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BRICS (ब्रिक्स) संमेलन-अशोक सवाई

(आंतरराष्ट्रीय)

हम ब्रिक्स क्या चीज है इसे पहले समझ लेते है। BRICS का ये जो इंग्लिश स्पेलिंग है, वो ब्राझील से आद्याक्षर B लिया गया, रूस से आद्याक्षर R लिया, इंडिया का पहला अक्षर I लिया, वैसे ही चायना से C और साऊथ आफ्रिका से S लिया। इस तरह यह BRICS (ब्रिक्स) हो गया। ब्राझील, रूस, इंडिया, चायना और साऊथ आफ्रिका यह पांच देश ब्रिक्स संघठन के फाउंडर मेंबर्स है। इसकी स्थापना सन 16 जून 2009 में हुयी। याने की डॉ. मनमोहन सिंग के सत्ता काल में। ब्रिक्स का गठन इस मक़सद के लिए किया गया की, आंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर जो पश्चिमी शक्तीयों का प्रभुत्व है उसे कम किया जाए। और उस संस्थानों में समान रूप से हमारी (ब्रिक्स सदस्य की) भी भागीदारी हो। इसके बाद धीरे धीरे सन 2024 में इस में ईरान, मिस्त्र, इथियोपिया, और 2025 में सयुक्त अरब अमिराती और इंडोनेशिया शरीक हुए। अब इसका नाम ब्रिक्स + (प्लस) रखा गया।

इस साल याने की 2025 में ब्रिक्स संमेलन का आयोजन ब्राझील ने किया। इस में रूस के ब्लादिमीर पुतीन और चायना के शी जिनपिंग अनुपस्थितीत रहे। उन्होने अपने अपने प्रतिनिधीयों को ब्राझील भेज दिया। इस संमेलन में हमारे बडे साहब और बाकी देशों के प्रतिनिधी शरीक हुए थे। संमेलन में मुख्य रूप से तीन बडे निर्णय लिए गये 1) ईरान पर इस्रायल द्वारा जो पहला हमला किया इसके लिए अमरीका और इस्रायल का मुख़ालिफ़ किया जाए। यह निंदा प्रस्ताव ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची की ओर से रखा गया था। 2) अमरीका द्वारा ब्रिक्स के सदस्य देशों पर पाबंदीयाॅं लगाने का विरोध। और 3) डाॅलर की जगह सदस्य देश अपने लोकल करंसी पर व्यापार करने का प्रस्ताव। लोकल करंसी जैसे ब्राझील की रियल, रूस की रूबल, भारत की करंसी भारत का रुपया, चायना की युआन, और साऊथ आफ्रिका की रॅंड (झार) इस आपसी करंसी में ट्रेड या व्यापार किया जाए। इस से डॉलर के मुकाबले में व्यापार सुलभ और सस्ता हो जाए। Diclaration पर सभी सदस्योंने हस्ताक्षर किए। और हमारे साहब ने भी। असल में हमारे जहाॅंपनाह इस से कुछ असहज की स्थिती में होंगे। 56 इंच के सीने की धडकने तेज हुयी होंगी। क्यों की इस डिक्लॅरेशन में खुले आम अमरीका और इस्रायल का याने की, सीधा सीधा डोनाल्ड ट्रंप और बेंजामिन नेतान्याहू का मुख़ालिफ़ था। लेकिन प्रधानमंत्री ओर विदेश मंत्री कार्यालय के जो उच्चतम अधिकारी थे उन्होने प्रस्ताव के एक एक शब्द का अर्थ जानकर और परिस्थिती का आकलन करके प्रधानमंत्री को प्रस्ताव पर दस्तख़त करने के लिए आग्रह किया होगा। क्यों की आदरणीय ट्रंपजी को जितनी हिंदी समझती है, उतनी ही हमारे दिल्ली तख्त के आलमगीर को अंग्रेजी समझ में आती है। फिर भी हमारे साहब ने ईरान के पक्ष मे हस्ताक्षर करके सराहना वाला काम किया।

इसके पहले भी SCO = Shanghai Co-operation Organization (संघाई सहयोग संघठन) की ओर से इस्रायल के मुख़ालिफ़ में प्रस्ताव आया था लेकिन हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हमारा इससे कोई संबंध नही कहकर हात उपर कर दिए थे। इससे ईरान नाराज हुआ था।

            ईरान जैसा एकलौता मुस्लिम मुल्क कश्मीर मुद्दे पर शुरू से ही हमेशा भारत के साथ रहा। उसने युनो में भारत के किसी भी मुद्दे पर भारत का साथ नही छोडा। यह ईरान की खासियत रही। ईरान सस्ते से सस्ता हमे तेल और गॅस मुहियां करता आ रहा, जिससे हमारे अर्थ नीती में मजबूती आयी थी। (२०१४ से पहले) आज भी ईरान जंग के जद्दोजहद्द में उलझा होकर भी भारत को सस्ता तेल और उपरसे तीन महिने का क्रेडिट देने के लिए तयार है। सिर्फ भारत ने तहे  दिल से ईरान के साथ हात मिलाने की जरूरत है। जो पहले की सरकार करती आ रही थी। ईरान भारत का एक सच्चा साथी रहा और है। अगर भारत और ईरान व्यापारी दृष्टीकोन से साथ आते है तो इस में भारत की आवाम का भला होकर उनको महंगाई से थोडी राहत मिल सकती है। अतीत में भारत और ईरान के संबंध कैसे रहे इसपर हम पहले ही 'इस्रायल - ईरान युद्ध' इस आर्टिकल में लिख चुके है। अमरीका ऐतबार करने के लायक ना पहले कभी था ना आज है। फिर भी आज भारत जैसा न्युट्रल और सभ्यता के लिए जाने जाना वाला देश अमरीका के चंगुल में कैसे और क्यों फस गया पता नही। या फिर हमारी विदेश नीती फेल हो गयी। विदेश मंत्रालय ने इसपर गंभीर रूप से चर्चा करने की जरूरत है। 

            इस संमेलन में और भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुयी थी। जिस में हमारे साहब ने पहेलगाम नरसंहार हमले की पाकिस्तान का नाम लिए बिना इशारो इशारों में कडी निंदा की थी। पाक को आईना दिखाया और साथ में चायना को भी कडा संदेश दिया। लेकिन गोदी मिडिया के विश्वगुरू ने खुलेआम पाकिस्तान का नाम लेने की हिंमत नही दिखायी। क्यों की पाक अमरीका की गोद में जा बैठा है और अमरीका ने उसे  UNSC = United Nation Security Council (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) का अध्यक्ष बनाया है यह बीजेपी के आला कमान और हमारे मुल्क के शहेनशाह को पता था। इसके ठीक उल्टा ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हिंमत दिखाकर खुलकर निंदा प्रस्ताव में अमरीका और इस्रायल का  नाम  लिया। तो हुजूर यह होती है विदेश नीती में कुटनीती। आखिर में सभी प्रतिनिधीयों के फोटो शूट हुये। हमारे बादशहाओं के बादशहा, हमारे मुल्क की आवाम के रहनुमां, जहाॅंपनाह, उनके  सल्तनत के सुलतान और गोदी मिडिया के परम विश्वगुरू उनके राजपाट के राजे, राजश्वर, राजाधिराज फोटो शूट के लिए सबके बिचोबिच खडे थे। खैर! 

            ब्रिक्स के सदस्यों का सांझा फोटो जैसे ही व्हायरल हुवा हमारी गोदी मिडिया का सीना हद से ज्यादा चौडा  हुवा। या उनको करना पडा। फिर क्या? हर गोदी चॅनेल पर ब्रेकिंग न्यूज की झडी लग गयी। देखो देखो ब्रिक्स के सदस्योंने हमारे विश्वगुरू को सबके बिच में सम्मानपूर्वक जगह दी। और आलमगीर के लिए बेसुमार कशिदे पढने लगी। बाकी न्युज में हमारे विश्वगुरू ने पाकिस्तान को कडा संदेश दिया और चायना को  आईना दिखाया। पाकिस्तान और चायना घुटनों पर आए वगैरा वगैरा। गोदी मिडिया खूशी के आलम की धांधली में उल्टी ख़बरे चलाने लगी। बल्कि होना यह चाहिए था की पाकिस्तान को आईना दिखाया और चायना को कड़ा संदेश दिया। भै गोदी मिडिया का क्या कहना? वो... एसी रूम में बैठे बैठे चंद्रमा पर कितनी बारीश हुयी है इसका भी अनुमान लगा सकती है।  हमारे हुजूर सबके बिचोबिच खडे  थे तो इसकी महत्त्वपूर्ण न्युज  सारे मुल्क को जो देनी ही थी। तो गोदी चॅनेल ने यह काम बडी 

इमान-ए-एतबार से किया। लेकिन अक्ल के अंथे ॲंकरो और ॲंकरनीयाॅं को यह पता नही की साहब को बिचोबिच जगह क्यों दी? उसका कारण यह है की फोटो शूट के लिए पहले ब्राझील का प्रतिनिधी खडा हुआ, उसका बगले में रूस का प्रतिनिधी फिर भारत के रहनुमां उनके बाजू में खडे हुए, फिर चायना का प्रतिनिधी उसके बाद आखिर में साऊथ आफ्रिका का प्रतिनिधी खडा हुआ। इसका कारण यह है की, इस क्रमवारी से ब्रिक्स का स्पेलिंग प्रतित होता है। तो यह सही कारण है हमारे साहब बिचोबिच खडे होने का। इसके पिछे वे विश्वगुरू होने का कारण नही था। और ना ही दुनिया की नजररों मे वे विश्वगुरू है। बल्कि विश्वगुरू क्या चीज है इसका पता भी उनको नही होता। आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ इतना माना जाता है की, हमारे प्रधानमंत्री बुद्ध की धरती से एक सबसे बडे लोकतांत्रिक देश के प्राइम मिनिस्टर है। यह है सही कारण अरे गोदी ॲंकरों थोडासा तो अपने अक्ल का प्रयोग किया करो। पत्रकारिता की थोडीशी तो शर्म किया करो। लाज रखो बे पत्रकारिता की। खैर!
उसके बाद ब्रिक्स के जो नये सदस्य बने वो आधे ब्राझील के प्रतिनिधी के बाजू में और आधे साऊथ आफ्रिका के प्रतिनिधी के बगल में खडे हुए। तो यह बन गया ब्रिक्स प्लस। आंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी संस्थानों का, किसी संघठनों का अपना एक प्रटोकाॅल होता है, नियम होता है। उन्ही के अनुसार उनकी गतिविधीयाॅं चलती है। ब्रिक्स संमेलन खत्म होते ही हमारे प्रधानमंत्री ने छोटे छोटे देशों का दौरा किया पता नही क्यों। जो बहुतांश लोग उन दशों का नाम तक नही जानते। ऐसे छोटे देश हमारे साथ ना व्यापार करने की क्षमता रखते है और ना ही किसी प्रकार का निवेश कर सकते है। फिर हमारे प्रधानमंत्री ने ऐसे देशों का दौरा किया ही क्यों? हिंदी के बडे बडे पत्रकार ऐसे सवाल उठावे लगे।

            दिपक शर्मा के युट्युब चॅनेल पर भूतपूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा की एक मुलाखत हयी थी, उस में सिन्हा से बडा तल्ख सवाल पुछा की साहब ये बताइए की, हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप भारत को इतना जलील इतना बेइज्जत क्यों कर रहे है? हमारे नागरिकों के हातों में हथकडी पैरों  में बेडी डालकर बडा जलील करके भारत लौटा दिया। इस पर हमारे प्रधानमंत्री खामोश रहे। चुनाव जीतने के बाद ट्रंप की ताजपोशी पर भारत के प्रधानमंत्री को न्योता नही दिया। बडी मिन्नतों के बाद विदेश मंत्री को बुलाया गया। प्रधानमंत्री खामोश थे। कॅनडा के  G-7 में ट्रंप आधी मिटिंग छोडकर वापस लौट गये। जाते जाते हमारे प्रधानमंत्री को कहांं की, पाकिस्तान आर्मी के जनरल आसिफ मुनीर को हमने खाने पर बुलाया तो आप भी आइए। ये हमारे प्रधानमंत्री और भारत का घोर अपमान था। फिर भी प्रधानमंत्री खामोश। लब्जों से विरोध का थोडा भी स्वर नही सुनाई दिया। पल पल हमारे प्रधानमंत्री और भारत का डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपमान हो रहा। फिर भी भारत चुप, दिन ब दिन अमरीका भारत पर नाजायज टेरीफ पर टेरीफ लगाता जा  रहा है फिर भी हमारे प्रधानमंत्री खामोशी के आलम में डुबे जा रहे है आखिर क्या कारण हो सकता है साहब इस खामोशी के पिछे? जरा बता तो दिजिए। ॲंकर दिपक शर्मा ने बडा तल्ख सवाल किया। तब सिन्हा बोले इसके पिछे इस्रायल का पेगासस वाला जासूसी उपकरण हो सकता है। हो सकता है उस उपकरण द्वारा ट्रंप ओर नेतान्याहू ने प्रधानमंत्री की कोई दुखती रग पकड ली हो और वे जब चाहे तब उस दुखती रग को दबा भी सकते है। ऐसे में प्रधानमंत्री को अपनी खुर्ची बरकराकर रखना बहोत मुश्किल होगा, बहोत ही मुश्किल... ऐसा धक्कादायक और चौकाने वाला सिन्हा ने जवाब दिया। हम फिर एक बार कहना चाहेंगे यह भूतपूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा के बोल है हमारे नही। तो सिन्हा की मुलाखत में ऐसा खुलासा हूआ है साहब। हमारे प्रधानमंत्री के मन में बडी कश्मकश चल रही होगी। आखिर वे हमारे प्रधानमंत्री है। अगर बाहर की शक्तीयाॅं हमारे प्रधानमंत्री को ब्लॅक मेल करना चाहती है तो हमें प्रधानमंत्री के साथ खडा होना चाहिए भलेही हमारा अंदरूनी मामला कुछ भी हो। इस वक्त भारत की इज्जत पर कोई आंच नही आनी चाहिए। यही हमारी मनोकामना है और होगी। 

अशोक सवाई.

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