रामायण एक काल्पनिक नाटक है कोई इतिहास नहीं है
रामायण एक काल्पनिक नाटक है कोई इतिहास नहीं है इसका कोई सबूत नहीं मिलता है।और न ही इससे समाज और देश वासियों का कुछ भला होता है
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सुप्रीम कोर्ट
ललई सिंह यादव केस : सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हिंदी अनुवाद
1968 में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता ललई सिंह ने ईवी रामासामी पेरियार की चर्चित पुस्तिका ‘रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ के नाम से प्रकाशित किया था, जिस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। ललई सिंह ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ लंबी लडाई लडी, जिसमें उनकी जीत हुई।
सर्वोच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश राज्य बनाम ललई सिंह यादव
याचिकाकर्ता : उत्तर प्रदेश राज्य बनाम प्रत्यर्थी : ललई सिंह यादव
निर्णय की तारीख : 16, सितंबर, 1976
पूर्णपीठ : कृष्ण अय्यर, वी. आर. भगवती, पी.एन.फज़ल अली सैय्यद मुर्तजा
निर्णय : आपराधिक अपीली अधिकारिता: आपराधिक अपील संख्या 291 , 1971
(इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 19 जनवरी, 1971 के निर्णय और आदेश से विशेष अनुमति की अपील। विविध आपराधिक केस संख्या 412/70)
अपीलकर्ता की ओर से डी.पी. उनियाल तथा ओ.पी. राणा। प्रत्यर्थी की ओर से एस.एन. सिंह।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय :
कुछ मामले ऊपर से दिखने में अहानिकर लग सकते हैं, किन्तु वास्तविक रूप में ये लोगों की स्वतंत्रता के संदर्भ में अत्यधिक चिंताजनक समस्याएं पैदा कर सकते हैं। प्रस्तुत अपील उसी का एक उदाहरण है। इस तरह की समस्याओं से मुक्त होकर ही ऐसे लोकतंत्र की की नींव पड़ सकती है, जो आगे चलकर फल-फूल सके।
इस न्यायालय के समक्ष यह अपील विशेष अनुमति से उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा की गई है। अपील तमिलनाडु के दिवंगत राजनीतिक आंदोलनकर्ता तथा तर्कवादी आंदोलन के नेता पेरियार ईवीआर द्वारा अंग्रेज़ी में लिखित ‘रामायण : ए ट्रू रीडिंग’ नामक पुस्तक और उसके हिंदी अनुवाद की ज़ब्ती के आदेश के संबंध में की गई है। अपील का यह आवेदन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 99-ए के तहत दिया गया है।
अपीलकर्ता उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार [जब्ती की अधिसूचना इसलिए जारी की गई है क्योंकि], ‘यह पुस्तक पवित्रता को दूषित करने तथा अपमानजनक होने के कारण आपत्तिजनक है। भारत के नागरिकों के एक वर्ग- हिन्दुओं के धर्म और उनकी धार्मिक भावनाओं को अपमानित करते हुए जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने की मंशा [इसमें] है। अतः इसका प्रकाशन धारा 295 एआईपीसी के तहत दंडनीय है।’ [उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी] अधिसूचना में सारणीबद्ध रूप में एक परिशिष्ट प्रस्तुत किया है, जिसमें पुस्तक के अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करणों के उन प्रासंगिक पृष्ठों तथा वाक्यों का सन्दर्भ दिया गया है, जिन्हें संभवतः अपमानजनक सामग्री के रूप में देखा गया है। उत्तर प्रदेश सरकार की इस अधिसूचना के बाद प्रत्यर्थी प्रकाशक [ललई सिंह] ने धारा 99 सी के तहत [इलाहाबाद] उच्च न्यायालय को आवेदन भेजा था। उच्च न्यायालय की विशिष्ट पीठ ने उनके आवेदन स्वीकार किया तथा सच्ची रामायण पर प्रतिबंध लगाने और इसकी जब्ती करने से संबंधित उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया।
इस प्रकार से साबित होता है और तर्क करने पर वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार रामायण और महाभारत किसी भी तरह से सत्य साबित नहीं होता है सिर्फ कोरी कल्पनिक कहानियाँ और झूठ और बकवास साबित होता है धर्म के नाम पर लोगों को झूठ और अफवाह और डर बनाकर मानसिक रोगी और नशेडी बनाया गया है।
इसीलिए ही भगवान बुद्ध से लेकर सम्राट अशोक भारत के संविधान निर्माता सिंबल आफ नालेज बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने सभी इसको नकार दिया है और सिंबल आफ नालेज बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने खुद हिन्दू धर्म को लात मार कर 22 प्रतीज्ञाओं सहित बुद्ध धम्म अपनाना है और पूरे देश को बुद्धमय बनाने के का संकल्प लिया था ।
जो लोग धर्म के नाम पर ब्राह्मणों द्वारा लिखित धर्म ग्रंथों को मान रहे हैं वे मानसिक गुलाम है और अज्ञानता वस अपने दुश्मनों अपने ही पूर्वजों के हत्यारों के प्रतीक को ही पूज रहे हैं ।
बौद्ध आचार्य डॉ एस एन 8700667399
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