चंद्रचूड़ की अनुसूचित जाति से नफ़रत का राज 1818 के भीमा कोरेगाँव में छिपा है।
प्रोफेसर दिलीप मंडल
चंद्रचूड़ का परिवार पेशवा के वंश का है। पुणे में पेशवा के महल से एक घंटे की दूरी पर चंद्रचूड़ परिवार का महल चंद्रचूड़ वाड़ा आज भी अपनी पुरानी शान की गवाही देता है। अरबों की जायदाद है।
पेशवा ने शिवाजी महाराज के वंशजों से उनका राज छीनकर मराठा साम्राज्य अपने हाथ में ले लिया था। मराठा राजा सातारा के क़िले में क़ैद रह गए। जनता सख़्त नाराज़ थी।
रही सही कसर पेशवा की अय्याशी ने पूरी कर दी। उनका महल वेश्याओं के नाच का अड्डा बन गया। उसका थोड़ा साफ़ रूप आप बाजीराव मस्तानी में देख सकते हैं। आज भी पुणे को पुराने लोग शनिवार वाड़ा को अनैतिक जगह मानते हैं। परिवार समेत वहाँ नहीं जाते।
पेशवा के दलित संबंधी विचार किसी से छिपे नहीं हैं। गले में थूकने के लिए हांडी और कमर पर झाड़ू सिर्फ पेशवाई में हुई। बाक़ी देश के हिंदू तो यूँ ही बदनाम हो गए। पेशवा ने हिंदुओं को बदनाम कर दिया।
पेशवा ने सिंधिया-ब्रिटिश युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया, जिससे भारत में ब्रिटिश राज का रास्ता साफ़ हुआ। सिंधिया ने इस हार के लिए पेशवा की दग़ाबाज़ी को ज़िम्मेदार माना।
लेकिन अंग्रेज पेशवा को कहाँ छोड़ने वाले थे।
जब पेशवा पर हमला होने वाला था तो दलितों ने पेशवा से कहा कि हम भी आपकी ओर से लड़ना चाहते हैं। योद्धा तो वे थे ही। पेशवा इसके लिए तैयार नहीं हुए। जाति की नफ़रत बाधा बन गई।
फिर भीमा कोरेगाँव हुआ। अय्याशी में डूबे पेशवा ये लड़ाई हार गए।
चंद्रचूड़ के वंश के वैभव का भी अंत हुआ। बाबा साहब की प्रिय जगह थी भीमा कोरेगांव का विजय स्तंभ। ये मानव की गरिमा बहाली का प्रतीत बन गया। एक तीर्थ।
चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट को उस युद्ध का अगला मैदान बना दिया। बदला लेने के लिए इस केस का इस्तेमाल किया। बाँट दिया। तोड़ दिया।
लेकिन 2024 में जागरूक लोगों के मुक़ाबले वे कहाँ जीत पाएँगे।
न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई है।
फ़ोटो – पुणे का चंद्रचूड़ वाड़ा
— प्रोफेसर दिलीप मंडल
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दैनिक जागृत भारत