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मज़धार में नैय्या डुबे तो…

अशोक सवाई

राजेश खन्ना एवं शर्मिला की अमर प्रेम नाम की एक पुरानी फ़िचर फिल्म है। उस में एक गाना है। गाने के बोल है, चिंगारी कोई भडके… और इसका अंतिम चरण है, ‘मज़धार में नैय्या डुबे तो मांझी पार लगाए, मांझी जो नैय्या डुबोए उसे कौन बचाए’… जरा कल्पना किजीएगा की, हमारे देश में नैय्या के रूप में न्याय व्यवस्था है और उस में १४० करोड जनता बडी उम्मीद के साथ सफ़र कर रही है। उस नैय्या में मांझी के रूप में न्याय व्यवस्था का मुखिया डी. वाय. चंद्रचूड साहब है। आंधी, तुफान में भी नैय्या पार लगाने की कोशिश मांझी की है। लेकिन किनारा आते आते मांझी हार जाता और नैय्या मज़धार में डुबने के लिए छोड देता है। या ऐसा आभास नैय्या में बैठे लोगों को होता है। ऐसा ही कुछ जो कल परसों खब़रे आयी उस से लगता है। खब़र थी, चीफ जस्टिस डी. वाय. चंद्रचूड जी के घर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गये। इस से लोगों को लग रहा है की न्याय व्यवस्था प्रभावित होकर न्याय निपक्ष नही हो सकेगा। स्वतंत्र देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुवा है। कोई प्रधानमंत्री किसी चीफ जस्टिस के घर गया हो। वैसे तो गुज़रे दस सालों में पहली पहली बार बहोत कुछ हुवा है। इतिहास ने अपने पन्नों पर इसका हिसाब किताब लिख़कर रखा है। प्रधानमंत्री ने वहाॅं जाकर बा कायदा आरती उतार कर गणेश जी की पूजा अर्चा की। अच्छा… वहाॅं गये तो वो महाराष्ट्र के मराठी माणूस का सफेद धोती कुर्ता, सर पर सफेद टोपी और गले में गमछा ऐसा सिंबाॅलिक लिबास परिधान करके गये। और महाराष्ट्र की जनता को उन्होने सिंबाॅलिक लिबास से संदेश देने का प्रयास किया की मै महाराष्ट्र की अस्मिता से जुडा हूॅं। ये सब इसलिए किया की महाराष्ट्र में आनेवाले दिनों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है। गणेशोत्सव के दिनों में चीफ जस्टिस के घर में भी गणेश जी की प्रतिष्ठापना होती है यह हमें पहिली बार पता चला। खैर…

प्रधानमंत्री चीफ जस्टिस के घर गये वहाॅं उन्होने पूजा की और चुपचाप चले गये ऐसा नही हुवा। प्रधानमंत्री वहाॅं गये तो गये अपने साथ कॅमेरामन और फोटोग्राफर भी साथ लेकर गये। वहाॅं पूजा अर्चा का व्हिडिओ बनाकर व्हायरल किया। फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिये। (ऐसा पत्रकार और विश्लेषकों का कहना है) जहाॅं वहाॅं अपने फोटो शूट करने की प्रधानमंत्री की हमेशा की फ़ितरत रही। ये सारा देश जानता है। इस से सुप्रीम कोर्ट का पूरा बार असोसिएशन, खुद्द कपिल सिब्बल जो बार असोसिएशन के अध्यक्ष है, सिनीयर लाॅयर अशोक अरोरा जो फिलहाल जर्मनी में स्थित है, सुप्रीम कोर्ट के जाने माने बडे वकील प्रशांत भूषण और देश का बुद्धिजीवी वर्ग काफी नाराज हुवा है। और होगा भी क्यों नही? एक चीफ जस्टिस जो न्यायपालिका के मुखिया है और दुसरे जो विधायीका के मुखिया है। दोनो ही सर्वोच्च संविधानिक पद पर कार्यरत है। ऐसे में सार्वजनिक रूप से किसी एक धर्म के देवता की पूजा अर्चा करना उस संविधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुचाने जैसा नही है? क्या ये असंवैधानिक नही है? प्रधानमंत्री तो प्रधानमंत्री है लेकिन चीफ जस्टिस आप भी… प्रधानमंत्रीने तो अपनी मां का आशिर्वाद लिया था वो भी अलग अलग ॲंगल से कॅमेरे के सामने… भला कोई कॅमेरे के सामने अपने मां का आशिर्वाद लेता है? लेकिन लोग कहते आ रहे है, राजा की जान कॅमेरा में…

जो हुवा और सामने आया इस से अब लोगों को भी संदेह होने लगा की, चीफ जस्टिस रिटायर्ड होने से पहले जब की उनका कार्यकाल सिर्फ पचास पचपन दिनों का बाकी है। इन दिनों में उनके बेंच पर काफी संवेदनशील मामले के केसेस पेंडींग है। अगर वे अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव में आते है तो क्या निपक्ष न्यायदान कर पायेंगे? जैसा की उन्होने कहाॅं था की, ‘न्याय होना काफी नही न्याय होते हुवे दिखना भी चाहिए’। क्या उनके पचास पचपन दिनो के सेवा कार्यकाल में जनता को न्याय दिया हुवा दिखेगा? यह बडा सवाल है। या फिर चीफ जस्टिस का सेवा कार्यकाल समाप्त होने के बाद क्या वे रंजन गोगोई जैसे किसी संविधानिक पद के लाभार्थी बनने जा रहे है। ऐसे बहोत सारे सवाल है जो जनता के मन में उठ रहे है। उनके सवालों का समाधान कौन करेगा? जब की संविधानिक पद पर बैठे हुवे पद धारक का ही यह उत्तरदायित्त्व बनता है। और सर्वोच्च संविधानिक पद पर बैठे हुवे लोगों को जनता सवाल नही करेगी तो फिर कौन करेगा? अगर चीफ जस्टिस का सेवा कार्यकाल समाप्त होने से पहले कर्तव्य कठोर होकर निपक्ष रूप से वे न्याय देते हुवे दिखाई देते है तो आज उनकी दिशा में लोगों द्वारा उठाए गये सवाल अपने आप खारीज हो जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश के जजों के लिये कुछ प्रोटोकॉल अंकित किये है।

१) भारतीय न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता अबाधित रहे यह जजों का कर्तव्य है।
२) न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता प्रभावित होने देना या उसका आभास भी निर्माण होने देना यह जजों के लिए गलती है। इस से जजों को बचना होगा।
३) जजों ने कोई भी राजनैतिक चीजों से दूर रहना चाहिए।
४) जजों का अपना विश्वास सरकार के प्रति नही, भारत के संविधान के प्रति होना चाहिए।

            चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी. वाय. चंद्रचूड साहब ने इलेक्ट्रोल बाॅंड को असंवैधानिक करार तो दिया था। लेकिन जिन्होने ये असंवैधानिक काम किया उनका इन्व्हेस्टिगेशन कर के और उनको अपराधी करार देकर कटघरे में खडा नही किया। यहाॅं न्याय तो दिया लेकिन न्याय होते हुवे नही दिखायी दिया। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसे कही मौके आए होंगे की, देश के सर्वोच्च संविधानिक पदो पर बैठे  व्यक्तीने एक दुसरे को आमंत्रित किया होगा, लेकिन उन्होने अपनी अपनी पद की गरीमा को ध्यान में रखते हुवे बडी विनम्रता के साथ आमंत्रण को नकारा होगा। विद्यमान चीफ जस्टिस भी उस परंपरा का हिस्सा बन सकते थे लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नही हुवा। खैर...

            आज प्रधानमंत्री चीफ जस्टिस के घर गये, कल कोई मुख्यमंत्री किसी हायकोर्ट के घर जाएंगे, परसो कोई महापौर किसी  डिस्ट्रिक्ट मॅजेस्टिक के घर पहुचेंगे। ऐसा हुवा तो देश का संविधानिक ढाचा ही बदल जाएगा और सिस्टीम चरमरा जाएगा। ऐसा न हो इसकी जिम्मेदारी उन व्यक्ती पर है जो सर्वोच्च संविधानिक पद पर विराजमान है। नही तो... 'मांझी जो नैय्या डुबोए उसे कौन बचाए'... 

-अशोक सवाई.

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