“बुध्दत्व ज्ञान प्राप्ति”

अनिल रंगारी
क्या है वास्तविकता- एक परिक्षण
सिद्धार्थ गौतम को ध्यान, विपस्सना, मेडिटेसन से बुध्दत्व, संबोधि ज्ञान किस तरह प्राप्त हुआ? क्या आजके आधुनिक युग मे विविध कानुनों, विविध वैज्ञानिक, सामाजिक लिखित ज्ञान के अध्ययन, शिक्षा के बगैर केवल ध्यान विपस्सना मेडिटेसन करने से ही उसी प्रकार का बुध्दत्व, संबोधि, अर्हत्व ज्ञान प्राप्त हो सकता है जो विविध सामाजिक, जनसमस्यायें निवारण करने मे व्यक्ति को सक्षम बनाता हो? हमारी नासमझी के कारण हम सार्थक सही प्रयास नही करते और व्यर्थ के प्रयासों मे जीवन बर्बाद करते है अौर जनसमस्यायें कम करने की बजाय अौर भी बढती जाती है। लोगों का भ्रम निवारण मे थोडासा प्रयास किया हूँ जिसे समजने के लिए चार भागों मे विभक्त किया है।
- ध्यान- मेडिटेसन का मूल अर्थ ही मन को चित्त को शांत , चिंतामुक्त, विचारशून्य, विचारमुक्त,विचाररहित करना होता है। जितना हो सके उतना कुछ भी चिंतन विचार नही करना, कुछ भी नही सोंचना। तभी मन के उपर का बोझ, ताण, तनाव, भारीपण कम होता है, मन शांत होता है, मन हलका लगता है। यही ध्यान मेडिटेसन का मूल अर्थ है, मुख्य काम है। ध्यान करने की विधी प्रक्रिया कोई भी हो, उद्देश मन को शांत, विचारशून्य, तनाव मूक्त करना होता है। ध्यान थोड़ी देर, आधा घंटा, एक घंटे तक भी कर सकते है। इसे बिना किसी विधी , तंत्र, प्रक्रिया, आलंबन के भी कर सकते है। लेकिन जो इसके लिए किसी प्रक्रिया विधी तंत्र आलंबन का उपयोग करते है, उस तंत्र विधी के स्वरूप अौर प्रॅक्टिस पर निर्भर होता है कि वह कितना परिणाम कारक है। सबसे साधारण प्रक्रियावाला आलंबन है- ओम जैसे शब्दो का जाप करना या श्वास पर लक्ष केंद्रित करना- आनापान सति, आतीजाती श्वास पर लक्ष केंद्रीत करना। जबतक साधना प्रॅक्टिस करेंगे तबतक कुछ नही सोचना, केवल आनापान श्वास पर ही ध्यान रखना और जो जैसी संवेदना मन को सहसूस हो उसे वैसे ही महसूस करते रहना। इससे कांसियस माईंड पर विचार प्रक्रिया बंद रखने से हलका हलका दबाव पडकर यानि कांसिअस माईंड की क्रियाशिलता कम होकर मन शांत होते रहता है। प्रतिदिन के साधना अभ्यास से कुछ लोगों को मानसिक , शारीरीक स्वास्थ्य लाभ हो सकता है।
गोयनकाजी और उनके प्रचारक विपस्सना ध्यान साधना के लिए ( उनके साहित्य मे) बारबार कहते है कि इसमे विचार तर्क वितर्क चिंतन नही करना , कुछ सोंचना ही नही, अपने आप अनुभव ज्ञान हो जाएगा। जब डिप विपस्सना ध्यान साधना होगी तब निब्बाण प्राप्त होगा। इस साधारण अभ्यास मे फिर भी कांसिअस माईंड का कार्य धीमी गती से चलता रहता है, मन मे कुछ न कुछ विचार उठते रहते है। क्योंकि कम समय मे, कम दिनों मे डिप गंभीर स्थिती उत्पन्न नही होती। Trance गुंगी स्थिती उत्पन्न नही होती। कई योगा प्रशिक्षको ने भी विविध देशो मे अपने योग- ध्यान मेडिटेसन के सेंटर खोले है। कई तो लोगों को, गुलिबल्स को ठगाकर अपना धंदा व्यवसाय चलाते है। गोयकाजी कहते है, दीर्घकाल तक डिप विपस्सना करते रहने से मन मे कोई विचार तर्क वितर्क न उठे, मन शांत हो, मन मे कुछ भी संवेदना उत्पन्न न हो तो इस शांत स्थिती को गोयनकाजी निब्बाण कहते है। मन से कुछ भी रिएक्ट नही होने की स्थिती को जानना, यानि डिप विपस्सना मे मन कुछ भी रिएक्ट नही करता इसकी खोज को गोयनकाजी बुद्ध का संबोधीज्ञान कहते हैै। यह गोयनका का प्रचार पूर्णता गलतऔर झूठ है। इसलिए गोयनका की यह विपस्सना प्रशिक्षण मुवमेंट सर्वाधिक धोकादायक है। शोषकों का यह गुप्त एजेंडा है जो दुनिया भर मे ध्यान योग विपस्सना मेडिटेसन के नाम पर फैला रखे है।
कुछ लोग ध्यान का अर्थ होंस रखना, लक्ष करना ऐसा करते है। बोलचाल की भाषा मे ध्यान-रखने का अर्थ अलग होता है और ध्यान- करने करने का अर्थ अलग होता है। माँबाप का ध्यान रखना, ध्यानसे पढाई करना , गाड़ी ध्यान से चलाना आदि। Care, Attention लक्ष ध्यान होस सतर्कता यह अर्थ अलग है जो मेडिटेसन ध्यान विपस्सना के विपरित है, भिन्न है। ध्यान-लक्ष मे कांसीअस माईंड सतर्क विचारपूर्वक रखा जाता है तो ध्यान-समाधि मे मे कांसीअस माईंड धिमा या बंद यानि विचाररहित रखने का पूरा प्रयास किया जाता है। इन बातो को ठिक से समजना चाहिए। - गंभीर ध्यान, डिप मेडिटेसन, डिप विपस्सना ! उपर्युक्त ध्यान विपस्सना साधना को ही दीर्घकाल तक डिपली, गंभीर, गहन, सखोल स्तर तक, कई दिनो कई महिनो, कई वर्षों तक करते रहना जबतक उद्देश्य पूर्ण हो जाए, जबतक अपेक्षित अनुभव ज्ञान प्राप्त न हो जाए। इस गंभीर डिप स्थिती मे सोंचना विचार करना पूर्णता बंद करना होता है, कांसिअस माईंड का कार्य मंद- बंद हो जाता है और trance अवस्था उत्पन्न होती है। जिन जिन साधकों की यह मान्यता होती है कि इससे ईश्वर प्राप्ति, आत्मा का परमात्मा से मिलन, आत्मबोध, ईश्वर बोध होता है, मोक्ष , कैवल्य प्राप्त होता है, कुछ बौध्द मान्यता के अनुसार निर्वाण बुद्धत्व संबोधिज्ञान प्राप्त होता, ऐसी मान्यता के अनुसार वे साधक इस गंभीर डिप ध्यान विपस्सना प्रक्रिया का उपयोग करते है। विविध प्रशिक्षकों, गुरूओं, विविध मतों के विविध तकनिके होती है। बुद्धघोष ने तो दस कसिन तंत्र विधियों का प्रचार किया था। कुछ प्रशिक्षक, साधक आत्म सम्मोहन के तरीके भी उपयोग मे लाते है। जैन साधक प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करते है कैवल्य प्राप्त करने के लिए। यह डिप गंभीर ध्यान विपस्सना प्रक्रिया साधक को गुंगी Trance सम्मोहन की अवस्था तक पंहुचाता है। जो साधक इस गुंगी trance अवस्था मे, आत्मसम्मोहन की स्थिती मे पंहुचते है वे अपनी अपनी मान्यता के अनुसार आत्मभ्रम, आत्म साक्षात्कार के अनुभव प्राप्त कर सकते है। यह भ्रम का अनुभव उन्हे सच लगने लगता है। यह बहुत ही कठीण पध्दती प्रक्रिया है। शायद ही कोई ऐसी अवस्था तक पंहुच पाते हेै। कई साधक , भिक्खु आजिवन प्रयास से भी ऐसी अवस्था तक नही पंहुच पाते। इससे कभी कुछ को सायचिक पागलपण की समस्या भी हो जाती है। प्राचिन काल मे, वैदिक काल मे ऋषी मूनी ऐसी ध्यान साधना का उपयोग करते थे। कुछ बौध्दों मे भी अर्हत्व, बुध्दत्व, संबोधिज्ञान प्राप्ति के लिए इसका प्रचलन है। ट्रांसेंडेंटल मेटॅफिजिक्स के अंतर्गत पूर्ण नैतिकता के साथ इध्दीविधान- लौकिक इध्दी, लोकोत्तर इध्दी, मनोमया इध्दी (से भ्रम ज्ञान illusion) की शक्तिया प्राप्त करने को ही वास्तविक निब्बाण या अर्हत्व प्राप्ती माना गया है।( Buddhist Catechism हेनरी एस. अल्काट, श्रीलंका). सिद्धि प्राप्त करने के लिए धर्माचार्यो ने अपने साधना योगाभ्यास मे मंत्र मद्य मांस मैथुन का भी पूरा उपयोग किया और दिव्य शक्ति प्राप्ति का ढोंग करते रहे।(बोधिचर्यावतार, शांति भिक्षु शास्त्री)। बुद्धघोष के विशुध्दी मग्ग की यही कसीन तंत्र की शिक्षा है। महेश योगी के ट्रांसेंडेंटल मेडिटेसन के सेंटर्स ऐसे ही थे। ओशो रजनीश ने तो अपने केंद्र मे वज्रयान भैरवी कामभोग समाधि को बढावा दिया जो पहले महायान मे था।
कुछ वैज्ञानिक, रेशनॅलिस्ट सोसायटी के संस्थापक वैज्ञानिक अब्राहम थामस कोवूर, सम्मोहनतज्ञ श्याम मानव, अंधविश्वास निर्मुलन समिति आदि ने ऐसे डिप ध्यानों से प्राप्त अनुभव, भ्रमों को सिद्ध कर दिया है कि यह Trance गुंगी अवस्था मे, Halucination सम्मोहन अवस्था मे प्राप्त किये भ्रम के अनुभव होते है। ऐसे अनुभव कुछ ड्रग्स, एल. एस. डी., गांजा, भांग के सेवन से भी उत्पन्न किये जाते है। मन माईंड मे उत्पन्न अल्फा रिदम, हॅलुसिनेसन स्थिती से ऐसे अनुभव भ्रम होते है जो साधकों को सच के जैसे ही लगते है। कुछ धूर्त साधु बाबा सम्मोहन, मेस्मेरिजम, चमत्कार के कुछ ट्रिक्स सिखकर लोगों को सम्मोहित करके, गुमराह करके ट्रिक्स से चमत्कार दिखाकर खूद ने दैविशक्ति, अलौकिक शक्ति प्राप्त किए ऐसा भ्रम डर फैलाते है। प्राचिन काल मे महायानि संप्रदाय के भिक्षु ऐसा ही करते थे।( बुध्दचर्या, राहुल सांकृत्यायन). वे अंध भक्तों को भ्रम मे, गुमराह मे डालकर अपना धंदा चलाते है। विविध देशों मे ऐसे योग ध्यान मेडिटेसन के सेंटर खुले हुए है, कुछ धूर्त तो ठगी के व्यवसाय करते है। यानि संक्षेप मे गंभीर ध्यान, डिप मेडिटेसन, डिप विपस्सना यह कांसीअस माईंड, विचार चिंतन प्रक्रिया पूर्णता बंद कर गुंगी Trance , सम्मोहन Halucination अवस्था मे उत्पन्न भ्रम अनुभव उत्पन्न करने की प्रक्रिया तंत्रविधी होती है। - आजकल ध्यान विपस्सना मेडिटेसन, माईंडफूलनेस मेडिटेसन, माईंड क्युअर मेडिटेसन, ध्यान साधना सेंटर, विपस्सना प्रशिक्षण सेंटर, विपस्सना शोध संस्थान, व्यक्तित्व विकास, पर्सनलिटी डेवलापमेंट के नाम से कुछ लोगों ने धंदे व्यवसाय व्यापार सुरू किये है। ऐसे विपस्सना मेडिटेसन क्लासेस मे सम्मोहन विधी, सम्मोहन के पास, सम्मोहन सूचनाए दी जाती है, सिखाई जाती है।ऐसे प्रयोगोंमे आत्म सम्मोहन की शिक्षा, प्रशिक्षण दिया जाता है। सम्मोहन तज्ञ तथा ध्यान विधी, सम्मोहन मेस्मेरिजम विधी के जानकार लोगों ने धन कमाने के लिए ऐसे सेंटर खोल रखे है। हो सकता है कभी कभी किसी छात्र या व्यक्ति को ऐसे प्रशिक्षण से कुछ थोडा लाभ होता हो, किंतु ज्ञान, उच्च ज्ञान प्राप्त करने के लिए पढ़ना, सिखना, गहन अध्ययन तो करना ही पड़ता है। कभी भी विपस्सना मेडिटेसन मे सम्मोहन सुचनाए देने से अपने आप ज्ञान हासील नही होता। केवल आलस भगाकर पढने की, अध्ययन की अच्छी इच्छा बढ सकती है। महाराष्ट्र मे प्रो. शाम मानव, प्रा. जागरो और अन्य सम्मोहन तज्ञ या ध्यान मास्टर ऐसे धंदे व्यवसाय या क्लासेस चलाते है। मानसिक बिमारिया दूर करने के लिए भी कुछ सम्मोहन तज्ञ या ध्यान मास्टर इसका उपयोग करते है। मेडिटेशन मे नियमित सम्मोहन पास, मेडिटेसन पास, सुचनाए देकर सम्मोहन विधी से मन के गलत शंका, भ्रम, काल्पनिक संभ्रांत विचार कल्पना दूर करके रोगी को ठिक करने का प्रयास किया जाता है। ऐसे विधियों से कुछ दुष्ट प्रशिक्षक हानीकारक प्रयोग भी कर सकते है। सम्मोहन तज्ञ प्रो.श्याम मानव बताते है कि किसी व्यक्ति को सम्मोहित करके उसे गलत सुचनाए देकर ऐसे सम्मोहित व्यक्ति द्वारा किसी दुसरे व्यक्ति को हानी पंहुचाई जा सकती है, सम्मोहित व्यक्तिद्वारा किसी दुसरे व्यक्ति का खून तक किया जा सकता है। यानि सम्मोहित व्यक्ति उसे दी गई सुचना के अनुसार किसी का खून भी कर सकता है। यानि विपस्सना मेडिटेसन प्रशिक्षण सेंटर के अंतर्गत प्रशिक्षक ऐसे गैर कृत्य भी करा सकते है। इसलिए अंधश्रध्दा निर्मुलन समिती ऐसे ध्यान विपस्सना मेडिटेसन का, ऐसे सेंटरों का, ऐसे प्रशिक्षण का विरोध करती है अौर ऐसे धंदे व्यवसाय प्रशिक्षकों से सावधान रहने की सलाह देते है। इसलिए मस्तिष्क की रचना व कार्य आधुनिक विज्ञान (न्यूरो सायंस) से समज लेना चाहिए। वरना अभिधम्म पिटक के विविध कल्पना विलास से मस्तिष्क के कार्यो मन बुद्धि का वास्तविक ज्ञान कभी नही होगा।
- सिध्दार्थ गौतम ने गृहत्याग के बाद जब रोहिणी नदी के पानी के बटवारे का विवाद- युद्ध की स्थिती को शांति से सुलझाने का पता चला तब उन्होने सोंचा, The conflict between nations is occasional. But the conflict between classes is constant and perpetual. It is this which is the root of all sorrow and suffering in the world. I left home on account of war. War has ended but I have to find a solution for this problem of social conflict. (B&HD 1.2.6)
सिद्धार्थ गौतम ने इस सामाजिक वर्ग संघर्ष से उत्पन्न दुख समस्या के निवारण के लिए तत्कालिन शिक्षा साधनो उपायो का स्वयं परिक्षण करने का कठिण प्रयास किया। उन्होने भृगु, आलार कालाम, उदकरामपुत्र आदि सभी के विविध ध्यान मेडिटेसन के विविध प्रकार के ध्यानतंत्र की प्रॅक्टिकल शिक्षा ली, चार पांच वर्ष तक भी उन्हे काेई रास्ता नही मिला तो अंत मे कड़ी तपश्या भी की। किंतु इससे भी उन्हे कोई उपाय ज्ञान नही मिला। सभी मार्ग फेल हो गये, कोई उत्तर उपाय नही मिला। फिर भी वे हिम्मत नही हारे। और दृढनिश्चय से फिर से उरूवेला गया मे जाकर निरंजना नदी के किनारे बरगद, पिपल वृक्ष के निचे बैठकर अपनी तर्कबुद्धी से चिंतन मनन विचार करने लगे। सभी लेखको ने इसे मेडिटेसन ध्यान प्रक्रिया का नाम दिया है। चार सप्ताह तक गंभीर चिंतन मनन विचार करने के बाद अंत मे वे दुख समस्या के कारण और निवारण के उपाय के अंतिम निर्णय पर पंहुचे की, दुनिया मे दुख है, पांचो उपादान स्कंद दुखरुप है, इससे इन्कार नही कर सकते, दुखके उत्पन्न होने के ऐसे कारण है- लोभ दोष मोह तृष्णा। इसे दूर करने का ऐसा ऐसा मार्ग उपाय है- अष्टांगिक मार्ग, पंचशील, पारमिताए। ऐसे उत्तर उपाय की खोजपर दृढ विश्वास से अंतिम निर्णय करना यही अंतिम खोज यानि संबोधिज्ञान, बुध्दत्वज्ञान है। बाकी सभी लेखकों ने अपनी कलात्मक शैली मे इसका वर्णन किया है। डिप मेडिटेसन की अवस्था, ट्रांस की अवस्था का यह संबोधिज्ञान नही है। तर्कबुद्धि से खोजा गया, तर्क बुद्धि से तयार किया गया यह बुध्दत्व ज्ञान है। बाबासाहाब आंबेडकर ने इसे बड़ी आसान तरीके से बताया है।
Having refreshed himself food Gautam sat thinking over his past experiences. He realised that all paths had failed. He thought of siting under Banyan tree in meditation in the hope of a new light. In the first stage he called forth reason and envestigation. Gautam concentrated himself on the problem of finding an answer of the question which had troubled him. Lastly, he realised that there was suffering in the world and how to remove this suffering and make mankind happy. He found out the causes of suffering and unhappiness and their remedies how to remove them. These right answer is called “Samma Bodhi” (B&HD 1.4.2, 3)
यह बुद्धत्व ज्ञान उपर्युक्त तीन भागों में समजाई गई प्रक्रिया ध्यान विपस्सना मेडिटेसन से प्राप्त ज्ञान नही है। यह तर्क पूर्ण विचार प्रक्रिया से प्राप्त बुध्दत्वज्ञान है। इसे और भी आसान तरीके से ऐसे समझे–
मान लो, आपके आफिस मे, विहार समिती मे या कही भी कोई जटिल समस्या है, जटिल प्रश्न है, उसका निवारण करना है, उसका उत्तर खोजना है। आप कुछ लोग एक जगह इकठ्ठा हुए, इसे मिटिंग कहो या सामुहिक सभा कहो या जो भी कहो, आप सभी उस समस्या प्रश्न का उत्तर खोजने लगे। (इसे उत्तर खोजने के लिए सामुहिक ध्यान विपस्सना सभा मान लिजिए) . सभी ने अपने दिमाग से चिंतन मनन विचार कर अपने सूझाव उपाय उत्तर दिये। इसे क्या कहेंगे? क्या इन्होने अपने सुझाव उपाय उत्तर विपस्सना से प्राप्त करके दिये या मेडिटेसन करके दिये या गंभीर विचार करके दिये? सोंचो। समझो। अध्यक्ष महोदय जी ने सबके सुझाव उपाय उत्तर सुने, लेकिन इसमे भी उन्हे कोई सही उत्तर उपाय नही मिला। फिर भी उन्हे अब अंतिम सही उत्तर खोजकर देना है। अध्यक्ष ने अलग से एकांत मे जाकर (एक घंटेतक, एक दिन या एक माह या कुछ माह वर्ष तक) उस समस्सा प्रश्न पर, विविध सुझावों पर खुब सोंचा, गंभीर विचार चिंतन किया और अंत मे सही दृढ निर्णय पर पहुंचकर समस्या का प्रश्न का सही उत्तर उपाय खोजा और अपना अंतिम सही निर्णय उत्तर दिया। इसे आप क्या कहेंगे? क्या अध्यक्ष ने ध्यान विपस्सना मेडिटेसन करके सही अंतिम उत्तर खोजा? या अपने मन मे दृष्टिपटल पर उससे संबंधित सारी बाते लाकर अपनी तर्क बुद्धि से गंभीर विचार चिंतन करके अंतिमता सही उत्तर खोजा ? या उनके दिमाग मे बगैर सोंचे, बगैर स्मरण चिंतन मनन विचार किये ही अचानक उत्तर उपाय टपक पड़ा? क्या इसे मेडिटेसन से प्राप्त ज्ञान कहेंगे? इस प्रक्रिया प्रोसेस को क्या नाम देंगे? ठिक इसी प्रकार से सिद्धार्थ गौतम को बुद्धत्वज्ञान प्राप्त हुआ था। लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से यह प्रथम बार खोजा गया धम्मज्ञान था।
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने Meditation, contemplation, concentration, thinking यह चारो शब्द Samma Samadhi के लिए यानि तर्कपूर्ण विचार प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त किये है। किसी तंत्रविधी या श्वासप्रवास आनापानसती जैसे आलंबन वाली विपस्सना ध्यान समाधि को नही माना है। तर्कपूर्ण कांसीअस माईंड को मंद बंद धिमा करने वाली किसी भी तंत्र प्रक्रिया को बाबासाहेब नही मानते थे। बुध्द का हेतूवाद का सिध्दांत Law of kamma or law of causation यह रेशनॅलिझम की शिक्षा देता है। जांच पड़ताल की शिक्षा देता है। सुपरनेचरॅलिजम तो अधम्म है। बुद्धने ऐसी trance मेडिटेसन पराभौतिक अवस्था की शिक्षा नही दी जब की वे सम्मोहन विधिया भी जानते थे। शील सदाचार नैतिकता पंचशील अष्टांगिक मार्ग पारमिताए- विविध सद्गुणों का सभी व्यक्तिने, सभी साधकों ने ज्ञान रखना चाहिए और अपने जीवन मे पालन आचरण करना चाहिए। यही धम्म का अनिवार्य भाग है, इसे जाणकर आचरण करना ही निब्बाण जीवन है, इसे अलग से बताने की जरूरत नही है।
सिद्धार्थ गौतम के गृहत्याग के बाद से बुध्दत्व प्राप्ति के दिन तक सिद्धार्थ ने श्रोतापन्न सकदागामि अनागामि अर्हत इन अवस्थाओ को कब कब और कैसे कैसे प्राप्त किया इसका तो कोई उल्लेख ही नही मिलता। फिर ऐसी काल्पनिक अवस्थाए क्यों निर्माण की गई जिनका कोई मापदंड ही नही है।
गोयनाजी जैसे ही कुछ भिक्खु (Good Question, Good Answer. Prof.Ven. S. Dhammika, Australia) ब्रह्मविहार भावना, मेत्ताभावना Loving Kindness Meditation के नाम से अपने मन मे दुसरों का कल्याण होने की मैत्री भावना करने को सिखाते है और मानते है कि उनके ऐसा करने से दुसरों का अपने आप कल्याण हो जाएगा। खुद निष्क्रिय बैठकर अपने मन मे सोंचने या मंगलभावना बोलने से ही दुर रहने वाले लोगों का कल्याण कैसे होगा? यह मैत्रीध्यानभावना पूर्णता हिंदुओं के जैसी ईश्वर से प्रार्थना याचना करने के समान ही है जो वास्तविक कर्तव्य व सामाजिक जवाबदारी से दुर भागने का षड़यंत्री मार्ग है।
निब्बाण के प्रकार, अर्हत के प्रकार, बुद्ध के प्रकारों की अंडसंड बाते, पराभौतिक पारलौकिक काल्पनिक बाते बौद्ध त्रिपिटक साहित्य मे मिलावट की गई है। सच क्या है सब भ्रमपूर्ण है। त्रिपिटक के शब्द प्रमाण से सब अपना अपना ढोल पिटते है। आंखों के सामने दिख रही जन समस्याओंसे आँखे बंद करके, विपस्सना ध्यानो मे आँखे बंद करके समस्याओंके उपायों की उपेक्षा करनेवाले क्या समाज सुधार कर पायेंगे? क्या जनसमस्याये निवारण कर पायेंगे? सबसे बड़ा दुख तो भेदभाव,शोषण और अन्याय है। इसे ही तो दूर करना है। इसे दूर करना भी धम्म कार्य होना चाहिए।
37 बोधिपक्षिय धर्म आखिर क्या है? सील सदाचार नैतिकता, विविध सद्गुणों, अष्टांगमार्ग का पालन करते हुए गंभीर ध्यान विपस्सना समाधि से भ्रमज्ञान प्राप्त करना होता है जो वास्तव मे Trance, halucination से प्राप्त भ्रमज्ञान के साथ सम्मोहन विधी का ज्ञान होता है। बाकी सारा ज्ञान तो साहित्य के अध्ययन से प्राप्त ज्ञान होता है। इस 37 बोधिपक्षिय धर्म मे आधे से जादा भाग तो बुद्धत्व प्राप्ति के बाद मे और धम्म चक्र प्रवर्तन के कई वर्षों बाद निर्माण करके दिया गया धर्म ज्ञान है, हो सकता है बाद की संगितियों मे संग्रहित कर मिला दिया गया हो। फिर भी इस 37 बोधिपक्षिय धर्म मे तो दस पारमिताए और पंचशील तो छोड दिया गया हेै जैसे इनकी जरूरत ही नही लगती उन्हे। जिन्हे 37 बोधिपक्षिय धर्म पर विश्वास या भ्रम है कि इससे निब्बाण अर्हत्व बुद्धत्व प्राप्त होता है उन्होने न्यूरोलाजी, न्यूरोसायंस मे एम. डी. या एम. एस. करके सही तरीके से समज लेना चाहिए। लेकिन ऐसे धार्मिक अंधविश्वासों मे, पराभौतिकता, सुपर नेचरॅलिजम की प्राप्ति मे अपना जीवन बर्बाद नही करना चाहिए।
वैज्ञानिक डॉ. ए. टी. कोवूर कहते है, कोई भी वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला लायब्रेरी मे रिसर्च के लिए कोई भी धर्मग्रंथ नही रखते। क्योंकि वैज्ञानिक रिसर्च के लिए कोई भी धर्मग्रंथ किसी काम के नही है। फिर त्रिपिटक मे कौनसा विज्ञान है जो बुद्ध को महान वैज्ञानिक कहा जाता है जो रिसर्च के काम आयें। जरा सोंचो, बगैर अध्ययन शिक्षा के डिप मेडिटेसन विपस्सना मे न्यूरोलाजी या कानुन कायदो , विविध समस्या निवारण के उपायों का ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? इसलिए धर्मग्रंथों की व्यर्थ की अवास्तविक बातों मे विश्वास नही करना चाहिए।
बौद्ध धम्म की शिक्षा, अध्ययन के साथ उसके वास्तविक मानवी मूल्यों को अपने जीवन मे उतारकर बाबासाहाब आंबेडकर की भाँति M. A., Ph.D., M.Sc., D.Sc., LLD, D.Lit., LLB, Bar.at Law तथा IAS, IPS, IRS, आदि ऐसी अद्यतन उच्च से उच्च शिक्षा ज्ञान कम आयु मे ही प्राप्त कर समाज उत्थान , जनसमस्यायें निवारण, समाज परिवर्तन के लिए कष्टसाध्य कार्य करने की आंबेडकरी प्रेरणा ही आधुनिक युग का सर्वोत्तम आदर्श है जिस पर सही अमल करने से ही वर्तमान मे बहुजन वंचित मागास समाज की विविध समस्यायें सुलझा सकते है।
समजने के लिए कुछ और भी विवेेचन–
Buddha did not automatically enlightened in meditation. He did not experienced SammaBodhigyan in deep vipassana, in deep meditation, in trance state. But he thought means he focussed his mind, his thoughts, his attention with all his acquired knowledge on the various problems of individual, social, and evolution of nature and finaly concluded, confirmed, firmly decided that there is is Dukkha in everybody’s life, nobody can escap from sufferings and he found out its reasons and remedies and prepared the principles and doctrines of his Dhamma. This Budhatvagyan got through deep thinking and remembering process by using conscious mind , but not in trance through deep vipassana meditation. This is called Samma Bodhi gyan.
अब यह संबोधिज्ञान प्राप्तकरने के बाद आगे प्राप्त करने के लिए ,कुछ सिखने के लिए संसार मे कुछ ज्ञान शेष बचा ही नही है, ऐसा नही है। सारा त्रिपिटक का प्रचलित सारा ज्ञान उन्हे एक साथ प्राप्त हुआ था ऐसा नही है। ज्ञान असिमित है। अपने तर्क बुध्दी से बुध्दत्व प्राप्ति के बाद भी वे जीवन भर अपने ज्ञान मे वृद्धि करते रहे, उपदेश, शिक्षा देते रहे। निब्बाण अर्हत्व संबोधिज्ञान बुद्धत्वज्ञान यह ऐसी परफेक्ट स्पष्ट संकल्पनाये नही है कि जिन्हे किसी मापदंड से मापा जा सके, समजा जा सके तथा इन्हे प्राप्त करने के बाद आगे कोई ज्ञान ही शेष बचा ना हो। इसमे अवास्तविक अद्भूत शक्तिया बल प्राप्ति की बाते त्रिपिटक मे मिलावट कर इसे जादा असंभव व असंगत बना दिया गया।
Sambodhigyan or Budhatva or awakened mind means acquired perfect intellectual knowledge about causes and remedies of sufferings and sorrows along with ethical perfection of mind.
“बुध्द यानि परिपूर्ण बुद्धिवादी, नैतिकतावादी, मानवतावादी, भेदभाव विरूध्द समानतावादी और दूख शोषण के मूल कारण व उपाय खोजकर स्वयं दुखमुक्त होकर दुसरों के दुख शोषण दूर करने के लिए सतत संघर्षशील व्यक्ति।”
Buddha means those person who have acquired perfect intellectual knowledge about causes and remedies of sufferings and sorrows, and freed himself from it along with ethical perfection of mind, and fight or help to remove other’s sufferings and basic problems.
Mind never awaken or enlighten automatically in deep vipassana, deep meditation. Knowledge is always acquired, discovered, invented thoughts but it is not heriditary or enlightened, i.e. automatically never generate/ experience in mind without thinking and remembering.
बुद्ध के द्वारा ब्राह्मणी समाज व्यवस्या यानि वर्णव्यवस्था को पूर्णता बदलने की, समाप्त करने की सामाजिक क्रांति को रोकने विफल करने के लिए ब्राह्मणवादी बौद्ध भिक्खुओंने (चाहे वे महायानी हो या हिनयानी) निब्बाण संबोधि बुध्दत्व अर्हत्व प्राप्ति, पुनर्जन्म, प्रतित्यसमुत्पाद आदि के मूल अर्थ बदलकर ध्यान विपस्सना समाधि के द्वारा निब्बाण संबोधि बुध्दत्व अर्हत्व प्राप्त कर पूर्वजन्म संचित कम्म पूनर्जन्म के भवचक्र से मूक्त होनेके मनगढंत, भ्रमपूर्ण , अवैज्ञानिक बाते मिलाकर बौद्ध धर्म को संघर्षहिन, समाजविमुख बना दिया अौर वर्ग संघर्ष के सामाजिक परिवर्तन के क्रांतिकारी संघर्ष से दूर कर धर्म के प्रचारकों को,भिक्खुओं को निष्क्रिय बना दिया। बुद्ध को अद्भूत पारलौकिक शक्तिया प्राप्त सर्वज्ञ बना दिया जो पूर्णता गलत है। प्राचिन और आधुनिक बौद्ध (भिक्खु या गृहस्थ) लेखकों ने गौतम बुध्द (बुध्दत्व) को उंचे उंचे ज्ञान के आदर्शो मे दिव्यशक्ति संपन्न इस प्रकार परिभाषीत कर दिया है कि आम गृहस्थ या प्रचारक इन उंचे आदर्शो को सपने मे भी हासिल नही कर सकता अौर भक्ति श्रध्दा भावना तथा तर्कशील ज्ञान के अभाव मे अपने को बहोत असहाय, कमजोर, असमर्थ ,अयोग्य महसुस करता है। जबकी वह अपने गृहस्थ जीवन मे भी अपनी उच्चत्तर शिक्षा, उच्चत्तर ज्ञान और अपने नैतिक पवित्र आचरण, गुणसंपन्न बर्ताव से अौर कठीण संघर्ष से महान समाज सेवा तथा सामाजिक परिवर्तन, समाज सुधार करके उंचे से उंचे आदर्शो पर विराजमान हो सकता है, और बुद्धत्व प्राप्ति करना तथा बुद्ध बनना यानि महान पुरूष बनना इससे अधिक और कुछ नही है। हाँ, गौतम बुध्द बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, है और हमेशा रहेंगे और सभी को अनुकरणिय है, सभी के आदर्श है, प्रेरणास्त्रोत है, वंदनिय है, श्रेष्ठ है, मार्गदाता है। लेकिन बुद्ध के नाम से संकलित संपूर्ण त्रिपिटक पूर्णता सही बुद्धवचन नही है, पूर्णता ग्राह्य, पूर्णता बुद्धिसंगत नही है , इसका ध्यान रहे।
सभी ने यह बात ध्यान मे रखना चाहिए कि, बुद्ध काल मे लिखने की कोई भाषालिपी अस्तित्व मे नही थी। किसी भी भाषा लिपी मे लिखने की कला विकसित नही हुई थी। वैज्ञानिक कहे जाने वाले बुध्द ने भी लिखने का, लिपीबध्द करने का कोई अक्षर ज्ञान प्राप्त नही किया था, वे नाही लिखने की लिपी खोज सके। अपने ही ज्ञान को लिपीबध्द करने का कोई ज्ञान बुद्ध नही खोज सके थे। देखने सुनने याद करने, स्मरण करने,चिंतन मनन करने, बोलने , श्रवण करने, भाणक की प्रक्रिया की ही शिक्षा व्यवस्था थी। सुनसुनकर श्रवण कर याद करना, और याद किया हुआ, स्मरण चिंतन किया हुआ ही बताना यानि श्रवण भाणक प्रक्रिया की शिक्षा प्रणाली बुद्ध काल मे थी। बुध्द के द्वारा धम्म उपदेश और भिक्खुओं को धम्म प्रशिक्षण की ऐसी ही व्यवस्था थी। भिक्खुओं को दी गई धम्म शिक्षा, उपदेश,तत्व सिद्धांत बाते वे श्रवणकर याद कर लेते थे और याद की गई धम्म शिक्षा ही और अपने से भी कुछ सोंच कर मिलावट कर धम्म शिक्षा दुसरों को बताई जाती थी। शिक्षा, ज्ञान लिखित रूपमे या सहज उपलब्ध नही रहने से भिक्खुओं को स्मरण शक्ति, याददास्त की शक्ति का जादा उपयोग करना पडता था। बुद्ध तथा अन्य भिक्खु भी सुबह सुबह स्नानादि से फ्रेस तयार होकर पहले सुने हुए, याद किये हुए ज्ञान को स्मरण करने तथा कुछ नया सोंचने , सिखने, या उपदेश मार्गदर्शन देने ध्यानमूद्रा मे, मेडिटेसन मे बैठ जाते थे। यह उनकी दैनंदिन नियमित प्रक्रिया थी। सुबह, दोपहर,श्याम,रात्री जिन्हे जैसी सुविधा हो अपना अपना अभ्यास, अध्ययन अध्यापन करते रहते थे। ध्यान समाधि मेडिटेसन श्रवण स्मरण यही प्रक्रिया उस काल मे अध्ययन अध्यापन शिक्षा अभ्यास के लिए प्रचलित थी। कोई दुसरा तरीका ही नही था। शिक्षा प्राप्ति का श्रवण स्मरण भाणक चार स्मृति प्रस्थानो का उपदेश सुनने के बाद उसे याद स्मरण चिंतन करने की यही व्यवस्था थी। इसे ही सतिपठ्ठान , स्मृतिप्रस्थान, विपस्सना ध्यान सम्मासमाधि मेडिटेसन कहा जाता था। अन्य उपदेश, शिक्षा ग्रहण की यही प्रक्रिया थी। लेकिन यह प्राचिन काल की योग समाधि ध्यान आलंबन तंत्र कसीन तंत्रों वाली व्यवस्था नही थी। बुद्ध ने सम्मोहन विधिया नही सिखाई। उन्होने इसका कड़ा विरोध किया था। इसलिए बुद्ध ने इसे सम्मा समाधि का नाम दिया था और इस सम्मा समाधि की शिक्षा प्रणाली को अष्टांगिक मार्ग मे सामिल किया था। यह तर्क पूर्ण सोंच विचार स्मरण चिंतन की शिक्षा प्रक्रिया थी। धूर्तो ने इसे आलंबन तंत्रो वाली विपस्सना ध्यान प्रक्रिया बना दिया । इस बात को अवश्य ध्यान मे रखे। बुद्ध की मुर्तिया भी इसी अभ्यास प्रक्रिया, चिंतनशिल भावना से बनाई जाती थी जो चिंतनशिल,अभ्यासरत बुद्ध की प्रेरणा स्त्रोत होती थी। ध्यानी बुद्ध नही तो शिक्षा ज्ञान देनेवाला बुध्द। लिखने की कला लिपी सम्राट अशोक के काल मे खोजकर धिरे धिरे विकसित हो रही थी। भिक्खुओं ने ही लिखने की लीपी कला निर्माण की थी।इसलिए इसे धम्म लिपी कहा जाता है जिससे सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों मे कुछ संदेश, उपदेश लिखे है,लिखवाये है।
तीनो चारों संगितियों मे बुद्धवचनों, धम्मउपदेशों को श्रवण भाणक प्रक्रिया से संग्रहित किया गया था जिसमे मुल बुद्ध कथनो उपदेशों मे काफी मिलावट और परिवर्तन हो चुका था। इसका पूरा फायदा ब्राह्मणी वर्णव्यवस्था के पोषक कुछ भिक्खुओं ने भी उठाया और त्रिपिटक साहित्य मे मिलावट और ब्राह्मणवादी बातों को संग्रहित व स्थापित कर दिया था। इसलिए त्रिपिटक व प्राचिन बौद्ध साहित्य की संभ्रांत अर्थहिन विसंगत बातों कों, सूत्तों को बुध्दवचन नही मानना चाहिए। तर्कसंगत जांचपड़ताल कर सही बुद्धिसंगत जनहितकारी लगे उन्ही उपदेशों वचनो सूत्तों को मानना चाहिए व बाकि सूत्तों बातों कों संभ्रात गलत हानिकारक समजकर छोड़ देना चाहिए। उनका प्रचार नही करना चाहिए। गलत प्रचार करनेवालों का भांड़ाफोड़ विरोध करना चाहिए।
जो भी समाज सेवक, समाज हितैषी, सामाजिक कार्यकर्ता, धम्मसेवक, धम्मप्रचारक है, या जो बनना चाहते है वे इस भ्रम शंका मे कभी ना रहे की ध्यान विपस्सना मेडिटेसन करने से या त्रिपिटक का अध्ययन अभ्यास ज्ञानप्राप्त कर विपस्सना मेडिटेसन करने से उन्हे या किसी को भी अर्हत्व बुद्धत्व संबोधि ज्ञान प्राप्त होगा तथा समाज सुधार, समाज परिवर्तन , सामाजिक समस्याये निवारण का विस्तृत सही ज्ञान अपने आप उन्हे प्राप्त हो जाएगा। ऐसे काल्पनिक भ्रम तथा गलत संकल्पनाओं को प्राप्त करने के चक्कर मे उनका सारा जीवन बर्बाद हो जाएगा। वर्तमान की विविध सामाजिक समस्याये, जनसमस्यायें निवारण के लिए वर्तमान मे ही विभिन युनिव्हर्सिटीयों मे उपलब्ध उच्च से उच्च शिक्षा कम आयु मे ही लेनी चाहिए और वर्तमान शासकिय, गैर शासकिय व्यवस्थाओं को सुचारू रूपसे चलाकर जनसमस्यायें, सामाजिक समस्याओं का निवारण करना चाहिए और शासकिय हो या गैरशासकिय गलत व्यवस्थाओं, गलत मूल्यों को समाप्त करने के लिए, उन्हे बदलने के लिए कठीण संघर्ष करना चाहिए। अर्हत या बुध्द कोई बहुत बड़ी दिव्य शक्ति प्राप्त व्यक्ति नही होते, वे भी उपलब्ध ज्ञान प्राप्त कर और अपनी तर्कबुध्दि का उपयोग कर महापुरूष की भाँति अच्छे समाज सेवक ही होते है। कार्यकर्ताओंने विविध धर्मो के साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन कर उसमे जो जनकल्याण की बातें हो उन्हे स्विकार कर समस्याये निवारण मे अवश्य उपयोग करना चाहिए। लेकिन गलत बाते छोड़ देनी चाहिए। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का कम आयु मे ही उच्च से उच्च अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का ध्येय अौर सामाजिक समस्याए निवारण के लिए कठिण संघर्ष करने का उद्देश्य हमेशा ध्यान मे रखकर ही अपने प्रयास करते हुए अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। वर्तमान वर्गसंघर्ष, सत्तासंघर्ष, सामाजिक आर्थिक विषमताओं, समस्याओं को दूर करने के लिए बाबासाहाब आंबेडकर ने बताई उच्च शिक्षा और सही आंदोलन व वैधानिक संघर्ष प्रणाली को पूर्णता अमल मे लाकर ही आगे बढना चाहिए और सत्ता शासन प्रशासन, ब्यूरोक्रेसी, जुडिसियरी जैसे शक्ति केंद्रो को नैतिक, करूणाशील, मानवतावादी लोगों के ही हाथ मे रखने का हरसंभव भरसक प्रयास करना चाहिए। उपरोक्त बातों को नही समजने वाला, नही जानने वाला कोई भी व्यक्ति ना तो निब्बाण प्राप्त कर सकता है और ना ही अर्हत्व , नाही बुद्धत्व को सही समज सकता है।
????????????अनिल रंगारी
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