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आख़िर क्यों मनाया जाता हैं??”हुल दिवस” राज्य “झारखंड”


भारत के आजाद की एक महत्त्वपूर्ण क्रांति!

जब तक ड्रम बजता रहा, तब तक संथाल लडता रहा!

“हुल दिवस जन आंदोलन” पर 20 हजार संथाल योद्धाओं ने……
30 जून 1855 को चार सगे आदिवासी भाई _ सिद्धू, कान्हू,चांद और भैरव के नेतृत्व में संताल आदिवासी, दलित, सोषित, वंचित पिछड़े और बहुजन समाज ने विद्रोह कर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम संथाल में अंग्रेजों के खिलाफ पहला जन विद्रोह किया था!

आदिवासियों के साथ सभी जाति के समुदायों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अपने जल,जंगल,जमीन, सम्मान स्वाभिमान की हिफ़ाज़त और देश की स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़ा गया था!

???? हूल के ऐसे अनाम रह गए लड़ाकों में कुछ प्रमुख नाम हैं- मंगरा पुजहर (पहाड़िया), गोरेया पुजहर (पहाड़िया), हरदास जमादार (ओबीसी), ठाकुर दास (दलित), बेचु अहीर (ओबीसी), गंदू लोहरा, चुकू डोम (दलित), मान सिङ (ओबीसी) और गुरुचरण दास (दलित)!

इनमें से पहाड़िया आदिवासी समुदाय के मंगरा पुजहर और गोरेया पुजहर, ओबीसी वर्ग के हरदास जमादार व बेचु अहीर और दलित वर्ग के ठाकुर दास को हूल में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण फांसी दी गई थी!

वहीं गंदू लोहरा, दलित वर्ग से आने वाले चुकू डोम और ओबीसी के गुरुचरण दास को सश्रम आजीवन कारावास मिली थी! जबकि ओबीसी के ही मान सिङ को आजीवन देश निकाला दिया गया था!

इनके अतिरिक्त और कई नाम हो सकते हैं, जो अंग्रेजी दस्तावेजों में दबे रह गए हैं!

पर उपरोक्त शहीदों के नाम की मौजूदगी बताती है कि हूल में संतालों के साथ-साथ उस क्षेत्र में रहने वाले गैर-संताली लोगों की भी बड़ी हिस्सेदारी थी !

जिसमें सिद्धू-कान्हू समेत 20 हजार आदिवासी बहुजन लोग शहीद हुए!

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दैनिक जागृत भारत

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