चुनावी सियासत महाराष्ट्र की
(राजनैतिक)
अशोक सवाई.
करीब करीब तीन महिने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है। इसके पहले ही चुनावी पारा चढ जाए तो आश्चर्य की बात नही होगी। चुनावी संग्राम के लिए चुनाव के सरदार अपने अपने चुनावी किल काटें दुरूस्त करने के साथ साथ एक दुसरे पर शब्दों के वार पलटवार करने लगे। पिछले दिनों में चुनावी सर सेनापती/सेनापती के तिखें बयान सामने आए है। जैसे की, 'भ्रष्टाचारी के सरगणा, विरोधकांना ठोकून काढा, भटकती आत्मा, नकली संतान' ऐसे कही बयान थे, जो चुनावी सेनापती द्वारा दिये गये थे। लेकिन ऐसे बयान महाराष्ट्र की भूमी को रास नही आते। युं कहिये महाराष्ट्र की भावनिक जनता इसे पसंत नही करती, या उक्त बयानों को अहमियत या फिर तवज्जो नही देती। क्यों की, महाराष्ट्र की भूमी शुरू से ही शिव जी, फुले जी, शाहू जी, आंबेडकर जी की पुरोगामी भूमी रही है। संत, महापुरुष और महामाताओं की भूमी है। उनके विचारों की भूमी है। उटपटांग बयान महाराष्ट्र की जनता पसंत नही करती, उसे दरकिनार या खारीज कर देती है। अतार्किक बयोनों से फायदा होने के बजाय उल्टा बीजेपी को नुकसान ज्यादा होता है। इसलिए क्षेत्रिय दलों के क्षत्रप अर्ज् करते है की दिल्ली से आप महाराष्ट्र मेंं आवो और चुनाव प्रचार करो इसके लिए जो मन में आये बोलो, जी भर के बोलो, इसका हमे फायदा होता है और हुवा भी। इसी के कारण २०२४ के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की महायुती सरकार को इसका ख़ामियाजा भुगतना पडा। फिर भी बीजेपी सरकार की अक्ल ठिकाने पर नही आयी। दोबारा वही ग़लती दोहराने लगी।
राजनेताओं के बयान बिना दाये/बाये/छाये करते हुवे जनकल्याणकारी और चुनाव जीतने लायक होने चाहिए। लेकिन ये तो ऐसे बयान है जो चुनाव रूपी नदी पार करने के लिए किसी छेद वाली कश्ती में सवार होकर बिना मुश्किलों से नदी किनारे पहुचने की मंषा रखने जैसा है। या फिर अतार्किक बयान देकर अपने हातों से अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री ने तो कमाल ही कर दिया। उपमुख्यमंत्री या गृहमंत्री ने अपनी पद की ग़रिमा लिलाम करके अपने समर्थकों को एक भयानक रूप से आदेश फर्माया की, 'मैदानात या आणि विरोधकांना ठोकून काढा' वा... भै... वा... क्या हुकूम फर्माया, माशाल्ला! जिसकी भारी जिम्मेदारी होती है, कानून व्यवस्था अच्छी तरह बरकाकर रखने की वही सलाह दे रहा है कानून तोडने की। इसके शिवाय अच्छे दिन और क्या हो सकते है मायबाप? बीजेपी के लाभार्थी, अंधभक्त और उनके शिघ्रकोपी चेलेचपेटे, छोड दिये जाए तो बहुतांश महाराष्ट्र बीजेपी सरकार के विरोध में है। इस में वैचारिक साख बचानेवाले बुद्धीजीवी वर्ग, साहित्यिक, महिला वर्ग, निःपक्षपाती बडे बडे राजनैतिक विश्लेषक, निरिक्षक, समिक्षक, अध्यापक, पत्रकार सभी विरोध में है तो क्या सभी पर लठ्ठ बरसाओगे? सत्ता जब निरंकुश होती है तो उसका नशा ऐसा चढ जाता है की उसका उदाहरण खुद्द महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री तथा गृहमंत्रीने अपने बयान से दिया है।
मुल्क के वजिर-ए-आलम महाराष्ट्र में आकर उनके द्वारा बोले गये शब्दों का वो बिलकुल लिहाज न रखते हुवे महाराष्ट्र के बुजुर्ग सियासी सम्राट को 'भ्रष्टाचारी के सरगणा' जैसे आपत्तीजनक शब्दों से नवाज़ा जाता है। लेकिन जनाब-ए-मन जिन्हो ने अपने आशियाना में भ्रष्टाचारीओं की मेहफ़िल सजायी रख्खी है, वो कौन है? ये नहीं बताया। भ्रष्टाचारी का सहारा लेकर सियासी तख्त के हुक्मरान कौन बने ये नही बताया? जिसने गुजरात में क्या दिये जलाये इसका आइना खुद्द महाराष्ट्र के सियासी बुजुर्ग ने तो दिखा ही दिया। तो अब महाराष्ट्र में आकर लगावो अपनी चुनावी नैय्या पार। ऐसा लगता है बीजेपी के पास घटिया शब्दों के अलावा दुसरे शालीनता के शब्द है ही नही। लोकसभा चुनाव में इनके भाषण उठाकर देखीएगा/सुनिएगा अपने आप में शर्मसार होने जैसा लगेगा। हम जनता द्वारा चुने गये नुमाइंदे चुनावी सभाओं में शब्दों की मर्यादा लांघ देते है। ऐसे बयानों से बीजेपी महाराष्ट्र/हरियाणा/झारखंड में विधानसभा का चुनाव हार सकती है इसका उनको कोई डर नही। और होगा भी क्यों? इव्हीएम बडी चंचल, वोटों में करती फेरबदल फिर डर काहे का? लेकिन फिर भी अगर वोटों की मल्लिका इव्हीएम का ज़मीर जाग उठा और दिल्ली तख्त के बीजेपी सम्राट अपने जुबाॅं पर काबू नही रख पाते तो लिखकर रखीएगा। जो उनके विचारधारा के वोट है वो भी इंडिया अलायन्स की ओर फिसल सकते है। अब तक जो इव्हीएम के विरोध में आंदोलन का प्रदर्शन कर रही थी वो भारत की आम जनता थी। इव्हीएम का विरोध गाव गाव तक पहुच गया।अब पानी सर के उपर गया तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुचा।
लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद खबर आयी है की, ४ करोड ६५ लाख ४६ हजार ८८५ वोटों की इव्हीएम द्वारा हेराफेरी हुयी है, ऐसी वोट फाॅर डेमॉक्रसी की रिपोर्ट सामने आई है। इस से ७९ लोकसभा सीटे प्रभावित हुयी है। वो सीटे इंडिया अलायन्स की ओर जा सकती थी। ऐसे शोसल मिडिया के युट्युबर्स के बडे बडे पत्रकार और राजनीती के जानकारों का कहना है। अगर वो सीटे एनडीए अलायन्स से मायनस होते है तो एनडीए अलायन्स के पास सिर्फ २१४ सीटे ही बचती थी। जो २७२ इस बहुमत के आकडे को छुना तो दूर एनडीए अलायन्स दूर से देख भी नही पाता। लेकिन बीजेपी की एक बडी खासीयत है। कुछ भी करके, किसी भी हालत में, अपना काम निकाल लो फिर बाद में उसके अच्छे बुरे परिणाम की चिंता करने की कोई जरूरत नही। माथा चप्पी करने की जरूरत नही, पछतावा करने की बात तो छोड ही दिजीए। चाहे दुनिया भला बुरा कुछ भी कहे। अपने असंवैधानिक काम करते रहो और सत्ता में बने रहो। जब तक असंवैधानिक काम छुपते है छुपाते रहो, उजागर होने बाद भी कोई ग़म नही। यही बीजेपी का फाॅर्मुला रहा है। और उनके छोटे सरकार सी ई सी का भी यही रवैय्या रहा है। लेकिन वो हाल ही में अपने शेर-ओ-शायरी के अंदाज में खुद्द को साफसुतरा रखने का नाकाम प्रयास करते नजर आ रहे है।
सी ई सी जो बीजेपी जैसे बडे मालिक के छोटे हुजूर है। वो आजकल शेर-ओ-शायरी के बडे दिवाने हो गये। वो खुद्द को पाक रखने की कोशिश करते हुवे अपने शायराना अंदाज में इव्हीएम के पक्ष में विपक्ष पर कटाक्ष करते हुवे कहते है...
आजकल इल्जमातों का दौर बुलंद है, तल्खीओं का बाजार गर्म है
पंच को पहले ही घेर लो मंजूर है, इल्जाम तो लागावो हमपर, मगर शर्त इतनी है, साथ में सबूत भी हो
गोया कोई तो बात है, हर बार मुद्दे वही, कचेरी भी वही, गवाॅंह कोई नही
ग़म का इलाज, शक का इलाज हक़िमों के पास भी नही
- सी ई सी आय
(चीफ इलेक्शन कमिशनर ऑफ इंडिया)
अब इनका ये शायरी वाला अंदाज कितने उचे दर्जे का है या सामान्य दर्जे का, ये तो मुशायरोंंकी मल्लिका कलम ही बता सकती है।
इनके इस शायराना अंदाज में ही हम जनता को जवाब देना पडेगा।
अजी, हुजूर…
जहाॅं आग लगती है वही से धुवाॅं निकलता है
ऐसे में तल्खीओं का बाझार गर्म होना तय है।
घेरे में आए ऐसा पंच काम ही क्यों करते है
पहले ही बाझार में सबूतों का ढेर लगा है।
गवाॅंह तो बहोत सारे होते है,
लेकिन उनको नकारते आये है
ग़म और शक का इलाज हक़िमों के पास तो है
मगर उन हक़िमों को ही पंच नकारते आये है।
अब वोट फाॅर डेमॉक्रसी की रिपोर्ट सामने आयी तो चुप्पी साधे क्यों बैठे हो
गोदी मिडिया की तरह आप भी उस पर पडदा डाले क्यों बैठे हो।
- हम भारत के लोग (भारतीय जनता)
- अशोक सवाई.
91 5617 0699.
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