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“मां”

कहीं भी हो, दुआ बनकर हमेशा साथ रहती है,
कहीं दुनिया के मेले में मुझे खोने नहीं देती है।

जवान बेटे ने बूढ़ा कर दिया है मुझे वक़्त से पहले,
मगर एक माँ है, जो मुझे बड़ा होने नहीं देती है।

मेरी ठोकर पे उसके सजदे का साया रहता है,
मुझे गिरने से पहले ही सँभाल लेती है।

उसकी ममता की ठंडक में सुकून मिलता है,
दुनिया की हर तपिश से मुझे बचा लेती है।

उसकी आँखों में जो ख्वाब पलते थे मेरे लिए,
आज भी मां की दुआओं में वो जगमगा देते हैं।

मैं सफर में कहीं भी रहूँ, पास तेरा एहसास होता है,
मुझे हर मुश्किल से आगे बढ़ा देता है।

हर रोज फतह की सीढीया चढ़ता हूं,
तब भी ऊंचाईयों का एहसास होता नहीं है।

जब तेरे कदमों पर सजदा करता हूं,
तब असमानों से भी ऊंचा मेरा सर लगता है।

कहीं भी हो, दुआ बनकर हमेशा साथ रहती है,
कहीं दुनिया के मेले में मुझे खोने नहीं देती है।

-कांबलेसर, बदलापुर ठाणे

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