जोर से बोलो नागपंचमी किसकी ? नागपंचमी नागराजाओं की

नागपूजा संस्कृति : अनुसंधान और बोध
नागपंचमी’ यह उत्सव हर साल सावन शुद्ध पंचमी पर बड़े उत्साह के साथ हरसाल मनाया जाता है।
इस दिन गाँव में सार्वजनिक अवकाश होता है। खेती का काम बंद रहता है। लेकिन हम किसकी याद में यह छुट्टी मना रहे हैं?
इस सवाल का जवाब सांप है, यह एक वास्तविक त्रासदी है।
किसी भी परंपरा का पालन श्रद्धापूर्वक करते समय , वर्तमान में उस परंपरा का मूल्यांकन करना जरूरी होता है।
कोई परंपरा कालातीत महसूस होने पर उसको त्यागना और इस परंपरा के पालन में मूल्यसंदेश होनेपर उसे सामने लाकर उसकी पुर्नरचना करने की आवश्यकता होती है ।
नागपंचमी का संबंध नाग से नहीं है, बल्कि पांच शक्तिशाली नाग राजाओं से है, जो कुलदेवता के प्रतीक हैं
- अनंत (शेष)
- वासुक
- तक्षक
- कर्कोटक
- ऐरावत (पिंगाला)
ये पाँच नाग राजाओं के नाम हैं। उनके पास स्वतंत्र राज्य थे; जो स्वभाव से रिपब्लिकन थे।
अनंत पांच राजा में से सबसे पुराना माना जाता है। जम्मू और कश्मीर में अनंतनाग शहर उस नागराज की याद का गवाह है। उसके बाद एक और नागराजा ‘वासुकी’ कैलास मानसरोवर क्षेत्र का प्रमुख था। तीसरा नागराजा: तक्षक, जिसकी याद में आज पाकिस्तान की तक्षशिला (तक्षशिला) है । चौथा राजा कर्कोटक था, और पाँचवाँ ऐरावत (रावी नदी के निकट) था।
पाँचों शहरों के गणतंत्र एक-दूसरे से सटे हुए थे। तथ्य यह है कि पृथ्वी (भुजंग = बड़ा कोबरा) नाग पर टिकी होना, उन पांच राजाओं का सामाज्र पुरे जंबुदिप पर होना।
लेकिन यज्ञवंशीयो की कलम ने नागपूजा के पीछे के संदर्भ को अस्पष्ट कर दिया और नागपूजा को हम पर चोट किया ।
साँप नागवंशी राजाओं द्वारा उनके राज्य में और उनके झंडे पर इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा पर एक प्रतीक था। साँप का प्रतीक उनके मुकुट के साथ-साथ उनके मेहराब पर भी इस्तेमाल किया जाता था।
नागवंशी होने की यह पहचान उनके वंशजों में विभिन्न रूपों में थी।
जैसे कि कलाई पर अंगुलियां और बगल पर कलाई के साथ-साथ हाथ / कलाई पर सांप को गोदना और नाग पंचमी के दिन दीवार पर 5 सांपों की पूजा करना।
परंपरा के रूप में इसका अस्तित्व आज भी देखा जा सकता है। बेशक, उन्हें ऐसा करने का सही कारण नहीं पता है।
लेकिन ‘हमारी परंपरा’ के रूप में इसका अस्तित्व आज भी भारत के विभिन्न कोनों में बहुजनों के बीच देखा जा सकता है।
नाग बहुत प्राचीन लोग थे।
उनके मामले में, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नागा किसी भी तरह से आदिवासी या असभ्य नहीं थे। यानी वह पूर्व-बुद्ध थे । जो बाद में भगवान बुद्ध के अष्टविनय के पथ प्रदर्शक बने।
वर्तमान कुनबी / किसान, कृषि मजदूर नागपंचमी को पूजा करते हैं; इसलिए वह हिंदू नहीं बन जाते । क्योंकि नागलोक के लोग (उन्हें हिंदू धर्म में परिवर्तित करने से पहले) भगवा बुद्धसे संबंधित थे।
इसलिए वह इस तथ्य से अनभिज्ञ है कि उसके पूर्वज बौद्ध थे। सर्प चिन्ह केरे में नागवंशियों की भावनात्मक निकटता को देखते हुए, यज्ञवंशियों ने नागवंशियों द्वारा पूजा की जाने वाली मूर्ति को बौद्धों में परिवर्तित कर दिया।
नागवंशियों को धार्मिक क्षेत्र से बाहर आने और पिछले सांस्कृतिक परिदृश्य पर उनके अस्तित्व को खोजने की कोशिश करने के लिए उत्सव ‘नागपंचमी’ के महत्व को जानना चाहिए।
सभी भारतीयों को नागपंचमी की हार्दिक सदिच्छा
संकलन : – सिरिमान राहुल
संदर्भ : – नागपंचमी किसकी ?
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जय भुजंग🙏🐉
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