राजनैतिक पत्रकारों की नजरीयाॅं से झुला झुलती सियासत

अशोक सवाई.
जब से बीजेपी २४० के आंकडे पर अटक गयी और उसके बगल में नानी की (नायडू + नीतीश) बैसाखी आ गयी तब से वो मोदी सरकार से एनडीए सरकार बन गयी। और सोशल मीडिया पर केंद्र की राजनीती बडे अच्छे से समझने वाले बडे बडे पत्रकार/समिक्षक द्वारा एनडीए सरकार गिरने के अटकले शुरू हो गये। कोई कहता है मौजूदा एनडीए सरकार चंद दिनों की मेहमान है, कोई कहता है बीजेपी आनेवाले चार राज्य के (जम्मू & काश्मीर, हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र) विधानसभा चुनाव हारने के बाद गिर सकती है, कोई कहता है छ महिने बाद, तो कोई कहता है एक साल बाद केंद्र की सरकार जाएगी। ऐसे तमाम अटकले लगाये जा रहे है, आशंका जताई जा रही है। और पटना, दिल्ली, आंध्र प्रदेश में जो सियासी गलियाॅंरों में हलचल, गतीविधीयाॅं चल रही है उस से लगता है की पत्रकारों की आशंकाये कही हद तक सही भी है। क्यों की नायडू और नीतीश बाबू को अबतक उनके राज्य को मानचाहा पॅकेज केंद्र से मिल नही रहा, उनकी और भी कही मांगे पूरी नही हो रही है, उक्त चार राज्यों के चुनाव तक या हो सकता है उसके बाद भी उनको टालमटोल दिया जा सकता है। और दोनो की बडी बडी मांगे पूरी करने के लिए सरकारी तिजोरी भरी हुयी नही है। लेकिन ‘नानी’ को इस से कोई मतलब नही। सरकार कही से भी पैसा लाये और हमारी डिमांड पूरी करे ये नानी का रवैय्या।
इधर आंध्र प्रदेश का जब विभाजन हुवा और हैदराबाद राजधानी तेलंगणा के हिस्से में चली गयी तब से चंद्राबाबू ने एक बडा हसीन सपना सजाके रखा है। वो है उनके प्रदेश के अमरावती शहर को दुनिया की सब से हायफाय राजधानी बनाने का। ऐसा भरोसा भी चंद्राबाबू ने अपने प्रदेश को दिया। और भी बहोत सारे भरोसे प्रदेश की जनता को दिये है, लेकिन ये भरोसे भी उन्होने ऐसे लोगों के भरोसे दिये है की जो कभी भरोसों की साख नही रखते। इसलिए चंद्राबाबू और उनके सांसदों के मन में चलबिचल हो रही है। उनके कही सांसदों के गले से सूर निकलने लगे की अगर केंद्र की सरकार हमारी डिमांड पूरी नही करती तो हम ऐसी लंगडी सरकार को ढ़ोए क्यों? हमारे सामने इंडिया अलायन्स का भी तो विकल्प है? अगर ये दुसरा विकल्प है तो इस से हमें जादा फायदा मिल सकता है। इंस्टालमेंन से भी क्यों न हो हमें पॅकेज मिल सकता है और केंद्र में हमारे कुछ सांसद मंत्री भी बन सकते है। जिन लोगों के भरोसे पर प्रदेश को जो भरोसा दिया अगर उनके भरोसे-वादे ही खोकले निकले तो… तो क्या करे… ऐसा दबाव सांसदों द्वारा चंद्राबाबू पर बन रहा है। इस से चंद्राबाबू नायडू भी असहज होकर अपने ही विचारों में घेरे है, अंदर ही अंदर परेशान है। दुविधा स्थिती में है।
उधर नीतीश बाबू भी सियासत में बडे लंबे दौर से सूलझे हुवे सियासी किरदार निभा रहे है। वो अच्छी तरह जानते है की, मौजूदा केंद्र सरकार चल चला की बेला है। लेकिन उनको डर भी है की, ये बेला हमारे साथ खेला न कर दे। इसकी आशंका उनके मन में है। चिराग पासवान (लोजप) का उदाहरण उनके सामने है। जब चिराग लॅटरल एंट्री , वफ्फ बोर्ड, आरक्षण, जातीगत जनगणना के मामले में खुलकर अपने ही सरकार के विरोध में बोलने लगे तब उनपर किसी मामले में एफ आय आर दर्ज हुयी और उनके पाच सांसदों में से तीन सांसद बीजेपी आला कमान ने बीजेपी के दरवाजे पर लाकर खडे कर दिये। अब सिर्फ खुद्द चिराग और उनके बहनोई बचे है। माना जाता है की नीतीश के सफेद कपडों पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नही। इसलिए बीजेपी आला कमान ने नीतीश बाबू के बेहद करीबी आय ए एस अधिकारीयों पर ईडी द्वारा छापेमारी की है। इस से भी नीतीश बाबू दिल्ली से नाराज चल रहे है। विश्लेषकों का मानना है की बीजेपी आला कमान अप्रत्यक्ष रूप से नीतीश पर दबाव बनाना चाहते है। इसलिए नीतीश बाबू दिल्ली से चुप्पी साधे बैठे है। दिल्ली और पटना दोनो ही एक दुसरे को शक की निग़ाह से देखते है। दिल्ली को लगता है पटना हमारी बैसाखी न खींच ले तो पटना को लगता है की दिल्ली हमारे सांसदों में तोडफोड न कर दे। दोनो को भी अपने अपने मतलब से एक दुसरे की जरूरत है। लेकिन, विश्लेषकों का कहना है की, नीतीश बाबू बीजेपी आला कमान से असहज और चूप है। वो इसलिए की, २०२५ में विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जाना उनको उनकी लुटिया डुबने का खतरा महसूस हो रहा है। उनको लगता है बीजेपी कही अपना भी हाल नवीन बाबू (पटनायक) जैसा न कर दे। क्यों की बीजेपी भरोसेमंद पार्टी नही। इसलिए वे चूप्पी साधे बैठे है। और जब भी नीतीश चूप होते है तब वे बडा खेला कर देते है। ऐसी उनकी अतीत की घटनाए याद दिला देती है। जानकारों का मानना है की नीतीश मौके की तलाश में है। वे मन ही मन इंडिया अलायन्स का भी विचार कर रहे है। वैसे भी लालू और नीतीश की गलभैया होती रहती है। हो सकता है लालू ने इशारो इशारों में नीतीश को कह दिया हो की, भैय्या जल्दी करो वरना कही ऐसा न हो जाए ‘बडी देर कर दी हुजूर आते आते’ इसलिए लगता है पत्रकारों की नजरीयाॅं से ये झुला झुलती सियासत है। खैर…
दो तीन दिन पहले संघ का एक बयाॅं आया। संघ दिल से नही बडी आनाकानी से कहता है की, जातीगत जनगणना होनी चाहिए। वैसे संघ और बीजेपी एकही सिख्खे के दो पहलू है ये सारा देश जानता और समझता भी है। ऐसे में संघ का ये बयान उस स्थिती में आया जब की संघ और बीजेपी के लिए बेहद प्रतिकुल परिस्थिती है। संघ हमेशा अपने प्रतिकुल परिस्थितीयों में अपने दो कदम पिछे खींच लेता है और मौका मिलते ही चार कदम आगे बढाता है। ये संघ का पुराना सिलसिला रहा है। संघ अपने अजेंडे के विपरीत कोई कदम नही उठाता। लेकिन जनमत देखकर डर से संघ कभी कभी जनता के अनुकूल उपर-उपर बयान दे देता है। समय निकलने के बाद फिर वो अपने असली अजेंडे पर आता है। ये संघ का इतिहास रहा है। हमारे महापुरुषों की विचारधारा जिस पर हम चलते है, और संघ की विचारधारा दोनो कभी एकसाथ नही चल सकती। इसलिए संघ के बयान पर हम लोगों ने ध्यान देने की या खुश होने की जरूरत नही। लेकिन एक बात निश्चित रूप से कहनी होगी की अब संघ अपनी विचारधारा हम लोगों पर जबरदस्ती से थोप नही सकता।
इस सियासत का दुसरा पहलू भी देखना चाहिए। क्या आप को लगता है गुजरात लाॅबी (गुजरात लाॅबी उत्तर भारत के पत्रकारों का शब्द) युं ही सत्ता अपने हात से जाने देगी? अजी हुजूर… गये दस सालों में जिन्होने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए या सत्ता में रहने के लिए और सत्ता में रहकर मनमानी करने के लिए तीन किसान कानून वापस लेने पर १३ महिने किसानों को तरसाया ७०० किसान शहिद होने दिया, मणिपूर को अब तक जलते रख्खा, कभी अपने साथ आये घटक पक्षों के साथ मतभेद होते ही उनको नेस्तनाबूत किया (अकाली दल, बिजू जनता दल, जगमोहन रेड्डी, मायावती, शिवसेना, लोजप, पीडीपी, दुष्यंत चौटाला, ऐसे कही छोटे बडे सारे दल) हिंदू मुसलमान किया, ३७० का डंका पिटा, पुलवामा होने दिया, राम मंदिर मामला गर्माया, अलग अलग संघटनों के आंदोलन कर्ताओंको बडी बेरहमी से कुचल दिया, नोटबंदी, जीएसटी, मेहंगाई, बेरोजगारी, बुल्डोझर कारवाई, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाए, देश के संसाधन, देश की स्वायत्त संस्थाए (देश की संस्थाए और स्वायत्त यह उनका आपसी नाता पिछले दस साल से तुट चुका है। अब वो सिर्फ सरकारी बटिक बन गयी) ऐसे तमाम मुद्दों को तहस नहस कर दिया। ऐसे लोग एकाएक अपने हातों की सत्ता जाने देंगे? बिलकुल नही! वे सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे… कुछ भी कर सकते है…
अभी बीजेपी २४० के आकडे पर है। इस आकडे पर वो बेहद असहज है। इस से उनको तीन महिने में कही मुद्दों पर युटर्न लेना पडा। और युटर्न लेना तो अब तक बादशहा के शान के खिलाफ़ रहा। इसलिए बीजेपी चाहती है की २४० आकडे को २७२/२७५ पर पहुंचा दिया जाए। और नानी की बैसाखी से छुटकारा पाये। इसके लिए उनको अपने ही घटक दल के सांसदों को ही क्यों न तोडना पडे, तो तोडेंगे। फिर वो नीतीश बाबू के सांसद हो या चंद्राबाबू के। छोटे छोटे दलों की तो बात ही छोड दिजीए। इन सब से उनको कोई फर्क नही पडता। उनके पास पैसा है जो उनके कुबेर पुत्र मत्रों के पास जमा की हुयी पुंजी है। सरकारी संसाधन है, संस्था की पाॅवर है इसके दम पर कौनसा सांसद तुटेगा नही साहब? बीजेपी के पास सब कुछ है सिर्फ दो चीजें नही है, एक लाज शरम और दुसरी नितीमत्ता ये दो चीजे न होने के कारण उनके पास और एक्सट्राॅ पाॅवर आती है। जो उनको मनमानी करने लिए उनको कोई हिचक नही होने देती। बीजेपी के गुजरात लाॅबी को अच्छी तरह पता है की हात की सत्ता जाना मतलब है, अपने पिछले दस सालों की फाईल्स खुलना और जब खुलेगी तब क्या होगा ये उनके कल्पना के परे है। अजी जनाब, जरा सोचीए जिन्होने अपने बॅंक घोटाले के गुजराती मित्रों को बचाया वो खुद्द को नही बचाएंगे? कहाॅं जाता है की गुजराती बनिया (व्हिडिओ पर ‘मै बनिया का बेटा हूँ’ ऐसा अमित शहा ने खुद्द कहाॅं था) कभी घाटे का सौदा नही करते। इसका उदाहरण महाराष्ट्र में मिलता है। जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बनाया तब उसके बदले में उनके कार्यकाल में महाराष्ट्र के कही उद्योग और व्यापार वे गुजरात ले गये। तो कुल मिलाकर कहना होगा की बीजेपी अपने हात से सत्ता कभी जाने नही देगी किसी हाल में नही। अगर उनकी सियासत में कहीँ अलग मोड आते है तो अलग बात है। लेकिन वे आखरी वक्त तक प्रयास करेंगे की सत्ता उनके हात में ही रहे।
महाराष्ट्र का संघ मुख्यालय भी चाहेगा की सत्ता भाजपा के पास ही रहे। क्यों की सप्टेंबर २०२५ में आर एस एस का स्थापना शताब्दी वर्षगांठ आनेवाला है। उसका देशभर बडा इव्हेंट करने के लिए उनको सरकारी यंत्रणा की जरूरत होगी। बडे स्तर पर वो सुविधा संघ को बीजेपी सरकार ही मुहिया कर सकती है। फिर भलेही संघ सरचालक मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लिए उपरी असहज टिप्पणी की हो। फिर भी संघ चाहेगा की सत्ता भाजपा के हातों में ही रहे। देखते है आनेवाला वक्त किस मोड पर अपनी कैसी करवट बदल लेता है।
- अशोक सवाई.
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