महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन

15 दिन बाद दिन में गृह सचिव से मीटिंग का नाटक और रात में अनशन पर बैठे भंतेगण को जबरन धरना स्थल से हटाना, वहाँ से बैनर पोस्टर हटाकर आंदोलन को खत्म करने की कोशिश-
महाबोधि महाविहार से दो ढाई किलोमीटर दूर मगध युनिवर्सिटी के पास दोमुहानी मैदान में अनशन जारी!
बहुजनों! अपने पुरखों की विरासत को पहचानो! उसे बचाने की लड़ाई में शामिल हो! यह सिर्फ महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन नहीं बहुजन मुक्ति आंदोलन है, बहुजनों को ब्राह्मणों द्वारा थोपे गए विषमता वादी अंधश्रद्धा वादी वैदिक धर्म के मकड़जाल से बाहर निकालकर अपने पुरखों के गौरवशाली, समतावादी, मानवता वादी, वैज्ञानिकता वादी बौद्ध धम्म से जोड़ने का भी आंदोलन है!
पूरी दुनिया को पता है भारत बुद्ध की धरती है जहाँ भी खुदाई होती है जमीन से बुद्ध की मूर्तियां और बुद्धिज्म से जुड़ी वस्तुएं ही मिलती हैं।
ब्राह्मण धर्म जिसका कोई इतिहास ही नहीं है बौद्ध धम्म की नकल करके ग्यारहवीं बारहवीं शताब्दी से धीरे धीरे शैव वैष्णव शाक्त संप्रदाय के रूप में जन्म लेने लगा मुगलकाल में राजाश्रय प्राप्त करके बहुत सारे ग्रंथ तो लिखे ही वर्ण वादी जातिवादी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करके खुद को सर्वश्रेष्ठ मनवाने में कामयाब हो गए इस तरह महान बौद्ध संस्कृति में अपने ब्राह्मणी पाखंड अंधविश्वास की घुसपैठ कराकर उसे विकृत करना, और राजाओं से सांठगांठ करके नष्ट करना शुरू कर दिया जो आज तक जारी है।
एलेक्जेंडर कनिंघम ने जब से भारत में खुदाई करवाकर जमीन के अंदर दबे बुद्धिज्म के अवशेषों को बाहर निकालना शुरू किया तभी से जनेऊ धारी सारे अवशेषों को रामायण महाभारत की कहानियों से जोड़ रहे थे।
कनिंघम के प्रयास से अंग्रेजी शासन में बना ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ आजादी के बाद से पूरी तरह ब्राह्मणों के ही कब्जे में आ गया जिसका फायदा उठाते हुए बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों, विहारों, गुफाओं में शिवलिंग स्थापित करना, मंदिर बनाकर काल्पनिक देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित करके अपना पाखंड अंधविश्वास का धंधा शुरू कर कर दिया।
पहले मुगलकाल में और अंग्रेजों के शासनकाल में चूंकि वे विदेशी थे उनका अपना धर्म था तो ब्राह्मणों ने बौद्ध धम्म को छुपाकर अपने पाखंड अंधविश्वास नीच ऊंच के भेदभाव छूआछूत आदि को धर्म बताना शुरू कर दिया और उसे धर्म मनवाने में कामयाब भी हो गए और गैर मुस्लिम, गैर ईसाई जनता जो वास्तव पहले बौद्ध थे, पहले अपने कथित धर्म ग्रंथों में शूद्र लिखकर अपमान,तिरस्कार, हकमारी के नियम बनाकर राजाओं द्वारा मनुस्मृति के नियमों को लागू करवाकर उन्हें पशुवत जीवन जीने को विवश किया लोकतंत्र की आहट पाकर उन्हीं को हिन्दू हिन्दू कहना शुरू कर दिया।
मनुविधान के उन्हीं शूद्रों को बाबा साहेब डा. अंबेडकर ने संविधान में एससी एसटी ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करके आरक्षण और प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया और 14 अक्टूबर 1956 में लाखों बहुजनों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर सारे बहुजनों को अपने पुरखों के बौद्ध धम्म में वापसी का आह्वान किया।
ब्राह्मणों को पता था कि एक न एक दिन वर्णव्यवस्था में शूद्र बनाए गए ये बहुजन अपने पुरखों के बौद्ध धम्म को पहचानकर उसमें वापसी करेंगे तो उन्होंने लगभग सारे बौद्ध स्थलों जो पुरातत्व विभाग के संरक्षण में थे उनमें सरकारी संरक्षण से मंदिर बनाना, शिवलिंग, मूर्तियां आदि स्थापित करके उनपर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। पूरे देश में कई हजार ऐतिहासिक बौद्ध स्थल हैं जिन पर ब्राह्मणों ने अतिक्रमण करके कब्जा कर रखा है उन्हीं में से
बोधगया स्थित ‘महाबोधि महाविहार’ भी है।
जिसमें बुद्ध की मूर्तियों को वहाँ सरकारी मिलीभगत से कब्जा जमाये ब्राह्मण पुजारी अर्जुन भीम नकुल सहदेव अभिमन्यु आदि बता रहा है जो सरासर झूठ है काल्पनिक महाभारत के इन काल्पनिक पात्रों की पूजा का न तो इनके ग्रंथों में कहीं पूजा का जिक्र है और न ही परंपरा फिर उस महाविहार से इस झूठ को जोड़ा जा रहा है वहाँ पर कुछ दिन पहले से पितरों के पिंडदान की परंपरा भी सत्ता के संरक्षण में ढोंगियों द्वारा शुरू कर दी गई है, शिवलिंग की स्थापना भी कर दी गई है।
ब्राह्मणों से महाविहार को मुक्त कराने के लिए कई बार आंदोलन हो चुके हैं लेकिन सफलता नहीं मिली लेकिन अबकी बार यह लड़ाई निर्णायक होगी सारे भंतेगण एकजुट होकर आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं और पहले की अपेक्षा बहुजन समाज काफी जागरूक हुआ है हिन्दू के नाम पर ब्राह्मण वर्चस्व वाद स्थापित करने के ब्राह्मणों के षडयंत्र को समझने लगा है, सारे पावर सेंटरों पर ब्राह्मणों के कब्जे और हर क्षेत्र में अपनी हकमारी को देखकर आक्रोशित है।
बहुजन समाज देख रहा है महाबोधि महाविहार के मुद्दे पर ब्राह्मणी छावनी से कोई भी कथित जगद्गुरु शंकराचार्य, बाबा, संत, प्रवचनकार, संघ भाजपा का नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं, भाजपा सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया इस आंदोलन को दिखाने को तैयार नहीं, भाजपा जदयू की बिहार सरकार का पुलिस प्रशासन जिन बौद्ध भंतेगण का महाविहार पर हक है उन्हें तो रात के अंधेरे में जबरन महाविहार से बाहर निकाल देता है और अतिक्रमण करने वाले ब्राह्मण पंडे पुजारियों पुरोहितों पर कोई कार्रवाई नहीं करता। आमरण अनशन पर बैठे भंतेगण की मुख्य मांग 1949 का बीटी एक्ट रद्द करके जिसमें महाविहार की कमेटी में ब्राह्मणों का बहुमत और वर्चस्व है खत्म करके बौद्ध धम्म के सबसे महत्वपूर्ण इस महाविहार को पूरी तरह बौद्धों के नियंत्रण में देने की मांग की गई है अठारह दिन के बाद भी न राज्य सरकार और न ही केन्द्र सरकार के कान पर जूं रेंग रही है।
बहुजन समाज से विनम्र अपील–
इस आंदोलन को सिर्फ बौद्धों का आंदोलन न समझें यह पूरे बहुजन समाज का आंदोलन है ।
यह आंदोलन हमें अपने पुरखों की विरासत से जोड़ने का आंदोलन है।
हमारी विरासत ब्राह्मणी विषमता,अन्याय, अंधविश्वास, छूआछूत,पाखंड, कर्मकांड, काल्पनिक देवी देवता भगवान, स्वर्ग नर्क, यज्ञ अनुष्ठान नहीं।
बल्कि
समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, करुणा, मैत्री, सद्भावना, अहिंसा तर्कशीलता,
जैसे महान मूल्यों पर आधारित विचारधारा है जो हमारे पूर्वज तथागत गौतम बुद्ध ने मानव जीवन को सुखमय बनाने के लिए इस दुनिया को दिया जिनके विचारों पर चलते हुए अनेक देश तरक्की की बुलंदियों को छू रहे हैं।
बाबा साहेब ने हमारे संविधान का आधार भी गौतम बुद्ध के समता स्वतंत्रता बंधुत्व और न्याय जैसे मानवीय मूल्यों को ही बनाया।
जबतक हमारे देश में बुद्धिज्म का बोलबाला था भारत विश्वगुरू कहलाता था पूरी दुनिया से छात्र यहाँ हमारे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे सैकड़ों विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते थे जबसे देश में बुद्धिज्म कमजोर और ब्राह्मणवाद मजबूत हुआ देश गुलाम हो गया। हमारा जीवन स्तर बद से बदतर होता चला गया, फिर सुधार शुरू हुआ जबसे हमारे पुरखों के मानवीय मूल्यों पर आधारित संविधान लागू हुआ लेकिन दुख यह है कि उसे लागू करने की जिम्मेदारी ब्राह्मणों के हाथ में है जिनके दिल में मनुस्मृति है इसीलिए संविधान अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहा है वही महाबोधि महाविहार के मामले में भी हो रहा है संविधान कहता है सबके साथ न्याय होना चाहिए
महाविहार में अतिक्रमण करने वाले सत्ता द्वारा संरक्षित हैं और महाविहार के असली हकदार भंतेगण निकालकर बाहर कर दिए गए हैं यह न्याय है या बहुजन समाज पर अन्याय? बहुजन समाज खुद तय करे और यदि लगता है अन्याय हो रहा है तो तन मन धन से इस महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन जुड़ें, आंदोलनकारियों का हर संभव मदद करें!
चन्द्रभान पाल (बी एस एस)
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