कायदे विषयकभारतमहाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठ

मनुतंत्र V/s लोकतंत्र

चन्द्रभान पाल (बी एस एस)

आज देश में मनुतन्त्र और लोकतंत्र दो प्रकार के मॉडल कार्य करते हैं। मनुतंत्र लोगों का चरित्र बनकर प्रभावशाली बना हुआ है तो लोकतंत्र उस चरित्र के विरोध को सहते हुए अपने आपको स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। यहाँ इन दोनों व्यवस्थाओं के अंतर्विरोधों को निम्न डायग्राम के माध्यम से समझा जा सकता हैं :-

    (A)                    (B)

विषमता का मॉडल समता का मॉडल
(मनुतंत्र) (लोकतंत्र)
। ।
भगवा तिरंगा
। ।
मनुस्मृति संविधान
। |
मनुवादी संस्थाऐं संवैधानिक संस्थाएं

(मठ,मन्दिर,आश्रम) (राष्टपति,संसद,
स.विभाग)

(A). विषमतावादी व्यवस्था या मनुतन्त्र का मॉडल-

  मनुतन्त्र का जो मॉडल है उसका अपना 'भगवा' झण्डा है, 'मनुस्मृति' उसका संविधान है, 'मठ, मन्दिर, आश्रम' उसके संविधान की प्रशासनिक संस्थाएं हैं।

‘ईश्वर’ इस मॉडल का खूँटा है जिसके साथ ‘आस्था’ रूपी रस्सी से जनता को बांध दिया जाता है। ‘असत्य’ इसका ‘दर्शन’ है। ‘विषमता’ इसकी ‘विचारधारा’ है। ‘जन्म आधारित पितृसत्तात्मक चातुरवर्णीय’ इसका ‘प्रबंधन’ है। ‘भक्ति’ इसका मार्ग है। इस तरह मनुतंत्र के अनुसार ‘15% सवर्ण’ (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) मालिक हैं तो ‘85% शूद्र'(obc/sc/st/mino.) गुलाम।

हम मनुतंत्र को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि, “विषमता परतंत्रता शत्रुता अन्याय के अनैतिक सिद्धांतों को अपना कर ब्राह्मणों ने, ब्राह्मणों द्वारा, ब्राह्मणों के लिए बनाई गई यह जन्म आधारित पितृसत्तात्मक चातुरवर्णीय विषमतावादी व्यवस्था है।” अर्थात ब्राह्मण के हाथ में मनुतन्त्र की कमान बाकि सबका शोषण और सबका अपमान !

ब्राह्मण अपने इस विषमता के मॉडल को सनातन धर्म, वैदिक धर्म या हिन्दू धर्म के नाम से प्रचारित करता है तथा इसे ईश्वर द्वारा रचित व्यवस्था बताकर और धार्मिक आस्था का वास्ता देकर अपने नेतृत्व में समाज को संगठित रखता है, ऐसे में ईश्वरीय आस्था से बंधे हुए लोग मनुतन्त्र की प्रशासनिक संस्थाऐं मठ, मन्दिर, आश्रम की तरफ बिन बुलाए नाक रगड़ते हुए पहुँच जाते हैं, फिर वहाँ इन संस्थाओं के मालिक ब्राह्मण के चरणों में जाकर गिर जाते हैं। ऐसे गिरे हुए लोगों को ब्राह्मण हिन्दू कहता है और उन पर मनुस्मृति के नियमों को थोप देता हैं, अब यह कहने की जरूरत नही है कि मनुतन्त्र की व्यवस्था में ब्राह्मण श्रेष्ठ है और बाकी सारे नीच, यह एक प्रशासनिक व्यवस्था है जो भी इस व्यवस्था की आस्था मान्यता परम्परा संस्कार त्योंहार व्रत आदि से अपना सम्बन्ध रखेगा उसका वर्ण/जाति स्वभाविक तौर पर अपने आप तय हो जाता है अब आप लाख कोशिश कर लीजिए, भलेही लोकतांत्रिक व्यवस्था का फायदा उठाकर CM, PM बन जाइए लेकिन मनुतन्त्र की व्यवस्था में आप नीच ही माने जायेंगे। भूतपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर का शुद्धिकरण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

मनुतन्त्र का यह षड्यंत्र इतना बारीक है जो आम शूद्रों को समझ नही आता है यदि शूद्रों में से कुछ मुठ्ठीभर शूद्रों को समझ भी आ जाता है तो ये धूर्त मनुवादी ब्राह्मण इन्हें नास्तिक, कम्युनिष्ट, अर्बन नक्सल, अम्बेडकरवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी समर्थक, हिन्दू धर्म विरोधी आदि आदि पहचान देकर अपने ही शूद्र भाइयों से अलग थलग कर देते हैं तथा अन्य धर्मों का डर दिखाकर जाति में बंटे हुए ना समझ बहुसंख्यक शूद्रों को अपने धार्मिक आस्था के दायरे में संगठित रखकर उनका निरन्तर नेतृत्व करते हैं।

(B). समतावादी व्यवस्था या लोकतंत्र का मॉडल-

  लोकतंत्र का जो दूसरा मॉडल है इसका भी अपना 'तिरंगा' झण्डा है, 'भारत का संविधान' इसका संविधान है, 'राष्ट्रपति, संसद, सरकारी विभाग' इसके संविधान की प्रशासनिक संस्थाएं हैं। 

‘उत्तरदायित्व’ लोकतंत्र का खूँटा है जिस पर सवाल उठाना जनता का ‘अधिकार’ है। ‘समता’ इसकी ‘विचारधारा’ है, ‘सत्य’ इसका ‘दर्शन’ है। ‘ध्यान’ इसका ‘मार्ग’ है। ‘कर्म आधारित चतुरवर्गीय’ इसका ‘प्रबंधन’ है। अर्थात हम अपनी योग्यता का प्रदर्शन कर अपने वर्ग को बदल सकते हैं। लोकतांत्रिक कानून की नजर में हम केवल भारतीय है तथा धर्म हमारी निजी प्रैक्टिस है। जनता लोकतंत्र की ताकत है जो इसे अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण में रखती है जनता के सारे हित इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना जनता का नैतिक दायित्व है।

लोकतंत्र को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कि, “समता स्वतंत्रता बन्धुता न्याय के नैतिक सिद्धान्तों को अपना कर लोगों की, लोगों द्वारा, लोगों के लिए बनाई गई यह कर्म आधारित समतावादी चतुरवर्गीय व्यवस्था है।” अर्थात जनता के हाथ में लोकतंत्र की कमान सबको अवसर और सबको सम्मान।

परन्तु आज लोकतंत्र सत प्रतिशत जन हितैषी होने के बावजूद हमारे देश में यह व्यवस्था जनता को उतना फायदा नही दे पाई है जितना यह दे सकती थी, इसका एक मात्र कारण है, देश की जनता लोकतंत्र के प्रति जागरूक नहीं है। जिसका फायदा उठाते हुए प्रस्थापित मनुवादी लोग जो लोकतंत्र विरोधी हैं, वे भोली भाली जनता को गुमराह करके लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कब्जा जमा लेते हैं, फिर वे संवैधानिक संस्थाओं को नीजी हाथों में बेचकर लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और मनुतन्त्र को मजबूत करने के लिए मठ मन्दिर आश्रम को बढ़ावा देते हैं। यही वजह है कि आज अतार्किक, अवैज्ञानिक और अनैतिक मनुतन्त्र की ब्राह्मणवादी व्यवस्था दिन प्रतिदिन मजबूत होती जा रही है तो इसके विपरीत तार्किक, वैज्ञानिक और मानवतावादी लोकतांत्रिक व्यवस्था दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है।

निष्कर्ष- मनुतन्त्र और लोकतंत्र आज देश की जनता के पास दो मॉडल है, मनुतन्त्र देश की जनता को मन्दिर की तरफ ले जाता है , कांवड़यात्रा को महिमामंडित करता है तो लोकतंत्र स्कूल की तरफ। ये दोनों तंत्र एक दूसरे के दुश्मन है, इनमें से आज नहीं तो कल एक की मौत निश्चित है ऐसे में यदि मनुतन्त्र की मौत और लोकतंत्र की जीत हो जाती है तो 85% बहुजन शूद्र को सम्मान और स्कूल का कलम मिलेगा, इसके विपरीत यदि लोकतन्त्र की मौत और मनुतन्त्र की जीत हो जाती है तो 85% बहुजन शूद्र को मिलेगा अपमान और मन्दिर का घण्टा। अब निर्णय 85% बहुजन शूद्र (obc/sc/st) को करना है उन्हें सम्मान और स्कूल की कलम चाहिए या अपमान और मन्दिर का घण्टा ?

लोकतंत्र की स्थापना- यदि आप लोकतन्त्र के समर्थक हैं और इसे स्थापित करना चाहते हैं तो आपको निम्न बातों पर ध्यान देना होगा-

  1. चित्र से चरित्र बनता है इसलिए घर की दीवार पर मनुतंत्र के काल्पनिक चित्रों के बजाय लोकतांत्रिक महापुरुषों के चित्र लगाने होंगे।
  2. ‘भक्ति मार्ग’ अर्थात अंधआस्था के भक्ति मार्ग को त्यागकर ‘ध्यान मार्ग’ अर्थात अपने विवेक को जगाने वाला ध्यान मार्ग अपनाना होगा। या सरल भाषा में मूर्ति पूजा की बजाय ध्यान साधना को अपनाना होगा।
  3. जातीय भावना केवल फूट डालो राज करो नीति के तहत निर्माण की गई है इसलिए हमें जातीय भावना को त्यागकर अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देना होगा।
  4. जीवन के सभी संस्कारों पर ब्राह्मण के एकाधिकार को तोड़कर किसी भी जाति के सुशिक्षित शील सदाचार युक्त व्यक्ति से संस्कार सम्पन्न कराना होगा।
  5. ध्यान और संविधान को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए किसी भी सामाजिक कार्य का सुभारम्भ पांच मिनट ध्यान साधना से और समापन संविधान की उद्देशिका (प्रियंबल) के सामूहिक पाठ से करना होगा। उपरोक्त लोकतांत्रिक बिंदुओं को जब लोकतन्त्र के समर्थक अपने सामाजिक जीवन में व्यवहारिक तौर पर अपनायेंगे तब समाज का लोकतांत्रिक चरित्र निर्माण होगा। जब समाज का लोकतांत्रिक चरित्र निर्माण होगा तब संविधान की किताब पर छुपा हुआ लोकतांत्रिक चरित्र व्यवहारिक रूप लेकर सही मायने में देश में लोकतन्त्र को स्थापित करेगा। अर्थात यदि हमें मनुतन्त्र के बजाय लोकतन्त्र को स्थापित करना है तो अपना धार्मिक चरित्र बदलकर लोकतांत्रिक चरित्र बनाना होगा।
    जनता का चरित्र जब लोकतांत्रिक हो जायेगा वही चरित्र सही मायने में देश में लोकतन्त्र को स्थापित करेगा। अर्थात यदि हमें मनुतन्त्र के बजाय लोकतन्त्र को स्थापित करना है तो हमें अपना धार्मिक चरित्र बदलकर लोकतांत्रिक चरित्र बनाना होगा।

प्रस्तुति –

चन्द्रभान पाल (बी एस एस)

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