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बिहार में महागठबंधन सरकार द्वारा एससी,एसटी और ईबीसी-बीसी के आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए गए प्रावधान को 9 वीं अनुसूची में डालने में देरी क्यों?नरेन्द्र मोदी-नीतीश कुमार जवाब दो!

सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार)

*बिहार में महागठबंधन सरकार द्वारा एससी,एसटी और ईबीसी-बीसी के आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए गए प्रावधान को 9 वीं अनुसूची में डालने में देरी क्यों?नरेन्द्र मोदी-नीतीश कुमार जवाब दो!

*एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण का अधिकार राज्यों को दिए जाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमें कबूल नहीं!

*जाति जनगणना क्यों नहीं?नरेन्द्र मोदी जवाब दो!
*निजी क्षेत्र,हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति सहित हर क्षेत्र में एससी,एसटी और ओबीसी को आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की गारंटी करो!

*एससी,एसटी और ओबीसी के आरक्षण पर हमला बंद करो!
*असंवैधानिक 10 प्रतिशत ईडब्लूएस आरक्षण खत्म करो!

*एससी,एसटी और ओबीसी के आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा और क्रीमी लेयर के प्रावधान को खत्म करने के लिए संसद में कानून बनाओ!

               प्रतिरोध मार्च
 7 अगस्त-राष्ट्रीय ओबीसी दिवस.

3 बजे से,शहीद भगत सिंह चौक(घंटाघर) से डॉ.अंबेडकर चौक(भागलपुर रेलवे स्टेशन).

साथियो,
महगठबंधन सरकार द्वारा कराये गये जाति गणना से यह पता चला कि बिहार की आबादी में पिछड़ा वर्ग-27.12 प्रतिशत,अत्यंत पिछड़ा वर्ग-36.01 प्रतिशत,अनुसूचित जाति-19.65 प्रतिशत,अनुसूचित जनजाति-1.68 प्रतिशत और सामान्य वर्ग 15.52 प्रतिशत है.इस गणना के आधार पर ही महागठबंधन सरकार ने एससी का 17 से 20%, एसटी का 1 से 2%, ईबीसी का 18 से 25 %,बीसी का 12 से 18 % आरक्षण का कोटा बढाया था.ब्राह्मणवादी शक्तियों की ओर से सरकार के इस फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी.कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से पूर्व सुनवाई पूरी कर ली थी.चुनाव का नतीजा आने के बाद पटना हाईकोर्ट ने एससी,एसटी और ईबीसी-बीसी के 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को रद्द करने का फैसला सुनाया.

सामाजिक न्याय पक्षधर शक्तियां शुरु से ही बढ़ाये गये आरक्षण को संरक्षित करने के लिए केन्द्र सरकार से 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करती रही हैं.नीतीश कुमार भी इस मांग के पक्ष में बोलते रहे हैं.नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले पाला बदल लिया,वे भाजपा के साथ बिहार में सरकार चला रहे हैं और उनकी पार्टी केन्द्र सरकार में हिस्सेदार है,भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं है और नरेन्द्र मोदी सरकार के चलने में उनका समर्थन महत्वपूर्ण है.भाजपा भी बिहार में बढ़ाये गये आरक्षण के पक्ष रही है,अब भी ऐसा ही दावा कर रही है.अगर भाजपा और नीतीश कुमार सहित एनडीए के अन्य घटक दल सचमुच 65 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में हैं तो फिर नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा 9वीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला जा रहा है?बिहार की एनडीए सरकार द्वारा 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को 9वीं अनुसूची में डालने की गारंटी करने के बजाय पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का रास्ता चुनना क्या बताता है?अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाईकोर्ट के फैसले पर तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया है.भाजपा घोर आरक्षण विरोधी है,भले ही वह बिहार में बढ़ाये गये आरक्षण का विरोध नहीं कर पा रही हो.सवाल तो यह है कि नीतीश कुमार किसके साथ हैं?यह सवाल चिराग पासवान और जीतन राम मांझी से भी है.एनडीए में शामिल
एससी,एसटी,ईबीसी-बीसी का अपना होने का दावा करने वाले नेता अगर सचमुच बढ़ाये गये आरक्षण के पक्ष में हैं तो 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को नौंवी अनुसूची में डालने की गारंटी करें या केन्द्र सरकार से समर्थन वापस लें!

साथियो,पटना हाईकोर्ट द्वारा एससी,एसटी,ईबीसी-बीसी का बढ़ाये गये आरक्षण को रद्द किया जाना और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले पर तत्काल रोक लगाने से इंकार किया जाना अप्रत्याशित नहीं है.न्याय व्यवस्था एससी,एसटी और ओबीसी के आरक्षण के मसले पर हमेशा ही विरोध में फैसला देती रही है.असंवैधानिक ईडब्लूएस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट जारी रखती है.जबकि आरक्षण की तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करते हुए ही संविधान विरोधी ईडब्लूएस आरक्षण भी लागू हुआ है.वहीं,शासन-सत्ता की संस्थाओं सहित अन्य क्षेत्रों में सवर्णों का आबादी से कई गुना अधिक हिस्से पर कब्जा है.

अभी एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण का अधिकार राज्यों को दिए जाने का सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला भी एससी/एसटी विरोधी है,संविधान विरोधी है.सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एससी/एसटी समुदायों में विभाजन पैदा करने वाला है.

न्याय व्यवस्था के बहुजन विरोधी ब्राह्मणवादी चरित्र को बदलने के लिए जरूरी है कि हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में भी जजों की नियुक्ति में भी एससी,एसटी और ओबीसी को आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी मिले.बहुजन आंदोलन लंबे समय से इस मांग को उठाता आ रहा है.

साथियो,
7 अगस्त खासतौर से ओबीसी समाज के लिए भारी महत्व का दिन है.इसी दिन 1990 में बी.पी. सिंह की केन्द्र सरकार ने मंडल आयोग की कई अनुशंसाओं में एक अनुशंसा-सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने की घोषणा की थी.देश की 52 प्रतिशत आबादी के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में इस फैसले का ऐतिहासिक महत्व है.लेकिन,केन्द्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण से बात आगे नहीं बढ़ पायी है.मंडल कमीशन की शेष सिफारिशें कूड़ेदान में पड़ी रह गयी हैं.सरकारी सेवाओं में देश की आधी से ज्यादा आबादी ओबीसी के लिए केवल 27 प्रतिशत आरक्षण लागू होने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था.साथ ही,50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा और असंवैधानिक क्रीमी लेयर का प्रावधान भी थोप दिया था.जाति जनगणना ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय का बुनियादी प्रश्न है जो आजादी के बाद से लेकर आज तक हल नहीं हुआ है.

आजादी के इतने वर्षों बाद भी शासन-सत्ता की संस्थाओं व अन्य क्षेत्रों के साथ संपत्ति व संसाधनों में एससी-एसटी व ओबीसी की हिस्सेदारी आबादी के अनुपात से काफी कम है.इन तबकों के उचित हक-हिस्सा के बगैर एक विकसित,आधुनिक लोकतांत्रिक भारत का निर्माण संभव नहीं है.शासन-सत्ता से लेकर संपत्ति व संसाधनों सहित तमाम क्षेत्रों में एससी,एसटी व ओबीसी की आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की लड़ाई राष्ट्र निर्माण की लड़ाई है.इस लड़ाई को बहुजनों को ही लड़ना होगा.

नरेन्द्र मोदी के पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में तो संविधान,सामाजिक न्याय और लोकतंत्र पर जबर्दस्त प्रहार हुआ है.बहुजनों की चौतरफा हकमारी और बेदखली हुई है.बहुजनों ने सड़कों पर लड़ाईयां लड़ी और 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को सबक सिखाया है,भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ.लेकिन,नरेन्द्र मोदी सरकार ने चुनाव परिणाम से सबक लेने से इंकार कर दिया है,वह पुराने रास्ते ही चल रही है.बहुजनों के हित व हक की विधानसभा और संसद में चल रही लड़ाईयां तभी आगे बढ़ सकती हैं,जीती जा सकती हैं;जब सड़कों पर लड़ाई मजबूत हो.सड़कों की लड़ाई से ही अंतिम फैसला होगा!

आइए,7 अगस्त के ऐतिहासिक दिन-राष्ट्रीय ओबीसी दिवस को सड़कों पर जुझारु एकजुटता प्रदर्शित करें!
आइए,बहुजनों के जागरण,एकजुटता और संघर्ष को नई ऊंचाई की ओर ले चलें!सम्मान,हिस्सेदारी व बराबरी के लिए आगे बढ़ें!

निवेदक: सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार)
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन(बिहार)
बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच

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