विज्ञान और धर्म-
धर्म का अपमान आप सहन नहीं कर सकते अच्छी बात है लेकिन इतना तो बताइए कि जिस मोबाइल पर आप यह बात लिख रहे हो वह धर्म की देन है या विज्ञान की? स्पष्ट है कि यह विज्ञान की देन है और विज्ञान मजबूत होता है तर्क करने से सवाल करने से यदि न्यूटन के दिमाग में सेव के पेड़ से नीचे गिरने पर सवाल नहीं पैदा हुआ होता तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का पता ही न चला होता विज्ञान तर्क को महत्व देता है धर्म तर्क करने से मना करता है तर्क के दम पर विज्ञान ने मानव सभ्यता को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया और तर्क से मना करके धर्म ने मानव को अंधविश्वासी बना दिया जैसा भी हजारों साल पहले किसी इंसान ने लिख दिया उसे आंख बंद करके मान लेने को धर्म बाध्य करता है भले ही उन बातों का कोई आधार न हो लेकिन आपको तर्क नहीं करना है अर्थात आप ऐसी गाड़ी चला रहे हो जिसकी हेड लाइट पीछे लगी है भले ही दुर्घटना हो जाय आपको धर्म हेड लाइट आगे लगाने की इजाजत नहीं देता।
जबकि विज्ञान तर्क करते हुए निरंतर जरूरत के हिसाब से नये नये आविष्कार व परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है आप जीवन में सारे लाभ तो लेंगे विज्ञान के और रक्षा करेंगे धर्म की जिससे आज तक आप को कोई भी लाभ नहीं मिला है उल्टे धर्म आपकी मेहनत की कमाई कर्महीन निठल्लों के ऊपर खर्च करने को प्रेरित करता है धर्म ने आपको प्रसाद के साथ गाय सूअर की चर्बी व मछली का तेल खिला दिया लेकिन विज्ञान ने लैब में टेस्ट करके बता दिया कि इस प्रसाद में इन अभक्ष्य चीजों की मिलावट है, आप बीमार होने पर भागकर डाक्टर के पास जाते हैं ठीक भी हो जाते हैं लेकिन श्रेय देने पहुँच जाते हैं भगवान देवी देवता के मंदिरों में, आपकी उन पर इतनी ही आस्था और विश्वास है तो बीमार होते ही अस्पताल के बजाय मंदिर क्यों नहीं जाते।
आपको तो पता ही होगा धर्म खाने की पौष्टिक घी को जलाने और दूध को पत्थर की मूर्तियों पर उड़ेल कर बर्बाद करने और गोबर खाने व गोमूत्र पीने को प्रेरित करता है वहीं विज्ञान आपको रिसर्च करके बता देता है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।
जिस तरह आपके अंदर धर्म के अपमान न सहन करने की भावना जागी क्या इसी तरह की भावना विज्ञान के अपमान पर जागी? वैसे विज्ञान आप जैसों के संरक्षण का मोहताज नहीं है जिस तरह आपका अपाहिज धर्म आप जैसों के संरक्षण का मोहताज है ।
इसे विज्ञान के प्रति एहसान फरामोशी ही कहा जायेगा कि जीवन में कदम कदम पर लाभ उठायें विज्ञान का और रक्षा करें धर्म की।
प्रिय मित्र! जैसे शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए कसरत की जरूरत होती है वैसे ही दिमाग को तेज बनाने के लिए भी कसरत की जरूरत होती है तर्क ही दिमाग की कसरत होती है आपका धर्म तर्क करने से मना करके आपके दिमाग को कुंद कर देता है उसे कमजोर बनाये रखना चाहता है ताकि धर्म के धंधेबाज आपको मूर्ख बनाकर आपकी मेहनत की कमाई आसानी से लूट सकें। आप तो लुटेंगे ही भावी पीढ़ी को भी तर्क से दूर रखकर अंधविश्वासी कमजोर दिमाग वाला धार्मिक परजीवियों का आसान शिकार बनाने का पाप भी करेंगे तब उनके चंगुल से उन्हें बचाने के लिए न आप होंगे न हम।
आपकी विरासत तर्कवाद विज्ञान वाद है भावी पीढ़ी का उज्वल सम्मानजनक भविष्य चाहते हो तो अपनी विरासत तर्कवाद व विज्ञान वाद को मजबूत करिये, तर्कहीनता और अवैज्ञानिकता पर आधारित धर्म वाद, अंधश्रद्धा वाद जिन धर्म के धंधेबाजों की विरासत है उन्हें धर्म की रक्षा करने दीजिए!
फुले, साहू, अंबेडकर, पेरियार की किताबें लाकर खुद भी पढ़िए बच्चों को भी पढ़ाइए ये ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने धर्म के द्वारा शोषित वंचित बहुजन समाज के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष किया है इन महापुरुषों को पढ़ने के बाद निश्चित रूप से आप तर्क वादी विज्ञान वादी बन जायेंगे तब आपकी समझ में आ जायेगा कि धर्म के अपमान पर नहीं बल्कि धर्म ने हमारे समाज का जो अपमान शोषण उत्पीड़न किया है उसके खिलाफ जो संघर्ष चल रहा है उसमें अपनी भागीदारी निभानी है।
चन्द्रभान पाल (बी एस एस)
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दैनिक जागृत भारत