
(जन्म : 15 मार्च, 1934) के उपलक्ष्य मे उन्हें कोटी-कोटी नमन और आप सभी को हार्दिक बधाइयाॅ॑!!
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*♦️"कहीं हम भूल न जायें"♦️*
इस अभियान के अंतर्गत
कांशीरामजी ने हमे महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपती शाहूजी महाराज और बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर इनके द्वारा चलाये गये मुव्हमेंट की और देखने और सोचने का अलग नजरियां दिया|
🔵जैसे, बाबासाहेब को जानने वाला समाज, बाबासाहेब को मानने वाला समाज और बाबासाहेब की बात को मानने वाला समाज🔵
भारत मे लाखो-करोडो लोंग बाबासाहेब को जानने और मानने का दावा करते है, रोज जय भीम भी बोलते है, अपने घरों में बाबासाहेब का फोटो भी लगाते है| बाबासाहेब के पुतले भी जगह-जगह लगाते है| यह सब जरूरी भी है| पर क्या सिर्फ जय भीम बोलने से, फोटो लगाने से और पुतले लगाने से हम बाबासाहेब के मुव्हमेंट को उसकी मंजिल तक ले जा सकते है, जहां बाबासाहेब की चाहत थी, की यह मुव्हमेंट पहुंचे? नही, कदापि नही! बाबासाहेब ने खुद कहा था के मुझे अंधे भक्त नही चाहीये जो केवल मेरा जय-जयकार करते रहे, बल्की मुझे अनुयायी चाहीयें, जो मेरे कार्य का अनुकरण करे| मेरी दृष्टि में महत्वपूर्ण है उस बात के लिए जी-जान से कोशिश करें। जो इस बात को कभी नही भूले की हमारा मकसद क्या है? इसी संदर्भ मे २४-९-१९४४ को मद्रास मे बाबासाहेब ने कहा, “जाओ और अपने घरों की दिवारो पर लिख़ दो के हमे इस देश का हुक्कमरान बनना है”। कांशीरामजी ने इसी कडी को जन-जन तक पहुंचाया|
🔷 बाबासाहेब द्वारा कहीं बातों का अध्ययन और उस दिशा में मार्गक्रमण🔷
4-10-1945 को पूना यहां पर बाबासाहेब डॉ आंबेडकर चुनाव प्रचार की सभा में कहते हैं, “मैं तुम्हें बार-बार कहते आया हूं की हमें राजनीतिक सत्ता मिले बगैर हमारा सामाजिक एवं धार्मिक सुधार/प्रगती होना नामुमकिन है। हमें यदी समता और स्वातंत्र्य चाहिए होगी, हमें यदी इज्जत से जीना है, हमारी उन्नती करनी होगी तो इस देश को मिलने वाली सत्ता में हमने हिस्सेदारी हासिल करनी ही चाहिए। राजनीतिक सत्ता यह एक प्रभावी शस्त्र है। इस शस्त्र को हमने सबसे उपर (इश्वर समान) मानना चाहिए। हमने इस हथियार की पुजा करनी चाहिए, ताकी इस हथियार का इस्तेमाल/उपयोग हमें अपने दुश्मनों पर करते आयेगा। यह हथियार मिलाना आनेवाले चुनाव पर निर्भर है। इसलिए आने वाले चुनाव हमारे जीवन-मरण का संग्राम है। इस चुनाव पर हमारे जीवन-मरण का प्रश्न निर्भर है। इस जीवन-मरण के भयानक युद्ध में हमने विजयी/सफल होनाही चाहिए। यह युद्ध जीतने के लिए हमने उचित तैयारी करनी ही चाहिए।
🔷 छोटे साधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल🔷
पढे़-लिखें कर्मचारीयों को भी संगठीत करके अपनी जिम्मेदारी का एहसास दिलाया के सिर्फ जय-जयकार करने से जित नहीं होगीं, जितने के लिये काम करना पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी, सॅकरीफाईस करना पडेगा (कुर्बाणी देनी पडेगी), किसी को कम किसी को ज्यादा, पर देना तो पड़ेगा, तब कही जाकर के साधन युक्त समाज के खिलाफ साधन हिन समाज की विजय हो सकती है|
🔵 अपनी कमाई का बिसवां हिस्सा (५%) मुव्हमेंट के लिये दे🔵
इसके लिये हमें बाबासाहेब की बात को मानना पडेगा| हमे साधन निर्माण करने होंगे, हमे अपनी कमाई का कमस-कम २० वा हिस्सा इस मुव्हमेंट को आगे बढाने हेतु देना होगा, और हम लोग देखते है के कांशीरामजी ने पहले खुद अपनी सारी जमा-पुंजी और फिर अपनी पुरी जिंदगी इस मुव्हमेंट के लिये अर्पण कर दी |
🔷 जान देने की बजाय जिंदगी दे:- 🔷
इससे हमे और एक सबक मिलता है, के जैसे हम लोगों ने देखा के कुछ 25-27 वर्षा पुर्व एक पुतले की कुछ असामाजिक तत्वो द्वारा विटंबना की गयी| हमारे लोगों ने आरोपी को शिक्षा हो इस लिये बहुत विरोध-आंदोलन किये, एक व्यक्ती ने आत्मदाह भी किया| इस तरह उसने बाबासाहेब के सम्मान मे अपनी जान दे दीं| हम उसकी भावनाओं और बलिदान की कद्र करते है और उसे सलाम करते है| पर यहां हमे यह भी याद रखना चाहीये के बाबासाहेब ने यह भी कहा था , ‘In which direction you are marching is important than the distance covered” तो उपरी घटना से मुव्हमेंट कितना आगे बढी़ यह भी हमने सोचना जरूरी है| तो जान देने की बजाय यदी हम जिंदगी मुव्हमेंट के लिये कुर्बान कर दे तो बात आगे बढ़ सकती है|
🔵 अध्ययन किसी मकसद के लिये होता है, कही अध्ययन ही मकसद बनकर न रह जाये 🔵
महाराष्ट्र मे बाबासाहेब को जानने और मानने वाले लोगों के संदर्भ मे कांशीरामजी ने कहा था, यहा बहुत पढ़े-लिखें, होशियार और ज्ञानि लोग रहते है| इन्होने बाबासाहेब को भी बहुत पढा़ है| कुछ एक ने तो बाबासाहेब पर Ph.D. भी कर ली| नागपुर के एक संस्थान मे तो कुछ कर्मचारीयों ने बाबासाहेब आंबेडकर अध्ययन मंडल की भी स्थापना कर ली| पर मै जब देखता हुं के ये अध्ययन मंडल वाले और बाकी सारे जानकार लोग काम क्या कर रहे है, तो मुझे बड़ा दुःख होता है, के यह लोग तो अपनी बीबी-बच्चे पालने में लगे हैं| घर बनाने में, घर बन गया हो तो उपर एक और खोली निकालने मे लगें हैं, बच्चो को सेटल कराने में लगे है| तो फिर मै सोचता हु की घर बनाने के लिये, खोली निकालने के लिये, बच्चो को सेटल करने के लिये अध्ययन की क्या आवश्यक्ता है, यह सब काम तो बगैर अध्ययन के भी हो सकता हैं| यदी आप कुछ अध्ययन कर रहे हो तो उसका कुछ मकसद भी होना चाहीये, कहीं अध्ययन ही मकसद बनकर न रह जाये| तो मैने अपने साथी से पुछा, नागपुर के अध्ययन वालो का अध्ययन संपला के नहीं संपला, यदी अध्ययन संपला होगा तो कुछ काम भी किया जाये|
🔷 “होऊ शकत नही” की लहर का मुकाबला- “होऊ शकत है”, की लहर से किया 🔷
बाबासाहेब के जाने के कुछ ही वर्षो बाद उनके फॉलोअर्स कॉग्रस में जाने लगे और मुव्हमेंट के साथ एखाद-दो सिटों के लिये समझोते करने लगे| मै उन नेताओं से मिलने लगा और उनसे कहने लगा के भाई आप अच्छा काम कर रहे थे, फुले-शाहू-आंबेडकर की मुव्हमेंट अच्छी मुव्हमेंट है आपको यही काम करते रहना चाहीये| तो वह मुझसे कहते थे, की मुव्हमेंट तो अच्छी है पर अपने बलबुते कामयाब होऊ शकत नाही तो मै उनसे पुछता के कामयाबी का क्या मतलब है? तो वे कहते के फुले-शाहु-आंबेडकर का नाम लेकर हम लोगं MLA/MP नहीं बन सकते| तो मैं कहता क्या चुनकर आना मुव्हमेंट चलाने से ज्यादा जरूरी है? तो वह कहते के हम यदी चुनकर नही आयेंगे तो जियेंगे कैसे, हमे दुसरा कुछ काम भी नही आता, और हमरे ईर्द-गिर्द जो लोग है (चमचो के चमचे) तो हम उन्हें कैसे पालेंगे? मैने उनसे कहा के फुले-शाहू-आंबेडकर की मुव्हमेंट यह अच्छी विचारधारा है और यह चलती रही तो लोग चुनकर भी आने लगेंगे और मुझे पुरा भरोसा है के हम सरकारे भी बनाने लगेंगे| पर अपने आपको बाबासाहेब के बच्चे कहने वालो ने मेरी बातों पर भरोसा नही किया और बाबा-बाबा कहते-कहते बापु के पैरों पर जाकर गिरते रहे और समाज में होऊ शकत नही की लहर पैदा कर दी| तो मैने भी होऊ शकत नही की लहर का मुकाबला करने के लिये लोगों को संगठीत करना शुरू कर फुले-शाहू-आंबेडकर की विचारधारा अच्छी है और कामयाब “होऊ शकते है” यह विश्वास लोगों में पैदा करना शुरू कर दिया| महाराष्ट्र के लोगों ने पहले मेरी बात को हवा मे उड़ा दिया पर जब मैने उत्तर भारत मे बहुजन समाज को तयार करके जब मेरे MP/MLA चुनकर आने लगें और ख़ास तौर पर जब उत्तर प्रदेश मे हमारी सरकार बनी तो फिर महाराष्ट्र के लोगं भी मानने लगे की फुले-शाहु-आंबेडकर की मुव्हमेंट कामयाब होऊ सकत है|
🔵 सरकार कि नितीयों के विरूध्द संघर्ष करने की बजाय चुनाव में सरकार के विरूध्द लड़ो और जीतो ! 🔵
जब सन १९९१ मे भारत की सरकार द्वारा नयी आर्थिक निती अपनायी गयी, जिसके तहत भारत में निजीकरण, उदारीकरण और जागतीकरण स्विकारा गया, जिसके तहत फिर सरकारी महकमो का भी बड़े पैमाने पर निजीकरण होना था जिसका सिधा प्रभाव फिर बहुजन समाज के आरक्षित नौकरियों पर होने वाला था| तो किसी कार्यकर्ता ने कांशीरामजी से कहा, के सहाब हमे इसके खिलाफ सरकार के विरूध्द आंदोलन करना चाहीये| तो कांशीरामजी ने उससे पुछा के क्या कभी इस देश मे राष्ट्रीयकरण भी हुआ है? तो उन्होंने जवाब दिया हा सन १९६९ मे १४ बॅऺको का और फिर सन १९८० मे ६ और बॅंकौ का राष्ट्रीयकरण श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था| तो कांशीराम जी ने कहा, इससे साफ जाहीर होता है के सरकार ही निजीकरण या राष्ट्रीयकरण कर सकती है | तो जब दोनो ही चिजे सिर्फ सरकार ही कर सकती है तो सरकार का विरोध करने के लिये शक्ती खर्च करने के बजाय हम अपनी शक्ती को सरकार बनाने के लिये क्यों ना खर्च करे? और फिर जो चाहे पॅलिसी हम स्विकार कर सकते है और बड़े पैमाने पर राष्ट्रीयकरण कर सकते है।
🔵 Power is Product of Struggle🔵
कांशीरामजी ने हमें संघर्ष की दिशा बतायी। उन्होंने हमें Wrong संघर्ष (दिशा हिन संघर्ष/आंदोलन) करने से रोका, जब की मनुवादीयों ने हमेशा हमारे समाज को आंदोलन के नाम पर गलत संघर्ष करने के लिए उकसाया और उसी में उलझाकर रखा। कांशीराम जी ने हमें सत्ता के लिए संघर्ष करना सिखाया और सत्ता बगैर संघर्ष के नहीं मिलती उसके लिए एक फार्म्युला भी दिया,
NDS = Change (सत्ता परिवर्तन)
(Where N=Need (ज़रूरत), D=Desire (चाहत), S=Strength (ताकद))
🔷 कांशीरामजी द्वारा बाबासाहब के अनुयायीयों को संकल्प दिन के रूप मे मुव्हमेंट को कामयाब करने हेतु संकल्प करने की अपिल🔷
६ डिसेंबर, १९७३ को बामसेफ इस संगठन का बिजारोपन हुआ और ६ डिसेंबर, १९७८ याने ५ वर्ष की गर्भधारना के बाद बामसेफ का जन्म दिल्ली मे हुआ| कांशीरामजी कहते थे बाबासाहेब बहुत महान थे और उनके द्वारा चलाया गया मुव्हमेंट का काम भी बहुत महान था| ६ डिसंबर १९५६ को बाबासाहेब यह काम छोड़कर हममें से चले गये| तो जिस दिन बाबासाहेब इस मुव्हमेंट को छोड कर चले गये, उनके अनुयायी होने के नाते, उसी दिन हमने इस कारंवा को मंजिल तक पहुचाने का संकल्प करना चाहीये| इसी लिये बामसेफ यह जो की कर्मचारीयों का संगठन है, जो बहुजन समाज के कर्मचारीयों द्वारा चलाया जायेगा लेकिन कार्य समाज की उन्नती के लिये और बाबासाहेब की मुव्हमेंट को लॉजिकल ऐंड तक ले जाने के लिये करेगा|
💥बाबासाहेब के बाद केवल कांशीराम साहेब, बाबासाहेब द्वारा कहीं गई इन बातों 👇🏻👇🏻पर खरे उतरने वाले एकमात्र व्यक्ती है। 💥
(संदर्भ नीचे दिए गए है।)
🔶 “मेरा सन्देश है संघर्ष और अधिक संघर्ष, त्याग और अधिक त्याग। त्यागो और संघर्षों को न गिने तो यह केवल संघर्ष और संघर्ष ही है, जिससे उन्हें मुक्ती प्राप्त होगी और किसी अन्य चीज़ से नहीं।”
🔶 “धन्य है वे, जो उन लोगों को ऊपर उठाने के अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक हैं, जिनके बीच वे पैदा हुए हैं, धन्य हैं वे लोग, जो दासता के प्रतिरोध के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए अपने दिनों का पुष्प, अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति और अपना अल्पांश देने की शपथ लेते हैं। धन्य हैं वे, जो यह संकल्प लेते हैं कि चाहे अच्छा हो या बुरा, चाहे धूप हो या तूफान, चाहे सम्मान मिले या अपमान – वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक दलित (बहुजन) लोग पूर्ण रूप से अपने पौरुष को पुनर्प्राप्त नहीं कर लेते।”
🔶 “मै आपको केवल एक सन्देश दे सकता हूँ और वह यह है कि कष्ट और अधिक कष्ट। सिवाय कष्ट के और कोई माध्यम नहीं हो सकता और आपको इसलिए निराश नहीं होना चाहिए कि कुछ गाँवो में हमारे लोगों ने कष्ट उठाए हैं और वे घोर संकटों से गुजर रहे हैं। हमें अपने काम में संकल्प के साथ लगना होगा और संगठित होने का निर्णय करना होगा। इस देश में कष्टों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है… “
(🔶 बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर द्वारा कही गई बाते 👆🏻👆🏻 संदर्भ : नानक चन्द रत्तू द्वारा लिखित किताब, ” डॉ. बी. आर. अम्बेडकर संस्मरण और स्मृतियाँ, पुष्ठ संख्या 114 और 115)
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मान्यवर कांशीरामजी साहब की 91वीं जयंती के उपलक्ष्य में फिर एक बार उन्हें🙏🏻💐कोटी-कोटी नमन💐🙏🏻 और आप सभी को हार्दिक मंगलकामनाएं!!
🙏🏻जय भीम- जय कांशीराम- जय भारत🙏🏻
- ॲड. अतुल पाटील, नागपूर
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