदिरा साहनी जजमेंट जिसमें 50% की जातिगत आरक्षण की सीमा निर्धारित की गई है जब तक उसको चुनौती नहीं दी जायेगी तब तक जातिगत जनगणना से ओबीसी को कोई फायदा नही होगा, हालांकि उस निर्णय को चुनौती देने लायक छोड़ा ही नहीं क्योंकि उसमें इतनी बड़ी बेंच बना दी थी उससे बड़ी बेंच बनवाना बहुत मुश्किल काम है अब केंद्र सरकार जो जातिगत जनगणना के विरुद्ध है पूरा मामला उसके हाथ में है बिहार सरकार के बिहार हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट तभी पलट सकता है जब केंद्र सरकार इंदिरा साहनी के फैसले को पलट दे परंतु केंद्र सरकार ने जब सामान्य जाति के गरीब लोगों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण दिया था था उस समय इंदिरा साहनी के 1992 के आरक्षण के 50% अधिकतम सीमा के जजमेंट को भी पलट देना चाहिए था परंतु ईडब्ल्यूएस आरक्षण को केंद्र सरकार ने दे दिया और सुप्रीम कोर्ट ने उस पर मोहर लगा दी जबकि ईडब्ल्यूएस आरक्षण 10% मिलकर 60% हो गया था और उसमें इंदिरा साहनी जजमेंट कोई बाधा उत्पन्न नहीं कर रहा है अंतर सिर्फ इतना है वहां मामला सामान्य जाति के लोगों का था यहां मामला ओबीसी के लोगों का है इसलिए राज्य सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराकर पूरी एक्सरसाइज करने के बाद ओबीसी के लोगों का आरक्षण बढ़ाया ,जिसे बिहार हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया, अब यह लड़ाई बहुत बड़ी हो चुकी है और यह लड़ाई कानून से अधिक केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की है अब देखना है एनडीए सरकार और उसमें शामिल घटक दल और विपक्ष के दल जो सामाजिक न्याय की चुनाव में गारंटी दे रहे थे ,ओबीसी के लोगों को न्याय दिला पाएंगे अथवा नहीं यह भविष्य के गर्भ में छिपा है,यदि इस मामले में ओबीसी की हार होती है तो ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने की मांग आने वाले समय में समाप्त हो जायेगी यही वर्तमान केंद्र सरकार चाहती है
राजकुमार एडवोकेट
संविधान बचाओ ट्रस्ट
भारत संघ
9152095833
नोट
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