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इज़रायल – इराण युद्ध, एक गंभीर चर्चा- अशोक सवाई

तीसरा विश्व युद्ध?

हम इस विषय के विशेषज्ज्ञ नही, लेकिन जो भी जिस विषय पर लिखना चाहता है उस विषय की उसे थोडीबहुत जानकारी होती ही है। और होनी भी चाहिए। देखिए कोई भी युद्ध पारंपरिक चाकू-सुरीयाॅं, तलवार का हो या फिर आज के सामरिक हथियार का। जैसे की हायपर सुपर सोनीक मिसाइल, ड्रोन या सुपर फायटर जेट द्वारा लडा गया हो। यह बिलकुल भी मानवी हित में नही होता। इस में बडी तादाद में मानवी जानमाल की हानी तो होती ही है साथ साथ इससे किसी भी देश की अरबो-खरबो की, या युं कहिए कल्पना से परे वित्तीय हानी होती है। वो देश करीब करीब दिवालियाॅंपन का शिकार हो जाता है। फिर उसको रिकव्हर करने के लिए उस देश को कही साल लगते है। इससे वो देश कही साल पिछे ढकेल दिया जाता है। इस लिए किसी भी तरह के युद्ध से बचना चाहिए। अगर किसी प्रकार की कोई समस्या हो, आपत्ती हो तो उसे आपसी विचार विमर्श, वार्तालाप, चर्चा से हल करना चाहिए यही रास्ता बेहतर है। खैर!

उक्त युद्ध के मुख्य भूमिका में है इज़रायल, उसके मुखिया बेंजामिन नेतान्याहू, अमरीका, अमरीका के सर्वेसर्वा डोनाल्ड ट्रम्प। इधर ईरान है और उसके सुपर लिडर अली खामेनेई। इस युद्ध में अमरीका खेमेंसे साईड भूमिका निभा रहे है ब्रिटन, युरोप, फ्रान्स आदी। ईरान के खेमेंसे रूस, चायना

सऊदी अरब और पाकिस्तान। मेहमान की भूमिका में है नाॅर्थ कोरीया के शहेनशाह किम जोंग उन। युद्ध का संगीत सायरन और मिसाईल के धमाके। इसकी कथा-पटकथा लिखी है बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रम्प ने। बाकी देश कोरस में युद्ध के विरोध या समर्थन में है।

बिघडेल औलाद: वरीष्ठ पत्रकार हेमंत अत्रि इज़रायल को अमरीका की बिघडेल औलाद कहते है। और वो सही भी है। क्यों की इस संडे याने की १५ जून २०२५ को किसी न्युट्रल जगह पर अमरीका और ईरान के बीच न्युक्लिअर पाॅवर प्रोजेक्ट पर वार्तालाप होनी थी। जो ईरान अपने लिए इस प्रोजेक्ट को आगे चालना चाहता था। और जिस में तय होना था की ईरान आगे न्युक्लिअर पाॅवर डेव्हलपमेंट करेगा या नही। या उस प्रोजेक्ट को स्थगित करेगा या फिर रद्द करेगा इस पर चर्चा होनी थी। लेकिन अमरीका के इस बिघडेल औलाद ने उसके पहले ही याने शुक्रवार तारीख १३ जून २०२५ की रात को ही अपने उतावलेपन या बावलेपन या फिर पागलपन से F-35 फायटर जेट जो अमरीका का है। उसके द्वारा सीधा ईरान पर निशाना साधकर पहला हमला किया। उस रात गहरी नींद में सो रहे ईरान के टाॅप मोस्ट न्युक्लिअर सायंस्टिट और आर्मी ऑफिसर को मार दिया। इस में अब तक १४ वैज्ञानिक और २० से जादा आर्मी कमांडर मारे गये। ऐसा ईरान का कहना है। इस पर साऊथ इंडिया में स्थित वरीष्ठ पत्रकार ए के (आफताब कमाल) पाशा जिन्होने ईरान जाकर रिसर्च किया था। वे कहते है, ईरान के पास ऐसे हजार प्लस न्युक्लिअर सायंस्टिट तयार है जो न्युक्लिअर पाॅवर प्रोजेक्ट आगे चला सकते है। आज तक अमरीका अपने
F-35 फायटर प्लेन पर भारी इतराता था। वो तीन F-35 फायटर प्लेन ईरान ने अपने ड्रोन से मार गीराए। और उसी एक प्लेन के फिमेल पायलट को गिरफ्तार भी कर लिया। ऐसा ईरान का दावा है। अमरीका यही फेलिवर फायटर प्लेन भारत को बेचना चाहता है। जो उस प्लेन की विश्वसनीयता पर सवाल-ए-निशान लग चुके है। इस लिए किसी भी मामले में भारत ने अमरीका पर ऐतबार नही करना चाहिए। दोस्त दोस्त कहकर पहले भी अमरीका ने बडी बेरहम दिल से हमारे नागरिकों को हातो में हथकडी पैरो में बेडी डालकर अमरीका सेना के जहाज में ठूंसकर भारत लौटा दिया था। यह बात हमारे सरकारने याद रखनी चाहिए। इस्रायल के हमले से ईरान को भारी चोट पहूची। ईरान ने कहाॅं है की इस्रायल ने हमारे वजूद और संप्रभूता पर हमला किया। हम इज़रायल को बक्षेंगे नही। इस से ईरान और अमरीका के बीच जो वार्ता होनी थी वो विफल हो चुकी है।

इज़रायल का घमंड: इज़रायल को अपने टेक्नॉलॉजी पर, सुपर फायटर प्लेन पर बडा गर्व, बडा घमंड था। हमारी राजधानी तेल अवीव अमरीका के पेंटॅगॉन जैसी अभेद्य है। वहाॅं कोई परिंदा भी पर नही मार सकता। कोई भी हमला हम अपनी टेक्नॉलॉजी से विफल कर सकते है। ऐसा घमंड इज़रायल को अपने टेक्नॉलॉजी पर था। इस लिए वो आज तक अपने चरम मस्ती में था। इस मस्ती में ही पिछले बीस महिनों से उसने गाज़ा में फिलिस्तीनी, लेबलान, लिबिया, सिरिया, हमास और यमन पर बेतहाशा जुल्म ढाए। वहाॅं के बुजुर्ग, बच्चे, महिला, केवल महिला नही तो गर्भवती महिला को भी इन मस्तीभरे, बेरहम यहुदीयों ने अपने गोली का निशाना बनाकर उनको मौत के घाट उतारा था। खाने के लिए लाईन लगाने वाले लोगों पर गोलीओं की बौछार की, उनके मौत पर ये पत्थर दिल वाले जश्न मनाते थे। अब ईरान पर हमला करके इस्रायल को लगने लगा की ईरान डर जाएगा, दब जाएगा, झुक जाएगा और अपने परमाणु प्रोजेक्ट से पिछे हटेगा। दुसरी बात बेटे को यह लगा की, इराण के तेल भाव जो हम तय करेंगे उसी भाव से ईरान तेल हमको देने पर मज़बूर होगा। यही बात उसने अपने बाप याने की अमरीका को कही होगी। इस पर तुरंत ट्रम्प बाबू का धमकी भरे लहज़े में बयान आया की, इराण अपना परमाणु पाॅवर प्रोजेक्ट छोड दे। या फिर परिणाम भुगते। अमरीका और इज़रायल ने कयास लागाया की, जैसे लिबिया ने ॲटॉमिक मसले पर समझौता किया था वैसे ही ईरान भी न्युक्लिअर पर समझौता कर लेगा। लेकिन वैसा हुवा नही। लिबिया ने ॲटॉमिक मसले पर समझौता कर लिया था। उसका नतीजा यह हुवा की, कर्नल गड़ाफी को तबाह कर दिया। साथ में लिबिया को भी लंबे अर्से तक बरबाद कर दिया। जो देश कभी एक खुशहाल देश था आज वो भिकमंगा हो गया। फिलिस्तीनी, लेबलान, लिबिया और यमन के पास अपनी खास आर्मी, नेव्ही और एअर फोर्स नही। और ना ही एअर डिफेन्स सिस्टीम। इस लिए इज़रायल पिछले २० महिनो से गाज़ा में अपनी मनमानी करता रहा। बेरहम, बेतहाशा जुल्म ढ़ाता रहा। इज़रायल फिलिस्तिनी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किया बैठा है। उसी तरह वो लेबनान, लिबिया, सिरिया आदी को भी हड़पना चाहता था। और आगे भी उसकी यही ख्वाइस रहेगी। ऐसा आंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एस. एस. अतहर और मोहम्मद काजमी का मानना है।

ईरान का जवाबी हमला: जब इज़रायल ने ईरान पर पहला F-35 फाटर प्लेन द्वारा हमला किया और उसमें ईरान के वैज्ज्ञानिक और आर्मी कमांडर मारे गये। सिव्हिलियन्स मारे गये। उसमें कुछ बच्चे भी शामील थे। कही और जगह वित्त हानी भी हुयी। इससे ईरान के पैरो की आग मस्तक में भडक उठी। और उसने सिर्फ १२ घंटा में युद्ध की तयारी कर ली। उसके लिए ईरान ने अपने पुराणे हायपर सुपर सोनीक मिसाईले इस्तेमाल करना सुरू किया। इस्रायल की राजधानी तेल अवीव, इज़रायल के हर शहर, शहर की हर बिल्डिंग ईरान के ज़द में आयी है। ईरान ने इन सबको अपना निशाना बनाया। फिर शुरू हुयी तेल अवीव पर मिसाईल की बौछार। लगातार एक के बाद एक। मानो मिसाईल की झडी लगा दी। नेतान्याहू और उनके आर्मी कमांडर को सास लेने की फुरसत नही दी। एक के बाद एक उची उची मंजीले खंडर में तब्दिल कर दी। इज़रायल एअर डिफेन्स सिस्टीम जैसे आयर्न डोम, थार पता नही और क्या क्या? सब ध्वस्त कर दीये। जहाॅं इस्रायली आर्मी जिस बिल्डिंग में गाज़ा में कहाॅं हमला करना है इसका प्लान रचा करती थी वो बिल्डिंग ईरान के एक मिसाईल ने खेल के पत्तों जैसी ढ़हा दी। इस्रायल आर्मी प्रवक्ता किसी मिडिया को जानकारी देते समय थरथर कांप रहा था। मिसाईलों का तांडव देखकर इज़रायली नागरिक चीखे चिल्लाने लगे, रोने लगे। वास्तविक में वे निर्दोष नागरिकों का इसमें कोई दोष नही था। यह सब बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रम्प ने जो युद्ध की कथा-पटकथा लिखी थी उसका नतीजा था। ईरान को कमजोर समझकर दोनो बाप बेटे ने जो अकारण ईरान से पंगा लिया था यह उसका नतीज़ा था। तेल अवीव में यहाॅं वहाॅं सब जगह बिल्डिंग के मलबे ही पडे थे। ऐसा तबाही का मंज़र इस्रायलीयोंने पिछले ४०-५० साल पहले कभी देखा नही होगा ना ही उनके सरकारने। कहाॅं जाता है की, इस युद्ध में कही आर्मी ऑफिसर और सिव्हिलीयन्स की मौते हुयी। इससे इज़रायल को ही नही वाॅशिंग्टन को भी दिन में तारे-सितारे नज़र आने लगे। जो इस्रायल आर्मी गाज़ा में मासूमों के मौत का तमाशा देख रही थी अब वो ही अपनों के मौत का तमाशा देखना इस्रायल आर्मी के नशीब में आया। ऐसा कुछ होगा इसका जरासा भी इल्म इस्रायल और वाॅशिंग्टन को नही था। वक्त का अपना एक मिजास होता है, कभी वो बेरहम तो कभी मेहरबाॅं होता है। यही है वक्त हिसाब। इस हडकंप में नेतान्याहू ने अपने नागरिक और आर्मी को बंकर में छुपने की सलाह देकर खुद्द कहाॅं गायब हुवे थे पता नही।

            दुसरे दिन भी इराण के मिसाईलों का हमला जारी था। इस मिसाईल हमलों में इराण ने बडी सूझबूझ दिखाई। मिसाईल दागते समय उसकी उचाई कम रखी। ता की एअर रडारों से बच सके। कहाॅं जाता है की, इस मिसाईल की रफ्तार १२०० कि. मि. प्रति घंटा है। याने की ध्वनी से कही गुना जादा। मिडल ईस्ट में इस्रायल की दूरी ईरान से तकरीबन १७००-१८०० कि. मि. है। तो सोचिए ईरान ने मिसाईल दागने के बाद इज़रायल तक पहुचने में कितना समय लागता होगा? अच्छा! इज़रायल के अगल बगल में अमरीका और उनके मित्र पक्षों के छोटे-बडे सामरिक अड्डे है। उनको किसी प्रकार की क्षती न पहुचाते हुवे सीधा इज़रायल के शहरों को सटीक निशाना बनाना यह ईरान की दुसरी हुशारी थी। दुसरे दिन भी इस्रायल की तबाही का मंज़र जारी था। इस्रायल ईरान की राजधानी तेहरान में मोसाद द्वारा जिस चीज को निशाना बनाता था जैसे की हवाई अड्डे, आर्मी अड्डे, बडी बडी बिल्डिंगे, हाॅस्पिटल वगैरा, ठिक वैसे ही इस्रायल  की चीजे ईरान अपनी ज़द में ले रहा था। लेकिन ईरान अपने डिफेन्स स्सिस्टिम से इस्रायल के कुछ हमले विफल कर रहा था। इधर इस्रायल ईरान के हमले रोकने में नाकाम रहा। इसलिए इस्रायल अपनी बरबादी का खौपनाक आलम अपनी ऑंखो से देखता रहा। ईरान के हमले अब भी शुरू है। उसने तेल अवीव में आयफा टाॅवर, ऑइल रिफायनरी ध्वस्त कर दिए। कहाॅं जाता है की, आयफा टाॅवर में गौतम अडाणी का ७० फ़िसदी निवेश था। इस्रायल के चार हवाई अड्डे, मिल्ट्री अड्डे, कही बिल्डिंगे ध्वस्त हो गये। यह सब देखकर नेतान्याहू पसीने से गिले हो गये। तो उधर वाॅशिंग्टन भी अपने माथे का पसीना बार बार पोछ रहा था। इस आलम में नेतान्याहू ट्रम्प को युद्ध में घसीटने की कोशीश कर रहे थे लेकिन फिलहाल में ट्रम्प ने हात खडे कर दिए। यहाॅं एक बात समझनी होगी डोनाल्ड ट्रम्प एक व्यापारी इन्सान है उसे राजनीती, विदेश नीती या कुटनीती की बिलकुल समझ नही। युद्धनीती में तो सफसेल झीरो है। वो बार बार कहता आ रहा की मैने भारत  पाकिस्तान का सीजफायर कीया। इसका सारी दुनिया में  डंका पिट रहा है। अगर यह इन्सान इतना शांतिदूत बनना चाहता है तो युक्रेन और रशिया के बिच सीजफायर क्यों नही कर पा रहा है? अब इराण और इज़रायल के बिच सीजफायर क्यों नही कर पा रहा है? ऐतबार करने के लायक यह इंसान नही। कुल मिपाकर यह लहरी व्यक्ती है। 

            माना की ईरान की मिल्ट्री टेक्नॉलॉजी, मिसाईल टेक्नॉलॉजी की ताकद अमेरिका, रूस और चायना से ज्यादा नही, लेकिन ज़नाब, कम भी तो नही है। ईरान ने अपनी खुद्द की टेक्नॉलॉजी पर रिसर्च करने के लिए पिछले २५-३० साल का लंबा समय लगाया है हुजूर, तब कही जाकर  ईरान ने यह मक़ाम हासील किया। लेकिन उसने नेतान्याहू जैसा घमंड या ट्रम्प जैसा बडबोलापन कभी नही किया। वक्त आने पर उसने अपनी ताकत की सिर्फ एक झलक दुनिया को दिखा दी। यह होता है ग़हरी सोच रखनेवाले का व्यक्तित्व। ईरान की मिसाईल नेतान्याहू के रियाशी तक जरूर पहुची लेकिन रियाशी पर दागी नही। अगर ईरान चाहता तो वो नेतान्याहू के रियाशी परं मिसाईल दाग सकता  था। मगर उसने ऐसा किया नही। यह एक संग्रामी रणनिती का हिस्सा हो सकता है।  इससे दुश्मन का मनोबल गीर जाता है। *मोहम्मद काजमी और एस एस अतहर* यह दोनो आंतरराष्ट्रीय राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है की अब तक ईरान ने अपनी ताकद का सिर्फ २०-२५ फ़िसदी का ही प्रयोग किया है। अगर आगे चलकर अमरीका और उनके मित्र पक्ष इस युद्ध में उतरते है तो इराण अपनी पूरी ताकद लगाएगा। *एस. एस. अतहर* ने कहाॅं ईरान ने अब तक अपने असल वेपन का प्रयोग नही किया जब अमरीका युद्ध में उतरेगा तब इसका प्रयोग होगा। वैसे ही *मोहम्मद काजमी* भी कहते है की, न्युक्लिअर पाॅवर से भी कुछ आगे है इराण के पास। पाकिस्तान अमरीका की गोद में जाकर बैठा है और इधर ईरान के सपोर्ट में भी उतरा यह कैसा? जब ऐसा सवाल ॲंकर ने  *एस.एस. अतहर* को पुछा गया तब उन्हाने कहाॅं पाकिस्तान को सिर्फ पाकिस्तान न कहो मुझे इसपर बडा ऐतराज, बडी आपत्ती है। पाकिस्तान को आतंकी पाकिस्तान कहो। अगर हम आतंकी पाकिस्तान नही कहेंगे तो दुनिया उसे आतंकी कैसे कहेगी?  फिर उनहोने कहाॅं पाकिस्तान इराण से मिसाईल, ड्रोन टेक्नॉलॉजी और सस्तेमें क्रूड ऑइल लेना चाहता है। ॲंकर ने *मोहम्मद काजमी* को सवाल पुछा की ईरान कितने दिन तक युद्ध लडने की क्षमता रखता है तो वे तुरंत बोले इराण बरसो तक जंग लड सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की इराण के पास कितनी सामरिक ताकद हो सकती है। आखरी में *मोहम्मद काजमी* कहते है की, भारत के पास सेल्फ डिफेन्स, सेल्फ काॅंफिडन्स और सेल्फ रिस्पेक्ट होना चाहिए। इससे दुनिया में भारत का वजन रहेगा। इसके लिए वे कोलंबिया का उदाहरण देते है। कोलंबिया ने सीधा सीधा ट्रप को कहाॅं की, हम हमारे नागरिकों को लेने अपना जहाज भेज रहे है। हमे बेइज्जत करने का काम न करे। तो यह होता किसी भी देश के लिए सेल्फ रिस्पेक्ट! अब वो सेल्फ डिफेन्स, सेल्फ काॅन्फिडन्स और सेल्फ रिस्पेक्ट इराण में दिखाई दे रहा है। खैर! 

            मिडल ईस्ट में ईरान एक बडा सीया इस्लामिक राष्ट्र है। लेकिन उसने अपने धर्म को धर्म की जगह रखा। धर्म और राजनीती की उसने खिचडी होने नही दी। विज्ज्ञान, टेक्नॉलॉजी रिसर्च सेंटर, शिक्षा, स्वास्थ, सामरिक हथियार इन चीजों में उसने धर्म की कभी एंट्री होने नही दी। शिक्षा पर उसने कभी काॅंप्रमाइज नही की। इराण के बच्चे इंग्लड, अमरीका, फ्रान्स, जपान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया यहाॅं के बडे बडे युनिव्हर्सिटी में पढ़ने जाते है। वहाॅं टेक्निकल एज्युकेशन लेकर जब वे स्वदेश लौटते है तब अपनी टेक्निकल नाॅलेज का योगदान अपने देश के लिए देते है। आज उसीका नतीजा है की मिडल ईस्ट में ईरान खुद्द के दम पर एक बडी सामरिक ताकद के रूप में उभरा है। 

            रूस और ईरान जैसे देश हमारे पारंपरिक मित्र थे और आज भी है। वे दोनो आज भी भारत से दोस्ती का हाथ बढाना चाहते है। ईरान हमें सस्ता तेल और उसपर तीन महिने का क्रेडिट भी देना चाहता है। अगर भारत चाहता है तो ईरान सामरिक हथियार भी दे सकता है। युक्रेन और रशिया के युद्ध में ईरान रशिया को अपने ड्रोन का सप्लाय कर रहा है। वेस्टर्न के कही देशों ने ईरान से सामरिक हथियार खरीदे है या खरीदने की कतार में लगे है। इधर रूस भारत को तेल सस्ते में दे रहा था। हालांकि ईरान जैसा तेल स्टाॅक रूस के पास नही है फिर भी दे रहा था। अमरीका के कहने पर भारत सरकारने अपने हात खिंच लिए। रूस भारत को सामरिक हथियार शुरू से देता आ रहा। लेकिन हो सकता है यहाॅं भी अमरीका के कहने पर भारत ने फ्रांस से राफेल फायटर प्लेन खरीद लिये और वो भी दुगनी किमत पर। जब नेहरू विदेश यात्रा करते थे तब वे विदेश नीती, कुटनीती पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी से सलामशवरा करके ही विदेश यात्रा पर निकलते थे। लेकिन अब ऐसी सलामशवरा की नीती कहाॅं रही? 

            इधर इज़रायल में युद्ध से तहस नहस हुवे शहरों की हालत देखते हुवे नेतान्याहू ने ट्रम्प को युद्ध रोकने की कोशीश करने को अपील की। ट्रम्प ने भी ब्लदिमीर पुतीन से कहाॅं ईरान से सीज फायर करने को कहो। खुद्द ट्रम्प ने दो-तीन बार ट्विटर द्वारा ईरान को सीजफायर करने की अपील की। अगर ईरान ऐसा करता है तो उसकी बहुत सारी शर्ते मानी जाएगी। ऐसा भी ट्रम्प कहते है। उधर ईरान का कहना है की युद्ध की शुरवात हमने नही की, अब युद्ध जहाॅं तक जाता है तो जाए। लेकिन हमपर कोई सीजफायर का दबाव न डाले और ना ही कोई सलाह दे। हमारे निर्णय के हम खुद्द मालिक मुख्तार है। हम क्या कर रहे हमें अच्छा तरह पता है। अगर सीजफायर होता है तो उसके टर्म्स ॲन्ड कंडिशन ईरान डिक्टेट करेगा। इसके पिछे ईरान का एक और बडा कारण यह है की, गाज़ा पट्टी को आझादी दिलवाने की। इस लिए  टर्म्स ॲन्ड कंडिशन ईरान खुद्द डिक्टेट करने की बात कर रहा है। आज की तारीख में ईरान की सामरिक ताकद देखते हुवे मिडल ईस्ट के याने की खाडी के सीया-सुन्नी का भेद दूर रखकर सारे मुस्लिम देश ईरान की तरफ़ झुकते नज़र आ रहे है। हमारा मानना यह है की, इस युध्द का नतीजा चाहे कुछ भी हो भारत ने न्युट्रल ही रहना चाहिए। अगर भारत इस में हस्तक्षेप करना चाहता है तो भारत एक बात कर सकता है। नेहरू के ज़माने की भारत की साख आज भी है। भारत दोनो देशों में समझौता करने की ताकद रखता है। लेकिन उस उचाई का व्यक्तीत्व भारत को सामने लाना पडेगा। ऐसा भारत को करना होगा। 

साइड भूमिकाए
नाॅर्थ कोरिया- किंग जोंग उन इस शहेनशाह ने पहले ही बिना झिझक कहाॅं था की, किसी भी मदत के साथ हम ईरान का साथ देंगे।

ब्रिटन, फ्रान्स, जर्मनी, युरोप- इनकी दिशा अमरीका तय करेगा।

पाकिस्तान- यह एक बेभरोसेमंद देश है। यह देश उधार की इकाॅनाॅमी पर चलता है इस लिए वो अमेरिका की गोद में जाकर बैठा है, फिर भी उसने ईरान को सपोर्ट करने की बात की है। क्यों की वो ईरान द्वारा मिलनेवाला रस्ता तेल और सस्ती टेक्नॉलॉजी मिलने की लालसा धरता है। पाकिस्तान की इसमें राजनीती भी हो सकती है। ईरान इसको कितनी ऐहमियत देता है यह आनेवाला समय ही तय करेगा।

रशिया- इस देश का लंबे समय से युक्रेन के साथ युद्ध चल रहा है, इस युद्ध में ईरान ने रशिया को अपने ड्रोन सप्लाय कीये है। इस लिए रशिया भी बिना शर्त के ईरान के प्रोटेक्शन की बात कर रहा है।

चायना- यह एक विस्तारवादी देश है। जैसा वो भूविस्तारवादी है वैसाही व्यापार विस्तारवादी है। वो दुनिया में अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है। इस लिए वो इस युद्ध में अपने सामरिक हथियार ईरान को सप्लाय कर रहा है। उसे अब युद्ध रूची नही रही।

भारत- सबसे बडा एक लोकतांत्रिक देश, सर्वधर्म समावेशक देश। भारत ने इस युद्ध में न्युट्रल रहने की और युद्धस्थिती में इज़रायल में फ़से भारतीय नागरिकों को सहीसलामत वापस भारत लाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी की भूमिका भारत सरकारने निभानी चाहिए। हो सके तो भारत ने दोनो देशो के बिच सीजफायर करने की कोशीश करनी चाहिए।

            आज दुनिया भर के लोगों की नज़रे इज़रायल ईरान के युद्ध पर लगी है लोगों के मन में एक डरभरी आशंका है की, कही यह युद्ध तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दिल न हो जाए। लोगों में इस पर तऱ्हतऱ्ह की चर्चा हो रही है। दुसरा विश्वयुद्ध जिन लोगों ने देखा होगा वो कुछ ही कम लोग होंगे। दुसरे विश्वयुद्ध की कहानीयाॅं आज भी लोग पढ़ते होंगे। इस लिए लोगों के मन तीसरे विश्वयुद्ध होने की आशंका  होगी। लेकिन हमारा मानना है की ऐसा कुछ नही होगा। शुरू शुरू में अमरीका ने परमाणू बम्ब बनावाया था  तब लोग उसके परिणाम से अनभिज्ज्ञ थे। लेकिन जब ६ अगस्त १९४५ जपान के हिरोशिमा पर और ९अगस्त १९४५ को नागासाकी पर अमरीका ने परमाणू बॉम्ब गिरीए तब उसकी भिषण परिणाम लोगों के सामने आए। उस में काफी लोग मारे गये जो बचे वो विकलांग हुवे। गर्भवती महिला पर परिणाम होकर विकलांग बच्चे पैदा हुवे। यह देखकर जपान ने दुसरे विश्वयुद्ध से खुद्द को अलग किया। जहाॅं बम्ब गिरे वहाॅं की जमीन आज भी बंजर बनी है। वहाॅं आज भी कोई फसल उगती नही। इतना भयानक परिणाम हुवा था न्युक्लिअर बम्ब के परिणाम से दुनियाभर के वैज्ज्ञानिक अच्छी तरह वाकिब है। विश्व में मानवतावादी संघटना है। विचारवंत, बुद्धीवंत, तमाम साहित्यिक और तमाम मानवतावादी लोग विश्व में है वे तमाम लोग किसी देश को किसी देश के विरोध में न्युक्लिअर का  प्रयोग करने नही देंगे। और एक बात यह होगी की, इस में युनो अपनी  महत्वपूर्ण भूमिका जिम्मेदारी के साथ निभाऐगा। इस लिए तीसरा विश्वयुद्ध होगा इसकी आशंका बहोत कम है। इज़रायल ईरान युद्ध भी ज्यादा खिंचनेवाला नही। अगर यह युद्ध ज्यादा खिंचता है और आगे तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दिल होता है तो वो केवल और केवल ट्रम्प और नेतान्याहू के पागलपन से होगा। 

अशोक सवाई.
91 5617 0699

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