महाराष्ट्रमुख्यपानराजकीयविचारपीठ
जहाॅं बेहूदा फर्मान निकलते है, वहाॅं तरक्की मुंह मोड लेती है।
अशोक सवाई
हमारे देश की संसद में सांसदीय सदस्य या विधानसभा में विधायक संविधान के अनुसार भारत के किसी भी नागरिक के साथ बिना भेदभाव करने की शपथ लेते है। लेकिन बीजेपी जब से सत्ता में आयी है तब से ठीक उसके उल्टा बीजेपी नेताओं का आचरण रहा है। उत्तर प्रदेश में ऐसा ही हो रहा है। इसके पहले भी गये दस सालों में बीजेपी के छोटे बडे हुक्मरान अपने बयान से मुस्लिम कौम को टार्गेट करते रहे। उनके प्रति भेदभाव या नफरत जैसा व्यवहार करके हमारे देश में सांप्रदायिक धृवीकरण करके देश का सौहार्दपूर्ण, शांतीपूर्ण वातावरण बिघाडाने का प्रयास कर रहे। और हिंदू-मुसलमान का कार्ड खेलने का काम किया, लेकिन असफल रहे है। इस सेअब तक बीजेपी के लिए मनचाहा सांप्रदायिक धृवीकरण नही हो पाया। और होना भी नही चाहिए। यहाॅं एक बात हम भारत वासीयों ने ध्यान में रखना जरूरी है।
भारत के मुसलमान कही बाहर से नही आए। जो आये थे वो चले गये। अब यहाॅं के मुसलमान इस वतन के माटी की कौम है, यही फले फुले है। हमारे एस सी/एस टी/ओबीसी के पुरखों पर इतिहास में कट्टर विचारधारा रखने वाले समुदाय द्वारा मानवता को शर्मसार करनेवाले बेहद जुल्म ढ़ाए गये थे। इतना की वो उनके बर्दास्त के बाहर थे। इस से छुटकारा पाने के लिए उन्होने इस्लाम कुबूल किया। एससी/एसटी/ओबीसी और मायनाॅरिटी आपस में भाई भाई थे और आज भी है। यही हमारा इतिहास रहा है। और इतिहास को कभी झूठ बोलने की आदत नही होती। देश का सच्चा इतिहास हम भारतीयों ने जानंना चाहिए, समझना चाहिए। खैर...
उत्तर प्रदेश में सावन माह में कावड यात्रा/जलाभिषेक यात्रा निकलती है। इस यात्रा का हरिद्वार, मुज्जफर नगर, मेरठ, लुडकी ऐसा २४० कि. मि. का मार्ग है। इस मार्ग पर फल/सब्जी के छोटे छोटे ठेले है, चाय की दुकाने है, छोटे बडे हाॅटेल या ढाबे है। ढाबे, दुकानों के मालिक कही हिंदू है तो कही मुसलमान है। इस में काम करने वाले हिंदू और मुसलमान दोनो ही समुदाय से आते है। फल और सब्जी वाले भी दोनो समुदाय के गरीब लोग है। दोनो समुदाय आपस में मिलजुल कर व्यापार उदीम चलाते है। एक दुसरे पर निर्भर रहते है। लेकिन उत्तर प्रदेश के हुक्मरान सरकार ने तुघलकी फर्मान जारी किया है की, भैय्या तुम व्यापार उदीम करते है तो ठिक है। लेकिन... लेकिन... अपने अपने ठेलों पर, दुकानों पर, ढाबे पर आपके नाम का फलक होना अनिवार्य है, जरूरी है। फर्मान जारी करने वाले इसके लिए दलील देते है की, खानपान की चीजों में सुचिता (शुद्धता) होनी चाहिए। क्या फर्मान फर्माया है... क्या दलील दी है.... वल्लाह... क्या बात है जी... सुचिता की साख रखने वाले इस फर्मान से गदगद हुवे होंगे। इनसे पुछीए तो जरा वो कौन लोग है जो मांस के सप्लायर्स है? सुचिता पर ज्ज्ञान देने वाले रामदेव बाबा से पुछीए तो जरा उनके १४ प्राॅडक्ट सुप्रिम कोर्ट द्वारा बंद क्यों किये गये। सुचिता तो योग गुरू रामदेव बाबा के नस नस में भरी होगी ना? इसे कहते दोगलापन। ऐसे कही उदाहरण मिलेंगे। खैर... छोड दिजीए...
अपने मुद्दे पर आते है। तो जैसे ही सरकारी आदेश आया, छोटे बडे व्यापारीयों ने तुरंत उस आदेश का पालन किया और अपने अपने दुकानों पर अपने नाम के फलक लगा दिये। लेकिन जैसे ही
इधर बेचारे मज़लुमों ने फलक नाम के लगाए,
उधर हुक्मरान के फर्मान बदनाम हो गये!
जैसे ही उक्त सरकारी आदेश जारी हुवा वैसे विपक्ष, सच्ची पत्रकारी की साख बचाने वाले पत्रकार और सांप्रदायिक शांतता, सौहार्दपूर्ण वातावरण के पक्ष में खडा होने वाला बुद्धीजीवी वर्ग इस आदेश पर सब हमलावार हो गये। इस आदेश को लेकर हिंदू-मुसलमान का बटवारा मत करो। इस से देश का माहोल बिघड जाएगा। देश को धर्म और जाती में मत बांटो। नफरती राजनीती मत करो। आदेश को वापस लो। ऐसी कही आवाजे उठने लगी। और तो और एनडीए के घटक पक्ष भी इस पर बिना खौप के खुलकर बोलने लगे। चाहे वो नीतीश बाबू हो, जयंत चौधरी हो या फिर बीजेपी आला कमान के कभी हनुमान बन बैठे थे वो चिराग पासवान भी क्यों न हो। सब के सब उत्तर प्रदेश के सरकारी आदेश की आलोचना करने लगे, कडे शब्दों में टिका-टिपण्णी करने लगे है। भै... इनको भी तो अपने मुस्लिम वोटों का खयाल रखना पडेगा ना? कुल मिलाकर सियासी गलियारों में महोल गर्माया है। यह आर्टिकल लिखने तक दिल्ली के तख्त पर बैठे हुवे बादशाहाओं के बादशहा इस मुल्क के कदरदान, आवाम पर मेहरबान जहाॅंपनाह और उनके वजिर-ए-आलम ख़ामोश थे। खामोशी का आलम यह था की जैसे मुल्क में सब खुशहाल हो। खैर...
इस बीच भारत जोडो यात्रा का राहुल गांधी का वो स्लोगन फिर से काम आया 'नफ़रत के बाझार में मोहब्बत की दुकान खोलेंगे' इस स्लोगन में थोडासा बदलाव करके दुकानदारों ने अपने दुकानों पर चिपकाया। ना हिंदू ना मुसलमान, मोहब्बत की दुकान राजनीती के ठेकेदारोंने एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए की, झूठ के पुलिंदो पर सियासत नही टिकती
और हकीकत की कोई काट नही होती
सोशल मिडिया के पत्रकार अपनी पत्रकारीता करते हुवे कावडीयों के रूट पर कावडीयों से पुछा गया की, भै... नाम का फलक लगाने से आप को क्या फर्क पडने वाला है? तो इस पर सामने से जवाब आया इस से कोई फर्क नही पडेगाॎ। हमारा जहाॅं मन करेगा वहाॅं हम खाना खायेंगे, चाय पियेंगे, फल खायेंगे, इस से कोई फर्क नही पडता की, दुकानदार हिंदू है या मुसलमान। और हमारी कावड यात्रा में तो मुसलमान भाई भी शरिक हुवे है इस से हमे कोई दिक्कत नही। उल्टा हम एक दुसरे की मदत करते है। अब बोलो क्या करना है उत्तर प्रदेश के हुक्मरान सरकारी फर्मान का? हमारे देश में सभी जाती धर्म के त्योहार में सभी जाती धर्म के लोग शरिक होते है, शामील होते है। उनका बटवारा करने का बीजेपी सरकार को किसने अधिकार दिया? मुल्क की आवाम, मुल्क के लोग ही सर्वपरी होते है। बीजेपी ने घिनौनी राजनीती छोड देनी चाहिए। नफ़रत से मुल्क का विकास या तरक्की मुंह मोड लेती है। यह प्राकृतिक नियम है।
किसी ने ठिक ही कहाॅं है।
ये हिंदू मुस्लिम दिल से निकाल दो
अब इसे प्यार के रंग में रंगा दो
क्यों आपस में बैर, विरोध को पाले
हातों में उठाए जो खंजर डाल दो
बहोत हो गये ये मज़हब के झगडे
अब भाईचारा की मिसाल दो
- अशोक सवाई
91 5617 0699.
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दैनिक जागृत भारत