महाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठसामाजिक / सांस्कृतिक

प्रथम तीन व्यक्ति जो बुद्ध की धम्म देशना प्राप्त करने से वंचित रह गए, वे है-


1) आलार-कालाम
2) उद्क-रामपुत्त
3) उपक आजीवक

बुद्ध ने सम्यक सम्बोधि प्राप्त होने के बाद सात सप्ताह बोधिवृक्ष के आसपास सम्बोधि सुख का अनुभव लेते हुए ध्यान में बिताए।

  • प्रथम सप्ताह वज्रासन पर,
  • दूसरा सप्ताह अनिमेष लोचन स्थान पर,
  • तीसरा सप्ताह बोधिवृक्ष के पास चंक्रमण किया,
  • चौथा सप्ताह रतनघर स्थान पर बिताया,
  • पांचवा सप्ताह अजपाल निग्रोधवृक्ष स्थान पर,
  • छट्ठा सप्ताह मुंचलिंद नाग स्थान पर,
    और सातवा सप्ताह राजायन वृक्ष तले बिताया ।

ऐसे सात सप्ताह बिताने के बाद बुद्ध के मन में हुआ- मैं पहले किसे इस धम्म की देशना (उपदेश) करूं, इस धम्म को शीघ्र कौन जानेगा? फिर बुद्ध के मन में विचार हुआ- यह आलार- कालाम पंडित,चतुर मेधावी चिरकाल से निर्मल चित्त है, मैं पहले क्यों न आलार-कालाम को ही धम्म उपदेश दूं? वह इस धम्म को शीघ्र ही जान लेगा। बुद्ध ने बोधिचित्त से देखा कि आलार-कालाम को मरे हुए एक सप्ताह हो गया है।

तब बुद्ध के मन में हुआ- यह उद्क- रामपुत्त पंडित, चतुर मेधावी, चिरकाल से निर्मल चित्त है, क्यों न मैं पहले उद्क-रामपुत्त को ही धम्मोपदेश करूँ? वह इस धम्म को शीघ्र हो जान लेगा। बुद्ध ने जब बोधिचित्त से देखा तो यह पाया कि उद्क-रामपुत्त अगली रात को ही में मर गया है।

आलार-कालाम और उद्क – रामपुत्त दोनों के मरण होने से बुद्ध की धम्म देशना प्राप्त करने से वंचित हो गए।

फिर बुद्ध को पंचवर्गीय परिव्राजको का स्मरण हुआ। उन पंचवर्गीय परिव्राजक- कोंडिन्य, वप्प, भद्दिय, महानाम और अस्सजित, बोधिसत्व गौतम को छोड वाराणसी इसिपत्तन मृगदाय चले गए थे। बुद्ध के मन में हुआ- उन पंचवर्गीय परिव्राजको ने मेरी खूब सेवा की थी। मेरे बहुत काम करनेवाले थे। क्यों न मैं उनको ही धम्मोपदेश दूं? बुद्ध ने बोधिचित्त से देखा कि वे पंचवर्गीय परिव्राजक वाराणसी के इसिपत्तन मृगदाय में विहार कर रहे है।
तब बुद्ध उरूवेला में इच्छानुसार विहार कर जिधर वाराणसी है, उधर चारिका के लिए निकल पडे। वर्तमान बोधगया और गया के बीच बुद्ध को रास्ते में उपक नाम के
आजीवक से भेंट हुई। बुद्ध को देखकर उपक ने बुद्ध को कहा-
आयुष्मान तेरी इन्द्रियां प्रसन्न है, तेरी कांति परिशुद्ध तथा उज्जवल है। किस को गुरू मानकर, हे आवुस! तू प्रव्रजित हुआ है? तेरा गुरू कौन है? तू किस के मत को मानता है?
यह सुनकर बुद्ध ने उपक आजीवक को कहा-
मैं बुद्ध हूँ।
मेरा कोई गुरू,आचार्य नही है।
मैं संसार में अर्हंत हूँ।
मैं सम्यक सम्बुद्ध हूँ।
मैं निर्वाण को प्राप्त हूँ।
धम्म का चक्का घुमाने के लिए काशियों के नगर जा रहा हूँ।
वहां अंधे हुए लोक में अमृत-दुन्दुभी बजाऊंगा।

बुद्ध के उत्तर को सुनकर उपक बोला- आयुष्मान! तू जैसा दावा करता है, उससे तो अनंत जिन हो सकता है। मेरे जैसे ही आदमी जिन होते है,जिसके कि चित्तमल नष्ट हो गए है।

बुद्ध ने कहा-
मैंने बुराईयों को जीत लिया है, इसलिए हे उपक! मैं जिन हूँ।

ऐसा कहने पर उपक आजीवन बोला- होंगे, आवुस! कह, शिर हिला, बेरास्ते चला गया।
ऐसे तीसरा आदमी भी बुद्ध की धम्म देशना सुनने से वंचित हो गया।
बुद्ध की देशना, बुद्ध से सुनने के लिए पारमी का होना आवश्यक है। उन तीनों की पारमी उस लायक नही होगी इसलिए वे तीनों बुद्ध से धम्म देशना सुनने से वंचित हो गए।

आज भी सभी लोग बुद्ध वचन को नही सुन पाते है। बुद्ध वचन, बुद्ध दर्शन को सुनने के लिए व्यक्ति में कुछ पारमी होना चाहिए। जो बुद्ध के वचन को सुनते है, बुद्ध के बताए मार्ग पर चलते है वे निश्चित ही सुख पाते है। जीवन सुख और शान्ति से बितता है, मृत्यु भी मंगल होता है। जो लोग परियत्ति, पटिपत्ति और पटिवेधन के धनी है, वे निर्वाण प्राप्त होते है।

संपूर्ण महाराष्ट्रातील घडामोडी व ताज्या बातम्या तसेच जॉब्स/शैक्षणिक/ चालू घडामोडीवरील वैचारिक लेख त्वरित जाणून घेण्यासाठी आमच्या व्हाट्सअँप चॅनलला Free जॉईन होण्यासाठी या लिंकला क्लीक करा

तसेच खालील वेबसाईटवर Click करा
दैनिक जागृत भारत

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: कृपया बातमी share करा Copy नको !!